Difference between revisions of "चाणक्य जी के प्रेरक प्रसंग - रूप या गुण"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
m (Text replacement - "मै" to "मैं")
m (Text replacement - "लोगो" to "लोगों")
Line 9: Line 9:
 
आचार्य जी ने महारानी जी से जाकर कुछ कहा और सम्राट से आग्रह किया कि महाराज आप दो गिलास पानी पी लिजिये। सम्राट ने दोनों गिलास पानी पी लिया अब आचार्य ने सम्राट से पूछा की आपको किस गिलास का पानी अच्छा लगा और आपकी तृप्ति हुई। सम्राट ने उत्तर दिया जी पहले गिलास की अपेक्षा दूसरे गिलास का पानी बढिया था और पीने से तृप्ति भी हो गई।
 
आचार्य जी ने महारानी जी से जाकर कुछ कहा और सम्राट से आग्रह किया कि महाराज आप दो गिलास पानी पी लिजिये। सम्राट ने दोनों गिलास पानी पी लिया अब आचार्य ने सम्राट से पूछा की आपको किस गिलास का पानी अच्छा लगा और आपकी तृप्ति हुई। सम्राट ने उत्तर दिया जी पहले गिलास की अपेक्षा दूसरे गिलास का पानी बढिया था और पीने से तृप्ति भी हो गई।
  
आचार्य ने कहा जी अब आप ही बताइए इसका निष्कर्ष क्या है? पहले गिलास का पानी सोने से बने घड़े का है और दूसरे गिलास का पानी मिटटी के घड़े का है। महारनी ने कहा ऐसे सोने के घड़े का क्या फायदा जो दूसरों को तृप्त नहीं कर सकता, इससे अच्छा तो मिटटी का घडा है जिससे लोगो की तृप्ति होती। देखिये राजन सोना बहुत ही सुन्दर है और मिटटी कितनी कुरूप परन्तु उसके आतंरिक गुण के कारण उसकी उपयोगिता बहुत अधिक है।
+
आचार्य ने कहा जी अब आप ही बताइए इसका निष्कर्ष क्या है? पहले गिलास का पानी सोने से बने घड़े का है और दूसरे गिलास का पानी मिटटी के घड़े का है। महारनी ने कहा ऐसे सोने के घड़े का क्या फायदा जो दूसरों को तृप्त नहीं कर सकता, इससे अच्छा तो मिटटी का घडा है जिससे लोगों की तृप्ति होती। देखिये राजन सोना बहुत ही सुन्दर है और मिटटी कितनी कुरूप परन्तु उसके आतंरिक गुण के कारण उसकी उपयोगिता बहुत अधिक है।
  
 
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]
 
[[Category:बाल कथाए एवं प्रेरक प्रसंग]]

Revision as of 04:09, 16 November 2020

भारत की एक महान विभूति जिनसे सभी लोग बहुत ही अच्छी तरह परिचित है,उनका नाम है - आचार्य कौटिल्य चाणक्य। उनके विचारो से कितने लोग प्रेरणा लेकर उनकी नीतियों का उपयोग आज भी अपने जीवन में करते है। जिस समय भारत वर्ष में विभाजन का खतरा मंडरा रहा था उस परिस्थिति में पूरे भारत वर्ष को अपनी नीति एवं बुद्धिकौशल्य द्वारा पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने का प्रयास सफलता पूर्वक किया। आचार्य चाणक्य जी ने अपने राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत होकर एक साधारण बालक चन्द्रगुप्त को मगध का सम्राट बनाया जिन्होंने भारत वर्ष को महान बनाया।

ऐसे महान विभूति श्री आचार्य चाणक्य जी के जीवन की प्रेरणा दायक कथाओं में से कुछ अंश।

एकबार सम्राट चन्द्रगुप्त जी और आचार्य चाणक्य के कुछ चर्चा चल रही थी, तभी अचानक सम्राट चन्द्रगुप्त ने चाणक्य जी से कहा," काश आप खूबसूरत होते" ? आचार्य चाणक्य यह बात सुनकर सम्राट से कहा "राजन मनुष्य की पहचान उसके बाह्य रंग रूप से होती है या उसके आतंरिक गुणों से होती है?

आचार्य के प्रश्नों को सुनकर सम्राट चंद्रगुप्त ने आचार्य से कहा आचार्य क्या आप इस बात को प्रमाणिक कर सकते हैं कि रूप के सामने गुण का महत्व अधिक होता है । रूपवान से अधिक गुणवान व्यक्ति उपयोगी होता है। आचार्य चाणक्य ने कहा जी मैं इसे प्रमाणित कर सकता हूँ।

आचार्य जी ने महारानी जी से जाकर कुछ कहा और सम्राट से आग्रह किया कि महाराज आप दो गिलास पानी पी लिजिये। सम्राट ने दोनों गिलास पानी पी लिया अब आचार्य ने सम्राट से पूछा की आपको किस गिलास का पानी अच्छा लगा और आपकी तृप्ति हुई। सम्राट ने उत्तर दिया जी पहले गिलास की अपेक्षा दूसरे गिलास का पानी बढिया था और पीने से तृप्ति भी हो गई।

आचार्य ने कहा जी अब आप ही बताइए इसका निष्कर्ष क्या है? पहले गिलास का पानी सोने से बने घड़े का है और दूसरे गिलास का पानी मिटटी के घड़े का है। महारनी ने कहा ऐसे सोने के घड़े का क्या फायदा जो दूसरों को तृप्त नहीं कर सकता, इससे अच्छा तो मिटटी का घडा है जिससे लोगों की तृप्ति होती। देखिये राजन सोना बहुत ही सुन्दर है और मिटटी कितनी कुरूप परन्तु उसके आतंरिक गुण के कारण उसकी उपयोगिता बहुत अधिक है।