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२. संजीत रॉय उपाख्य “बंकर' नाम के एक सेवाभावी व्यक्तिने सनू १९७२ में तितोणियाँ गाँव में एक सेवाकार्य प्रारम्भ किया था । इनके इस गाँव में आने का हेतु तो गाँव के लोगों के लिए पीने के पानी की समस्या का हल निकालना ही था, परन्तु यहाँ सेवा करते-करते उन्होंने अपने सेवा कार्यों को आज ‘बैरफुट कॉलेज' का वर्तमान स्वरूप प्रदान किया है । आज वे जीवन के ७५ वर्ष पूर्ण कर रहे हैं।
 
२. संजीत रॉय उपाख्य “बंकर' नाम के एक सेवाभावी व्यक्तिने सनू १९७२ में तितोणियाँ गाँव में एक सेवाकार्य प्रारम्भ किया था । इनके इस गाँव में आने का हेतु तो गाँव के लोगों के लिए पीने के पानी की समस्या का हल निकालना ही था, परन्तु यहाँ सेवा करते-करते उन्होंने अपने सेवा कार्यों को आज ‘बैरफुट कॉलेज' का वर्तमान स्वरूप प्रदान किया है । आज वे जीवन के ७५ वर्ष पूर्ण कर रहे हैं।
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३. देश-विदेश में चलने वाले सभी कॉलेजों में विभिन्न विषयों का अध्ययन कार्य ही होता है, परन्तु *बेफफुट कॉलेज' इस दृष्टि से अपनी एक अलग ही पहचान रखता है । इस कॉलेज के संचालन में लगे हुए सभी लोग स्थानीय ही है । केवल स्थानीय कहना पर्याप्त नहीं है, वे सभी अनपढ़ ग्रामीण लोग हैं और अधिकांश बहनें हैं । राजस्थान के जिस अचल में यह गाँव स्थित है, वहाँ बहनों का घर से बाहर निकल कर ऑफिस का कार्य करना तो कल्पनातीत बात है । ऐसी सामाजिक परिस्थितियों के बीच इस गाँव की बहनें कम्प्यूटर का कार्य, लेबोरेट्री का काम, ऑफिस का काम करते हुए दिखाई देती हैं । आश्चर्य तो इस बात का है कि ये सब काम करते हुए भी उनका वेश पाश्चात्य नहीं है वही परम्परागत ग्रामीण वेश ही पहनती हैं, कुछ तो घूँघट डाले भी रहती हैं । हम सब भी यही मानते हैं कि ग्रामीण अनपढ़ महिलाएँ कम्प्यूटर नहीं चला सकती, इस पाश्चात्य मानसिकता से बाहर निकालने का कार्य यह कॉलेज कर रहा है । और यह इस कॉलेज का अनोखापन है |
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३. देश-विदेश में चलने वाले सभी कॉलेजों में विभिन्न विषयों का अध्ययन कार्य ही होता है, परन्तु *बेफफुट कॉलेज' इस दृष्टि से अपनी एक अलग ही पहचान रखता है । इस कॉलेज के संचालन में लगे हुए सभी लोग स्थानीय ही है । केवल स्थानीय कहना पर्याप्त नहीं है, वे सभी अनपढ़ ग्रामीण लोग हैं और अधिकांश बहनें हैं । राजस्थान के जिस अचल में यह गाँव स्थित है, वहाँ बहनों का घर से बाहर निकल कर ऑफिस का कार्य करना तो कल्पनातीत बात है । ऐसी सामाजिक परिस्थितियों के मध्य इस गाँव की बहनें कम्प्यूटर का कार्य, लेबोरेट्री का काम, ऑफिस का काम करते हुए दिखाई देती हैं । आश्चर्य तो इस बात का है कि ये सब काम करते हुए भी उनका वेश पाश्चात्य नहीं है वही परम्परागत ग्रामीण वेश ही पहनती हैं, कुछ तो घूँघट डाले भी रहती हैं । हम सब भी यही मानते हैं कि ग्रामीण अनपढ़ महिलाएँ कम्प्यूटर नहीं चला सकती, इस पाश्चात्य मानसिकता से बाहर निकालने का कार्य यह कॉलेज कर रहा है । और यह इस कॉलेज का अनोखापन है |
    
४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी धार्मिक हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया धार्मिक व्यवस्था है । धार्मिक लोगों के अनुसार धार्मिक वेशभूषा व धार्मिक व्यवस्था को अपनाना |
 
४. इस पाठशाला में वेश की तरह अन्य व्यवस्थाएँ भी धार्मिक हैं, पाश्चात्य नकल नहीं । सम्पूर्ण देश में सभी संस्थानों में बैठक व्यवस्था टेबल-कुर्सी की है जो पाश्चात्य है, परन्तु यहाँ की बैठक व्यवस्था नीचे गादी पर बैठकर काम करने की है, जो पूर्णतया धार्मिक व्यवस्था है । धार्मिक लोगों के अनुसार धार्मिक वेशभूषा व धार्मिक व्यवस्था को अपनाना |

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