जो जैसा करता है वैसा भरता है

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एक समय की बात है, एक बच्चा था जो बहुत ही गरीब परिवार में जन्मा था। वह छोटा ही था कि उसके माँ और पिताजी दोनों की बीमारी कारण मौत हो गई । बच्चा अकेला रह गया और उसे खाने पीने की बहुत तकलीफ होने लगी थी । वह अपना पेट भरने के लिए घूम घूमकर सामान बेचता था और उसी से अपनी स्कूल की फ़ीस भरता था।

वो भीषण गर्मी के दिन थे। बच्चा घूम घूमकर सामान बेच रहता परन्तु कोई खरीदार नहीं था। सारा सामान उसका ऐसे ही पड़ा था दोपहर हो गई थी। उसे बहुत जोरो की भूख और प्यास दोनों लगी थी, परन्तु वह सोच रहा था कि कुछ सामान बिक जाये तो उन पैसे से कुछ लेकर खा लूँगा, परन्तु कुछ भी बिका नहीं । उसकी हालत बहुत ही ख़राब हो चली थी। उसने अब विचार किया कि अब जो भी घर आएगा, उस घर से पीने के लिए पानी और कुछ खाने के लिए भी मांग लूँगा ।

अब एक घर के बाहर खड़े होकर उसने आवाज लगाई, घर के अन्दर से एक लडकी बाहर आई, उसने पूछा कहिये क्यों आवाज दे रहे हो? लड़के ने कहा "जी प्यास लगी है, पानी मिल सकता है क्या?" परन्तु खाने के लिए कुछ ना मांग सका। वह लडकी बच्चे को देखकर ही समझ गई थी कि यह बहुत भूखा है, इसलिए वह पानी के साथ एक गिलास में दूध भी ले आई और उस लड़के को को पीने के लिए दे दिया। बच्चे ने हिचकते हुए दूध को पी लिया और "इस दूध का कितना मूल्य होगा ?" ऐसा उस लड़की से पूछा। लड़की ने कहा कोई बात नहीं, पैसे नहीं चाहिए।

कई वर्षों के बाद उस लड़की की तबियत बहुत अधिक ख़राब हो गई थी। उसे हस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने बहुत मेहनत करके उसकी जान बचाई । जब वह ठीक हो गई तो उसे खर्च का बिल दिया गया, वह बिल देखकर घबरा गई क्योकि उसके पास बिल भरने के लिए पैसे नहीं थे। फिर उसने बिल के नीचे देखा, जहाँ लिखा था - 'आपका बिल भर दिया गया है आपको भरने की आवश्नयकता नहीं है'।

वह पढ़कर लडकी आश्चर्य चकित हो गई उसे समझ नहीं आया क्या है? बिल के साथ एक पत्र भी था। उस पत्र को लडकी ने पढ़ा जिसमे लिखा था की आपके दूध का कर्ज है। धन्यवाद!! अगर आपने उस दिन मेरी मदद ना की होती तो मै आज यह नहीं बन पाता ।

कहानी की सीख

जो जैसा कर्म और व्यवहार करता है उसके उसे उसका फल अवश्य मिलाता है, गलत करेंगे तो गलत, सही करेंगे तो सही परिणाम मिलेगा, इसलिए हमें हमेशा जरुरत मंद लोगो की बिना बोले मदद करनी चाहिए। कभी अधीर नहीं होना चाहिए, धैर्य के साथ अपना कर्म कारण चाहिए फल अवश्य मिलता है।

इसी विषय के लिए कबीर जी ने लिखा है:

धीरे धीरे रे मना ,धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आये फल होय ।।