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=== पश्चिम की साम्राज्यवादी मानसिकता ===
 
=== पश्चिम की साम्राज्यवादी मानसिकता ===
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वर्तमान विश्व की स्थिति का आकलन करने के लिये हमें बहुत प्राचीन सन्दर्भो तक जाने की आवश्यकता नहीं है। विगत पाँच सौ वर्षों की विश्व की विशेष रूप से यूरोप की गतिविधियों पर दृष्टिपात करने से वर्तमान स्थिति तक पहँचने के कारणों का पता चल जायेगा।
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पाँच सौ वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वप्रवास करना शुरू किया। नये नये भूभागों को खोजने और देखने की जिज्ञासा, समुद्र में सफर करने का साहस, नये अनुभवों की चाह आदि अच्छी बातों की प्रेरणा उसमें होगी यह मान्य करने के बाद भी समृद्धि प्राप्त करने की और साम्राज्य स्थापित करने की ललक मुख्य प्रेरक तत्त्व था यह भी मानना ही पडेगा।
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पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप के विभिन्न देशों के यात्रियों ने अमेरिका, आफ्रिका और एशिया के देशों में जाना शुरू किया। अब तो यह प्रसिद्ध घटना है कि भारत आने के लिये निकला हुआ कोलम्बस भारत पहुँचा ही नहीं । भारत के स्थान पर वर्तमान अमेरिका पहुँचा । अपनी मृत्यु तक कोलम्बस उसे भारत और वहां के मूल निवासियों को भारतीय ही मानता रहा। आल्झाडोर एमेरिगो नामक व्यक्ति ने जाना कि जिसे सब भारत मानते हैं वह भारत नहीं है। उसके नाम से उस भूखण्ड का नाम अमेरिका हुआ । उसी अवधि में वाक्सो-डी-गामा भारत भी पहुँचा ।
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यूरोप के विभिन्न देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। आफ्रिका के लोगों को गुलाम बनाकर अमेरिका ले आये। अमेरिका के वर्तमान नीग्रो मूल आफ्रिका के हैं।
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यूरोप के लोगों ने अमेरिका के मूल निवासियों को भी गुलाम बनाया और धीरे धीरे उनका नाश होने लगा। वर्तमान ऑस्ट्रेलिया भी यूरोप के ही लोगों द्वारा आक्रान्त है। वहाँ के मूल निवासी भी अत्यन्त अल्पसंख्या में हैं। वे भारत में भी आये । भारत में अंग्रेजों के कारनामे अब प्रसिद्ध हैं । लूट, लूट के लिये व्यापार और व्यापार के लिये राज्य ऐसा उनका कम रहा।
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इस काल में इंग्लैण्ड की बडी गर्वोक्ति रही कि ब्रिटीश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता ।
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यूरोप विश्व के अनेक देशों पर आधिपत्य जमाने में
  
 
==References==
 
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Revision as of 06:17, 10 January 2020

अध्याय २९

पश्चिम की साम्राज्यवादी मानसिकता

वर्तमान विश्व की स्थिति का आकलन करने के लिये हमें बहुत प्राचीन सन्दर्भो तक जाने की आवश्यकता नहीं है। विगत पाँच सौ वर्षों की विश्व की विशेष रूप से यूरोप की गतिविधियों पर दृष्टिपात करने से वर्तमान स्थिति तक पहँचने के कारणों का पता चल जायेगा।

पाँच सौ वर्ष पूर्व यूरोप के देशों ने विश्वप्रवास करना शुरू किया। नये नये भूभागों को खोजने और देखने की जिज्ञासा, समुद्र में सफर करने का साहस, नये अनुभवों की चाह आदि अच्छी बातों की प्रेरणा उसमें होगी यह मान्य करने के बाद भी समृद्धि प्राप्त करने की और साम्राज्य स्थापित करने की ललक मुख्य प्रेरक तत्त्व था यह भी मानना ही पडेगा।

पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यूरोप के विभिन्न देशों के यात्रियों ने अमेरिका, आफ्रिका और एशिया के देशों में जाना शुरू किया। अब तो यह प्रसिद्ध घटना है कि भारत आने के लिये निकला हुआ कोलम्बस भारत पहुँचा ही नहीं । भारत के स्थान पर वर्तमान अमेरिका पहुँचा । अपनी मृत्यु तक कोलम्बस उसे भारत और वहां के मूल निवासियों को भारतीय ही मानता रहा। आल्झाडोर एमेरिगो नामक व्यक्ति ने जाना कि जिसे सब भारत मानते हैं वह भारत नहीं है। उसके नाम से उस भूखण्ड का नाम अमेरिका हुआ । उसी अवधि में वाक्सो-डी-गामा भारत भी पहुँचा ।

यूरोप के विभिन्न देशों ने अमेरिका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। आफ्रिका के लोगों को गुलाम बनाकर अमेरिका ले आये। अमेरिका के वर्तमान नीग्रो मूल आफ्रिका के हैं।

यूरोप के लोगों ने अमेरिका के मूल निवासियों को भी गुलाम बनाया और धीरे धीरे उनका नाश होने लगा। वर्तमान ऑस्ट्रेलिया भी यूरोप के ही लोगों द्वारा आक्रान्त है। वहाँ के मूल निवासी भी अत्यन्त अल्पसंख्या में हैं। वे भारत में भी आये । भारत में अंग्रेजों के कारनामे अब प्रसिद्ध हैं । लूट, लूट के लिये व्यापार और व्यापार के लिये राज्य ऐसा उनका कम रहा।

इस काल में इंग्लैण्ड की बडी गर्वोक्ति रही कि ब्रिटीश साम्राज्य में सूर्य कभी अस्त नहीं होता ।

यूरोप विश्व के अनेक देशों पर आधिपत्य जमाने में

References

भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे