Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎बोझ कम करने के उपाय: लेख संपादित किया
Line 72: Line 72:  
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
 
* समय-समय पर विद्यार्थियों के बस्तों का निरीक्षण होना चाहिये । अनावश्यक और फालतू बातें नहीं लाने के लिए आग्रहपूर्वक समझाना चाहिये । यह स्वभाव फिर अन्य बातों में भी परिलक्षित होता है, जीवन में व्यवस्थितता आती है।  
 
* बस्ते का बोझ तो कम करना ही चाहिये, साथ में व्यवस्थितता भी आनी चाहिये । इसके अलावा अन्य छोटी बातें भी विचारणीय हैं।  
 
* बस्ते का बोझ तो कम करना ही चाहिये, साथ में व्यवस्थितता भी आनी चाहिये । इसके अलावा अन्य छोटी बातें भी विचारणीय हैं।  
* आजकल बस्ता बहुत महँगा और सिन्थेटिक होता है। दोनों बातें हानिकारक हैं। इसका उपाय करना चाहिये । बस्ते के कद और आकार का विचार कर, उसे कितना भार उठाना है उसका विचार कर, उसकी डिजाइन कैसी होगी इसका विचार कर, योग्य कपड़े का चयन कर विद्यालय ने ही एक नमूना तैयार करना चाहिये । उसकी विशेषताओं को देखकर, समझकर, अपनी मौलिकता का विनियोग कर अभिभावक स्वयं बस्ता बनवा सकते हैं अथवा विद्यालय सबके लिये बस्ते की व्यवस्था कर सकते हैं । बस्तों की सिलाई के लिये दर्जी को बुलाया जा सकता है । यह भी एक बहुत अच्छा और उपयोगी कार्य ही होगा ।
+
* आजकल बस्ता बहुत महँगा और सिन्थेटिक होता है। दोनों बातें हानिकारक हैं। इसका उपाय करना चाहिये । बस्ते के कद और आकार का विचार कर, उसे कितना भार उठाना है उसका विचार कर, उसकी डिजाइन कैसी होगी इसका विचार कर, योग्य कपड़े का चयन कर विद्यालय ने ही एक नमूना तैयार करना चाहिये । उसकी विशेषताओं को देखकर, समझकर, अपनी मौलिकता का विनियोग कर अभिभावक स्वयं बस्ता बनवा सकते हैं अथवा विद्यालय सबके लिये बस्ते की व्यवस्था कर सकते हैं। बस्तों की सिलाई के लिये दर्जी को बुलाया जा सकता है । यह भी एक बहुत अच्छा और उपयोगी कार्य ही होगा ।
    
* पानी की बोतल एक अनावश्यक बोझ है । इसकी चर्चा पहले की गई है ।
 
* पानी की बोतल एक अनावश्यक बोझ है । इसकी चर्चा पहले की गई है ।
Line 91: Line 91:  
यह स्थिति इस बात की ओर संकेत करती है कि शिक्षा को केवल अंकों के खेल से मुक्त कर अधिक अर्थपूर्ण बनाना चाहिये ।
 
यह स्थिति इस बात की ओर संकेत करती है कि शिक्षा को केवल अंकों के खेल से मुक्त कर अधिक अर्थपूर्ण बनाना चाहिये ।
   −
=== (अ) विद्यालय में छात्रों द्वारा प्रयुक्त साधनसामग्री ===
+
== विद्यालय में छात्रों द्वारा प्रयुक्त साधनसामग्री ==
 
# छात्रों के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री होती है?
 
# छात्रों के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री होती है?
 
# इन चीजों की उपयोगिता क्या क्या है - (१) पुस्तकें (२) कापी (३) लेखनी, पेन्सिल रंगीन पेन्सिल आदि
 
# इन चीजों की उपयोगिता क्या क्या है - (१) पुस्तकें (२) कापी (३) लेखनी, पेन्सिल रंगीन पेन्सिल आदि
Line 103: Line 103:  
# साधनसामग्री किसे कहते हैं ?
 
