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अध्ययन और अनुसन्धान
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वर्तमान अध्ययन पद्धति
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=== वर्तमान अध्ययन पद्धति ===
    
१. 'भारत शब्द का अर्थ ही ज्ञान में रत' ऐसा होता है । भारत ऐसा देश है जो अपना सारा व्यवहार ज्ञान के प्रकाश में करता है । ज्ञानोपासना एवं ज्ञानसाधना यहाँ की प्रिय वृत्ति-प्रवृत्ति है। ज्ञान को यहाँ पवित्रतम माना गया है और उसे सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त करनेवाला बताया गया है ।
 
१. 'भारत शब्द का अर्थ ही ज्ञान में रत' ऐसा होता है । भारत ऐसा देश है जो अपना सारा व्यवहार ज्ञान के प्रकाश में करता है । ज्ञानोपासना एवं ज्ञानसाधना यहाँ की प्रिय वृत्ति-प्रवृत्ति है। ज्ञान को यहाँ पवित्रतम माना गया है और उसे सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त करनेवाला बताया गया है ।
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१६. एक बहुत छोटा परन्तु सफल प्रयास दिखाई देता है जहाँ उपनिषदों की वास्तव में प्रतिष्ठा हुई है। उदाहरण के लिये. रवीन्द्रनाथ ठाकुर का शिक्षाचिन्तन औपनिषदिक चिन्तन के प्रकाश में ही विकसित हुआ है । श्री अरविन्द का समग्र जीवन चिन्तन-विचार और व्यवहार सहित-वेद और उपनिषदों के आधार पर ही प्रतिष्ठित हुआ है । विनोबा भावे उसी मालिका में जुडते हैं । महात्मा गांधी भी उसी विचार से अनुप्राणित होकर अपना व्यवहार चिन्तन प्रस्तुत करते हैं । अध्ययन का यह तरीका हमारे लिये उदाहरण स्वरूप हो सकता है ।
 
१६. एक बहुत छोटा परन्तु सफल प्रयास दिखाई देता है जहाँ उपनिषदों की वास्तव में प्रतिष्ठा हुई है। उदाहरण के लिये. रवीन्द्रनाथ ठाकुर का शिक्षाचिन्तन औपनिषदिक चिन्तन के प्रकाश में ही विकसित हुआ है । श्री अरविन्द का समग्र जीवन चिन्तन-विचार और व्यवहार सहित-वेद और उपनिषदों के आधार पर ही प्रतिष्ठित हुआ है । विनोबा भावे उसी मालिका में जुडते हैं । महात्मा गांधी भी उसी विचार से अनुप्राणित होकर अपना व्यवहार चिन्तन प्रस्तुत करते हैं । अध्ययन का यह तरीका हमारे लिये उदाहरण स्वरूप हो सकता है ।
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अध्ययन का उद्देश एवं स्वरूप
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=== अध्ययन का उद्देश एवं स्वरूप ===
    
१७. यहाँ जितने भी उदाहरण दिये हैं वे सब वर्तमान समय के हैं । उनमें नाम तो जुड ही सकते हैं परन्तु हमें अध्ययन के उद्देश्य एवं आलम्बन को तो निश्चित रूप से व्याख्यायित करना होगा |
 
१७. यहाँ जितने भी उदाहरण दिये हैं वे सब वर्तमान समय के हैं । उनमें नाम तो जुड ही सकते हैं परन्तु हमें अध्ययन के उद्देश्य एवं आलम्बन को तो निश्चित रूप से व्याख्यायित करना होगा |
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२२. अध्ययन और अनुसन्धान के साथ ही उसे व्यवहार्य बनाने के उपायों का निरूपण करना उसका तीसरा आयाम है । इस प्रकार तत्त्वचिन्तन, स्मृतिरचना और क्रियान्वयन के उपाय इन तीन आयामों में हमारा ज्ञानव्यवहार चलना आवश्यक है ।
 
२२. अध्ययन और अनुसन्धान के साथ ही उसे व्यवहार्य बनाने के उपायों का निरूपण करना उसका तीसरा आयाम है । इस प्रकार तत्त्वचिन्तन, स्मृतिरचना और क्रियान्वयन के उपाय इन तीन आयामों में हमारा ज्ञानव्यवहार चलना आवश्यक है ।
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प्रमाणव्यवस्था
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=== प्रमाणव्यवस्था ===
    
