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===== सामाजिक समरसता =====
 
===== सामाजिक समरसता =====
अर्थात् आंतरिक सुरक्षा व शांति, विभिन्न समुदायों के आपसी सम्बन्धों की प्रगाढ़ता। आर्थिक उन्नति को ही सर्वोपरी समझने के कारण व्यक्ति की पहचान मूल रूप से आर्थिक ही हो जाए तो सामाजिक समरसता का निर्माण असंभव सा होने लगता है। फिर पारिवारिक पृष्ठभूमि ही जब डांवाडोल होने लगे तो कैसे हो सकता है एक ऐसे समाज का निर्माण जहाँ हर व्यक्ति हर स्थान पर स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सके । फिर आर्थिक विषमता इस समाज में आपसी घृणा को बढ़ाये तो इसमें क्या आश्चर्य।  
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अर्थात् आंतरिक सुरक्षा व शांति, विभिन्न समुदायों के आपसी सम्बन्धों की प्रगाढ़ता। आर्थिक उन्नति को ही सर्वोपरी समझने के कारण व्यक्ति की पहचान मूल रूप से आर्थिक ही हो जाए तो सामाजिक समरसता का निर्माण असंभव सा होने लगता है। फिर पारिवारिक पृष्ठभूमि ही जब डांवाडोल होने लगे तो कैसे हो सकता है एक ऐसे समाज का निर्माण जहाँ हर व्यक्ति हर स्थान पर स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर सके । फिर आर्थिक विषमता इस समाज में आपसी घृणा को बढ़ाये तो इसमें क्या आश्चर्य।  
    
===== प्राकृतिक संपदा का संरक्षण व सदुपयोग =====
 
===== प्राकृतिक संपदा का संरक्षण व सदुपयोग =====
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===== अन्य राष्ट्रों के प्रति बड़प्पन : सोच व जिम्मेदारी =====
 
===== अन्य राष्ट्रों के प्रति बड़प्पन : सोच व जिम्मेदारी =====
जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित महसूस करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें। ठीक इसी तरह जो राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर आगे बढ़ते हों वे अपने साथ छोटे व कमजोर राष्ट्रों को बल प्रदान करें तभी मानवता का विकास सम्भव है। कोई अकेला नहीं है हम सब जुड़े हुए हैं। एक की पीड़ा कहीं न कहीं सबकी पीड़ा बन कर कब खड़ी हो जाये कोई नहीं बता सकता । ऐसे में यदि ताकतवर राष्ट्र दूसरों का शोषण करना चाहें अथवा उन्हें अपना  पिठ्ठू बनाना चाहें तो विश्व में कभी  शांति नहीं हो सकती। हर समय स्वार्थ, अविश्वास व अस्थिरता का वातावरण बना ही रहता है। बड़प्पन त्याग और देने से ही होता है, ताकत के इस्तेमाल से नहीं।
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जैसे परिवार में बड़ों की भूमिका होती है कि वे छोटों के लिए अवसर उपलब्ध कराने में गर्वित अनुभव करे, वैसे ही समाज में जो उन्नति के शीर्ष पर होते हैं उनकी स्वाभाविक जिम्मेदारी बनती है कि नयी पीढ़ी और अन्य कमजोर वर्ग के लिए मार्ग प्रशस्त करने में योगदान करें। ठीक इसी तरह जो राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर आगे बढ़ते हों वे अपने साथ छोटे व कमजोर राष्ट्रों को बल प्रदान करें तभी मानवता का विकास सम्भव है। कोई अकेला नहीं है हम सब जुड़े हुए हैं। एक की पीड़ा कहीं न कहीं सबकी पीड़ा बन कर कब खड़ी हो जाये कोई नहीं बता सकता । ऐसे में यदि ताकतवर राष्ट्र दूसरों का शोषण करना चाहें अथवा उन्हें अपना  पिठ्ठू बनाना चाहें तो विश्व में कभी  शांति नहीं हो सकती। हर समय स्वार्थ, अविश्वास व अस्थिरता का वातावरण बना ही रहता है। बड़प्पन त्याग और देने से ही होता है, ताकत के इस्तेमाल से नहीं।
    
नई पीढ़ी में सामाजिक व राष्ट्रीय सोच, जिम्मेदारी उठाने की क्षमता, व्यक्ति में मानवीय गुणों व क्षमताओं का विकास, मीडिया का सामाजिकता व व्यक्ति के विकास में योगदान, असामाजिक तत्वों व विषयों की स्थिति, बच्चों व नयी पीढ़ी में व्यसन व अराजकता; जेल, कैदियों, व सुरक्षाकर्मी की आवश्यकता; सट्टे द्वारा प्राप्त धन व उसके प्रति समाज की सोच, आदि चिन्ता के विषय हैं।
 
नई पीढ़ी में सामाजिक व राष्ट्रीय सोच, जिम्मेदारी उठाने की क्षमता, व्यक्ति में मानवीय गुणों व क्षमताओं का विकास, मीडिया का सामाजिकता व व्यक्ति के विकास में योगदान, असामाजिक तत्वों व विषयों की स्थिति, बच्चों व नयी पीढ़ी में व्यसन व अराजकता; जेल, कैदियों, व सुरक्षाकर्मी की आवश्यकता; सट्टे द्वारा प्राप्त धन व उसके प्रति समाज की सोच, आदि चिन्ता के विषय हैं।

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