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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक से नहीं होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अध्ययन हमेशा अध्ययन करने वाले पर ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है। अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध शारीरिक स्तर का होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है, पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की ओर नहीं जाता। यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है। चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है। कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है। शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते हैं।
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अध्यापक कितना भी अच्छा हो, अध्ययन करने की कितनी ही सुविधायें और साधन उपलब्ध हों, तो भी अध्ययन करने वाला यदि सक्षम नहीं है तो अध्ययन ठीक से नहीं होता है<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-अध्याय १५, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अध्ययन सदा अध्ययन करने वाले पर ही निर्भर करता है । इसलिये अध्ययन करने वाले की क्षमता बढ़ाना यह भी शिक्षा का एक अहम्‌ मुद्दा है। अध्ययन करने के लिये कौन कौन से अवरोध आते हैं इसकी गणना प्रथम करनी चाहिये ताकि उनको दूर करने की हम कुछ व्यवस्था कर सकें । सब से पहला अवरोध शारीरिक स्तर का होता है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं है, यदि शरीर दुर्बल है, तो अध्ययन करने में मन भी नहीं लगता है । अधिकांशतः हम देखते हैं कि छात्रों के बैठते समय पैर दर्द कर रहे हैं, कमर दर्द कर रही है, कन्धा दर्द कर रहा है, पीठ दर्द कर रही है । इसलिये उनका ध्यान उनके दर्द की तरफ ही जाता है, अध्ययन के विषय की ओर नहीं जाता। यह सब दर्द होने का कारण उनकी दुर्बलता ही होती है। चलने की, बैठने की, खड़े रहने की, सोने की ठीक स्थिति का अभ्यास नहीं होने के कारण से यह दर्द उत्पन्न होता है। कभी पेट में दर्द होता है, कभी सरदर्द करता है, कभी जम्हाइयाँ आती हैं । इन सब का कारण यह है कि उनकी निद्रा पूरी नहीं हुई है । उनका पाचन ठीक नहीं हुआ है। शरीर में अस्वास्थ्य के कारण से कई अवरोध निर्माण होते हैं।
    
== शारीरिक स्तर के अवरोध ==
 
== शारीरिक स्तर के अवरोध ==
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== प्राणिक स्तर के अवरोध ==
 
== प्राणिक स्तर के अवरोध ==
यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है। इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए । छात्र को दीर्घ श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध रक्त शरीर में बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है । साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे हमेशा बोरडम ही लगता है। उसे हमेशा उदासी ही आती है, अतः अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के अवरोध दूर करना आवश्यक हैं।
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यह पहला अवरोध दूर होने के बाद आगे प्राणिक स्तर पर जो अवरोध आते हैं वे ये हैं । ठीक से श्वसन नहीं होना । हम देखते हैं कि कई बच्चे बोर होते है । अध्ययन करना उन्हें अच्छा नहीं लगता । पढ़ते पढ़ते, सुनते सुनते जम्हाइयाँ आती हैं और शरीर थकान का अनुभव करता है। ये सब प्राण की कमी के लक्षण हैं । इसका मुख्य कारण उनकी श्वसन प्रक्रिया ठीक नहीं होती यही है। इसलिये उन्हें ठीक से श्वासोच्छवास करना सिखाना चाहिये । ठीक से श्वासोच्छवास करने के लिये बैठने की सही स्थिति आवश्यक होती है । छाती, गला और पेट न दबे इस प्रकार से बैठना, श्वसन मार्ग साफ होना और आस पास में स्वच्छ वायु होना यह अच्छे श्वसन के लिये आवश्यक बातें हैं । इसलिये जहाँ अध्ययन करने बैठना है वहाँ आस पास का स्थान स्वच्छ होना चाहिये, हवा भी स्वच्छ होनी चाहिये ताकि श्वास में शुद्ध हवा ही आए । छात्र को दीर्घ श्वसन सिखाना चाहिये । फेफड़े यदि श्वास से पूरे भरते नहीं है तो फेफड़ों में आया हुआ अशुद्ध रक्त पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होता है और ऐसा ही अशुद्ध रक्त शरीर में बहने के कारण से शरीर थकान का अनुभव करता है । साथ ही पढ़ने में भी उसका मन नहीं लगता, उसे सदा बोरडम ही लगता है। उसे सदा उदासी ही आती है, अतः अध्ययन सम्भव नहीं होता । इसलिये प्राणमय स्तर के अवरोध दूर करना आवश्यक हैं।
    
== मन के स्तर के अवरोध ==
 
== मन के स्तर के अवरोध ==

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