Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 125: Line 125:     
==== ४. श्रमप्रतिष्ठा ====
 
==== ४. श्रमप्रतिष्ठा ====
भारत आर्थिक दृष्टि से भी अत्यन्त समृद्ध देश रहा है । इसका एक कारण श्रमप्रतिष्ठा है । श्रम प्रमुख रूप से शारीरिक मेहनत को कहा जाता है। पर्याय से मानसिक और बौद्धिक श्रम भी होता है परन्तु उसका मूल अर्थ शारीरिक मेहनत ही है।  
+
# भारत आर्थिक दृष्टि से भी अत्यन्त समृद्ध देश रहा है । इसका एक कारण श्रमप्रतिष्ठा है । श्रम प्रमुख रूप से शारीरिक मेहनत को कहा जाता है। पर्याय से मानसिक और बौद्धिक श्रम भी होता है परन्तु उसका मूल अर्थ शारीरिक मेहनत ही है।  
 
+
# २. श्रम व्यायाम नहीं है । श्रम से व्यायाम होता अवश्य है परन्तु श्रम और व्यायाम एक नहीं है । व्यायाम शरीर को कसने के लिये, सुडौल और सुदृढ बनाने के लिये तथा बलवान बनाने के लिये किया जाता है, श्रम किसी न किसी काम के लिये किया जाता है।  
२. श्रम व्यायाम नहीं है । श्रम से व्यायाम होता अवश्य है परन्तु श्रम और व्यायाम एक नहीं है । व्यायाम शरीर को कसने के लिये, सुडौल और सुदृढ बनाने के लिये तथा बलवान बनाने के लिये किया जाता है, श्रम किसी न किसी काम के लिये किया जाता है।  
+
# श्रम से शरीर थकता है, कष्ट का अनुभव भी करता है, क्षीण भी होता है। श्रम से पसीना निकलता है। इस थकान, कष्ट, क्षरण आदि को भरपाई करने हेतु आहार और आराम का प्रावधान किया जाता है।  
 
+
# परन्तु श्रम मजदूरी नहीं है। स्वेच्छापूर्वक, स्वतन्त्रतापूर्वक, प्रसन्नतापूर्वक, कर्तव्यभावना से प्रेरित होकर जो महेनत की जाती है वह श्रम है । विवशता से, दूसरों के आदेश से, अनिच्छा से जो किया जाता है वह मजदूरी है। प्रतिष्ठा श्रम की होती है, मजदूरी की नहीं।  
३. श्रम से शरीर थकता है, कष्ट का अनुभव भी करता है, क्षीण भी होता है। श्रम से पसीना निकलता है। इस थकान, कष्ट, क्षरण आदि को भरपाई करने हेतु आहार और आराम का प्रावधान किया जाता है।  
+
# श्रम की प्रतिष्ठा का अर्थ क्या है यह प्रथम स्पष्ट करना चाहिये । श्रम करने वालों को अच्छा वेतन देना प्रतिष्ठा करना नहीं है। श्रम करने वालों को नीचा नहीं मानना कुछ मात्रा में श्रम की प्रतिष्ठा करना है, परन्तु स्वयं गौरवपूर्वक श्रम करना श्रम की प्रतिष्ठा करना है। श्रम करने में आनन्द का अनुभव करना श्रमप्रतिष्ठा है।  
 
+
# आज इसके सामने संकट खडा हुआ है। हमें काम करना अच्छा नहीं लगता । काम करना अच्छा नहीं माना जाता । काम करनेवाला नीचा माना जाता है। काम करनेवाले से नहीं करने वाला श्रेष्ठ माना जाता है। दूसरों से काम करवाने वाला उससे श्रेष्ठ माना जाता है।  
४. परन्तु श्रम मजदूरी नहीं है। स्वेच्छापूर्वक, स्वतन्त्रतापूर्वक, प्रसन्नतापूर्वक, कर्तव्यभावना से प्रेरित होकर जो महेनत की जाती है वह श्रम है । विवशता से, दूसरों के आदेश से, अनिच्छा से जो किया जाता है वह मजदूरी है। प्रतिष्ठा श्रम की होती है, मजदूरी की नहीं।  
+
# दूसरों से काम करवाने वाले को मैनेजर कहा जाता है । मैनेज करना प्रबन्ध या व्यवस्था करना है । कोई भी काम, कार्यक्रम, उपक्रम की व्यवस्था करने को मैनेज करना और व्यवस्था करनेवाले व्यक्ति को मैनेजर कहा जाता है । आज व्यवस्था करनेवाला ही बडा हो गया है, प्रत्यक्ष काम करनेवाला छोटा ।  
 
