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→‎समय का अभाव: लेख सम्पादित किया
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कुटुम्ब शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । कुटुम्ब में जो शिक्षा प्राप्त होती है उसका अन्यत्र कहीं कोई विकल्प नहीं है। कुटुम्ब की शिक्षा के बिना विद्यालय में या अन्यत्र मिलने वाली शिक्षा की कोई सार्थकता नहीं है । ये तीनों बातें सत्य होने पर भी आज कुटुम्ब में शिक्षा की व्यवस्था होना बहुत कठिन हो गया है, इसमें बड़े बड़े अवरोध निर्माण हो गये हैं । इन अवरोधों का स्वरूप कैसा है, उसके परिणाम क्या होते हैं और इन अवरोधों को दूर करने के क्या उपाय हो सकते हैं इसका अब विचार करेंगे ।
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कुटुम्ब शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १): पर्व ५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। कुटुम्ब में जो शिक्षा प्राप्त होती है उसका अन्यत्र कहीं कोई विकल्प नहीं है। कुटुम्ब की शिक्षा के बिना विद्यालय में या अन्यत्र मिलने वाली शिक्षा की कोई सार्थकता नहीं है । ये तीनों बातें सत्य होने पर भी आज कुटुम्ब में शिक्षा की व्यवस्था होना बहुत कठिन हो गया है, इसमें बड़े बड़े अवरोध निर्माण हो गये हैं । इन अवरोधों का स्वरूप कैसा है, उसके परिणाम क्या होते हैं और इन अवरोधों को दूर करने के क्या उपाय हो सकते हैं इसका अब विचार करेंगे ।
    
== अज्ञान ==
 
== अज्ञान ==
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== समय का अभाव ==
 
== समय का अभाव ==
अर्थाजन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है। आज भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अर्थाजन करने के लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है। महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छायें बढ़ गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा मानस है। सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अर्थाजन करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते हैं, रात्रि में भी अर्थाजन चलता है । उन्हें घर के लिये समय ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, ट्यूशन, विभिन्न गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे होगी?
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अर्थाजन जीवन चलाने के लिये अनिवार्य है। आज भारत की जीवनव्यवस्था में इतना भारी परिवर्तन हो गया है कि सामान्य मनुष्य को जीवननिर्वाह हेतु अर्थाजन करने के लिये दिन का अधिकतम समय खर्च करना पड़ता है। महानगरों में व्यवसाय का स्थान घर से दूर होता है । ट्रैफिक जाम की समस्या होती है । कम समय काम करके जो पैसा मिलता है वह पर्याप्त नहीं होता। मनुष्य की इच्छायें बढ़ गई हैं और वे पूर्ण करनी ही चाहिये ऐसी धारणा बन गई है । उसके लिये अधिकाधिक अधथर्जिन करना चाहिये ऐसा मानस है। सेवानिवृत्त लोग निवृत्ति के बाद भी अर्थाजन करते हैं, दुकान चलाने वाले रात्रि में देर तक दुकान चलाते हैं, रात्रि में भी अर्थाजन चलता है । उन्हें घर के लिये समय ही नहीं है । विद्यार्थियों को भी विद्यालय, ट्यूशन, विभिन्न गतिविधियों के चलते घर में रहने का समय नहीं है । घर के लोग घर में यदि साथ ही नहीं रहते तो घर में शिक्षा कैसे होगी?  
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एक तरफ तो समय इतना कम है, दूसरी तरफ अब घर में टीवी है और सबके पास मोबाइल और इण्टरनेट है। सब इस दुनिया में ऐसे डूबे हुए हैं कि घर विस्मृत हो गया है । इस स्थिति में घर में शिक्षा की सम्भावनायें बनती नहीं है ।
 
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''भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप''
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''इतना कम है तो अब घर में की छाया पड़ गई है इसलिये घर घर नहीं रहा, घर का''
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''टीवी है और सबके पास मोबाइल और इण्टरनेट है । सब आभास रहा है ।''
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''इस दुनिया में ऐसे डूबे हुए हैं कि घर विस्मृत हो गया है । स्थिति को बदले बिना घर में शिक्षा होना यदि''
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''इस स्थिति में घर में शिक्षा की सम्भावनायें बनती नहीं है । सम्भव नहीं है तो स्थिति में परिवर्तन करने का ही प्रयास''
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''करना चाहिये । इस दृष्टि से कौन सी बातें करणीय हैं इसका''
      
