Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "भगवान्" to "भगवान"
Line 1: Line 1: −
गुरुदेव_रवीन्द्रनाथ_ठाकुर (1861-1941 ई०)
+
{{One source|date=May 2020 }}
   −
सुकाव्येन नित्यं जनान्‌ मोहयन्तं सुवाचा सुधर्म सदा बोधयन्तम्‌।
+
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref>(1861-1941 ई०)<blockquote>सुकाव्येन नित्यं जनान्‌ मोहयन्तं सुवाचा सुधर्म सदा बोधयन्तम्‌।</blockquote><blockquote>कुरीतीः कुतर्कास्तथा खण्डयन्तं, रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥</blockquote>अपनी उत्तम कविताओं से सदा मनुष्यों को मुग्ध करते हुए, उत्तम वाणी से शुभ धर्म का उपदेश देते हुए, कुरीतियों तथा कुतकों का खण्डन करते हुए अत्यन्त बुद्धिमान्‌ कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।<blockquote>सुशिक्षाप्रसारो भवेच्छात्रवर्गे, तमिस्रा तथाऽज्ञानजन्या विनश्येत्‌।</blockquote><blockquote>अतः शान्तिकेतं शुभं स्थापयन्तं,रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥</blockquote>विद्यार्थियों में उत्तम शिक्षा का प्रसार हो और अज्ञानान्धकार दूर हो, इस उद्देश्य से शान्तिनिकेतन नामक उत्तम संस्था को संस्थापित करने वाले कवीन्द्र महाबुद्धिमान्‌ रवीन्द्र नाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।<blockquote>परेशाय गीताञ्जलिं स्वर्पयन्तं, तथा तेन कीर्तिं सुसम्पादयन्तं,</blockquote><blockquote>सुभक्त्या च शान्तिं समासादयन्तं,रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥</blockquote>जिस ने अपनी सर्वोत्तम कृति गीताञ्जलि (जिस पर उन्हें लगभग सवा लाख रुपये का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ) को भगवान‌ को समर्पित किया तथा उसके द्वारा सत्कीर्ति प्राप्त की, उत्तम ईश्वर-भक्ति के द्वारा जिन्होंने शान्ति को प्राप्त किया, ऐसे महाबुद्धिमान्‌ कवीन्द्र रवीन्द्रनाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।<blockquote>स्वदेशस्य कीर्तिं सदा वर्धयन्तं, सुसंकीर्णभावान्‌ सदा दूरयन्तम्‌।</blockquote><blockquote>जनेष्वत्र सौहार्दमुत्पादयन्तं, रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥</blockquote>अपने देश भारत की कीर्तिं को सदा बढ़ाने वाले, संकुचित भावों को भगाने वाले, मनुष्यों में मित्रता उत्पन्न करने वाले, कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ जी को हम नमस्कार करते है।
   −
कुरीतीः कुतर्कास्तथा खण्डयन्तं, रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌।35॥
+
==References==
   −
अपनी उत्तम कविताओं से सदा मनुष्यों को मुग्ध करते हुए, उत्तम वाणी
+
<references />
   −
से शुभ धर्म का उपदेश देते हुए, कुरीतियों तथा कुतकों का खण्डन करते हुए
+
[[Category: Mahapurush (महापुरुष कीर्तनश्रंखला)]]
 
  −
अत्यन्त बुद्धिमान्‌ कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।
  −
 
  −
सुशिक्षाप्रसारो भवेच्छात्रवर्गे, तमिस्रा तथाऽज्ञानजन्या विनश्येत्‌।
  −
 
  −
अतः शान्तिकेतं शुभं स्थापयन्तं,रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥36॥
  −
 
  −
विद्यार्थियों में उत्तम शिक्षा का प्रसार हो और अज्ञानान्धकार दूर हो इस
  −
 
  −
उद्देश्य से शान्तिनिकेतन नामक उत्तम संस्था को संस्थापित करने वाले कवीन्द्र
  −
 
  −
महाबुद्धिमान्‌ रवीन्द्र नाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।
  −
 
  −
परेशाय गीताञ्जलिं स्वर्पयन्तं, तथा तेन कीर्तिं सुसम्पादयन्तं,
  −
 
  −
सुभक्त्या च शान्तिं समासादयन्तं,रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌॥37॥।
  −
 
  −
जिस ने अपनी सर्वोत्तम कृति गीताञ्जलि (जिस पर उन्हें लगभग सवा
  −
 
  −
लाख रुपये का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ) को भगवान्‌ को समर्पित किया तथा
  −
 
  −
उसके द्वारा सत्कीर्ति प्राप्त की, उत्तम ईश्वर-भक्ति
  −
 
  −
64
  −
 
  −
के द्वारा जिन्होंने शान्ति को प्राप्त किया, ऐसे महाबुद्धिमान्‌ कवीन्द्र
  −
 
  −
रवीन्द्रनाथ जी को हम नमस्कार करते हैं।
  −
 
  −
स्वदेशस्य कीर्तिं सदा वर्धयन्तं, सुसंकीर्णभावान्‌ सदा दूरयन्तम्‌।
  −
 
  −
जनेष्वत्र सौहार्दमुत्पादयन्तं, रवीन्द्रं नमामः कवीन्द्रं सुधीन्द्रम्‌।।38॥
  −
 
  −
अपने देश भारत की कीर्तिं को सदा बढ़ाने वाले, संकुचित भावों
  −
 
  −
को भगाने वाले, मनुष्यों में मित्रता उत्पन्न करने वाले, कवीन्द्र रवीन्द्र
  −
 
  −
नाथ जी को हम नमस्कार करते है।
 

Navigation menu