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# यूरोप के लोग जब विश्व के अन्यान्य देशों में पहुँचे तब उन्होंने अनेक प्रकार से विनाश किया। वे अमेरिका पहुँचे। वहाँ की विशाल भूमि पर खेती करने के लिये और अन्य कामों के लिये वे आफ्रिका के लोगोंं को पकडकर लाये, उन्हें गुलाम बनाया और उनसे मजदूरी करवाई । यह काम नहीं करने का और करवाने का एक उदाहरण है।  
 
# यूरोप के लोग जब विश्व के अन्यान्य देशों में पहुँचे तब उन्होंने अनेक प्रकार से विनाश किया। वे अमेरिका पहुँचे। वहाँ की विशाल भूमि पर खेती करने के लिये और अन्य कामों के लिये वे आफ्रिका के लोगोंं को पकडकर लाये, उन्हें गुलाम बनाया और उनसे मजदूरी करवाई । यह काम नहीं करने का और करवाने का एक उदाहरण है।  
 
# ब्रिटीश भारत में आये तब उन्होंने भी यहाँ वैसे ही सितम गुजारे । लोगोंं के उत्पाद्यक उद्योग नष्ट कर दिये, स्वयं हथिया लिये और सारे कारीगरों को मजदूर बनाया । मालिक थे वे नौकर बन गये । मालिकों को मजदूर बनाकर उनसे काम करवाने के लिये उन्होंने भयंकर अत्याचार किये । गालीप्रदान, कोडों की मार, अधिक काम करने की सख्ती, नियत समय में काम न कर पाने पर पुनः मार, अल्पतम वेतन, सभी प्रकार से अपमान आदि के कारण कारीगरों का मन टूट गया । काम करने वाले दास, नीच, गये बीते और काम करवाने वाले ऊँचे, श्रेष्ठ, साहेब ऐसा समीकरण जेहन में उतर गया । वह इतना गहरा था कि दो सौ वर्षों के कालखण्ड में वह चित्त का एक संस्कार बना हुआ है।  
 
# ब्रिटीश भारत में आये तब उन्होंने भी यहाँ वैसे ही सितम गुजारे । लोगोंं के उत्पाद्यक उद्योग नष्ट कर दिये, स्वयं हथिया लिये और सारे कारीगरों को मजदूर बनाया । मालिक थे वे नौकर बन गये । मालिकों को मजदूर बनाकर उनसे काम करवाने के लिये उन्होंने भयंकर अत्याचार किये । गालीप्रदान, कोडों की मार, अधिक काम करने की सख्ती, नियत समय में काम न कर पाने पर पुनः मार, अल्पतम वेतन, सभी प्रकार से अपमान आदि के कारण कारीगरों का मन टूट गया । काम करने वाले दास, नीच, गये बीते और काम करवाने वाले ऊँचे, श्रेष्ठ, साहेब ऐसा समीकरण जेहन में उतर गया । वह इतना गहरा था कि दो सौ वर्षों के कालखण्ड में वह चित्त का एक संस्कार बना हुआ है।  
# शिक्षाव्यवस्था ने इस संस्कार को और गहरा बनाया । 'व्हाइट कॉलर जॉब' नामक एक और प्रतिष्ठित संकल्पना का प्रचलन हो गया। जिसमें कपडे मैले नहीं होते, कपडे की प्रैस खराब नहीं होती, काम करते समय पसीना नहीं आता, शारीरिक कष्ट का अनुभव नहीं होता, जिसमें केवल बोलना, लिखना और विचार करना है वह व्हाइट कॉलर जॉब है। पसीना बहानेवाला और कपडे गन्दे नहीं होने देनेवाला, दोनों नौकर ही हैं, गुलाम ही हैं परन्तु शारीरिक श्रम करने वाला नीचा है, वाचिक और बौद्धिक श्रम करनेवाला ऊँचा है ऐसा समीकरण बन गया है। इससे भी श्रम की प्रतिष्ठा नहीं रही। वह हेय कार्य माना जाने लगा है।  
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# शिक्षाव्यवस्था ने इस संस्कार को और गहरा बनाया । 'व्हाइट कॉलर जॉब' नामक एक और प्रतिष्ठित संकल्पना का प्रचलन हो गया। जिसमें कपड़े मैले नहीं होते, कपड़े की प्रैस खराब नहीं होती, काम करते समय पसीना नहीं आता, शारीरिक कष्ट का अनुभव नहीं होता, जिसमें केवल बोलना, लिखना और विचार करना है वह व्हाइट कॉलर जॉब है। पसीना बहानेवाला और कपड़े गन्दे नहीं होने देनेवाला, दोनों नौकर ही हैं, गुलाम ही हैं परन्तु शारीरिक श्रम करने वाला नीचा है, वाचिक और बौद्धिक श्रम करनेवाला ऊँचा है ऐसा समीकरण बन गया है। इससे भी श्रम की प्रतिष्ठा नहीं रही। वह हेय कार्य माना जाने लगा है।  
 
