Festival in month of ashadh (अषाढ़ मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)

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नैमिषारण्य तीर्थ में स्थित श्री सूतजी से शौनिक ऋषि पूछते हैं-"हे ऋषि! कृपा करके आषाढ़ मास का माहात्म्य तथा सब कृत्य कहिये।" सूतजी कहने लगे- "ऋषियों! अब मैं आषाढ़ मास का माहात्म्य कहता हूँ। आप एकचित्त होकर सुनिये! यह मास वर्षाकाल का आरम्भ करता है। जिससे अन्नादि की वृद्धि होती है और सब मनुष्यों को बल मिलता है। अतः इस मास में यज्ञादि करने चाहिएं। जिससे संसार में अन्नादि उत्पन्न होकर मनुष्यों को बलवान होकर इस संसार के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का साधन करें।" सूतजी कहने लगे-“हे ऋषियों! सब प्रकार के कलेशों तथा विघ्नों को हरने वाले श्री गणेशजी का व्रत आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को करना चाहिए। इस दिन शौच और स्नानादि से निवृत होकर प्रथम संकल्प करना चाहिए। इस दिन को मैं आज श्री गणेशजी की प्रसन्नता के लिए और सब प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए बारह महीनों के व्रत एवं त्यौहार श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करता हूं। सारे दिन मनुष्य व्रती रहकर रात्रि को चन्द्रोदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ्य देकर कथा सुनकर भोजन करना चाहिए। इस व्रत को दमयंती के न करने से राजा नल तथा दमयंती को अनेक प्रकार के दु:ख उठाने पड़े और फिर व्रत करने पर ही दुःख दूर हुए।

कृष्ण अष्टमी-काल अष्टमी

आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को काल अष्टमी भी कहते हैं। नारदजी कहते हैं-- "पूर्वकाल की बात है कि काशीपुरी में एक भोटी नाम का प्रसिद्ध ब्राह्मण रहता था। वह पुत्रहीन था। उस ब्राह्मण ने पुत्र-प्राप्ति हेतु भगवान शंकर का बहुत जप किया, तब भगवान शंकर प्रसन्न होकर बोले-"हे भोटे! तुम्हारे पुत्र उत्पन्न होगा। जिसका प्रभाव तथा यश मेरे समान होगा।" कुछ समय पश्चात् भोटी की स्त्री गर्भवती हुई, परन्तु उसको गर्भ धारण किये हुए चार वर्ष हो गये और प्रसव होने में नहीं आया। तब भोटी ने उससे कहा कि-"हे पुत्र! तुम गर्भ से बाहर क्यों नहीं आते? जबकि इस मनुष्य देह से ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है। गर्भ ने कहा-"पिताजी! मैं यह सब जानता हूं, परन्तु मैं कालमार्ग से सदैव ही डरता हूं।" यह सुनकर ब्राह्मण भोटी फिर शंकरजी की शरण में गया और

बोला-"भगवान आप ही इस गर्भ को किसी प्रकार समझाकर प्रसव बनाइये, तब भगवान की विभूतियां गर्भ को समझाने लगीं कि-"हे महामने भोटी कुमार! हम ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य कभी तुमसे दूर नहीं होंगे।" अधर्म बोला-"मैं कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा।" इतना कहने पर बालक बाहर निकल आया और रोने लगा।

तब विभूतियों ने कहा-“हे भोटी! तुम्हारा पुत्र अब भी कालमार्ग से डरता है, अत: इसका नाम काल भीति करके प्रसिद्ध होगा।" इस प्रकार वरदान देकर वह विभूतियां शिवजी के पास चली गयीं। इस बालक का जन्म आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को हुआ था। इसीलिए इस अष्टमी को काल अष्टमी कहते हैं। इस काल भीति ने बड़ा होने पर एक बिल्व वृक्ष के.