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३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
 
३१. देश में जहाँ जहाँ भी जिस रूप में ज्ञानसाधना, संस्कार साधना हो रही है उसका फल जमा हो रहा है । इसके पुण्य के बल पर धार्मिक शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा होगी ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पडेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह आरम्भ होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।
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३२. ऐसा नहीं है कि हमें कुछ करना नहीं पड़ेगा । प्रजा की भावना के साथ साथ पुरुषार्थ भी चाहिये । परन्तु शिक्षा की मुख्य धारा में सम्भावनायें कम हैं । सरकार और बडे से बडे संगठन विवश हैं । मुख्य धारा की शिक्षा अनेक प्रकार से अवरुद्ध हो गई है । ये अवरोध हटाने के लिये प्रयास करने के स्थान पर नये मार्ग खोजने की आवश्यकता है । नये मार्गों से प्रवाह आरम्भ होने के बाद हो सकता है कि बडे अवरोध दूर हो जाय, अथवा आप्रस्तुत बन जाय । ऐसे मार्गों का विचार आगे करेंगे ।

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