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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक से नहीं होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अध्ययन हमेशा अध्ययन करने वाले पर ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है। अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध शारीरिक स्तर का होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है, पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की ओर नहीं जाता। यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है। चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है। कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है। शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते हैं।
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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक से नहीं होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अध्ययन सदा अध्ययन करने वाले पर ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है। अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध शारीरिक स्तर का होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है, पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की ओर नहीं जाता। यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है। चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है। कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है। शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते हैं।
    
== शारीरिक स्तर के अवरोध ==
 
== शारीरिक स्तर के अवरोध ==
 
यह तो शारीरिक स्तर के अवरोध हैं। कभी वे एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठ नहीं सकते, पैर हिलाते रहते हैं, हाथ हिलाते रहते हैं। लिखते समय उनकी उँगलियाँ दर्द करने लगती हैं। ये सारे शारीरिक और प्राणिक स्तर के अवरोध हैं । इन अवरोधों को दूर करने के लिये सब से पहले उनके प्राण का पोषण हो सके इस प्रकार के आहार की आवश्यकता है । यदि न पचने वाले आहार, शरीर को पोषण नहीं देनेवाला आहार, दिया जाये तो शरीर दुर्बल ही रहता है। शरीर में मेद बढ़ता है और शरीर दर्द करने लगता है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्र की आहार योजना बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। उनकी निद्रा पूरी नहीं होने के भी कई कारण हैं । सब से पहला कारण है रात को देर से सोना और सुबह देर से उठना। रात को देर से सोने का भी कारण टीवी और घर के अन्य सब लोग जाग रहे हैं यही होता है । विज्ञान कहता है कि रात को जितना जल्दी सो जायें उतना ही शरीर स्वास्थ्य के लिये और मनः स्वास्थ्य के लिये अच्छा है । साथ ही यदि रात को सोते समय लिया हुआ अन्न पचा नहीं है तो निद्रा अच्छी नहीं होती।
 
यह तो शारीरिक स्तर के अवरोध हैं। कभी वे एक स्थान पर लम्बे समय तक बैठ नहीं सकते, पैर हिलाते रहते हैं, हाथ हिलाते रहते हैं। लिखते समय उनकी उँगलियाँ दर्द करने लगती हैं। ये सारे शारीरिक और प्राणिक स्तर के अवरोध हैं । इन अवरोधों को दूर करने के लिये सब से पहले उनके प्राण का पोषण हो सके इस प्रकार के आहार की आवश्यकता है । यदि न पचने वाले आहार, शरीर को पोषण नहीं देनेवाला आहार, दिया जाये तो शरीर दुर्बल ही रहता है। शरीर में मेद बढ़ता है और शरीर दर्द करने लगता है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्र की आहार योजना बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। उनकी निद्रा पूरी नहीं होने के भी कई कारण हैं । सब से पहला कारण है रात को देर से सोना और सुबह देर से उठना। रात को देर से सोने का भी कारण टीवी और घर के अन्य सब लोग जाग रहे हैं यही होता है । विज्ञान कहता है कि रात को जितना जल्दी सो जायें उतना ही शरीर स्वास्थ्य के लिये और मनः स्वास्थ्य के लिये अच्छा है । साथ ही यदि रात को सोते समय लिया हुआ अन्न पचा नहीं है तो निद्रा अच्छी नहीं होती।
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रात को देर से भोजन करने की आदत या घर की व्यवस्था भी निद्रा में बाधा निर्माण करती है और निद्रा में बाधा निर्माण होने के कारण से अध्ययन में भी अवरोध निर्माण होते हैं । इसलिये पहला नियम तो सोने से पहले लिया हुआ आहार पच जाये इस प्रकार से भोजन का समय निश्चित करना है। रात को सोते समय कई ऐसी आदतें होती हैं जिनके कारण से अच्छी निद्रा में बाधा निर्माण होती है । उदाहरण के लिये पीठ के बल सोना, पेट के बल सोना, मुँह खुला रख कर श्वास लेना, मुँह ढक कर सोना, एक पैर के उपर दूसरा पैर चढा कर सोना, गंदे कपडे पहन कर सोना, गरम कपड़े पहन कर सोना, पोलिस्टर के कपड़े पहन कर सोना, हाथ पैर धोये बिना सोना, सोने के कमरे की सारी खिड़कियाँ बन्द करके सोना, सीधे पँखे के नीचे सोना, ये सारी बातें अच्छी निद्रा में बाधा ही निर्माण करती है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्रों को सबसे पहले सोने की अच्छी और सही आदतें सिखाना है। ये आदतें उसके शरीर में शरीर का एक हिस्सा बन जानी चाहिये।
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रात को देर से भोजन करने की आदत या घर की व्यवस्था भी निद्रा में बाधा निर्माण करती है और निद्रा में बाधा निर्माण होने के कारण से अध्ययन में भी अवरोध निर्माण होते हैं । इसलिये पहला नियम तो सोने से पहले लिया हुआ आहार पच जाये इस प्रकार से भोजन का समय निश्चित करना है। रात को सोते समय कई ऐसी आदतें होती हैं जिनके कारण से अच्छी निद्रा में बाधा निर्माण होती है । उदाहरण के लिये पीठ के बल सोना, पेट के बल सोना, मुँह खुला रख कर श्वास लेना, मुँह ढक कर सोना, एक पैर के उपर दूसरा पैर चढा कर सोना, गंदे कपड़े पहन कर सोना, गरम कपड़े पहन कर सोना, पोलिस्टर के कपड़े पहन कर सोना, हाथ पैर धोये बिना सोना, सोने के कमरे की सारी खिड़कियाँ बन्द करके सोना, सीधे पँखे के नीचे सोना, ये सारी बातें अच्छी निद्रा में बाधा ही निर्माण करती है । इसलिये अध्ययन करने वाले छात्रों को सबसे पहले सोने की अच्छी और सही आदतें सिखाना है। ये आदतें उसके शरीर में शरीर का एक हिस्सा बन जानी चाहिये।
    
