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# यदि शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है तो सरकार को यह कार्य निजी संस्थाओं को देना चाहिये। उसके लिये जो बजट है वह इन समाजसेवी संगठनों को देना चाहिये । तब यह कार्य निश्चित रूप से सम्भव हो सकता है। इसमें कार्य के विकेन्द्रीकरण का भी मुद्दा है। विकेन्द्रीकरण से कार्य की व्याप्ति कम हो जाती है इसलिये वह अपने नियन्त्रण में रहता है। भारत में ऐसी असंख्य संस्थायें हैं जो बिना सरकारी सहायता के भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं।
 
# यदि शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है तो सरकार को यह कार्य निजी संस्थाओं को देना चाहिये। उसके लिये जो बजट है वह इन समाजसेवी संगठनों को देना चाहिये । तब यह कार्य निश्चित रूप से सम्भव हो सकता है। इसमें कार्य के विकेन्द्रीकरण का भी मुद्दा है। विकेन्द्रीकरण से कार्य की व्याप्ति कम हो जाती है इसलिये वह अपने नियन्त्रण में रहता है। भारत में ऐसी असंख्य संस्थायें हैं जो बिना सरकारी सहायता के भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं।
 
# बात यह है कि आप घोडे को पानी तक तो ले जा सकते हैं परन्तु पानी पीने के लिये बाध्य नहीं कर सकते । शिक्षा की व्यवस्था तो राज्य और समाज कर सकता है परन्तु लोगों की इच्छा नहीं है तो उन्हें जबरन पढाया नहीं जा सकता । इसलिये उनमें लिखने पढने की चाह निर्माण करना ही अत्यन्त आवश्यक है। सरकार साधनसामग्री और व्यवस्था के लिये जितना खर्च करती है उतना यदि शिक्षा की इच्छा जगाने के लिये करे तो साधन सामग्री और व्यवस्था के अभाव में भी लोग शिक्षा प्राप्त कर लेंगे । परन्तु सरकारी तन्त्र मानवीय नहीं होता, जड होता है। उसमें लोगों को प्रेरित करने की शक्ति नहीं होती । इसलिये शत प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करना सरकार के लिये कठिन हो जाता है।
 
# बात यह है कि आप घोडे को पानी तक तो ले जा सकते हैं परन्तु पानी पीने के लिये बाध्य नहीं कर सकते । शिक्षा की व्यवस्था तो राज्य और समाज कर सकता है परन्तु लोगों की इच्छा नहीं है तो उन्हें जबरन पढाया नहीं जा सकता । इसलिये उनमें लिखने पढने की चाह निर्माण करना ही अत्यन्त आवश्यक है। सरकार साधनसामग्री और व्यवस्था के लिये जितना खर्च करती है उतना यदि शिक्षा की इच्छा जगाने के लिये करे तो साधन सामग्री और व्यवस्था के अभाव में भी लोग शिक्षा प्राप्त कर लेंगे । परन्तु सरकारी तन्त्र मानवीय नहीं होता, जड होता है। उसमें लोगों को प्रेरित करने की शक्ति नहीं होती । इसलिये शत प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त करना सरकार के लिये कठिन हो जाता है।
<nowiki>***</nowiki> इन अभिप्रायों का स्वर भी नकारात्मक ही है। परन्तु शत प्रतिशत साक्षरता जैसी सभी योजनाओं का विचार मनोवैज्ञानिक ढंग से करना चाहिये, केवल नकारात्मक बातें करने से कोई उपलब्धि नहीं होगी।
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इन अभिप्रायों का स्वर भी नकारात्मक ही है। परन्तु शत प्रतिशत साक्षरता जैसी सभी योजनाओं का विचार मनोवैज्ञानिक ढंग से करना चाहिये, केवल नकारात्मक बातें करने से कोई उपलब्धि नहीं होगी।
    
पहली बात तो यह है कि ये सारे अभियान भारतीय मानस के अनुकूल नहीं है । भारत में युगों से लिखने और पढने की प्रतिष्ठा कम ही रही है। भारत में ऐसे अनेक तत्त्वज्ञसन्त, कलाकार, कारीगर, व्यापारी, गृहिणियाँ हुई है जो अपने अपने क्षेत्र में श्रेष्ठतम लोगों की श्रेणी के हैं परन्तु निरक्षर थे, कभी विद्यालय गये ही नहीं थे । आज भी ऐसे व्यापारी हैं जो अरबो रूपयों का व्यापार करते हैं, कम्प्यूटर चलाते हैं परन्तु अपने हस्ताक्षर के अलावा कुछ भी लिख नहीं सकते । उन्हें जीवन का ज्ञान
 
पहली बात तो यह है कि ये सारे अभियान भारतीय मानस के अनुकूल नहीं है । भारत में युगों से लिखने और पढने की प्रतिष्ठा कम ही रही है। भारत में ऐसे अनेक तत्त्वज्ञसन्त, कलाकार, कारीगर, व्यापारी, गृहिणियाँ हुई है जो अपने अपने क्षेत्र में श्रेष्ठतम लोगों की श्रेणी के हैं परन्तु निरक्षर थे, कभी विद्यालय गये ही नहीं थे । आज भी ऐसे व्यापारी हैं जो अरबो रूपयों का व्यापार करते हैं, कम्प्यूटर चलाते हैं परन्तु अपने हस्ताक्षर के अलावा कुछ भी लिख नहीं सकते । उन्हें जीवन का ज्ञान
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