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→‎“गुरुकुल' संज्ञा: लेख सम्पादित किया
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लगते हैं{{Citation needed}} :<blockquote>शान्तो दान्तः कुलीनश्व विनीतः शुद्धवेषवान । शुद्धाचारः सुप्रतिष्ठ: शुचिर्दक्ष: सुबुद्धिमान ।</blockquote><blockquote>अध्यात्म ध्याननिष्ठश्र मन्त्रतन्त्रविशारदः: । निग्रहानुग्रहे शक्‍तो गुरुरित्यमिधीयते ।।</blockquote>शांत, इन्द्रियों का दमन करने वाला, कुलीन, विनीत, शुद्ध वेशयुक्त, शुद्ध आचार युक्त, अच्छी प्रतिष्ठा से युक्त, पवित्र, दक्ष अर्थात्‌ कुशल, अच्छी और तेजस्वी बुद्धि से युक्त, अध्यात्म और ध्यान में निष्ठा रखने वाला, मंत्र और तंत्र को जानने वाला (मंत्र अर्थात्‌ विचार को जानने वाला और तंत्र अर्थात्‌ व्यवस्था और रचना करने में कुशल) तथा कृपा और शासन दोनों की क्षमता रखने वाला व्यक्ति गुरु कहा जाता है ।
 
लगते हैं{{Citation needed}} :<blockquote>शान्तो दान्तः कुलीनश्व विनीतः शुद्धवेषवान । शुद्धाचारः सुप्रतिष्ठ: शुचिर्दक्ष: सुबुद्धिमान ।</blockquote><blockquote>अध्यात्म ध्याननिष्ठश्र मन्त्रतन्त्रविशारदः: । निग्रहानुग्रहे शक्‍तो गुरुरित्यमिधीयते ।।</blockquote>शांत, इन्द्रियों का दमन करने वाला, कुलीन, विनीत, शुद्ध वेशयुक्त, शुद्ध आचार युक्त, अच्छी प्रतिष्ठा से युक्त, पवित्र, दक्ष अर्थात्‌ कुशल, अच्छी और तेजस्वी बुद्धि से युक्त, अध्यात्म और ध्यान में निष्ठा रखने वाला, मंत्र और तंत्र को जानने वाला (मंत्र अर्थात्‌ विचार को जानने वाला और तंत्र अर्थात्‌ व्यवस्था और रचना करने में कुशल) तथा कृपा और शासन दोनों की क्षमता रखने वाला व्यक्ति गुरु कहा जाता है ।
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दूसरा श्लोक है:  <blockquote>मनुष्यचर्मणा बद्धः साक्षात्परशिवः स्वयम् । सच्छिष्यानुग्रहार्थाय गूढं पर्यटति क्षितौ ॥ ३,४३.६८ ॥</blockquote><blockquote>अत्रिनेत्रः शिवः साक्षादचतुर्बाहुरच्युतः । अचतुर्वदनो ब्रह्मा श्रीगुरुः परिकीर्तितः ॥ ३,४३.७० ॥</blockquote>
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दूसरा श्लोक है<ref>ब्रह्माण्डपुराणम् उत्तरभागः अध्यायः ४३, ३,४३.६८ एवं ३,४३.७० </ref>:  <blockquote>मनुष्यचर्मणा बद्धः साक्षात्परशिवः स्वयम् । सच्छिष्यानुग्रहार्थाय गूढं पर्यटति क्षितौ ॥ ३,४३.६८ ॥</blockquote><blockquote>अत्रिनेत्रः शिवः साक्षादचतुर्बाहुरच्युतः । अचतुर्वदनो ब्रह्मा श्रीगुरुः परिकीर्तितः ॥ ३,४३.७० ॥</blockquote>
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गुरु मनुष्यदेहधारी परम शिव है । अच्छे शिष्य पर
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गुरु मनुष्यदेहधारी परम शिव है । अच्छे शिष्य पर कृपा करने के लिये ही वह पृथ्वीतल पर भ्रमण करता है । गुरु तीन नेत्र नहीं हैं ऐसा शिव, चतुर्भुज नहीं है ऐसा विष्णु
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कृपा करने के लिये ही वह पृथ्वीतल पर भ्रमण करता है ।
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और चतुर्वदन नहीं है ऐसा ब्रह्मा है ।  
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गुरु तीन नेत्र नहीं हैं ऐसा शिव, चतुर्भुज नहीं है ऐसा विष्णु
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तीसरा श्लोक है<ref>Guru Gita, Uttarakhand, Skanda Purana, ३२ वा  श्लोक</ref> <ref>एक अन्य स्रोत के हिसाब से: Guru Gita, Uttarakhand, Skanda Purana, प्रथमोऽध्यायः, ५८ वा श्लोक (<nowiki>https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B5%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A6_%E0%A5%A7</nowiki>)</ref><blockquote>गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।</blockquote><blockquote>गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥५८॥</blockquote>
 
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और चतुर्वदन नहीं है ऐसा ब्रह्मा है ।
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३... गुर्स्ब्रह्मा गुरुविष्णुरगुरुदवो महेश्वरः ।
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गुरुसक्षित्परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः । ।
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देवीभागवत
      
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महेश्वर है,
 
गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही महेश्वर है,

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