रात को सोते समय अच्छे विचार करते हुए, अच्छी कहानी सुनते हुए, या अच्छे विचार का चिन्तन करते हुए सोने से निद्रा अच्छी आती है । टी.वी. में कैसे भी उत्तेजक दृश्य देखते देखते सोने से नींद खराब होती है, मन भी खराब होता है। यदि रात को ठीक समय पर सो जायें तो सुबह जल्दी उठना उनके लिये अपने आप सम्भव होता है। नींद पूरी होने के बाद ही जागना यह शरीर का स्वाभाविक धर्म है। परन्तु व्यवस्था भी हमने ऐसी ही करनी चाहिये कि सुबह पाँच बजे के आसपास उठना छात्रों के लिये स्वाभाविक हो। सुबह उठने के बाद यदि पेट साफ नहीं हुआ तो भी अस्वस्थता बनी रहती है इसलिये पेट साफ होने की ओर भी ध्यान चाहिये। दाँत साफ करना, गला साफ करना, श्वसन मार्ग साफ करना, यह भी बहुत आवश्यक है। बैठने की, चलने की, खड़े रहने की सही स्थिति सिखाना यह भी अध्ययन करने की पूर्व शर्ते हैं।
 
रात को सोते समय अच्छे विचार करते हुए, अच्छी कहानी सुनते हुए, या अच्छे विचार का चिन्तन करते हुए सोने से निद्रा अच्छी आती है । टी.वी. में कैसे भी उत्तेजक दृश्य देखते देखते सोने से नींद खराब होती है, मन भी खराब होता है। यदि रात को ठीक समय पर सो जायें तो सुबह जल्दी उठना उनके लिये अपने आप सम्भव होता है। नींद पूरी होने के बाद ही जागना यह शरीर का स्वाभाविक धर्म है। परन्तु व्यवस्था भी हमने ऐसी ही करनी चाहिये कि सुबह पाँच बजे के आसपास उठना छात्रों के लिये स्वाभाविक हो। सुबह उठने के बाद यदि पेट साफ नहीं हुआ तो भी अस्वस्थता बनी रहती है इसलिये पेट साफ होने की ओर भी ध्यान चाहिये। दाँत साफ करना, गला साफ करना, श्वसन मार्ग साफ करना, यह भी बहुत आवश्यक है। बैठने की, चलने की, खड़े रहने की सही स्थिति सिखाना यह भी अध्ययन करने की पूर्व शर्ते हैं।
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शरीर को स्वस्थ रखने के लिये शरीर की मालिश करना, अच्छी तरह से स्नान करना, और व्यायाम करना यह बहुत जरूरी है। व्यायाम के कारण से यदि एक बार पसीना निकल जाता है, सायंकाल खेलने के माध्यम से भी पसीना निकल जाता है तो शरीर के और मन के मैल निकल जाते हैं और शरीर स्फूर्तिदायक, स्वस्थ और प्रसन्न बन जाता है। इसके बाद मालिश और स्नान भी शरीर के पोषण के लिये बहुत आवश्यक है। उसके साथ साथ सात्त्विक आहार भी शरीर और मन दोनों के लिये उपकारक हैं । इस प्रकार आहार विहार का अर्थात्‌ आहार, निद्रा इन दोनों का तथा व्यायाम खेल आदि सारी बातों का पहले ध्यान रखने से और सही आदतें डालने से, अध्ययन करने के लिये शरीर स्वस्थ रहता है और अनुकूलता निर्माण करता है। ऐसा छात्र अध्ययन करने में एकाग्रता भी साध सकता है।
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शरीर को स्वस्थ रखने के लिये शरीर की मालिश करना, अच्छी तरह से स्नान करना, और व्यायाम करना यह बहुत आवश्यक है। व्यायाम के कारण से यदि एक बार पसीना निकल जाता है, सायंकाल खेलने के माध्यम से भी पसीना निकल जाता है तो शरीर के और मन के मैल निकल जाते हैं और शरीर स्फूर्तिदायक, स्वस्थ और प्रसन्न बन जाता है। इसके बाद मालिश और स्नान भी शरीर के पोषण के लिये बहुत आवश्यक है। उसके साथ साथ सात्त्विक आहार भी शरीर और मन दोनों के लिये उपकारक हैं । इस प्रकार आहार विहार का अर्थात्‌ आहार, निद्रा इन दोनों का तथा व्यायाम खेल आदि सारी बातों का पहले ध्यान रखने से और सही आदतें डालने से, अध्ययन करने के लिये शरीर स्वस्थ रहता है और अनुकूलता निर्माण करता है। ऐसा छात्र अध्ययन करने में एकाग्रता भी साध सकता है।
    
== प्राणिक स्तर के अवरोध ==
 
== प्राणिक स्तर के अवरोध ==
यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है। इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए । छात्र को दीर्घ श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध रक्त शरीर में बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है । साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे हमेशा बोरडम ही लगता है। उसे हमेशा उदासी ही आती है, अतः अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के अवरोध दूर करना आवश्यक हैं।
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यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है। इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए । छात्र को दीर्घ श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध रक्त शरीर में बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है । साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे सदा बोरडम ही लगता है। उसे सदा उदासी ही आती है, अतः अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के अवरोध दूर करना आवश्यक हैं।
    
== मन के स्तर के अवरोध ==
 
== मन के स्तर के अवरोध ==
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== मन को शान्त व एकाग्र बनाना ==
 
