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“कोई भी आर्थिक विकास मानव जाति के लिए लाभदायी है। जैसे आर्थिक विकास अधिक, उतना ही अधिक लाभ ।" इस सिद्धान्त में से एक दूसरा फलित सिद्धान्त खड़ा हुआ है । “जो लोग इस आर्थिक विकास की अग्नि को प्रज्वलित रखने में अगुवा हैं, उन्हें गौरव और सम्पत्ति मिलनी चाहिए। जबकि जो लोग सामान्य मनुष्य के रुप में जन्मे हैं, वे सभी शोषण के योग्य हैं।"
 
“कोई भी आर्थिक विकास मानव जाति के लिए लाभदायी है। जैसे आर्थिक विकास अधिक, उतना ही अधिक लाभ ।" इस सिद्धान्त में से एक दूसरा फलित सिद्धान्त खड़ा हुआ है । “जो लोग इस आर्थिक विकास की अग्नि को प्रज्वलित रखने में अगुवा हैं, उन्हें गौरव और सम्पत्ति मिलनी चाहिए। जबकि जो लोग सामान्य मनुष्य के रुप में जन्मे हैं, वे सभी शोषण के योग्य हैं।"
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यह सिद्धान्त अत्यन्त भयानक है। हम जानते हैं कि अनेक देशों में आर्थिक विकास उस देश के मुठ्ठी भर धनवानों का लाभ करता हैं। जबकि अधिकांश प्रजा के लिए वे अत्यन्त खराब स्थिति पैदा करते हैं। पूर्व वर्णित सिद्धान्त की मान्यता ऐसी है कि इस पद्धति से चलने वाले उद्योगों के प्रमुखों को विशेष दर्जा मिलना चाहिए। इस प्रावधान के कारण इसका असर अधिक मजबूत बनता जाता है। इस मान्यता में ही हमारी वर्तमान की अनेक समस्याओं की जड़ विद्यमान है। दुनिया को लूटने के भाँति-भाँति के षडयंत्र पैदा होने का कारण भी यह मान्यता ही है। जब धन के लोभ को बडा पुरस्कार मिलता है तब लोभ स्वयं समाज को बिगाड़ने वाला कारक बन जाता है। जब हम पृथ्वी के संसाधनों के बेतहाशा उपभोग का सन्त के जैसा गुणगान करेंगे, जब हम अपने बालकों को असाधरण सुखी जीवन जीने की स्पर्धा करना सिखायेंगे और जब हम अधिकांश लोगोंं को एक धनवान छोटे समूह के गुलाम के रुप में तुच्छ मानेंगे हैं तब हम स्वयं मुश्किलों को निमन्त्रण ही देंगे।  
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यह सिद्धान्त अत्यन्त भयानक है। हम जानते हैं कि अनेक देशों में आर्थिक विकास उस देश के मुठ्ठी भर धनवानों का लाभ करता हैं। जबकि अधिकांश प्रजा के लिए वे अत्यन्त खराब स्थिति पैदा करते हैं। पूर्व वर्णित सिद्धान्त की मान्यता ऐसी है कि इस पद्धति से चलने वाले उद्योगों के प्रमुखों को विशेष दर्जा मिलना चाहिए। इस प्रावधान के कारण इसका असर अधिक मजबूत बनता जाता है। इस मान्यता में ही हमारी वर्तमान की अनेक समस्याओं की जड़़ विद्यमान है। दुनिया को लूटने के भाँति-भाँति के षडयंत्र पैदा होने का कारण भी यह मान्यता ही है। जब धन के लोभ को बडा पुरस्कार मिलता है तब लोभ स्वयं समाज को बिगाड़ने वाला कारक बन जाता है। जब हम पृथ्वी के संसाधनों के बेतहाशा उपभोग का सन्त के जैसा गुणगान करेंगे, जब हम अपने बालकों को असाधरण सुखी जीवन जीने की स्पर्धा करना सिखायेंगे और जब हम अधिकांश लोगोंं को एक धनवान छोटे समूह के गुलाम के रुप में तुच्छ मानेंगे हैं तब हम स्वयं मुश्किलों को निमन्त्रण ही देंगे।  
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वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो हमेशा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
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वैश्विक साम्राज्य खड़ा करने के पागलपन में कोर्पोरेशन, बैंक और सरकार (ये सब मिल कर कोर्पोरेटोक्रेसी) स्वयं आर्थिक और राजकीय प्रभाव और दबाव को उपयोग में लेकर जैसा ऊपर बताया है, वह गलत सिद्धान्त और उसमें से फलित होने वाले उपसिद्धान्त को ही अपने स्कूलों में पढ़ाया जाये, व्यापार में यही प्रचलित रहे और मीडिया में भी इसी के गुणगान गाये जायें, इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह कोर्पोरेटोक्रेसी अर्थात् कम्पनीशाही को हम खींच कर इस स्तर पर ले आये हैं कि हमारी वैश्विक संस्कृति एक राक्षसी मशीन बन गई है, जो सदा अधिक से अधिक ईंधन माँगती है, यहाँ तक कि वह सारी वस्तुएँ खा जायें और हमारा ही नाश करे । यह कोर्पोरेटोक्रेसी का सबसे महत्त्वपूर्ण काम इस पद्धति को लगातार मजबूत करते रहना और उसको फैलाना है। इस काम के लिए मेरे जैसे आर्थिक हत्यारों को कल्पना से भी परे भारी वेतन दिया जाता है । यह सब होते हुए भी हम जहाँ कमजोर पड़ते हैं, वहाँ सच में खूनी गुण्डों को काम सौंप देते हैं और वे भी अगर काम न कर पायें तो सेना द्वारा आक्रमण करवा दिया जाता है।
    
मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, अतः हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
 
मैं जब आर्थिक हत्यारे के रूप में काम करता था, तब मेरे जैसे लोग संख्या में बहुत कम थे। अब तो आर्थिक हत्यारे बहुत बड़ी संख्या में रखे जाते हैं । बड़े बड़े छलना भरे पदों के नाम बहुत सुन्दर सुन्दर रखे जाते हैं। और वे मोनसेन्टो, जनरल इलेक्ट्रीक, नाइके, जनरल मोटर्स, वोलमार्ट जैसी लगभग दुनियाँ की सभी विशाल कम्पनियों में काम करते हैं । “आर्थिक हत्यारे की स्वीकारोक्ति" की यह पुस्तक मुझ पर जितनी लागू होती है, उतनी ही उन सभी कम्पनियों में काम करने वाले आर्थिक हत्यारों को भी लागू  होती है। यह सच्ची वास्तविकता है। यह सब तुम्हें भी लागू होता है । क्यों कि तुम्हारा शोषण करके ही अमेरिका का वैश्विक साम्राज्य बना है। इतिहास हमें कहता है कि अगर इसे हम बदलेंगे नहीं तो इतना पक्का मानना कि बहुत ही खतरनाक परिणाम आने वाले हैं। ऐसे साम्राज्य स्थायी रुप से कभी नहीं रहते । प्रत्येक ऐसे साम्राज्य को बहुत बुरी तरह से बर्बाद किया गया है । हर ऐसा साम्राज्य बहुत बुरे ढंग से नष्ट हुआ है। अपने साम्राज्यवाद का विस्तार करने के प्रायसों में वे अनेक संस्कृतियों का नाश करते हैं और अन्त में उनका स्वयं का भी पतन होता है। दूसरे सभी देशों का शोषण करके मात्र एक ही देश आबाद नहीं रह सकता। मुझे तो यह लगता है कि हम सब निश्चित ही इतना तो समझते ही होंगे कि यह आर्थिक तंत्र हमें किस तरह लूट रहे हैं और प्राकृतिक सम्पत्तियों को लूटने का कभी सन्तोष न हो, ऐसी बड़ी भूख उत्पन्न करते हैं। और अन्त में उसमें से गुलामी को मजबूत करते हैं, अतः हमें इसे नहीं चलाना चाहिए। जिस व्यवस्था में थोड़े लोग ही समृद्धि मे लोटते हों और अरबों मनुष्य गरीबी, प्रदूषण और हिंसा में डूब कर मर रहे हों, उस व्यवस्था में हमें क्या करना चाहिए इसकी समीक्षा हम अवश्य करें ।
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मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
 