२३. अध्ययन और अनुसन्धान के समस्त ज्ञानव्यापार के लिये हमें प्रमाणव्यवस्था की भी आवश्यकता होगी । हमारे लिये यह मानसिक साहस का प्रश्न है, बौद्धिक साहस का नहीं । हम वेद और उपनिषदों को प्रमाण मान सकते हैं कि नहीं इसका निश्चय पहले करना होगा । भगवदूगीता प्रमाण है कि नहीं इसका निश्चय प्रथम करना होगा । जीवन के किस क्षेत्र में कौन सा ग्रन्थ हमारे लिये प्रमाण है इसका भी निश्चय करना होगा । जीवनदृष्टि किस ग्रन्थ में किस रूप में निरूपित हुई है और भिन्न भिन्न रूपों और प्रक्रियाओं में किस प्रकार एक ही है इसका निश्चय करना होगा और उस तत्त्व को व्यवहार में रूपान्तरित करते समय प्रक्रिया शुद्ध रही है कि नहीं इसका भी विचार करते रहना होगा। यह निश्चिति नहीं होती तब तक हमारा अध्ययन दुलमुल ही चलता रहेगा । हम विश्वास के साथ कुछ बोल नहीं पायेंगे ।
 
२३. अध्ययन और अनुसन्धान के समस्त ज्ञानव्यापार के लिये हमें प्रमाणव्यवस्था की भी आवश्यकता होगी । हमारे लिये यह मानसिक साहस का प्रश्न है, बौद्धिक साहस का नहीं । हम वेद और उपनिषदों को प्रमाण मान सकते हैं कि नहीं इसका निश्चय पहले करना होगा । भगवदूगीता प्रमाण है कि नहीं इसका निश्चय प्रथम करना होगा । जीवन के किस क्षेत्र में कौन सा ग्रन्थ हमारे लिये प्रमाण है इसका भी निश्चय करना होगा । जीवनदृष्टि किस ग्रन्थ में किस रूप में निरूपित हुई है और भिन्न भिन्न रूपों और प्रक्रियाओं में किस प्रकार एक ही है इसका निश्चय करना होगा और उस तत्त्व को व्यवहार में रूपान्तरित करते समय प्रक्रिया शुद्ध रही है कि नहीं इसका भी विचार करते रहना होगा। यह निश्चिति नहीं होती तब तक हमारा अध्ययन दुलमुल ही चलता रहेगा । हम विश्वास के साथ कुछ बोल नहीं पायेंगे ।
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४७. अभी पढ़ते समय ये बातें कपोल कल्पित लग सकती हैं परन्तु इनका बार बार उच्चारण होगा तो सम्भवता के दायरे में आती जायेंगी । परन्तु तब तक विश्वासपूर्वक हमने वेद्प्रामाण्य को मानना लाभकारी रहेगा ऐसी प्रमाण निश्चिति नहीं होगी तब तक भारतीय शिक्षा की पुनप्रतिष्ठा की कल्पना भी हम नहीं कर सकते । विश्वविद्यालय भारत के ज्ञानप्रवाह के मूल हैं । वहीं पर यदि अनवस्था है तो शेष विश्व की सुस्थिति कैसे हो सकती है ?
 
४७. अभी पढ़ते समय ये बातें कपोल कल्पित लग सकती हैं परन्तु इनका बार बार उच्चारण होगा तो सम्भवता के दायरे में आती जायेंगी । परन्तु तब तक विश्वासपूर्वक हमने वेद्प्रामाण्य को मानना लाभकारी रहेगा ऐसी प्रमाण निश्चिति नहीं होगी तब तक भारतीय शिक्षा की पुनप्रतिष्ठा की कल्पना भी हम नहीं कर सकते । विश्वविद्यालय भारत के ज्ञानप्रवाह के मूल हैं । वहीं पर यदि अनवस्था है तो शेष विश्व की सुस्थिति कैसे हो सकती है ?
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युगानुकूलता
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=== युगानुकूलता ===
    