# साधनसामग्री किसे कहते हैं ?
   −
=== (ब) शिक्षक के द्वारा प्रयुक्त साधनसामग्री ===
+
== शिक्षक के द्वारा प्रयुक्त साधनसामग्री ==
    
=== आचार्य के लिये साधनसामग्री की क्या उपयोगिता है ? ===
 
=== आचार्य के लिये साधनसामग्री की क्या उपयोगिता है ? ===
1. आचार्य के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री की क्या उपयोगिता होती है ?
+
# आचार्य के लिये कौन कौन सी साधनसामग्री की क्या उपयोगिता होती है ?
   −
2. आचार्य के लिए कौन कौन सी साधनसामग्री होती है ?
+
# आचार्य के लिए कौन कौन सी साधनसामग्री होती है ?
 +
# आचार्य के लिये साधनसामग्री की उपयोगिता एवं निरुपयोगिता के मापदंड क्या हैं ?
 +
# उपयोगी सामग्री किन किन स्रोतों से प्राप्त होती है?
 +
# साधनसामग्री का आर्थिक पक्ष क्या है ?
 +
# साधनसामग्री के सुविधापूर्ण उपयोग के लिये विद्यालयों में किस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिये ?
 +
# साधनसामग्री के रखरखाव एवं उपयोग के सम्बन्ध में कौन कौन से बिन्दु ध्यान देने योग्य हैं ?
 +
# आचार्य स्वयं के स्वाध्याय के लिये कौन कौन सी सामग्री का उपयोग कर सकता है ?
 +
# आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
 +
# साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगों का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
 +
विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नावली थोडी बड़ी बनी है |
   −
3. आचार्य के लिये साधनसामग्री की उपयोगिता एवं निरुपयोगिता के मापदंड क्या हैं ?
+
== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ==
 
+
विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सुलभ एवं सुस्पष्ट बनाने के लिए जो सामग्री उपयोग में ली जाती है उसे साधन-सामग्री कहते हैं ऐसी व्याख्या सबने की है । पैन पेंसिल, कॉपी, रजिस्टर, कम्पास, किताबें, एटलस, शब्दकोष आदि । इसी प्रकार यांत्रिक उपकरणों में संगणक, लेपटोप, टेब, केल्क्यूलेटर, ऑडियो-विडिओ सीडीज आदि सभी उपकरण साधन सामग्री के अन्तर्गत ही आते हैं । कौनसी आयु में कौनसी सामग्री उपयुक्त है और कौनसी हानिकारक है इसका विवेक करना आना चाहिए । दृष्टि कमजोर है तो ऐनक आवश्यक हो जाती है, लेकिन दृष्टि बिल्कुल ठीक है फिर भी केवल फेशन के लिए एनक पहना जायेगा तो निश्चित है कि यह हानि पहुँचायेगा । इसलिए स्तर के अनुसार साधनों का वर्गीकरण करना चाहिए :
४. उपयोगी सामग्री किन किन स्रोतों से प्राप्त होती है?
  −
 
  −
५. साधनसामग्री का आर्थिक पक्ष क्या है ?
  −
 
  −
६. साधनसामग्री के सुविधापूर्ण उपयोग के लिये विद्यालयों में किस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिये ?
  −
 
  −
७. साधनसामग्री के रखरखाव एवं उपयोग के सम्बन्ध में कौन कौन से बिन्दु ध्यान देने योग्य हैं ?
  −
 
  −
८. आचार्य स्वयं के स्वाध्याय के लिये कौन कौन सी सामग्री का उपयोग कर सकता है ?
  −
 
  −
९.  आवश्यक साधनसामग्री के स्रोत कितने प्रकार के होते हैं ?
  −
 
  −
१०, साधनसामग्री निर्माण करने में किन किन लोगों का सहयोग प्राप्त हो सकता है ? कैसे ?
  −
 
  −
विद्यालय में प्रयुक्त साधन-सामग्री छात्र एवं आचार्य दोनों के लिए ही उपयोगी होती है, अतः यह प्रश्नवावली थोडी बडी बनी है |
  −
 
  −
==== छात्रों के लिए साधन सामग्री : प्राप्त उत्तर ====
  −
विद्यार्थियों की शिक्षण प्रक्रिया को अधिक सुलभ एवं सुस्पष्ट बनाने के लिए जो सामग्री उपयोग में ली जाती है उसे साधन-सामग्री कहते हैं ऐसी व्याख्या सबने की है । पैन पेंसिल, कॉपी, रजिस्टर, कम्पास, किताबें, एटलस, शब्दकोष आदि । इसी प्रकार यांत्रिक उपकरणों में संगणक, लेपटोप, टेब, केल्क्यूलेटर, ऑडियो-न्हीडियो सीडीज आदि सभी उपकरण साधन सामग्री के अन्तर्गत ही आते हैं । कौनसी आयु में कौनसी सामग्री उपयुक्त है और कौनसी हानिकारक है इसका विवेक करना आना चाहिए । उदा, दृष्टि कमजोर है तो ऐनक आवश्यक हो जाती है, लेकिन दृष्टि बिल्कुल ठीक है फिर भी केवल फेशन के लिए एनक पहना जायेगा तो निश्चित है कि यह हानि पहुँचायेगा । इसलिए स्तर के अनुसार साधनों का वर्गीकरण करना चाहिए :
      
