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==== २. विभिन्न व्यवस्थाओं का संतुलन ====
 
==== २. विभिन्न व्यवस्थाओं का संतुलन ====
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भारत को भारत बनना है तो जीवन का संचालन करने वाली विभिन्न व्यवस्थाओं का परस्पर सम्बन्ध सन्तुलन में लाना होगा। यह तो स्पष्ट है कि जीवन के विभिन्न आयाम एकदूसरे के साथ जुड़े हुए रहते हैं। वे एकदूसरे को प्रभावित करते हैं, एकदूसरे पर निर्भर करते हैं। अतः उनका सम्बन्ध ठीक करना आवश्यक है। व्यक्तिगत और राष्ट्रगत जीवन का संचालन करने वाली व्यवस्थाओं को हम मोटे तौर पर चार भागों में विभाजित कर सकते हैं। वे हैं धर्मव्यवस्था, राज्यव्यवस्था, अर्थव्यवस्था और शिक्षाव्यवस्था । ये सारी व्यवस्थायें ज्ञान का ही व्यावहारिक स्वरूप है। इन चारों में धर्मव्यवस्था प्रमुख और सर्वोपरि है । धर्म के अनुसरण में शिक्षाव्यवस्था होती है। धर्म सिखाती है वही शिक्षा है ऐसी हम शिक्षा की परिभाषा दे सकते हैं। प्रजा धर्म का पालन कर सके इस हेतु सुरक्षा और अनुकूलता प्रदान करने हेतु राज्यव्यवस्था होती है। प्रजा का निर्वाह सुखपूर्वक हो सके इसलिये आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु अर्थव्यवस्था होती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था राज्य के नियन्त्रण
    
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