४८. भारतीय ज्ञानविश्व के अन्दर के इस वाद को ही निपटना पहली आवश्यकता है । उससे यदि निपट कर अनुभूति प्रामाण्य, धर्म प्रामाण्य, वेद प्रामाण्य पर सर्वसम्मति हो गई तो दूसरा प्रश्न भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है । वह है युगानुकूल निरूपण का ।
 
४८. भारतीय ज्ञानविश्व के अन्दर के इस वाद को ही निपटना पहली आवश्यकता है । उससे यदि निपट कर अनुभूति प्रामाण्य, धर्म प्रामाण्य, वेद प्रामाण्य पर सर्वसम्मति हो गई तो दूसरा प्रश्न भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है । वह है युगानुकूल निरूपण का ।
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६३. अर्थशास्त्र के समान ही दूसरा केन्द्रवर्ती विषय शिक्षा का होना आवश्यक है । धर्म को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित कर ज्ञानपस्म्परा को बनाये रखना और प्रजा को धर्माचरण में प्रवृत्त करना अर्थात्‌ लोकव्यवहार को धर्माधिष्टित बनाना शिक्षा का ही काम है । इस दृष्टि से शिक्षा का शास्त्र, शिक्षा की व्यवस्था, शिक्षा को सुलभ बनाने के उपाय आदि का अर्थशास्त्र के समान ही तात्विक और व्यावहारिक धरातल पर पहुँच कर निरूपण करना होगा |
 
६३. अर्थशास्त्र के समान ही दूसरा केन्द्रवर्ती विषय शिक्षा का होना आवश्यक है । धर्म को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी को हस्तान्तरित कर ज्ञानपस्म्परा को बनाये रखना और प्रजा को धर्माचरण में प्रवृत्त करना अर्थात्‌ लोकव्यवहार को धर्माधिष्टित बनाना शिक्षा का ही काम है । इस दृष्टि से शिक्षा का शास्त्र, शिक्षा की व्यवस्था, शिक्षा को सुलभ बनाने के उपाय आदि का अर्थशास्त्र के समान ही तात्विक और व्यावहारिक धरातल पर पहुँच कर निरूपण करना होगा |
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अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना
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=== अध्ययन अनुसन्धान की देशव्यापी योजना ===
    
६४. अध्ययन और अनुसन्धान के अन्तर्गत और एक महत्त्वपूर्ण विषय है तुलनात्मक अध्ययन का । आज संचार माध्यमों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप विश्व के सभी देश एकदूसरे को प्रभावित करते हैं । विगत दो सौ वर्षों में भारतीय शिक्षा का पूर्ण रूप से पश्चिमीकरण हुआ है । अर्थजीवन के केन्द्र में आ जाने के कारण उपभोग प्रधान असंयमी जीवनशैली प्रचलित हो गई है । इस स्थिति में भारतीय ज्ञानधारा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और अभारतीय ज्ञानधारा ने उसका स्थान ले लिया है । यह स्थिति अकेले भारत के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये और जहाँ से इसका प्रवाह शुरु हुआ है ऐसे स्वयं पश्चिम के लिये भी विनाशक ही सिद्ध हो रही है ।
 
६४. अध्ययन और अनुसन्धान के अन्तर्गत और एक महत्त्वपूर्ण विषय है तुलनात्मक अध्ययन का । आज संचार माध्यमों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप विश्व के सभी देश एकदूसरे को प्रभावित करते हैं । विगत दो सौ वर्षों में भारतीय शिक्षा का पूर्ण रूप से पश्चिमीकरण हुआ है । अर्थजीवन के केन्द्र में आ जाने के कारण उपभोग प्रधान असंयमी जीवनशैली प्रचलित हो गई है । इस स्थिति में भारतीय ज्ञानधारा का प्रवाह अवरुद्ध हो गया है और अभारतीय ज्ञानधारा ने उसका स्थान ले लिया है । यह स्थिति अकेले भारत के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिये और जहाँ से इसका प्रवाह शुरु हुआ है ऐसे स्वयं पश्चिम के लिये भी विनाशक ही सिद्ध हो रही है ।
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