Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 4: Line 4:     
एकबार सम्राट चन्द्रगुप्त जी और आचार्य चाणक्य के कुछ चर्चा चल रही थी, तभी अचानक सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य जी से कहा," काश आप खुबसूरत होते" ? आचार्य चाणक्य यह बात सुनकर सम्राट से कहा "राजन मनुष्य की पहचान उसके बाह्य रंग रूप से होती है या उसके आतंरिक गुणों से होती है |
 
एकबार सम्राट चन्द्रगुप्त जी और आचार्य चाणक्य के कुछ चर्चा चल रही थी, तभी अचानक सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य जी से कहा," काश आप खुबसूरत होते" ? आचार्य चाणक्य यह बात सुनकर सम्राट से कहा "राजन मनुष्य की पहचान उसके बाह्य रंग रूप से होती है या उसके आतंरिक गुणों से होती है |
 +
 +
आचार्य के प्रश्नों को सुनकर सम्राट चंद्रगुप्त ने आचार्य से कहा आचार्य क्या आप इस बात को प्रमाणिक कर सकते है क्या की रूप के सामने गुण का महत्व अधिक होता है | रूपवान से अधिक गुणवान व्यक्ति उअप्योगी होता है | आचार्य चाणक्य ने कहा जी मै इसे प्रमाणित कर सकता हूँ |
 +
 +
आचार्य जी ने महारानी जी से जाकर कुछ कहा और सम्राट से आग्रह क्या की महाराज आप दो गिलास पानी पि लिजिये | सम्राट ने दोनों गिलास पानी पि लिया अब आचार्य ने सम्राट से पूछा की आपको किस गिलास का पानी अच्छा लगा और आपकी तृप्ति हुई | सम्राट ने उत्तर दिया जी पहले गिलास की अपेक्षा दुसरे गिलास का पानी बढियां था और पिने से तृप्ति नही लगी |
 +
 +
आचार्य ने कहाँ जी अब आप ही बताइए इसका निष्कर्ष क्या है पहले गिलास का पानी सोने से बने घड़े का है और दुसरे गिलास का पानी मिटटी के घड़े का है | महारनी ने कहा ऐसे सोने के घड़े का क्या फायद जो दुसरो को तृप्त नहीं कर सकता, इससे अच्छा तो मिटटी का घडा है जिससे लोगो की तृप्ति होती | देखिये राजन सोना बहुत ही सुन्दर है परन्तु मिटटी कितनी कुरूप परन्तु उसके आतंरिक गुण के कारण उसकी उप्योगोता बहुत अधिक है |
1,192

edits

Navigation menu