Difference between revisions of "जीवन प्रतिमान - तात्कालिक पृष्ठ"

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MUMBAI: A 20-year-old woman, identified as Shaheen Parveen, was found hanging at her residence in suburban Oshiwara, in the Behrambaugh slum, according to the police report on Saturday.
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यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा के भारतीयकरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो ।
  
The incident occurred on Friday afternoon when concerned neighbors, after receiving no response to their repeated calls, decided to break open the door of her small room. To their shock, they found her lifeless body hanging from the ceiling.
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भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ होता है जब यूरोपीय देशों के लोग विश्व के अन्यान्य देशों में जाने लगे ।
  
Promptly alerted, the Oshiwara police arrived at the scene and rushed her to a nearby hospital. She was declared dead upon arrival. Shaheen Parveen, originally from Bihar, had been residing alone in the slum.
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पन्द्रहबीं शताब्दी के अन्त में वे भारत में आये ।
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भारत में स्थिर होते होते उन्हें एक सौ वर्ष लगे । सन सोलह सौ में इस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में आई और आज की
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दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से
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रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास
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यशस्वी होने वाला नहीं है ।

Latest revision as of 16:51, 10 September 2023

यद्यपि इन पांच ग्रन्थों में “पश्चिमीकरण से शिक्षा की मुक्ति' एक ग्रन्थ है, और वह चौथे क्रमांक पर है तो भी शिक्षा के भारतीयकरण का विषय इससे या इससे भी पूर्व से प्रारम्भ होता है । शिक्षा के पश्चिमीकरण से मुक्ति का विषय तो तब आता है जब शिक्षा का पश्चिमीकरण हुआ हो ।

भारत में शिक्षा के पश्चिमीकरण का मामला पाँचसौ वर्ष पूर्व से प्रारम्भ होता है जब यूरोपीय देशों के लोग विश्व के अन्यान्य देशों में जाने लगे ।

पन्द्रहबीं शताब्दी के अन्त में वे भारत में आये ।

भारत में स्थिर होते होते उन्हें एक सौ वर्ष लगे । सन सोलह सौ में इस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में आई और आज की दुःस्थिति का प्रारम्भ हुआ । वह लूट के उद्देश्य से आई थी । लूट निरन्तरता से, बिना अवरोध के होती रहे इस दृष्टि से उसने व्यापार शुरु किया । व्यापार भारत भी करता था । धर्मपालजी लिखते हैं कि सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में चीन और भारत का मिलकर विश्वव्यापार में तिहत्तर प्रतिशत हिस्सा था । अतः भारत को भी व्यापार का अनुभव कम नहीं था । परन्तु भारत को नीतिधर्म के अनुसार व्यापार करने का अनुभव और अभ्यास था । ब्रिटीशों के लिये अधिक से अधिक मुनाफा ही नीति थी । अतः व्यापार के नाम पर वे लूट ही करते रहे । व्यापार भी अनिर्बन्ध रूप से चले इस हेतु से उन्होंने राज्य हथियाना प्रारम्भ किया । ब्रिटीशों का दूसरा उद्देश्य था भारत का इसाईकरण करना । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये उन्होंने वनवासी, गिरिवासी, निर्धन लोगों को लक्ष्य बनाया, वर्गभेद निर्माण किये, भारत की समाज व्यवस्था को ऊँचनीच का स्वरूप दिया, एक वर्ग को उच्च और दूसरे वर्ग को नीच बताकर उच्च वर्ग को अत्याचारी और नीच वर्ग को शोषित और पीडित बताकर पीडित वर्ग की सेवा के नाम पर इसाईकरण के प्रयास शुरू किये । उनका तीसरा उद्देश्य था भारत का यूरोपीकरण करना । उनके पहले उद्देश्य को स्थायी स्वरूप देने में भारत का यूरोपीकरण बडा कारगर उपाय था । यूरोपीकरण करने के लिये उन्होंने शिक्षा को माध्यम बनाया । उनकी प्रत्यक्ष शिक्षा के ही यूरोपीकरण की योजना इतनी यशस्वी हुई कि आज हम जानते तक नहीं है कि हम यूरोपीय शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और यूरोपीय सोच से जी रहे हैं । भारत को अभारत बनाने की प्रक्रिया दो सौ वर्ष पूर्व शुरू हुई और आज भी चल रही है । हम निरन्तर उल्टी दिशा में जा रहे हैं और उसे विकास कह रहे हैं । अब प्रथम आवश्यकता दिशा बदलने की है । दिशा बदले बिना तो कोई भी प्रयास यशस्वी होने वाला नहीं है ।