+
# आज अब मनुष्यों का भी प्रबन्धन होता है। मनुष्य भी एक संसाधन बन गया है। शिक्षा मन्त्रालय को मानव संसाधन विकास मन्त्रालय कहा जाता है। मैनेजमेण्ट का शास्त्र बना है, उसे प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है और विश्वविद्यालय के स्तर के प्रबन्धन संस्थान बने हैं । श्रम नहीं करने की प्रतिष्ठा के ये प्रतीक हैं ।  
श्रम की प्रतिष्ठा का अर्थ क्या है यह प्रथम स्पष्ट करना चाहिये । श्रम करने वालों को अच्छा वेतन देना प्रतिष्ठा करना नहीं है। श्रम करने वालों को नीचा नहीं मानना कुछ मात्रा में श्रम की प्रतिष्ठा करना है, परन्तु स्वयं गौरवपूर्वक श्रम करना श्रम की प्रतिष्ठा करना है। श्रम करने में आनन्द का अनुभव करना श्रमप्रतिष्ठा है।  
+
# यह अत्यन्त घातक स्थिति है। परन्तु इस घातक स्थिति तक पहुँचने के भी कारण हैं। भारत के सन्दर्भ में इन कारणों का विशेष महत्त्व है।  
 
+
# यूरोप के लोग जब विश्व के अन्यान्य देशों में पहुँचे तब उन्होंने अनेक प्रकार से विनाश किया। वे अमेरिका पहुँचे। वहाँ की विशाल भूमि पर खेती करने के लिये और अन्य कामों के लिये वे आफ्रिका के लोगों को पकडकर लाये, उन्हें गुलाम बनाया और उनसे मजदूरी करवाई । यह काम नहीं करने का और करवाने का एक उदाहरण है।  
६. आज इसके सामने संकट खडा हुआ है। हमें काम करना अच्छा नहीं लगता । काम करना अच्छा नहीं माना जाता । काम करनेवाला नीचा माना जाता है। काम करनेवाले से नहीं करने वाला श्रेष्ठ माना जाता है। दूसरों से काम करवाने वाला उससे श्रेष्ठ माना जाता है।  
+
# ब्रिटीश भारत में आये तब उन्होंने भी यहाँ वैसे ही सितम गुजारे । लोगों के उत्पाद्यक उद्योग नष्ट कर दिये, स्वयं हथिया लिये और सारे कारीगरों को मजदूर बनाया । मालिक थे वे नौकर बन गये । मालिकों को मजदूर बनाकर उनसे काम करवाने के लिये उन्होंने भयंकर अत्याचार किये । गालीप्रदान, कोडों की मार, अधिक काम करने की सख्ती, नियत समय में काम न कर पाने पर पुनः मार, अल्पतम वेतन, सभी प्रकार से अपमान आदि के कारण कारीगरों का मन टूट गया । काम करने वाले दास, नीच, गये बीते और काम करवाने वाले ऊँचे, श्रेष्ठ, साहेब ऐसा समीकरण जेहन में उतर गया । वह इतना गहरा था कि दो सौ वर्षों के कालखण्ड में वह चित्त का एक संस्कार बना हुआ है।
 
+
# शिक्षाव्यवस्था ने इस संस्कार को और गहरा बनाया । 'व्हाइट कॉलर जॉब' नामक एक और प्रतिष्ठित संकल्पना का प्रचलन हो गया। जिसमें कपडे मैले नहीं होते, कपडे की प्रैस खराब नहीं होती, काम करते समय पसीना नहीं आता, शारीरिक कष्ट का अनुभव नहीं होता, जिसमें केवल बोलना, लिखना और विचार करना है वह व्हाइट कॉलर जॉब है। पसीना बहानेवाला और कपडे गन्दे नहीं होने देनेवाला, दोनों नौकर ही हैं, गुलाम ही हैं परन्तु शारीरिक श्रम करने वाला नीचा है, वाचिक और बौद्धिक श्रम करनेवाला ऊँचा है ऐसा समीकरण बन गया है। इससे भी श्रम की प्रतिष्ठा नहीं रही। वह हेय कार्य माना जाने लगा है।
७. दूसरों से काम करवाने वाले को मैनेजर कहा जाता है । मैनेज करना प्रबन्ध या व्यवस्था करना है । कोई भी काम, कार्यक्रम, उपक्रम की व्यवस्था करने को मैनेज करना और व्यवस्था करनेवाले व्यक्ति को मैनेजर कहा जाता है । आज व्यवस्था करनेवाला ही बडा हो गया है, प्रत्यक्ष काम करनेवाला छोटा ।  
+
# परिणामस्वरूप आज भी काम करनेवाला और काम करवाने वाला ऐसे दो भागों में अर्थार्जन का क्षेत्र बँट गया है। काम के साथ आनन्द, कल्पनाशीलता, सृजनशीलता, मौलिकता, उत्कृष्टता, उत्पादन का गौरव, कुछ करने की सन्तुष्टि, दूसरों के लिये उपयोगी होने का आत्मसन्तोष आदि जो श्रेष्ठ गुण जुड़े थे उनका लोप होकर उनका स्थान अनिच्छा, यान्त्रिकता, विवशता, गौरवहीनता के भाव ने ले लिया है। इस स्थिति को बदलकर भारत को भारत होना है।
 
