तेनालीरामा जी - हीरे की सच्चाई

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एक दिन राजा कृष्णादेवराय जी सभा में बैठ कर अपने सभी सभासदों एवं मंत्रिगणों से विचार विमर्श कर रहे थे । राज्य की सभी समस्याओं एवं राज्य के विकास पर चर्चा चल रही थी । सभा का प्रहरी आकर महाराज से कहता है कि महाराज द्वार पर एक फरियादी आया है और वह आपसे मिलने की प्रार्थना कर रहा है। महाराज ने प्रहरी से उस व्यक्ति को अन्दर भेजने की आज्ञा दी ।

सभा में आते ही वह फरियादी गिड़गिड़ाने लगा, बोला महाराज मेरे साथ अन्याय हुआ है, कृपया मुझे न्याय दिलाइये महाराज। फरियादी की बात सुनकर महाराज ने कहा ठीक है आपको न्याय अवश्य मिलेगा, आपका नाम क्या है? और किसने आपके साथ अन्याय किया बताइए । फरियादी ने कहा मेरे मालिक ने मुझे धोखा दिया हैं, मेरे साथ अन्याय किया है । महाराज ने कहाँ पूरी बात बताइए कुछ समझ नहीं आ रहा है ।

फरियादी बोला - जी महाराज ! मैं और मेरे मालिक एक दिन बहुत ही आवश्यक काम से पास के नगर में गए थे, लौटते समय हम थक गए थे और धूप भी बहुत अधिक थी, अतः एक मंदिर की छाँव में विश्रांति के लिए बैठ गए। हम जब वहां विश्रांति कर रहे थे तो मेरी नजर वहाँ रखी एक लाल पोटली पर पड़ी । मैंंने पोटली उठाकर खोली तो मैं आश्चर्य से देखता रह गया, उस पोटली में मटर के दाने जैसे चार हीरे थे । मैंंने मालिक को कहा मालिक किसी का हीरा यहाँ पड़ा है इसे राज्यकोश में जमा करा देते है। मालिक ने शांत रहने का इशारा करते हुए कहा की हमे किसी ने देखा नहीं है हम इसे ले चलते है आपस में बाँट लेंगे दो हीरे तुम ले लेना, दो हीरे मैंं रख लूँगा। मेरे मन में भी लालच आ गया अतः मैंंने हाँ कर दी और मुझे नौकरी का भी डर था मालिक के सामने नौकर की क्या चलती । परन्तु घर आने के बाद जब मैंंने अपना हिस्सा माँगा तो उन्होंने मना कर दिया ।

अब आप ही न्याय कीजिये महाराज । महाराज ने तत्काल सैनिको को भेजकर मालिक को उपस्थित करने का आदेश दिया । सैनिको ने तुरंत मालिक को बुलाकर महाराज के सामने उपस्थित किया । महाराज ने मालिक से पूछा की तुम्हे मंदिर से हीरा मिला था, तुमने इसका हिस्सा इसे क्यों नही दिया ? मालिक ने जवाब दिया कि महाराज यह झूठ बोल रहा है मैंंने इसे इसका हिस्सा दे दिया आप चाहे तो मेरे घर के तीन नौकरों से पूछ सकते है, मैंंने उनके सामने इसे हीरे दिए थे । अब यह मुझे फ़साने का प्रयास कर रहा है आप ही न्याय कीजिये । महाराज ने तुरंत उन तीनो नौकरों को बुलवाया और उनसे महाराज ने पूछा कि क्या मालिक ने इसे हीरे दिए थे ? तीनो नौकरों ने कहा जी महाराज मालिक ने इसे हीरे दिए थे ।

नौकरों का जवाब सुनने के बाद महाराज फरियादी पर गुस्सा होने लगे, तुम मुझसे झूठ बोल रहे हो मैं तुम्हे मृत्युदंड नहीं दे रहा हूँ इतना ही शुक्र मनाओ । फरियादी गिड़गिड़ाने लगा कि महाराज यह सभी लोग मालिक के डर से झूठ बोल रहे है, महाराज मुझे न्याय दीजिये । महाराज को भी लगा कि फरियादी कुछ तो सही कह रहा है। महाराज ने तुरंत तेनालीरामा जी को बुलवाया और सभी लोगों को एक कमरे में बिठा दिया। तेनालीरामा जी महाराज के समक्ष उपस्थित हुए। महाराज ने पूरी बात तेनालीरामा को बताई ।तेनालीरामा ने कहा बस इतनी सी बात मैं इसको अभी हल कर देता हूँ। आप परदे के पीछे छुप जाएँ और सभी नौकरों को एक एक कर के अन्दर बुलाता हूँ ।

महाराज ना चाहते हुए भी परदे के पीछे छुप गए, पहला नौकर आया । पंडित रामा ने पूछा की तुमने हीरे को देखा था तो बताओ हीरा कैसा दिखता था? सैनिक से कागज और कलम मंगवाया परन्तु पहला नौकर उत्तर ना दे सका । दूसरे को बुलाया गया परन्तु दूसरा गोल गोल करता रह गया, तीसरा नौकर भी आया परन्तु वह भी निरुत्तर था। महाराज को गुस्सा आ गया, वह तुरंत परदे के पीछे से निकल आये उनको देखते ही नौकर डर गया और सब सच बता दिया । महाराज ने मालिक पर जुर्माना लगाया और फरियादी को मालिक से ३० सोने की मुहरे दिलवाए और हीरों को राज्यकोष में जमा करा दिया गया । फरियादी खुश हो गया । महाराज तेनालीरामा से बहुत प्रसन्न हुए और शाबाशी दी ।