# परिणामस्वरूप आज भी काम करनेवाला और काम करवाने वाला ऐसे दो भागों में अर्थार्जन का क्षेत्र बँट गया है। काम के साथ आनन्द, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, मौलिकता, उत्कृष्टता, उत्पादन का गौरव, कुछ करने की सन्तुष्टि, दूसरों के लिये उपयोगी होने का आत्मसन्तोष आदि जो श्रेष्ठ गुण जुड़े थे उनका लोप होकर उनका स्थान अनिच्छा, यान्त्रिकता, विवशता, गौरवहीनता के भाव ने ले लिया है। इस स्थिति को बदलकर भारत को भारत होना है।  
 
# परिणामस्वरूप आज भी काम करनेवाला और काम करवाने वाला ऐसे दो भागों में अर्थार्जन का क्षेत्र बँट गया है। काम के साथ आनन्द, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, मौलिकता, उत्कृष्टता, उत्पादन का गौरव, कुछ करने की सन्तुष्टि, दूसरों के लिये उपयोगी होने का आत्मसन्तोष आदि जो श्रेष्ठ गुण जुड़े थे उनका लोप होकर उनका स्थान अनिच्छा, यान्त्रिकता, विवशता, गौरवहीनता के भाव ने ले लिया है। इस स्थिति को बदलकर भारत को भारत होना है।  
 
# हमें स्मरण में लाना चाहिये कि अनाज के, वस्त्र के, लोहे के उत्पादन में, कागज, सिमेण्ट, बर्फ आदि बनाने में, खेती के, सुथारी काम के, लोहा पिघलाने के औजार बनाने में, भौतिक विज्ञान के सिद्धातों की खोज करने में भारत ने जो उत्कृष्टता प्राप्त की थी वह विक्रमी थी। आज भी उस विश्वविक्रम तक कोई पहुँच नहीं पाया है। यह सब श्रमयुक्त काम करने के परिणाम स्वरूप ही था।  
 
# हमें स्मरण में लाना चाहिये कि अनाज के, वस्त्र के, लोहे के उत्पादन में, कागज, सिमेण्ट, बर्फ आदि बनाने में, खेती के, सुथारी काम के, लोहा पिघलाने के औजार बनाने में, भौतिक विज्ञान के सिद्धातों की खोज करने में भारत ने जो उत्कृष्टता प्राप्त की थी वह विक्रमी थी। आज भी उस विश्वविक्रम तक कोई पहुँच नहीं पाया है। यह सब श्रमयुक्त काम करने के परिणाम स्वरूप ही था।  
 
# इस लिये आज भी धार्मिकों को शरीरश्रमयुक्त काम करने की शुरुआत करनी चाहिये । काम करने की शिक्षा घर और विद्यालय दोनों स्थान पर मिलनी चाहिये । मनुष्य के दैनन्दिन जीवन में श्रम के पर्याय रूप यन्त्रों ने जो स्थान प्राप्त किया है उसे विस्थापित कर देना चाहिये । उत्पादक श्रम को गौरव प्रदान करना चाहिये।  
 
# इस लिये आज भी धार्मिकों को शरीरश्रमयुक्त काम करने की शुरुआत करनी चाहिये । काम करने की शिक्षा घर और विद्यालय दोनों स्थान पर मिलनी चाहिये । मनुष्य के दैनन्दिन जीवन में श्रम के पर्याय रूप यन्त्रों ने जो स्थान प्राप्त किया है उसे विस्थापित कर देना चाहिये । उत्पादक श्रम को गौरव प्रदान करना चाहिये।  
# घर में बर्तन साफ करना, कपडे धोना, झाडू पोंछा करना, अन्य साफ सफाई करना, अनाज पीसना, चटनी पीसना, छाछ बनाना, कूटना, छानना, भोजन बनाना आदि असंख्य काम होते हैं । बिस्तर लगाना और समेटना, छोटी मोटी दुरुस्ती करना, बिजली, पानी आदि की व्यवस्थाओं को ठीक करना, कपडे सीना आदि काम होते हैं।  
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# घर में बर्तन साफ करना, कपड़े धोना, झाडू पोंछा करना, अन्य साफ सफाई करना, अनाज पीसना, चटनी पीसना, छाछ बनाना, कूटना, छानना, भोजन बनाना आदि असंख्य काम होते हैं । बिस्तर लगाना और समेटना, छोटी मोटी दुरुस्ती करना, बिजली, पानी आदि की व्यवस्थाओं को ठीक करना, कपड़े सीना आदि काम होते हैं।  
 
# पैदल चलना अथवा साइकिल सवारी करना, बगीचे में काम करना, रास्तों की सफाई करना, विद्यालय में भी साफ सफाई करना, शैक्षिक साधनसामग्री का निर्माण करना, ईंटे बनाना, मैदान की सफाई करना, बगीचे में काम करना आदि अनेक काम हैं।  
 
# पैदल चलना अथवा साइकिल सवारी करना, बगीचे में काम करना, रास्तों की सफाई करना, विद्यालय में भी साफ सफाई करना, शैक्षिक साधनसामग्री का निर्माण करना, ईंटे बनाना, मैदान की सफाई करना, बगीचे में काम करना आदि अनेक काम हैं।  
 
# सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को श्रमआधारित उद्योगप्रधान बनाना यह मुख्य काम है । अर्थव्यवस्था से यन्त्र हट जाने पर अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जायेगा।  
 
# सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को श्रमआधारित उद्योगप्रधान बनाना यह मुख्य काम है । अर्थव्यवस्था से यन्त्र हट जाने पर अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जायेगा।  

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