मैं जिस कम्पनी में आर्थिक हत्यारे के रूप में नौकरी करता था, उसमें अधिकांश लोग तो इंजिनयीर थे। परन्तु हमारे पास निर्माण कार्य के लिए कुछ भी साधन नहीं थे । हमने कभी भी कोई छत भी बाँधी नहीं थी। मैंने जब नौकरी में प्रवेश लिया तब कुछ महिनों तक तो समझ ही नहीं सका कि मेरी कम्पनी काम क्या करती है। हमें सभी बातें अत्यन्त गुप्त रखनी होती थीं। एक दिन मुझे मेरी अधिकारी महिला ने समझाया कि उसका काम मुझे आर्थिक हत्यारा बनाने का है। उसने मुझे समझाया कि हम कहीं ढूँढने से भी न मिले, ऐसे वंश के लोग हैं । हमें बहुत सारे खराब काम करने हैं और उसकी जानकारी कभी भी किसी को नहीं होनी चाहिए। तुम्हारी पत्नी को भी नहीं । तुम इस काम में आये हो वह अब पूरी जिंदगी के लिए है।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय ऋणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे हमेशा के  लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । ऋणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । अतः ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
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मेरा काम विशाल अन्तरराष्ट्रीय ऋणों को उचित ठहराना था । उस ऋण की रकम बेथेल, हलीबर्टन, स्टोन एण्ड वेबस्टर, ब्राउन एण्ड रुट, प्रोजेक्ट के द्वारा मिलने वाली थी। साथ ही यह भी देखना था कि जो देश ये ऋण लेंगे वे हमारा ऋण तो उतार दें परन्तु उसके बाद दिवालिया हो जाने चाहिए। जिससे वे सदा के  लिए हमसे दबकर रहें। और हम इनका मनमाना उपयोग अपना हित साधने के लिए कर सकें । ऋणों को उचित ठहराने के लिए मुझे आँकड़ों की गणना के द्वारा यह समझाना होता था कि इससे कितना विकास होगा। इसमें सबसे मुख्य आँकड़ा अर्थात् ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट की गणना कर बताना होता था। जिस प्रोजेक्ट में जीएनपी सबसे अधिक बढ़ती है, वह प्रोजेक्ट जीत जाता है। मेरा रेल्वे लाइन डालने का प्रोजेक्ट, दूर संचार (टेली कोम्युनिकेशन) का जाल बिछाने का प्रोजेक्ट, हाइवे, बन्दरगाह, एयरपोर्ट के निर्माण कार्य के प्रोजेक्ट आदि के लिए ऋण लें, यह समझाने का काम था। जिस किसी प्रोजेक्ट को उचित ठहराना हो, तो उससे जीएनपी बहुत बढ़ेगी यह समझाना ताकि वह प्रोजेक्ट स्वीकृत हो जाय । ऐसे प्रत्येक प्रोजेक्ट के विषय में अन्दर की बिल्कुल छिपी बात यह थी कि हमारे देश की ठेका लेने वाली (कोन्ट्राक्टर) कम्पनियों को जंगी नफा जमा कर देने का उद्देश्य था, और ऋण लेने वाले देश के मुट्ठी भर धनवान लोग और प्रभावी परिवार ही अति सुखी होंगे, यह भी हम छिपाकर रखते थे। साथ ही हम यह निश्चितता भी करते रहते थे कि लम्बी अवधि में वित्तीय मजबूरियों में देश अवश्य फँस जायेगा । जिससे हम उस देश को अपना राजकीय मोहरा बना सकें । अतः ऋण जितने जंगी होते थे, उतना ही अच्छा रहता था। जिस किसी देश पर लादे गये कर्ज के पहाड़ से उस देश के गरीब से गरीब मनुष्यों को मिलने वाली आरोग्य, शिक्षा और अन्य सामाजिक सेवायें दशकों तक बन्द हो जायेगी, इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया जाता था । क्यों कि हम तो उसे गुप्त रखते थे।
    