== घर में सदस्यों की संख्या कम होना ==
 
== घर में सदस्यों की संख्या कम होना ==
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शिक्षा नौकरी, व्यवसाय आदि कारणों से दो पीढ़ियों का साथ साथ रहना कठिन हो गया है। लोग इसे स्वाभाविक मानने लगे हैं। अच्छा करिअर बनाना है तो पढ़ने के लिये दूर जाना ही होगा । अच्छी नौकरी के लिये दूर जाना ही होगा, अच्छा पैसा कमाने के लिये विदेश जाना ही होगा | बच्चों को छोटी आयु से ही छात्रावास में भेजना अस्वाभाविक नहीं लगता | कहीं कहीं तो करिअर और अर्थार्जन के निमित्त से पतिपत्नी भी साथ नहीं रहते । कुटुम्ब ही स्थिर नहीं है तो कुट॒म्ब में शिक्षा कैसे होगी ?
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''विचार करें ।''
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घर में दो पीढ़ी साथ नहीं रहना और एक ही सन्तान होना कठिनाई को और बढ़ाता है। एक ही सन्‍तान को किसी को भी सहभागिता का अनुभव ही नहीं होता। वस्तुओं और अनुभवों को बाँटना नहीं आता । साथ जीना क्या होता है यह नहीं समझता । यह इकलौती सन्तान पति या पत्नी नहीं बनती, वह करिअर पर्सन ही बनती है। कुटुम्ब में होनेवाली शिक्षा न उसे मिलती है न वह किसी को दे सकती है।
 
