Difference between revisions of "आलसी व्यक्ति की कहानी"

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एक बार की बात है, एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह सुबह उठता, नहाता, पूजा करता, खाना खाता और फिर सो जाता था। उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। एक बड़ा खेत, खाना पका कर देने वाली एक सुन्दर-सी पत्नी और दो बच्चों का अच्छा परिवार था।
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एक समय की बात है, एक गांव में सुमति नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह सुबह उठता, स्नान करता, पूजा पाठ कर, खाना खाता और फिर सो जाता था। उसके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी। एक बड़ा खेत, खाना बनाकर देने वाली एक सुन्दर-सी पत्नी और दो बच्चोंं का भरापूरा परिवार था। सब कुछ होते हुए भी सुमति के घरवाले एक बात से बहुत अधिक परेशान थे, कि सुमति बहुत आलसी था। सुमति कोई भी काम स्वयं नहीं करता था, सदा दूसरों पर निर्भर रहता था और दिन भर सोता रहता था।
  
सब कुछ होने के बाद भी ब्राह्मण के घरवाले एक बात से बहुत परेशान थे। वो बात यह थी कि ब्राह्मण बहुत आलसी था। वो कोई भी काम खुद नहीं करता था और दिन भर सोता रहता था।
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एक दिन सुमति सोया था, अचानक बच्चे जोर जोर से चिल्लाने लगे। शोर गुल की आवाज सुनकर सुमति जाग गया और उसने देखा कि उसके द्वार पर एक साधू महाराज खड़े हैं। द्वार पर साधू महाराज को खड़ा देख, तुरंत सुमति और उसकी पत्नी ने साधू महाराज का स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। भोजन के बाद सुमति ने साधू की खूब मन लगाकर सेवा की। साधू महाराज सुमति परिवार की सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। सुमति ने अपन प्रिय वरदान मांगा कि मुझे कोई भी काम न करना पड़े और मेरी जगह कोई और मेरा काम कर दे।
  
एक दिन बच्चों का शोर सुनकर ब्राह्मण जाग गया और उसने देखा कि उसके दरवाजे पर एक साधु महाराज आए हैं। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने साधु महाराज का स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। भोजन के बाद ब्राह्मण ने साधु की खूब सेवा की।
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साधू सुमति को वरदान में एक यक्ष देते हैं और कहते हैं कि इस यक्ष को सदा काम में व्यस्त रखना। अगर उसे काम नहीं दिया, तो वो तुम्हें खा जाएगा। वरदान पाकर सुमति मन ही मन बहुत प्रसन्न  हुआ और साधू को आदर के साथ विदा किया। साधू के जाते ही वहां एक यक्ष प्रकट हुआ। पहले तो सुमति उसे देखकर डर गया, लेकिन जैसे ही यक्ष ने सुमति से काम माँगा, तब सुमति का डर दूर हो गया और उसने यक्ष को पहला काम खेत जोतने का दे दिया।
  
साधु महाराज उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण ने वरदान मांगा कि मुझे कोई भी काम न करना पड़े और मेरी जगह कोई और मेरा काम कर दे।
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यक्ष वहां से गायब हो जाता है और सुमति की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। कुछ ही देर में यक्ष फिर आ जाता है और बोलता है कि खेत जोत दिया, दूसरा काम दीजिए। सुमति सोचता है कि इतना बड़ा खेत इसने इतनी जल्दी कैसे जोत दिया। सुमति इतना सोच ही रहा था कि यक्ष बोलता है कि जल्दी मुझे काम बताओ नहीं तो मैंं आपको खा जाऊंगा।
  
तब साधु उसे वरदान में एक जिन्न देते हैं और साथ में यह भी कहते हैं कि जिन्न को हमेशा व्यस्त रखना। अगर उसे काम नहीं दिया, तो वो तुम्हें खा जाएगा। वरदान पाकर ब्राह्मण मन ही मन बहुत खुश हुआ और साधु को आदर के साथ विदा किया।
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सुमति डर जाता है और बोलता है कि जाकर खेतों में सिंचाई करो। यक्ष फिर वहां से गायब हो जाता है और थोड़ी ही देर में फिर आ जाता है। यक्ष आकर बोलता है कि खेतों की सिंचाई हो गई, अब अगला काम बताइए। सुमति एक-एक कर सभी काम बताता जाता है और यक्ष उसे चुटकियों में पूरा कर देता है। सुमति की पत्नी यह सब देख रही थी और अपने पति के आलसीपन पर चिंता करने लगी। शाम होने के पहले ही यक्ष सभी काम कर देता था। सब काम करने के बाद यक्ष सुमति के पास आ जाता और बोलता कि अगला काम बताइए, नहीं तो मैंं आपको खा जाऊंगा।
  
