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२६. भारत के अति वृद्धों के पास, कारीगरों के पास, वनवासियों के पास धार्मिक ज्ञान का अक्षय स्रोत है । कुछ तो नई पीढी को हस्तान्तरित होता है, अधिकांश लुप्त हो जाता है । यह लुप्त ज्ञान तरंग बनकर देश के सूक्ष्म देह में रहता है जो प्रकट होने के अवसर खोजता है । इस प्रकट और अप्रकट ज्ञान के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
२६. भारत के अति वृद्धों के पास, कारीगरों के पास, वनवासियों के पास धार्मिक ज्ञान का अक्षय स्रोत है । कुछ तो नई पीढी को हस्तान्तरित होता है, अधिकांश लुप्त हो जाता है । यह लुप्त ज्ञान तरंग बनकर देश के सूक्ष्म देह में रहता है जो प्रकट होने के अवसर खोजता है । इस प्रकट और अप्रकट ज्ञान के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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२७. देश में आज हजारों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चों को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में पढाना नहीं चाहते हैं । वे अपने बच्चों को स्वयं पढ़ाते हैं । उन्हें मेहनत तो करनी पडती है परन्तु निष्ठापूर्वक वे यह काम करते हैं । उनके परिश्रम और निष्ठा के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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२७. देश में आज हजारों की संख्या में ऐसे परिवार हैं जो अपने बच्चोंं को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में पढाना नहीं चाहते हैं । वे अपने बच्चोंं को स्वयं पढ़ाते हैं । उन्हें मेहनत तो करनी पडती है परन्तु निष्ठापूर्वक वे यह काम करते हैं । उनके परिश्रम और निष्ठा के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
    
२८. आज व्यक्तिगत रूप से अनेक लोग धार्मिक शिक्षा के प्रयोग कर रहे हैं । ये उच्च शिक्षित लोग हैं, शिक्षा के प्रति, धार्मिकता के प्रति समर्पित हैं । वे ज्ञानसम्पादन करते हैं, अनुसन्धान करते हैं, प्रयोग करते हैं । वे प्रयास व्यक्तिगत हैं इसलिये कम लोग उन्हें जानते हैं । उन्हें प्रसिद्धि नहीं मिलती है । इनके ऐसे प्रयोगों के बल के आधार पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
२८. आज व्यक्तिगत रूप से अनेक लोग धार्मिक शिक्षा के प्रयोग कर रहे हैं । ये उच्च शिक्षित लोग हैं, शिक्षा के प्रति, धार्मिकता के प्रति समर्पित हैं । वे ज्ञानसम्पादन करते हैं, अनुसन्धान करते हैं, प्रयोग करते हैं । वे प्रयास व्यक्तिगत हैं इसलिये कम लोग उन्हें जानते हैं । उन्हें प्रसिद्धि नहीं मिलती है । इनके ऐसे प्रयोगों के बल के आधार पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पडेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह आरम्भ होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पड़ेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह आरम्भ होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।

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