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पता ढूंढने जैसी कठीन बात कोई नहीं होगी। रास्ते से जाने वाले राहगीर कितने भले लगते है।।
 
पता ढूंढने जैसी कठीन बात कोई नहीं होगी। रास्ते से जाने वाले राहगीर कितने भले लगते है।।
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एक हम ही हाथ में पते का कागज लेकर घुमते रहते हैं । वास्तव में तो न्यूयोर्क में एवन्यू, स्ट्रीट और घर का नंबर अगर ठीक से लिखा हुआ है और थोडा बहुत अंग्रेजी आप जानते हैं तो पता ढूंढना मुश्किल नहीं है। फिर भी मैं उस न्यूयोर्क शहर में रास्ता भूल गया था । ऐसे समय डाकघर में जाकर पता पूछना स्वाभाविक होता है ।परंतु मैं तो डाकघर का ही पता ढूंढ रहा था । न्यूयोर्क के मेनहटन टापु पर तो मार्गों की अत्यंत पद्धतिसर रचना है। हडसन नदी पर जानेवाली स्ट्रीट, और उन रास्तों को नब्बे अंश के कोन पर काटने वाले जो मार्ग है वह एवन्यू । मेरा भुलक्कड होने का गुणधर्म जाननेवाले मित्रों ने मुझे यह रचना याद करवा दी थी। फिर भी रास्ता भूलना मेरी विशेषता थी । मेरा स्वयं का पता मैं पूरे विस्तार से कहता हूँ । इसलिये कहीं भी रास्ता नहीं भटकुंगा ऐसा आश्वासन देकर मैं मेरे न्यूयोर्क स्थित दोस्त के घर से पोस्टओफिस खोजने निकल पडा ।
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एक हम ही हाथ में पते का कागज लेकर घुमते रहते हैं । वास्तव में तो न्यूयोर्क में एवन्यू, स्ट्रीट और घर का नंबर अगर ठीक से लिखा हुआ है और थोडा बहुत अंग्रेजी आप जानते हैं तो पता ढूंढना मुश्किल नहीं है। तथापि मैं उस न्यूयोर्क शहर में रास्ता भूल गया था । ऐसे समय डाकघर में जाकर पता पूछना स्वाभाविक होता है ।परंतु मैं तो डाकघर का ही पता ढूंढ रहा था । न्यूयोर्क के मेनहटन टापु पर तो मार्गों की अत्यंत पद्धतिसर रचना है। हडसन नदी पर जानेवाली स्ट्रीट, और उन रास्तों को नब्बे अंश के कोन पर काटने वाले जो मार्ग है वह एवन्यू । मेरा भुलक्कड होने का गुणधर्म जाननेवाले मित्रों ने मुझे यह रचना याद करवा दी थी। तथापि रास्ता भूलना मेरी विशेषता थी । मेरा स्वयं का पता मैं पूरे विस्तार से कहता हूँ । इसलिये कहीं भी रास्ता नहीं भटकुंगा ऐसा आश्वासन देकर मैं मेरे न्यूयोर्क स्थित दोस्त के घर से पोस्टओफिस खोजने निकल पडा ।
    
सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है।  
 
सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है।  
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मुझे याद आया की यहाँ तो पोस्टमेन भी नीचे सबके नाम लिखी पेटी में ही डाक डालता है। दूधवाला भी दरवाजे पर बॉटल रख कर चला जाता है। कभी कभी बॉटल दूसरे दिन भी वहाँ पड़ी मिली तो पुलिस को जानकारी देता है, दरवाजा तोड कर अंदर जाने पर पुलिस को सडी हुई लाश मिलती है। उस एकाकी जीवन के अंतिम क्षण भी ऐसे भयावह होते हैं।
 