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''शिक्षा नौकरी, व्यवसाय आदि करणों से दो पीढ़ियों .. १, साधु, सन्तों, संन्यासियों, सामाजिक और सांस्कृतिक''
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''का साथ साथ रहना कठिन हो गया है। लोग इसे संगठनों और GEMS Hl Bers प्रबोधन का कार्य''
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''स्वाभाविक मानने लगे हैं । अच्छा करिअर बनाना है तो प्रास्भ करना चाहिये । अच्छा मनुष्य अच्छे घर में''
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''पढ़ने के लिये दूर जाना ही होगा । अच्छी नौकरी के लिये ही बनता है । संस्कृति की रक्षा घर में ही होती है,''
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''दूर जाना ही होगा, अच्छा पैसा कमाने के लिये विदेश ऐसे घर की रक्षा करना घर के सभी सदस्यों का''
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''जाना ही होगा । बच्चों को छोटी आयु से ही छात्रावास में कर्तव्य है इस विषय में समाज का प्रबोधन करना''
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''aera ot fear नहीं है तो कुटम्ब में शिक्षा कैसे होगी ? सम्बन्ध में बताया जा सकता है ।''
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''होना कठिनाई को और बढ़ाता है। एक ही सन्तान को कक्षानुसार पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिये । इन''
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''किसी को भी सहभागिता का अनुभव ही नहीं होता । पाठ्यक्रमों को अनिवार्य बनाना चाहिये ।''
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''वस्तुओं और अनुभवों को बाँटना नहीं आता । साथ जीना... ३... भारतीय कुट्म्बव्यवस्था की कल्पना के अनुसार''
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''क्या होता है यह नहीं समझता । यह इकलौती सन्तान पति बालक शिक्षा और बालिका शिक्षा का स्वरूप''
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''या पत्नी नहीं बनती, वह करिअर पर्सन ही बनती है । निश्चित करना चाहिये और उसकी शिक्षा का प्रबन्ध''
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''कुटुम्ब में होनेबाली शिक्षा न उसे मिलती है न वह किसी करना चाहिये ।''
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== स्थिति सुधार हेतु करणीय कार्य ==
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जिस भी काम का पैसा नहीं मिलता वह काम करने लायक नहीं होता यही धारणा बन गई है। या तो पैसा लेकर काम करना है या पैसा देकर काम करवाना है। जिस काम के पैसे नहीं मिलते वह काम भी करना होता है ऐसा विचार ही नहीं आता अतः बच्चों को संस्कार देना है तो संस्कारवर्ग में भेजना, अच्छा वर या वधू बनना है तो उसके लिये चलने वाले वर्ग में भेजो, वर या वधू का चयन इण्टरनेट से करो, व्रत या उत्सव का इवेण्ट बना दो, विवाह समारोह भी इवेण्ट की तरह आयोजित करो । ऐसी स्थिति में घर में शिक्षा होना असम्भव बन गया है | घर पर पश्चिम की छाया पड़ गई है इसलिये घर घर नहीं रहा, घर का आभास रहा है
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''लेकर काम करना है या पैसा देकर काम करवाना है जिस साथ जीयेंगे, साथ जीयेंगे तो एकदूसरे से सीखेंगे ।''
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स्थिति को बदले बिना घर में शिक्षा होना यदि सम्भव नहीं है तो स्थिति में परिवर्तन करने का ही प्रयास करना चाहिये । इस दृष्टि से कौन सी बातें करणीय हैं इसका विचार करें ।
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# साधु, संतों, संन्यासियों, सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों और संस्थाओं को कुटुम्ब प्रबोधन का कार्य प्रारम्भ करना चाहिये। अच्छा मनुष्य अच्छे घर में ही बनता है। संस्कृति की रक्षा घर में ही होती है, ऐसे घर की रक्षा करना घर के सभी सदस्यों का कर्तव्य है इस विषय में समाज का प्रबोधन करना चाहिये । आज भी भारतीय समाज में साधु संतों की बात मानने वाला बड़ा वर्ग है। उस वर्ग को घर के सम्बन्ध में बताया जा सकता है ।
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# विद्यालयों और महाविद्यालयों में गृहशासत्र के कक्षानुसार पाठ्यक्रम चलाये जाने चाहिये। इन पाठ्यक्रमों को अनिवार्य बनाना चाहिये ।
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# भारतीय कुटम्बव्यवस्था की कल्पना के अनुसार बालक शिक्षा और बालिका शिक्षा का स्वरूप निश्चित करना चाहिये और उसकी शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिये ।
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# बहुत बड़ी आवश्यकता तो यह है कि लोगों को अर्थार्जन और विद्यार्थियों को विद्यार्ज का समय कम करके अधिक समय घर में साथ रहने का आग्रह किया जाय । दो, तीन या चार पीढ़ियाँ साथ रहना सम्भव बनाने का आग्रह किया जाय साथ रहेंगे तो साथ जीयेंगे, साथ जीयेंगे तो एकदूसरे से सीखेंगे ।
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# कुटुम्बशिक्षा के अनेक विषय ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय दृष्टि से ऊहापोह होकर नये से पाठ्यक्रम तैयार किये जाय, उन्हें चलाने हेतु सामग्री तैयार की जाय और ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की व्यवस्था की जाय | कुछ पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं ।
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''काम के पैसे नहीं मिलते वह काम भी करना होता है ऐसा... ५... कुट्म्बशिक्षा के अनेक विषय ऐसे हैं जिनका शास्त्रीय''
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''विचार ही नहीं आता । अतः बच्चों को संस्कार देना है तो दृष्टि से ऊहापोह होकर नये से पाठ्यक्रम तैयार किये''
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''संस्कारवर्ग में भेजना, अच्छा वर या वधू बनना है तो जाय, उन्हें चलाने हेतु सामग्री तैयार की जाय और''
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''उसके लिये चलने वाले वर्ग में भेजो, वर या वधू का चयन ऐसे पाठ्यक्रम चलाने की व्यवस्था की जाय । कुछ''
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''इण्टरनेट से करो, व्रत या उत्सव का इवेण्ट बना दो, विवाह पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं ।''
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''समारोह भी इवेण्ट की तरह आयोजित करो । ऐसी स्थिति''
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कुछ पाठ्यक्रम इस प्रकार हो सकते हैं:
   
# वरवधू चयन
 
# वरवधू चयन
 
# विवाह संस्कार
 
# विवाह संस्कार
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# मातापिता बनने की तैयारी
 
# मातापिता बनने की तैयारी
 
# शिशुसंगोपन
 
# शिशुसंगोपन
# आश्रमचतुश्य और गृहस्थाश्रम
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# [[Ashram System (आश्रम व्यवस्था)|आश्रमचतुश्य]] और गृहस्थाश्रम
 