==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
Line 149: Line 140:     
===== आवश्यक सामग्री =====
 
===== आवश्यक सामग्री =====
१, पाठ्यपुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें, लेखन सामग्री आवश्यक सामग्री हैं । गणित और विज्ञान के सन्दर्भ में कम्पास पेटिका, मापनपट़िका आवश्यक सामग्री हैं। पेन्सिल के साथ रबड़ आवश्यक है । स्लेट के साथ खड़िया पेन और स्लेट पोंछने का कपडा आवश्यक है । चित्र बनाने हेतु पेन्सिल, रंग आदि आवश्यक है । भूगोल के लिये स्लेट के साथ-साथ लेखन पुस्तिका भी आवश्यक है ।
+
पाठ्यपुस्तकें, सन्दर्भ पुस्तकें, लेखन सामग्री आवश्यक सामग्री हैं । गणित और विज्ञान के सन्दर्भ में कम्पास पेटिका, मापनपट़िका आवश्यक सामग्री हैं। पेन्सिल के साथ रबड़ आवश्यक है । स्लेट के साथ खड़िया पेन और स्लेट पोंछने का कपडा आवश्यक है । चित्र बनाने हेतु पेन्सिल, रंग आदि आवश्यक है । भूगोल के लिये स्लेट के साथ-साथ लेखन पुस्तिका भी आवश्यक है ।
    
आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति, धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं । इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदतत साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें सुनी और समझी जाती हैं ।
 
आवश्यक सामग्री किसे कहते हैं ? जिसके बिना पढ़ना सम्भव ही नहीं हो, वह अनिवार्य सामग्री है । शिक्षा का शास्त्र कहता है कि पढने के लिये शिक्षक और विद्यार्थी के अलावा और कुछ भी अनिवार्य नहीं है । दोनों को एक ही शब्द प्रयोग लागू करना है तो विद्यार्थी संज्ञा ही उपयुक्त है। पढाना भी पढ़ने का ही प्रगत रूप है । विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति विद्यार्थी है और शिक्षक भी अपने मूल रूप में विद्यार्थी ही है । विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने के लिये उपयोगी साधन उसे जन्मजात मिले हैं । वे हैं कर्मन्द्रियाँ, ज्ञानेन्द्रिया, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार । ये साधन प्राथमिक हैं, मुख्य हैं और अनिवार्य हैं । स्मृति, धारणा, ग्रहणशीलता, समझ, कौशल आदि इनके गुण हैं । इन मुख्य साधनों की सहायता के लिये उनके द्वारा उपयोग किये जाने के लिये जो सामग्री है, वह आवश्यक सामग्री है । प्राचीन काल में जब लेखन कला का आविष्कार नहीं हुआ था, तब तक पढ़ाई के लिये किसी भी प्रकार की सामग्री का प्रयोग नहीं करना पड़ता था । शिक्षक का बोलना और विद्यार्थी का सुनना ही पर्याप्त होता था । इससे भी अदूभुत बातों का उल्लेख मिलता है । पढाई के ईश्वरप्रदतत साधन जब सर्वाधिक सक्षम होते हैं, तब बिना कहे भी बातें सुनी और समझी जाती हैं ।
   −
दो उदाहरण देखें...<blockquote>१, चित्रं वटतरोमूँले वृद्धा शिष्याः गुररु्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोइस्तु मौन॑ व्याख्यानं शिष्याइस्तु छिन्न संशया: ।।</blockquote>अर्थात्‌ अहो, आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन ही व्याख्यान है और शिष्यों के संशय दूर हो जाते हैं ।
+
दो उदाहरण देखें:<blockquote>चित्रं वटतरोमूँले वृद्धा शिष्याः गुररु्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोइस्तु मौन॑ व्याख्यानं शिष्याइस्तु छिन्न संशया: ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ अहो, आश्चर्य है ! वटवृक्ष के नीचे वृद्ध शिष्य और युवा गुरु बैठे हैं । गुरु का मौन ही व्याख्यान है और शिष्यों के संशय दूर हो जाते हैं ।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है ।</blockquote>यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।
 
  −
अर्थात्‌ पढ़ने के लिये उपयोगी ईश्वरप्रदत्त साधनों की क्षमता कितनी अधिक है इसका यहाँ वर्णन किया गया है ।
  −
 
  −
यह वर्णन काल्पनिक नहीं है, सत्य है ।
      
२. गर्भावस्‍था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं ।
 
२. गर्भावस्‍था में तथा सद्योजात, बहुत छोटे बच्चे बड़ों के द्वारा अनकही बातें भी समझ जाते हैं, जिन्हें वे संस्कारों के रूप में ग्रहण करते हैं ।

Navigation menu