साधु के जाते ही वहां एक जिन्न प्रकट हुआ। पहले तो ब्राह्मण उसे देखकर डर जाता है, लेकिन जैसे ही वो ब्राह्मण से काम मांगता है, तब ब्राह्मण का डर दूर हो जाता है और वो उसे पहला काम खेत जोतने का देता है।
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अब सुमति के पास कोई भी काम नहीं बचा, जो उसे करने के लिए कह सके। उसे चिंता होने लगी है और वह बहुत डर जाता है। जब सुमति की पत्नी अपने पति को डरा हुआ देखती है, तो अपने पति को इस संकट से निकालने के बारे में सोचने लगती है। वह सुमति से बोलती है कि स्वामी अगर आप मुझे वचन देंगे कि आप कभी आलस नहीं करेंगे और अपने सभी काम खुद करेंगे, तो मैंं इस यक्ष को काम दे सकती हूं।
  
जिन्न वहां से गायब हो जाता है और ब्राह्मण की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। कुछ ही देर में जिन्न फिर आ जाता है और बोलता है कि खेत जोत दिया, दूसरा काम दीजिए। ब्राह्मण सोचता है कि इतना बड़ा खेत इसने इतनी जल्दी कैसे जोत दिया।
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इस पर सुमति सोचता है कि पता नहीं यह क्या काम देगी। अपनी जान बचाने के लिए सुमति अपनी पत्नी को वचन दे देता है। इसके बाद सुमति की पत्नी यक्ष से बोलती है कि हमारे यहां एक कुत्ता है। तुम जाकर उसकी पूंछ पूरी सीधी कर दो। याद रखना उसकी पूंछ एकदम सीधी होनी चाहिए। यक्ष बोलता है कि अभी यह काम कर देता हूं। यह बोलकर वह वहां से चला जाता है। लाख कोशिश के बाद भी वह कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं कर पाता और हार मान लेता है। हारकर यक्ष सुमति के यहां से चला जाता है। उस दिन के बाद से सुमति अपने आलस को छोड़कर सभी काम करने लगता है और उसका परिवार खुशी-खुशी रहने लगता है।
  
ब्राह्मण इतना सोच ही रहा था कि जिन्न बोलता है कि जल्दी मुझे काम बताओ नहीं तो मैं आपको खा जाऊंगा।
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== कहानी से सीख ==
 
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हमें अपना काम स्वयं करना चाहिए कभी आलस नहीं करनी चाहिए। आलस करने से हमारे काम बिगड़ सकते है और कोई बुरी दुर्घटना हो सकती है। अतः, हमें आलस छोड़कर अपना काम खुद ही करना चाहिए।
ब्राह्मण डर जाता है और बोलता है कि जाकर खेतों में सिंचाई करो। जिन्न फिर वहां से गायब हो जाता है और थोड़ी ही देर में फिर आ जाता है। जिन्न आकर बोलता है कि खेतों की सिंचाई हो गई, अब अगला काम बताइए।
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[[Category:बाल कथाएँ एवं प्रेरक प्रसंग]]
 
 
ब्राह्मण एक-एक कर सभी काम बताता जाता है और जिन्न उसे चुटकियों में पूरा कर देता है। ब्राह्मण की पत्नी यह सब देख रही थी और अपने पती के आलसीपन पर चिंता करने लगी। शाम होने के पहले ही जिन्न सभी काम कर देता था। सब काम करने के बाद जिन्न ब्राह्मण के पास आ जाता और बोलता कि अगला काम बताइए, नहीं तो मैं आपको खा जाऊंगा।
 
 
 
अब ब्राह्मण के पास कोई भी काम नहीं बचा, जो उसे करने के लिए कह सके। उसे चिंता होने लगी है और वह बहुत डर जाता है।
 
 
 
जब ब्राह्मण की पत्नी अपने पती को डरा हुआ देखती है, तो अपने पती को इस संकट से निकालने के बारे में सोचने लगती है। वह ब्राह्मण से बोलती है कि स्वामी अगर आप मुझे वचन देंगे कि आप कभी आलस नहीं करेंगे और अपने सभी काम खुद करेंगे, तो मैं इस जिन्न को काम दे सकती हूं।
 
 
 
इस पर ब्राह्मण सोचता है कि पता नहीं यह क्या काम देगी। अपनी जान बचाने के लिए ब्राह्मण अपनी पत्नी को वचन दे देता है। इसके बाद ब्राह्मण की पत्नी जिन्न से बोलती है कि हमारे यहां एक कुत्ता है। तुम जाकर उसकी पूंछ पूरी सीधी कर दो। याद रखना उसकी पूंछ एकदम सीधी होनी चाहिए।
 
 
 
जिन्न बोलता है कि अभी यह काम कर देता हूं। यह बोलकर वह वहां से चला जाता है। लाख कोशिश के बाद भी वह कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं कर पाता और हार मान लेता है। हारकर जिन्न ब्राह्मण के यहां से चला जाता है। उस दिन के बाद से ब्राह्मण अपने आलस को छोड़कर सभी काम करने लगता है और उसका परिवार खुशी-खुशी रहने लगता है।
 
 
 
==== '''कहानी से सीख''' ====
 
हमें कभी आलस नहीं करना चाहिए। आलस करने से हम मुसीबत में फंस सकते हैं। इसलिए, हमें आलस छोड़कर अपना काम खुद ही करना चाहिए।
 