# आयु की विभिन्न अवस्थायें, उनके लक्षण, स्वभाव, क्षमतायें और आवश्यकतायें
 
# आयु की विभिन्न अवस्थायें, उनके लक्षण, स्वभाव, क्षमतायें और आवश्यकतायें
 
# पुत्र-पुरुष-पति-गृहस्थ-पिता-दादा । पुत्री-स्त्री-पत्नी-गृहिणी-माता-दादी
 
# पुत्र-पुरुष-पति-गृहस्थ-पिता-दादा । पुत्री-स्त्री-पत्नी-गृहिणी-माता-दादी
 
# कौटुम्बिक सम्बन्ध और उनकी भूमिका
 
# कौटुम्बिक सम्बन्ध और उनकी भूमिका
 
# आहारशास्त्र - भोजन का विज्ञान, पाककला, परोसने की कला और भोजन करने की कला
 
# आहारशास्त्र - भोजन का विज्ञान, पाककला, परोसने की कला और भोजन करने की कला
# कुटुम्ब का व्यवसाय और अर्थशास्त्र
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# [[Family Run Businesses (कौटुम्बिक उद्योग)|कुटुम्ब का व्यवसाय]] और अर्थशास्त्र
 
# एकात्म कुटुम्ब
 
# एकात्म कुटुम्ब
 
# गृहसंचालन और गृहिणी गृहमुच्यते
 
# गृहसंचालन और गृहिणी गृहमुच्यते
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# घर के लिये उपयोगी विविध कामों का शास्त्र
 
# घर के लिये उपयोगी विविध कामों का शास्त्र
 
# कुटुम्ब का सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व
 
# कुटुम्ब का सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व
# भारत की चिरंजीविता का रहस्य : कुटुम्ब व्यवस्था
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# भारत की [[Eternal Rashtra (चिरंजीवी राष्ट्र)|चिरंजीविता]] का रहस्य : [[Family Structure (कुटुंब व्यवस्था)|कुटुम्ब व्यवस्था]]
 
इन पाठ्यक्रमों को चलाने हेतु वास्तव में स्थान स्थान पर गृहविद्यालय और गृहविद्यापीठ चलाये जाने चाहिये । परन्तु उन्हें वर्तमान शिक्षाव्यवस्था के अन्तर्गत या उसके समान नहीं चलाना चाहिये । ये पाठ्यक्रम यदि परीक्षा और प्रमाणपत्र के जाल में फँस गये तो यान्त्रि और अनर्थक बन जायेंगे । उनका भी एक व्यवसाय बन जायेगा । वे शुद्ध सांस्कृतिकरूप में चलने चाहिये । समाज सेवी संस्थाओं द्वारा ये चलने चाहिये । इस प्रकार कुटुम्ब व्यवस्था और उसमें चलने वाली शिक्षा का महत्त्व दर्शाने का यहाँ प्रयास हुआ है। इस विषय का महत्त्व सर्वकालीन है। सर्वकालीन महत्त्व समझकर वर्तमान सन्दर्भ के अनुसार उसका स्वरूप निर्धारित कर कुटुम्ब संस्था और कुटुम्ब शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है ।
 
इन पाठ्यक्रमों को चलाने हेतु वास्तव में स्थान स्थान पर गृहविद्यालय और गृहविद्यापीठ चलाये जाने चाहिये । परन्तु उन्हें वर्तमान शिक्षाव्यवस्था के अन्तर्गत या उसके समान नहीं चलाना चाहिये । ये पाठ्यक्रम यदि परीक्षा और प्रमाणपत्र के जाल में फँस गये तो यान्त्रि और अनर्थक बन जायेंगे । उनका भी एक व्यवसाय बन जायेगा । वे शुद्ध सांस्कृतिकरूप में चलने चाहिये । समाज सेवी संस्थाओं द्वारा ये चलने चाहिये । इस प्रकार कुटुम्ब व्यवस्था और उसमें चलने वाली शिक्षा का महत्त्व दर्शाने का यहाँ प्रयास हुआ है। इस विषय का महत्त्व सर्वकालीन है। सर्वकालीन महत्त्व समझकर वर्तमान सन्दर्भ के अनुसार उसका स्वरूप निर्धारित कर कुटुम्ब संस्था और कुटुम्ब शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता है ।
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==References==
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<references />
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[[Category:पर्व 5: कुटुम्ब शिक्षा एवं लोकशिक्षा]]

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