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सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है।  
 
सुबह के दस बज रहे थे । प्रसन्न करनेवाली धुप होने पर भी हवा में ठंड थी। आनंदपूर्वक टहलने जैसा वातावरण था। पर पता खोज रहे मनुष्य की स्थिति वह आनन्द उठाने जैसी होती हैं की नहीं यह कहना मुश्किल है।  
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पराये प्रदेश में अनजान मनुष्य को पता पूछना यह कितनी मुश्किल बात है यह न्यूयोर्क जैसे नगर में जिसे पता ढूंढने के लिये भटकना पडा है वही समझ सकेगा। मेरे ‘एस्क्यु झ मी' की तरफ कोई नजर फेरनेवाला भी मिला हो तो उसे सद्भाग्य ही मानना होगा । इस ठंडे देश में लोग बहुत तेज गति से चलते हैं । उनको रोकना बहुत कठिन कार्य है । अगर रोक कर ‘एस्क्युझ मी' कह भी दिया तो उसे लगता है कि धक्का लगने से यह माफी माँग रहा है । इसलिये 'नेवर माइण्ड' कह कर वे आगे बढ जाते हैं। सीधे कोई दुकान में जाकर पूछने की सोचेंगे तो हो सकता है कि वह पता बताने का सर्विसचार्ज लगा दे। जहाँ सब्जी लेने गई माँ के पास से अगर उसकी बेटी अपने छोटे भाई को आधा घण्टा सम्हालने के 'बेबीसिटींग'सर्विस चार्ज के रूप में एकाध डोलर लेती हो वहाँ मेरे जैसे पराये आदमी की क्या औकात ? वैसे भी मैं परेशान हो चुका था । इतने में सामनेवाली फूटपाथ पर बाबागाडी लेकर आती एक वृद्धा दिखाई दी। गाडी में बच्चा नहीं था, खरीदा हुआ सामान था। मैंने बाबागाडी के पास खडे रहकर कहा,'एस्क्युझ मी मेडम'
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पराये प्रदेश में अनजान मनुष्य को पता पूछना यह कितनी मुश्किल बात है यह न्यूयोर्क जैसे नगर में जिसे पता ढूंढने के लिये भटकना पडा है वही समझ सकेगा। मेरे ‘एस्क्यु झ मी' की तरफ कोई नजर फेरनेवाला भी मिला हो तो उसे सद्भाग्य ही मानना होगा । इस ठंडे देश में लोग बहुत तेज गति से चलते हैं । उनको रोकना बहुत कठिन कार्य है । अगर रोक कर ‘एस्क्युझ मी' कह भी दिया तो उसे लगता है कि धक्का लगने से यह माफी माँग रहा है । इसलिये 'नेवर माइण्ड' कह कर वे आगे बढ जाते हैं। सीधे कोई दुकान में जाकर पूछने की सोचेंगे तो हो सकता है कि वह पता बताने का सर्विसचार्ज लगा दे। जहाँ सब्जी लेने गई माँ के पास से अगर उसकी बेटी अपने छोटे भाई को आधा घण्टा सम्हालने के 'बेबीसिटींग'सर्विस चार्ज के रूप में एकाध डोलर लेती हो वहाँ मेरे जैसे पराये आदमी की क्या औकात ? वैसे भी मैं परेशान हो चुका था । इतने में सामनेवाली फूटपाथ पर बाबागाडी लेकर आती एक वृद्धा दिखाई दी। गाडी में बच्चा नहीं था, खरीदा हुआ सामान था। मैंने बाबागाडी के पास खडे रहकर कहा,'एस्क्युझ मी मेडम' |
    
पता नहीं वह किस धून में चल रही थी। मेरा 'एस्क्युझ मी' सुनते ही उसने भयभीत द्रष्टि से मेरे सामने देखा और डर के मारे काँपने लगी। उसका वह घबराया हुआ चहेरा और काँपती गर्दन देख कर मुझे लगा कि दादीमाँ को कोई झटका लगा है । मैं भी घबरा गया । क्या बोलना यह समझ में नहीं आता था । मैंने पूछा 'आरन्ट यु फिलिंग वेल, मेडम'? उसके मुँह से आवाझ भी नहीं निकलती थी। कुछ क्षण ऐसे ही बीते । बाद में उसने काँपती आवाझ में पूछा क्या चाहिये तुम्हे ?'  
 