== मन को शान्त व एकाग्र बनाना ==
यह तो शारीरिक मानसिक दृष्टि से जो बाधायें होती हैं, अवरोध निर्माण होते हैं उनके उपाय हैं । साथ ही छोटे छोटे और उपाय भले ही छोटे हों परन्तु महत्त्वपूर्ण उपाय हैं। ये उपाय हैं मन के क्षेत्र के । मन को एकाग्र बनाने के लिये पहले उसे शान्त बनाने की आवश्यकता होती है । मन को शान्त बनाने के लिये जिस प्रकार शरीर के लिये आहार विहार का ध्यान रखना चाहिये उसी प्रकार से मन के लिये भी आहार विहार का ध्यान रखना आवश्यक है । सात्विक आहार और प्रेम से बनाया हुआ आहार मन को शान्त बनाता है, प्रेमपूर्ण भी बनाता है । इसलिये अन्न की शुद्धि, अन्न की पवित्रता मन के लिये अत्यन्त आवश्यक है। छात्रों के लिये इसी कारण से बाहर का खाना वर्जित हो जाना चाहिये, वर्जित कर देना चाहिये, क्योंकि सारी समस्याओं की जड़ तो वहीं पर है । घर का बनाया हुआ भोजन करना यह छात्रों के लिये नियम बन जाना चाहिये और इस नियम का कड़ाई से पालन भी होना चाहिये ।
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यह तो शारीरिक मानसिक दृष्टि से जो बाधायें होती हैं, अवरोध निर्माण होते हैं उनके उपाय हैं । साथ ही छोटे छोटे और उपाय भले ही छोटे हों परन्तु महत्त्वपूर्ण उपाय हैं। ये उपाय हैं मन के क्षेत्र के । मन को एकाग्र बनाने के लिये पहले उसे शान्त बनाने की आवश्यकता होती है । मन को शान्त बनाने के लिये जिस प्रकार शरीर के लिये आहार विहार का ध्यान रखना चाहिये उसी प्रकार से मन के लिये भी आहार विहार का ध्यान रखना आवश्यक है । सात्विक आहार और प्रेम से बनाया हुआ आहार मन को शान्त बनाता है, प्रेमपूर्ण भी बनाता है । इसलिये अन्न की शुद्धि, अन्न की पवित्रता मन के लिये अत्यन्त आवश्यक है। छात्रों के लिये इसी कारण से बाहर का खाना वर्जित हो जाना चाहिये, वर्जित कर देना चाहिये, क्योंकि सारी समस्याओं की जड़़ तो वहीं पर है । घर का बनाया हुआ भोजन करना यह छात्रों के लिये नियम बन जाना चाहिये और इस नियम का कड़ाई से पालन भी होना चाहिये ।
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छात्र सूती वस्त्र पहने यह भी स्वास्थ की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है । छात्रों को श्रम करना चाहिये । श्रम करने में लज्जा का नहीं परन्तु गौरव का भाव होना चाहिये । यह श्रम मन को साफ करता है, मन को अच्छा बनाता है । साथ में उसके व्यावहारिक लाभ तो हैं ही, समय बचता है, पैसा बचता है, किसी को नौकर नहीं बनाना होता और काम के प्रति, श्रम के प्रति हेय भाव निर्माण नहीं होने से, अन्ततोगत्वा व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक जीवन में समृद्धि भी पनपती है, इसलिये श्रम की प्रतिष्ठा करना यह विद्यालय का, घर का, समाज का बहुत बड़ा दायित्व है । जब तक काम नहीं करते तब तक अध्ययन ठीक से नहीं होता । यह बात बार बार अनेक प्रकार से समझाने की आवश्यकता है । इसलिये छात्रों को श्रम करना चाहिये यह नियम बनता है । श्रम घर के, विद्यालय के कामों के माध्यम से होता है । इसलिये विद्यालय के और घर के सारे काम करने में कुशलता प्राप्त करना यह तो शिक्षा का भी प्रमुख और