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१३ से १९ वर्ष के बालक टीन एजर्स कहे जाते है। अमेरिकनों को ऐसे विचित्र शब्दप्रयोग कर किसी भी चीज पर अपना ठप्पा लगाने की बहुत बुरी आदत है। उसी में से यह 'मोडस', हिप्पी, टीनएजर्स' पैदा हुए हैं । उसमें भी थर्टीन-फोर्टीन या सेवंटीन - नाइंटीन जैसे अलग हिस्से हैं। इन बच्चों को उपद्रव करने की खुली छूट होती है। हर गुट के कपड़ों की भी अलग अलग विशेषताएँ हैं ।जैसे जनजातियों के लोग अपनी अपनी विशेषताएँ दिखाने के लिये विभिन्न वेश पहनते है ऐसा ही इन लोगों का होता है। वेशभूषा के समाजमान्य बंधन फेंक देने वाले हिप्पियों ने भी अंत में 'हिप्पी' वेशभूषा और केशभूषा का बन्धन अपना ही लिया है। अच्छे कपड़ों को चीथडा बनाकर पहनने की भी किसी गुट की फैशन बन गयी है। कारण अंत में तो अनुकरण करनेवालों की संख्या ही अधिक होती है। फिर चाहे वह एस्टाब्लिशमेंट वाला हो या एण्टी एस्टाब्लिशमेंट वाला।
 