Latest revision as of 10:12, 21 December 2020

एक समय की बात है, एक गांव में सुमति नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह सुबह उठता, स्नान करता, पूजा पाठ कर, खाना खाता और फिर सो जाता था। उसके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी। एक बड़ा खेत, खाना बनाकर देने वाली एक सुन्दर-सी पत्नी और दो बच्चोंं का भरापूरा परिवार था। सब कुछ होते हुए भी सुमति के घरवाले एक बात से बहुत अधिक परेशान थे, कि सुमति बहुत आलसी था। सुमति कोई भी काम स्वयं नहीं करता था, सदा दूसरों पर निर्भर रहता था और दिन भर सोता रहता था।

एक दिन सुमति सोया था, अचानक बच्चे जोर जोर से चिल्लाने लगे। शोर गुल की आवाज सुनकर सुमति जाग गया और उसने देखा कि उसके द्वार पर एक साधू महाराज खड़े हैं। द्वार पर साधू महाराज को खड़ा देख, तुरंत सुमति और उसकी पत्नी ने साधू महाराज का स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। भोजन के बाद सुमति ने साधू की खूब मन लगाकर सेवा की। साधू महाराज सुमति परिवार की सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। सुमति ने अपन प्रिय वरदान मांगा कि मुझे कोई भी काम न करना पड़े और मेरी जगह कोई और मेरा काम कर दे।

साधू सुमति को वरदान में एक यक्ष देते हैं और कहते हैं कि इस यक्ष को सदा काम में व्यस्त रखना। अगर उसे काम नहीं दिया, तो वो तुम्हें खा जाएगा। वरदान पाकर सुमति मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ और साधू को आदर के साथ विदा किया। साधू के जाते ही वहां एक यक्ष प्रकट हुआ। पहले तो सुमति उसे देखकर डर गया, लेकिन जैसे ही यक्ष ने सुमति से काम माँगा, तब सुमति का डर दूर हो गया और उसने यक्ष को पहला काम खेत जोतने का दे दिया।

यक्ष वहां से गायब हो जाता है और सुमति की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। कुछ ही देर में यक्ष फिर आ जाता है और बोलता है कि खेत जोत दिया, दूसरा काम दीजिए। सुमति सोचता है कि इतना बड़ा खेत इसने इतनी जल्दी कैसे जोत दिया। सुमति इतना सोच ही रहा था कि यक्ष बोलता है कि जल्दी मुझे काम बताओ नहीं तो मैंं आपको खा जाऊंगा।

सुमति डर जाता है और बोलता है कि जाकर खेतों में सिंचाई करो। यक्ष फिर वहां से गायब हो जाता है और थोड़ी ही देर में फिर आ जाता है। यक्ष आकर बोलता है कि खेतों की सिंचाई हो गई, अब अगला काम बताइए। सुमति एक-एक कर सभी काम बताता जाता है और यक्ष उसे चुटकियों में पूरा कर देता है। सुमति की पत्नी यह सब देख रही थी और अपने पति के आलसीपन पर चिंता करने लगी। शाम होने के पहले ही यक्ष सभी काम कर देता था। सब काम करने के बाद यक्ष सुमति के पास आ जाता और बोलता कि अगला काम बताइए, नहीं तो मैंं आपको खा जाऊंगा।

अब सुमति के पास कोई भी काम नहीं बचा, जो उसे करने के लिए कह सके। उसे चिंता होने लगी है और वह बहुत डर जाता है। जब सुमति की पत्नी अपने पति को डरा हुआ देखती है, तो अपने पति को इस संकट से निकालने के बारे में सोचने लगती है। वह सुमति से बोलती है कि स्वामी अगर आप मुझे वचन देंगे कि आप कभी आलस नहीं करेंगे और अपने सभी काम खुद करेंगे, तो मैंं इस यक्ष को काम दे सकती हूं।

इस पर सुमति सोचता है कि पता नहीं यह क्या काम देगी। अपनी जान बचाने के लिए सुमति अपनी पत्नी को वचन दे देता है। इसके बाद सुमति की पत्नी यक्ष से बोलती है कि हमारे यहां एक कुत्ता है। तुम जाकर उसकी पूंछ पूरी सीधी कर दो। याद रखना उसकी पूंछ एकदम सीधी होनी चाहिए। यक्ष बोलता है कि अभी यह काम कर देता हूं। यह बोलकर वह वहां से चला जाता है। लाख कोशिश के बाद भी वह कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं कर पाता और हार मान लेता है। हारकर यक्ष सुमति के यहां से चला जाता है। उस दिन के बाद से सुमति अपने आलस को छोड़कर सभी काम करने लगता है और उसका परिवार खुशी-खुशी रहने लगता है।

कहानी से सीख

हमें अपना काम स्वयं करना चाहिए कभी आलस नहीं करनी चाहिए। आलस करने से हमारे काम बिगड़ सकते है और कोई बुरी दुर्घटना हो सकती है। अतः, हमें आलस छोड़कर अपना काम खुद ही करना चाहिए।