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स्वार्थ, हिंसा, भ्रष्टाचार के इस दौर में भी गाय ने, तुलसी ने, गंगा ने अपना परिसर को पवित्र बनाने का धर्म नहीं छोडा है । इनके कारण से दुनिया अभी चल रही है।  
 
स्वार्थ, हिंसा, भ्रष्टाचार के इस दौर में भी गाय ने, तुलसी ने, गंगा ने अपना परिसर को पवित्र बनाने का धर्म नहीं छोडा है । इनके कारण से दुनिया अभी चल रही है।  
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अभी भी भारत के अनपढ ग्रामीण लोग बचत करते हैं कमाई से कम खर्च करते हैं। नीति से अर्थार्जन करते हैं। वे गरीब हैं, अनपढ़ है, सीधेसादे हैं,
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अभी भी भारत के अनपढ ग्रामीण लोग बचत करते हैं कमाई से कम खर्च करते हैं। नीति से अर्थार्जन करते हैं। वे गरीब हैं, अनपढ़ है, सीधेसादे हैं, शिक्षित और शोपिंग के आधार पर अत्यधिक धन कमाने वाले लोग इनकी ओर देखते भी नहीं, भारत की अर्थव्यवस्था में इन्हें कोई स्थान प्राप्त नहीं होता है परन्तु भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट होने से ये ही लोग बचा रहे
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शिक्षित बुद्धिजीवी लोगों के मतानुसार वे केवल गतानुगतिक होकर परम्परा का निर्वहण करते हैं। कदाचित कमअधिक मात्रा में वैसा होगा भी । तो भी उनके हृदय में, भक्तिभाव होता है । उनके सामाजिक व्यवहार में, अर्थार्जन के व्यवसाय में उनका भक्तिभाव नहीं झलकता होगा, उनका भक्तिभाव कृतिशील नहीं होगा तो भी भावना तो होती ही है। देशभर में यह भक्तिभाव वातावरण और मानसिकता को प्रभावित करता है। लोग आक्रोश, उत्तेजना और हताशा से पागल नहीं हो जाते इसका श्रेय इस भक्तिभाव को है।
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कितने भी आधुनिक हों, कुछ अपवादों को छोडकर, अधिकांश लोग घर आये अतिथि अभ्यागत का स्वागत करते ही हैं, भोजन के समय द्वार पर आये भिखारी को वे उलाहना भी देते हैं और खाना भी देते हैं । रात्रि में फूटपाथ पर सोये ठण्ड से ठिठुरने वाले गरीबों को कम्बल ओढाते हैं, हजारों अन्नसत्र चलते हैं, दान दिया जाता है, सत्संग और कीर्तन चलते हैं, रामकथा और भागवत कथा के पारायण होते ही हैं, यज्ञ, जप, पूजा आदि होते ही हैं। इनमें पश्चिम अन्दर तक घुस गया है और उसने प्रदूषण फैलाया है यह सत्य है तो भी अन्तरंग में श्रद्धा, भक्ति, भलाई है । ये सब भारत को बचाये हुए हैं।
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भारत की अधिकृत व्यवस्था को मान्य न करते हुए फिर भी उसके साथ झगडा न करते हुए पर्याय देने वाले लाखों लोग व्यक्तिगत और संस्थागत रूप में देशभर में कार्य कर रहे हैं। वे देशी खाद्य पदार्थ, अनाज, सब्जी, फल, मसाले लोगों को दे रहे हैं। बच्चों को संस्कारों की शिक्षा दे रहे हैं गरीबों की
    
==References==
 
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