पता नहीं वह किस धून में चल रही थी। मेरा 'एस्क्युझ मी' सुनते ही उसने भयभीत द्रष्टि से मेरे सामने देखा और डर के मारे काँपने लगी। उसका वह घबराया हुआ चहेरा और काँपती गर्दन देख कर मुझे लगा कि दादीमाँ को कोई झटका लगा है । मैं भी घबरा गया । क्या बोलना यह समझ में नहीं आता था । मैंने पूछा 'आरन्ट यु फिलिंग वेल, मेडम'? उसके मुँह से आवाझ भी नहीं निकलती थी। कुछ क्षण ऐसे ही बीते । बाद में उसने काँपती आवाझ में पूछा क्या चाहिये तुम्हे ?'  
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'अरे भाई, क्या करूं ? इस शहर में मेरा पूरा जीवन बीता पर इतने बुरे दिन कभी आये नहीं थे। माय गॉड! कैसे दिन आ गये ? अच्छा बुरा समझने का कोई रास्ता ही नहीं है । तुमने ‘एस्क्युझ मी' कहा और मैं घबरा गई।'
 
'अरे भाई, क्या करूं ? इस शहर में मेरा पूरा जीवन बीता पर इतने बुरे दिन कभी आये नहीं थे। माय गॉड! कैसे दिन आ गये ? अच्छा बुरा समझने का कोई रास्ता ही नहीं है । तुमने ‘एस्क्युझ मी' कहा और मैं घबरा गई।'
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याने? (और हमारा संवाद आगे बढा )
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याने? (और हमारा संवाद आगे बढा)
    
कब आया तु न्यूयोर्क में ? हो गये तीन -चार दिन ।
 
कब आया तु न्यूयोर्क में ? हो गये तीन -चार दिन ।
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महिला का चहेरा भी उस कल्पना से प्रफुल्ल हो गया ।
 
महिला का चहेरा भी उस कल्पना से प्रफुल्ल हो गया ।
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'ओह हाव नोटी आफ याव' महिला का अमेरिकन अंग्रेजी क्षतिहीन था । भारतीय अंग्रेजी बोलनेवाली महिला के उच्चारण उन्होंने कब के छोड दिये थे। यह
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'ओह हाव नोटी आफ याव' महिला का अमेरिकन अंग्रेजी क्षतिहीन था । भारतीय अंग्रेजी बोलनेवाली महिला के उच्चारण उन्होंने कब के छोड दिये थे। यह औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद महिला ने पूछा, "आप कौन हैं?"उत्तर मिला, 'आपकी सेवा के लिये सदा तत्पर अंतिमविधि कार्यालय का संचालक।'
 
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औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद महिला ने पूछा, 'आप कौन हैं?"उत्तर मिला, 'आपकी सेवा के लिये सदा तत्पर अंतिमविधि कार्यालय का संचालक।'
      
'कौन? महिला अपने स्थान से जैसे उछल पडी।'
 
'कौन? महिला अपने स्थान से जैसे उछल पडी।'
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कुछ सुंदर जंगलों में जाकर तंबुओं में रहना, खुले में रहना । पर उन जंगलों में भी छुट्टियों के दिनों में हजारों तंबु लगे रहते हैं । याने वहाँ पर भी वैसी ही भीडभाड । मात्र मन को समझाना कि हम शहर से दूर आये हैं। वहाँ भी पोर्टेबल टीवी हैं। रात रात भर उदंड नाचगान चलते हैं, पर शांति मिलने की एक आशा भी है।
 