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
 
मेरी उच्च महिला अधिकारी “क्लाउडीन" और मैं खुली चर्चा करते कि यह जीएनपी (ग्रोस नेशनल प्रोजेक्ट) का आँकड़ा कितना छलावा करने वाला है। उदाहरण के लिए एक भी व्यक्ति अरबपति बनता है तो भी जीएनपी तो बढ़ती ही है। कोई अरबपति व्यक्ति बिजली की कम्पनी का मालिक हो और वह ढ़ेरों धन कमावे और सारा देश कर्ज में डूब जाय तब भी जीएनपी का आँकड़ा तो बढ़ता ही है और वह विकास माना जाता है। गरीब अधिक गरीब होता है और धनवान अधिक धनी होता जाता है तब भी जीएनपी बढ़ता है और आर्थिक विकास हुआ, यह माना जाता है।
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पौला ने आगे कहा, 'विदेशी ऑयल कम्पनी के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया, क्यों कि उनकी जमीनों के ऊपर तुमने तेल के कुँओं के लिए खुदाई की, उसका विरोध किया। पुलिस ने उनको पकड़कर मारा और जेल में डाल दिया । उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था । केवल ऑफिस के बाहर खड़े होकर प्लेकार्ड हाथमें लेकर गाते गाते खड़े रहते थे। केवल इतने से विरोध के कारण ६ महीने तक जेल में रखा । जेल से बाहर आने के बाद वहाँ क्या हुआ कि उन्होंने उनसे बिल्कुल बात ही नहीं की । परन्तु वे जब जेल से बाहर आये तब अलग ही जाति के मनुष्य थे (आतंकवादी बनकर बाहर आये थे) |
 
पौला ने आगे कहा, 'विदेशी ऑयल कम्पनी के ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया, क्यों कि उनकी जमीनों के ऊपर तुमने तेल के कुँओं के लिए खुदाई की, उसका विरोध किया। पुलिस ने उनको पकड़कर मारा और जेल में डाल दिया । उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था । केवल ऑफिस के बाहर खड़े होकर प्लेकार्ड हाथमें लेकर गाते गाते खड़े रहते थे। केवल इतने से विरोध के कारण ६ महीने तक जेल में रखा । जेल से बाहर आने के बाद वहाँ क्या हुआ कि उन्होंने उनसे बिल्कुल बात ही नहीं की । परन्तु वे जब जेल से बाहर आये तब अलग ही जाति के मनुष्य थे (आतंकवादी बनकर बाहर आये थे) |
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उपर्युक्त बात सुनकर मेरी आत्मा छलनी हो जाती थी। फिर भी मेरा पैसों का लोभ जाता न था। (नौकरी छोड़ने की हिम्मत नहीं होती थी)
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उपर्युक्त बात सुनकर मेरी आत्मा छलनी हो जाती थी। तथापि मेरा पैसों का लोभ जाता न था। (नौकरी छोड़ने की हिम्मत नहीं होती थी)
    
वैश्विक साम्राज्य आत्मकेन्द्री है, स्वार्थी है, लोभी है और अति भौतिकवादी, सारा ही खा जाना चाहता है, जो कुछ भी देखा वह ले लेना चाहता है, सत्ता और धन लेने के लिए तो वह चाहे जो साधन उपयोग में लेने के लिये तैयार रहता है।
 
वैश्विक साम्राज्य आत्मकेन्द्री है, स्वार्थी है, लोभी है और अति भौतिकवादी, सारा ही खा जाना चाहता है, जो कुछ भी देखा वह ले लेना चाहता है, सत्ता और धन लेने के लिए तो वह चाहे जो साधन उपयोग में लेने के लिये तैयार रहता है।
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मैंने देख लिया कि जो लोग अमेरिकन कोर्पोरेशन में काम करते हैं, वे भले ही आर्थिक हत्यारों के मायाजाल में शामिल न हों, फिर भी कोई व्यवस्थित रूप से रचे हुए षडयंत्र से भी अधिक विघातक कार्य में भाग ले रहे हैं ।
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मैंने देख लिया कि जो लोग अमेरिकन कोर्पोरेशन में काम करते हैं, वे भले ही आर्थिक हत्यारों के मायाजाल में शामिल न हों, तथापि कोई व्यवस्थित रूप से रचे हुए षडयंत्र से भी अधिक विघातक कार्य में भाग ले रहे हैं ।
    
==References==
 
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