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यह सारा संसार काम का ही आविष्कार है। भगवान शंकराचार्य इसे मनोराज्य कहते हैं और उसे मिथ्या मानते हैं। इसमें जितना भी सुख है वह सुख का आभास है, अपने परिणाम में तो वह दुःख ही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध, हमारी विभिन्न व्यवस्थायें, हमारे सारे शास्त्र इस संसार के ही अन्तर्गत अपना व्यवहार करते हैं।
 
यह सारा संसार काम का ही आविष्कार है। भगवान शंकराचार्य इसे मनोराज्य कहते हैं और उसे मिथ्या मानते हैं। इसमें जितना भी सुख है वह सुख का आभास है, अपने परिणाम में तो वह दुःख ही है। हमारे सामाजिक सम्बन्ध, हमारी विभिन्न व्यवस्थायें, हमारे सारे शास्त्र इस संसार के ही अन्तर्गत अपना व्यवहार करते हैं।
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काम मन का रूप धारण कर हमारे अस्तित्व का अंग बना है। वह अत्यन्त बलवान है, जिद्दी है, आग्रही है, प्रभावी है। उसके ऊपर विजय पाना अत्यन्त कठिन है। उसके ऊपर विजय पाना है ऐसा विचार भी हमारे मन में नहीं आता है। काम अपनी संतुष्टि के लिये इन्द्रियां, शरीर, बुद्धि आदि किसी की भी परवा नहीं करता । स्वाद
 
काम मन का रूप धारण कर हमारे अस्तित्व का अंग बना है। वह अत्यन्त बलवान है, जिद्दी है, आग्रही है, प्रभावी है। उसके ऊपर विजय पाना अत्यन्त कठिन है। उसके ऊपर विजय पाना है ऐसा विचार भी हमारे मन में नहीं आता है। काम अपनी संतुष्टि के लिये इन्द्रियां, शरीर, बुद्धि आदि किसी की भी परवा नहीं करता । स्वाद

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