कुछ सुंदर जंगलों में जाकर तंबुओं में रहना, खुले में रहना । पर उन जंगलों में भी छुट्टियों के दिनों में हजारों तंबु लगे रहते हैं । याने वहाँ पर भी वैसी ही भीडभाड । मात्र मन को समझाना कि हम शहर से दूर आये हैं। वहाँ भी पोर्टेबल टीवी हैं। रात रात भर उदंड नाचगान चलते हैं, पर शांति मिलने की एक आशा भी है।
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ऐसी इस दिशाहीन घुमक्कड में से ही दुनियाभर मे घुमते अमेरिकन टुरिस्टों का उदय हुआ होगा। 'टुरीझम एक बडा व्यवसाय हो गया है इतना ही नहीं तो अमेरिकन टुरिस्टों को अपने देश में खिंचकर ले जाने की स्पर्धा भी शुरू हुई है। कोई भी प्राचीन इमारत या द्रश्यों को निरंतर अपने केमेरे में कैद करते फिरते ये टूरिस्टों को पागल ही कहा जा सकता है। भारत के स्मशान भी अब 'टुरिस्ट एटेक्शन सेंटर्स' बन चुके हैं । हिंदु अग्निसंस्कार का इन लोगों में अति विकृत आकर्षण है। जहाँ जीवन किट पतंग की तरह है ऐसी झोंपडपट्टियाँ देखने का इन्हें ताजमहाल से भी अधिक आकर्षण है। समृद्ध अमेरिका के लोगों को उसमें न्यू और एक्साइटिंग' कुछ मिल जाता है। उन्हें एक्साइटमेंट कहाँ से मिलेगा यह कहा ही नहीं जा सकता है। एक भारतीय नाटक में एक व्यक्ति शक्कर में से stबने हाथी और उंट बेचता है । यहाँ तो मिठाईवाले चोकलेट में से आदमकद मनुष्य बनाते हैं। द्रश्य होता है सोये हुए जीवित मनुष्य जैसा । उसके फटे पेट में आंतें भी रहती है । उसे चीर कर यह मनुष्यभोगी लोग उसका कलेजा, नाक, कान, आँखें खाते हैं।
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ऐसी इस दिशाहीन घुमक्कड में से ही दुनियाभर मे घुमते अमेरिकन टुरिस्टों का उदय हुआ होगा। 'टुरीझम एक बडा व्यवसाय हो गया है इतना ही नहीं तो अमेरिकन टुरिस्टों को अपने देश में खिंचकर ले जाने की स्पर्धा भी शुरू हुई है। कोई भी प्राचीन इमारत या द्रश्यों को निरंतर अपने केमेरे में कैद करते फिरते ये टूरिस्टों को पागल ही कहा जा सकता है। भारत के स्मशान भी अब 'टुरिस्ट एटेक्शन सेंटर्स' बन चुके हैं । हिंदु अग्निसंस्कार का इन लोगों में अति विकृत आकर्षण है। जहाँ जीवन किट पतंग की तरह है ऐसी झोंपडपट्टियाँ देखने का इन्हें ताजमहाल से भी अधिक आकर्षण है। समृद्ध अमेरिका के लोगों को उसमें न्यू और एक्साइटिंग' कुछ मिल जाता है। उन्हें एक्साइटमेंट कहाँ से मिलेगा यह कहा ही नहीं जा सकता है। एक भारतीय नाटक में एक व्यक्ति शक्कर में से बने हाथी और उंट बेचता है । यहाँ तो मिठाईवाले चोकलेट में से आदमकद मनुष्य बनाते हैं। द्रश्य होता है सोये हुए जीवित मनुष्य जैसा । उसके फटे पेट में आंतें भी रहती है । उसे चीर कर यह मनुष्यभोगी लोग उसका कलेजा, नाक, कान, आँखें खाते हैं।
    
'हाउ एक्साइटिंग !'
 
'हाउ एक्साइटिंग !'

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