शास्त्रीय अध्ययन करने के लिये बुद्धि ग्रहणशील और तेजस्वी बनाने के लिये एक पात्रता निर्माण करने का भी माध्यम है । मन शान्त करने के लिये और मन स्वच्छ बनाने के लिये सत्संग और सेवा बहुत आवश्यक है । सेवा छात्र की आयु के अनुसार अनेक प्रकार की होती है। आजकल हमने सर्विस सेक्टर या नौकरी का क्षेत्र उसको सेवा कहना शुरू किया है । यह सेवा शब्द का अत्यन्त ही गलत प्रयोग है । किसी दूसरे का काम, किसी दूसरे के लिये कष्ट सहन करना और अपने लिये कुछ भी अपेक्षा नहीं करना और ऐसा करने में आनन्द का अनुभव करना सेवा है । और किसी भी प्रकार के बदले की अपेक्षा रखना यह सेवा नहीं है । इसलिये सेवा भाव है और सेवा भाव से किया हुआ काम सेवाकार्य है । ऐसा सेवाकार्य करना छात्रों के लिये अनिवार्य बनाना चाहिये । सेवा की वृत्ति है, सेवा की भावना है और सेवा की कृति है । इन तीनों का समावेश छात्रों को अध्ययनहेतु पात्रता निर्माण करने में सहायक बनता है । इसलिये छात्रों को सेवा तो करनी ही चाहिये।  
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छात्र सूती वस्त्र पहने यह भी स्वास्थ की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक है । छात्रों को श्रम करना चाहिये । श्रम करने में लज्जा का नहीं परन्तु गौरव का भाव होना चाहिये । यह श्रम मन को साफ करता है, मन को अच्छा बनाता है । साथ में उसके व्यावहारिक लाभ तो हैं ही, समय बचता है, पैसा बचता है, किसी को नौकर नहीं बनाना होता और काम के प्रति, श्रम के प्रति हेय भाव निर्माण नहीं होने से, अन्ततोगत्वा व्यक्तिगत जीवन में और सामाजिक जीवन में समृद्धि भी पनपती है, इसलिये श्रम की प्रतिष्ठा करना यह विद्यालय का, घर का, समाज का बहुत बड़ा दायित्व है । जब तक काम नहीं करते तब तक अध्ययन ठीक से नहीं होता । यह बात बार बार अनेक प्रकार से समझाने की आवश्यकता है । इसलिये छात्रों को श्रम करना चाहिये यह नियम बनता है । श्रम घर के, विद्यालय के कामों के माध्यम से होता है । इसलिये विद्यालय के और घर के सारे काम करने में कुशलता प्राप्त करना यह तो शिक्षा का भी प्रमुख और शास्त्रीय अध्ययन करने के लिये बुद्धि ग्रहणशील और तेजस्वी बनाने के लिये एक पात्रता निर्माण करने का भी माध्यम है । मन शान्त करने के लिये और मन स्वच्छ बनाने के लिये सत्संग और सेवा बहुत आवश्यक है । सेवा छात्र की आयु के अनुसार अनेक प्रकार की होती है। आजकल हमने सर्विस सेक्टर या नौकरी का क्षेत्र उसको सेवा कहना आरम्भ किया है । यह सेवा शब्द का अत्यन्त ही गलत प्रयोग है । किसी दूसरे का काम, किसी दूसरे के लिये कष्ट सहन करना और अपने लिये कुछ भी अपेक्षा नहीं करना और ऐसा करने में आनन्द का अनुभव करना सेवा है । और किसी भी प्रकार के बदले की अपेक्षा रखना यह सेवा नहीं है । इसलिये सेवा भाव है और सेवा भाव से किया हुआ काम सेवाकार्य है । ऐसा सेवाकार्य करना छात्रों के लिये अनिवार्य बनाना चाहिये । सेवा की वृत्ति है, सेवा की भावना है और सेवा की कृति है । इन तीनों का समावेश छात्रों को अध्ययनहेतु पात्रता निर्माण करने में सहायक बनता है । इसलिये छात्रों को सेवा तो करनी ही चाहिये।  
    