+
# हमें स्मरण में लाना चाहिये कि अनाज के, वस्त्र के, लोहे के उत्पादन में, कागज, सिमेण्ट, बर्फ आदि बनाने में, खेती के, सुथारी काम के, लोहा पिघलाने के औजार बनाने में, भौतिक विज्ञान के सिद्धातों की खोज करने में भारत ने जो उत्कृष्टता प्राप्त की थी वह विक्रमी थी। आज भी उस विश्वविक्रम तक कोई पहुँच नहीं पाया है। यह सब श्रमयुक्त काम करने के परिणाम स्वरूप ही था।
आज अब मनुष्यों का भी प्रबन्धन होता है। मनुष्य भी एक संसाधन बन गया है। शिक्षा मन्त्रालय को मानव संसाधन विकास मन्त्रालय कहा जाता है। मैनेजमेण्ट का शास्त्र बना है, उसे प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है और विश्वविद्यालय के स्तर के प्रबन्धन संस्थान बने हैं । श्रम नहीं करने की प्रतिष्ठा के ये प्रतीक हैं ।  
+
# इस लिये आज भी भारतीयों को शरीरश्रमयुक्त काम करने की शुरुआत करनी चाहिये । काम करने की शिक्षा घर और विद्यालय दोनों स्थान पर मिलनी चाहिये । मनुष्य के दैनन्दिन जीवन में श्रम के पर्याय रूप यन्त्रों ने जो स्थान प्राप्त किया है उसे विस्थापित कर देना चाहिये । उत्पादक श्रम को गौरव प्रदान करना चाहिये।
 
+
# घर में बर्तन साफ करना, कपडे धोना, झाडू पोंछा करना, अन्य साफ सफाई करना, अनाज पीसना, चटनी पीसना, छाछ बनाना, कूटना, छानना, भोजन बनाना आदि असंख्य काम होते हैं । बिस्तर लगाना और समेटना, छोटी मोटी दुरुस्ती करना, बिजली, पानी आदि की व्यवस्थाओं को ठीक करना, कपडे सीना आदि काम होते हैं।
९. यह अत्यन्त घातक स्थिति है। परन्तु इस घातक स्थिति तक पहुँचने के भी कारण हैं। भारत के सन्दर्भ में इन कारणों का विशेष महत्त्व है।  
+
# पैदल चलना अथवा साइकिल सवारी करना, बगीचे में काम करना, रास्तों की सफाई करना, विद्यालय में भी साफ सफाई करना, शैक्षिक साधनसामग्री का निर्माण करना, ईंटे बनाना, मैदान की सफाई करना, बगीचे में काम करना आदि अनेक काम हैं।
 
+
# सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को श्रमआधारित उद्योगप्रधान बनाना यह मुख्य काम है । अर्थव्यवस्था से यन्त्र हट जाने पर अनेक समस्याओं का अपने आप समाधान हो जायेगा।
१०. यूरोप के लोग जब विश्व के अन्यान्य देशों में पहुँचे तब उन्होंने अनेक प्रकार से विनाश किया। वे अमेरिका पहुँचे। वहाँ की विशाल भूमि पर खेती करने के लिये और अन्य कामों के लिये वे आफ्रिका के लोगों को पकडकर लाये, उन्हें गुलाम बनाया और उनसे मजदूरी करवाई । यह काम नहीं करने का और करवाने का एक उदाहरण है।  
+
# यन्त्रों और तन्त्रज्ञान का विवेकपूर्वक उपयोग बहत महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। यन्त्रों का निषेध नहीं करना चाहिये, उन्हें मनुष्य का सहायक बनाना चाहिये, मनुष्य का पर्याय नहीं।
 
+
# श्रम करने पर जो शरीरस्वास्थ्य, मनोस्वास्थ्य, निर्माणक्षम बुद्धि, कारीगरी की कुशलता, सृजनशीलता आदि प्राप्त होते हैं वे और किसी भी उपाय से नहीं होते। इसका जो अनुभव करता है वही समझ सकता है। इतने मूल्यवान तत्त्व को हमने कचरे के भाव में फेंक दिया है । ऐसी बुद्धि पर तरस खाकर हमें इसे ठीक करने की आवश्यकता है।
११. ब्रिटीश भारत में आये तब उन्होंने भी यहाँ वैसे ही
      
==References==
 
==References==
1,815

edits

Navigation menu