मुझे याद आया की यहाँ तो पोस्टमेन भी नीचे सबके नाम लिखी पेटी में ही डाक डालता है। दूधवाला भी दरवाजे पर बॉटल रख कर चला जाता है। कभी कभी बॉटल दूसरे दिन भी वहाँ पड़ी मिली तो पुलिस को जानकारी देता है, दरवाजा तोड कर अंदर जाने पर पुलिस को सडी हुई लाश मिलती है। उस एकाकी जीवन के अंतिम क्षण भी ऐसे भयावह होते हैं।
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दो दिन पहले ही हमने न्यूयोर्क को घेर कर बहती नदियों में नाव में बैठकर शहर की परिक्रमा की थी। कितना रमणीय दिखता था वह शहर ! किनारे पर स्थित वह रमणीय उद्यान, विश्वविद्यालय का रमणीय परिसर, खेल के विशाल मैदान, उसमे चल रहे युवक -युवतिओं के खेल,नदी पर बना वह प्रचंड सेतु । नदी में चल रहा युवाओं का स्वच्छंद नौकाविहार, हडसन नदी पर से न्यूजर्सी की ऑर जानेवाला वह प्रचण्ड पुल । तिमंजिले रास्ते,मोटरों की कतारें, उत्तुंग भवन, और फिर भी इतनी ही समृद्ध वनसंपदा । स्वातंत्र्यदेवी की प्रतिमा से मेनहटन की ओर बोट मुडते ही अपनी सौ सवासौ मंजिलों वाली इमारतों पर विद्युतदीपों को झगमगाती और सहस्र कुबेरों का ऐश्वर्य प्रकट करनेवाली वह न्यूयोर्क नगरी । मन ही मन कह रहा था, कितने सौभाग्यशाली हैं ये लोग ? परंतु यहां तो बात कुछ और ही सुनने को मिलि । तो फिर क्या यह अंदर से सडे गले सेवों का बगीचा था ?
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दो दिन पहले ही हमने न्यूयोर्क को घेर कर बहती नदियों में नाव में बैठकर शहर की परिक्रमा की थी। कितना रमणीय दिखता था वह शहर ! किनारे पर स्थित वह रमणीय उद्यान, विश्वविद्यालय का रमणीय परिसर, खेल के विशाल मैदान, उसमे चल रहे युवक -युवतिओं के खेल,नदी पर बना वह प्रचंड सेतु । नदी में चल रहा युवाओं का स्वच्छंद नौकाविहार, हडसन नदी पर से न्यूजर्सी की ऑर जानेवाला वह प्रचण्ड पुल । तिमंजिले रास्ते,मोटरों की कतारें, उत्तुंग भवन, और तथापि इतनी ही समृद्ध वनसंपदा । स्वातंत्र्यदेवी की प्रतिमा से मेनहटन की ओर बोट मुडते ही अपनी सौ सवासौ मंजिलों वाली इमारतों पर विद्युतदीपों को झगमगाती और सहस्र कुबेरों का ऐश्वर्य प्रकट करनेवाली वह न्यूयोर्क नगरी । मन ही मन कह रहा था, कितने सौभाग्यशाली हैं ये लोग ? परंतु यहां तो बात कुछ और ही सुनने को मिलि । तो फिर क्या यह अंदर से सडे गले सेवों का बगीचा था ?
    
शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष बाद दिन में दस बजे यह वृद्धा केवल मेरे ‘एस्क्युझ मी' से कांप उठी थी । प्रत्येक व्यक्ति सूचना दे रहा था, शाम को इक्कादुक्का कहीं मत जाइएगा। हर १५ मिनिट पर पुलिस की गाडियाँ साइरन बजाती हुई अपराधियों को पकड़ने के लिये घूम रही थी। दूसरे ही दिन अखबार में खबर पढी की केवल आधे डोलर के लिये एक १६ वर्षीय बालकने एक विख्यात प्राध्यापक की दिनदहाडे हत्या कर दी। प्रोफेसर कार में बैठने जा रहे थे तब यह लडके ने आकर २५ सेंट मांगे । बखेडा टालने के लिये प्राध्यापक ने उसे पैसे दे दिये । इस दौरान लडके की द्रष्टि उन्होंने पहनी हुई मूल्यवान घडी पर पड़ी । लडके ने उसकी माँग की और प्रोफेसर के नानुकर करते ही गोली चला दी।
 
शहर और अपराध एकदूसरे का हाथ पकडकर ही आते हैं। मैं दस वर्ष पूर्व इस शहर में आया था। सेंट्रल पार्क में बहुत घुमाफिरा था । परंतु हमें किसी ने आधी रात को न घुमने की हिदायत नहीं दी थी । और आज दस वर्ष बाद दिन में दस बजे यह वृद्धा केवल मेरे ‘एस्क्युझ मी' से कांप उठी थी । प्रत्येक व्यक्ति सूचना दे रहा था, शाम को इक्कादुक्का कहीं मत जाइएगा। हर १५ मिनिट पर पुलिस की गाडियाँ साइरन बजाती हुई अपराधियों को पकड़ने के लिये घूम रही थी। दूसरे ही दिन अखबार में खबर पढी की केवल आधे डोलर के लिये एक १६ वर्षीय बालकने एक विख्यात प्राध्यापक की दिनदहाडे हत्या कर दी। प्रोफेसर कार में बैठने जा रहे थे तब यह लडके ने आकर २५ सेंट मांगे । बखेडा टालने के लिये प्राध्यापक ने उसे पैसे दे दिये । इस दौरान लडके की द्रष्टि उन्होंने पहनी हुई मूल्यवान घडी पर पड़ी । लडके ने उसकी माँग की और प्रोफेसर के नानुकर करते ही गोली चला दी।

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