फिर वह विद्यालय की सेवा हो, गुरु की सेवा हो, वृक्ष वनस्पति की सेवा हो, प्राणी की सेवा हो, देव सेवा हो, किसी भी रूप में सेवा हो लेकिन सेवा, दिनचर्या का अभिन्न अंग बनना आवश्यक है । इसके बाद ऊँकार का उच्चारण, जप करना, स्तोत्र पाठ करना, मन्त्रों का उच्चारण करना यह सब मन को एकाग्र बनाने के लिये आवश्यक है । मन की शुद्धि के लिये भी आवश्यक है । इसी से मन अध्ययन के लिये अनुकूल बनता है । तनाव दूर करने के लिये भी जप आवश्यक है। साथ ही अध्यापकों के या माता पिता के व्यवहार में ऐसा कुछ भी न हो जिस से छात्रों के मन में भय निर्माण हो, या तनाव निर्माण हो । भय और तनाव यह दोनों अध्ययन की शान्ति का नाश करते हैं । इसलिये भय और तनाव नहीं उत्पन्न करना यह दोनों का दायित्व बनता है । उत्तेजना पैदा करने वाले दृश्यों को देखने से या ऐसी बातें करने से भी मन अशान्त हो जाता है । इसलिये विद्यालय का वातावरण पवित्र रखना चाहिये ।
 
फिर वह विद्यालय की सेवा हो, गुरु की सेवा हो, वृक्ष वनस्पति की सेवा हो, प्राणी की सेवा हो, देव सेवा हो, किसी भी रूप में सेवा हो लेकिन सेवा, दिनचर्या का अभिन्न अंग बनना आवश्यक है । इसके बाद ऊँकार का उच्चारण, जप करना, स्तोत्र पाठ करना, मन्त्रों का उच्चारण करना यह सब मन को एकाग्र बनाने के लिये आवश्यक है । मन की शुद्धि के लिये भी आवश्यक है । इसी से मन अध्ययन के लिये अनुकूल बनता है । तनाव दूर करने के लिये भी जप आवश्यक है। साथ ही अध्यापकों के या माता पिता के व्यवहार में ऐसा कुछ भी न हो जिस से छात्रों के मन में भय निर्माण हो, या तनाव निर्माण हो । भय और तनाव यह दोनों अध्ययन की शान्ति का नाश करते हैं । इसलिये भय और तनाव नहीं उत्पन्न करना यह दोनों का दायित्व बनता है । उत्तेजना पैदा करने वाले दृश्यों को देखने से या ऐसी बातें करने से भी मन अशान्त हो जाता है । इसलिये विद्यालय का वातावरण पवित्र रखना चाहिये ।

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