१३ से १९ वर्ष के बालक टीन एजर्स कहे जाते है। अमेरिकनों को ऐसे विचित्र शब्दप्रयोग कर किसी भी चीज पर अपना ठप्पा लगाने की बहुत बुरी आदत है। उसी में से यह 'मोडस', हिप्पी, टीनएजर्स' पैदा हुए हैं । उसमें भी थर्टीन-फोर्टीन या सेवंटीन - नाइंटीन जैसे अलग हिस्से हैं। इन बच्चों को उपद्रव करने की खुली छूट होती है। हर गुट के कपड़ों की भी अलग अलग विशेषताएँ हैं ।जैसे जनजातियों के लोग अपनी अपनी विशेषताएँ दिखाने के लिये विभिन्न वेश पहनते है ऐसा ही इन लोगों का होता है। वेशभूषा के समाजमान्य बंधन फेंक देने वाले हिप्पियों ने भी अंत में 'हिप्पी' वेशभूषा और केशभूषा का बन्धन अपना ही लिया है। अच्छे कपड़ों को चीथडा बनाकर पहनने की भी किसी गुट की फैशन बन गयी है। कारण अंत में तो अनुकरण करनेवालों की संख्या ही अधिक होती है। फिर चाहे वह एस्टाब्लिशमेंट वाला हो या एण्टी एस्टाब्लिशमेंट वाला।
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न्यूयोर्क का ग्रिनिच विलेज यह गोरे वैरागी स्त्री-पुरुषों का आश्रयस्थान है । यहाँ मेरे लिये सब से अधिक आश्चर्य का विषय है इस पंथ के लिये आवश्यक सभी चीजों का व्यापार कर समृद्ध बननेवाले व्यापारियों का । उत्तम सूट और उत्तम गाउन यह प्रस्थापित समाज की विशेषता । प्रस्थापितों के सामने विद्रोह करनेवाले युवक-युवतियों ने अपना विरोध उस वेश को नकार कर प्रकट किया । अव्यवस्थित बाल और फटे कपडे उनकी पहचान बने । व्यापारियों ने इसीका व्यापार शुरू किया। व्यापारी को क्या ? वह तो जो भी खरीदा जाएगा वह बेचेगा। याने परंपरावादियों की चोटी और विद्रोही की दाढी दोनों अंततोगत्वा बनिये के हाथ मेंही है।
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कभी कभी तो लगता है कि यह युवा पिढी अपने जीवन को जानबुझ कर बरबाद कर रही है या उसके पीछे कोई विचार भी है ? या फिर कोई रोग प्रसरने पर लोग जैसे मरते हैं, उसी प्रकार यह महाभयंकर प्रचार यंत्रणा ने उनकी सारी विचारशक्ति को नष्ट कर उन्हें हर बार किसी न किसी मानसिक रोग का शिकार बनाया है ? एक तो इन बच्चों के साथ संवाद असंभव है। वैसे तो अमेरिकन लोग बहुत अनौपचारिक हैं। 'हाय' कहकर अनजान व्यक्ति का भी स्वागत करेंगे, बतियाएंगे। परंतु जोगियों की यह नई जमात बिलकुल हाथ नहीं बढाती है । अपने गुट के बाहर के किसी भी व्यक्ति के साथ बात करने की उनकी सदंतर अनिच्छा रहती है। एक तो महाभयानक मादक द्रव्यों के सेवन के कारण वे सदैव भ्रमित रहते हैं, नहीं तो बिना दुनिया की परवा किये विजातीय मित्रों के साथ घुमते नजर
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आते हैं। अपने यहाँ के बैरागियों की तरह उनके भी कई पंथ हैं। अब तो प्रत्येक पंथ के अलग तिलक और मालाएँ भी हैं। उसमें भी हरे रामा हरे कृष्णा' वाले लोग तो दिनभर एक ही पंक्ति एक ही ताल में गाते हुए घुमने के कारण आत्मसंमोहन की अवस्था में ही रहते हैं। चमकते मुंड, लंबी चोटी, माथे पर छपी विविध मुद्राएँ, अर्धनग्न, पिली धोती और गले में माला, तंबूर,मृदंग, झांझ लेकर रास्ते पर घुम रहे हैं। कुछ लोग संपूर्ण नग्न, कुछ टोपलेस, याने शरीर पर चोली आदि कुछ नहीं। ' कमर से नीचे मिनी यानी चार इंच लंबा स्कर्ट । तो किसी गुट में लडकियाँ मेक्सी माने लंबा मारवाडी घाघरा पहनी हुई।
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मुझे उनमें से एक ने पकडा और पंथ प्रचार शुरू किया।
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मैंने पूछा 'यह क्या है ?'
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'यह क्रिस्ना कोंश्यसनेस है। '
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क्रिस्ना कोश्यसनेस, ओह आयम सोरी' मैंने कहा ।
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'व्हाय?'
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'आई बिलीव इन रामा कोश्यसनेस ।'
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'रामा कोश्यसनेस ?'
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यस । रामा कोश्यसनेस ।
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'वोट इझ रामा कोश्यसनेस ?'
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'ध ओपोझीट ओफ क्रिस्ना कोंश्यसनेस ।
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' कहते हुए राम:रामौ रामा: तक के सभी विभक्ती प्रत्यय सुना दिये । वह बेचारा स्तब्ध रह गया ।
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इस भ्रमित लोगों के देश में भारतीय साधुओं ने बराबर अडिंगा जमाया है। मैं एक परिवार में भोजन करने गया था। उस गृहस्थ को मैंने 'हरे रामा हरे क्रिस्ना' के बारे में पूछा । मैं उन्हें समझाने का प्रयास कर रहा था कि इसमें बहुत धोखाधडी है। आपकी युवा पिढी जिस प्रकार कामधाम छोड कर रास्तों पर भटक रही है वैसे अगर हमारे बच्चे घुमना शुरू करेंगे तो हम उसे पसंद नहीं करेंगे । आप इन धूर्तों पर विश्वास मत किजिये । हिंद धर्म में इस प्रकार अपने कर्तव्य छोड कर घुमते रहने का उपदेश नहीं किया गया है। कभी गुरुवार, एकादशी को भजन वगैरा हो यह ठीक है पर यहाँ की बात उचित नहीं है । आप यह विचित्र आदत बच्चों को न पड़ने दें।
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'बुरा मत मानना मिस्टर देशपांडे, पर हमें लगता है कि हशीश या एल.एस.डी के व्यसन से यह व्यसन कम नुकसान देह है। गृहलक्ष्मीने अत्यंत वेदनापूर्ण हृदय से कहा।
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विएतनाम युद्ध में बलपूर्वक जोत दिये गये यह तरुण
    
==References==
 
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