Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "फिर भी" to "तथापि"
Line 20: Line 20:  
'''शिक्षक''' : आप मुझे बैठने के लिये भी नहीं कह रहे हैं इसे ही मैं आपका अधिकारी के पद का अहंकार मानूं क्या ? हाँ, अब आप कहते हैं, तो मैं बैठता हूँ। और अब हम काम की बात ही करें, अब तक जो बातें हुई इन्हें एक ओर रख दें। आप केन्द्र सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव हैं अर्थात् इस देश में जो शिक्षा चल रही है उसके सर्वोच्च अधिकारी हैं। मैं इस देश के सबसे बडे शिक्षक संगठन का प्रमुख हुँ। हम दोनों शिक्षा के सेवक हैं। हम दोनों समान रूप से शिक्षा की चिन्ता करनेवाले हैं । अतः हमने एकदूसरे की बात को समझकर शिक्षा में कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिये ऐसा निवेदन करने के लिये मैं आया हूँ। मैंने आपका एक घण्टे का समय मांगा था जो आपने दिया भी था। इसलिये हम निश्चिंत होकर बात करें ऐसा भी मेरा निवेदन है।
 
'''शिक्षक''' : आप मुझे बैठने के लिये भी नहीं कह रहे हैं इसे ही मैं आपका अधिकारी के पद का अहंकार मानूं क्या ? हाँ, अब आप कहते हैं, तो मैं बैठता हूँ। और अब हम काम की बात ही करें, अब तक जो बातें हुई इन्हें एक ओर रख दें। आप केन्द्र सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव हैं अर्थात् इस देश में जो शिक्षा चल रही है उसके सर्वोच्च अधिकारी हैं। मैं इस देश के सबसे बडे शिक्षक संगठन का प्रमुख हुँ। हम दोनों शिक्षा के सेवक हैं। हम दोनों समान रूप से शिक्षा की चिन्ता करनेवाले हैं । अतः हमने एकदूसरे की बात को समझकर शिक्षा में कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिये ऐसा निवेदन करने के लिये मैं आया हूँ। मैंने आपका एक घण्टे का समय मांगा था जो आपने दिया भी था। इसलिये हम निश्चिंत होकर बात करें ऐसा भी मेरा निवेदन है।
   −
'''प्रशासक''' : मैं आपकी बात स्वीकार करता हूँ। अब देखिये, सरकार शिक्षा अच्छी हो इसलिये अनेक प्रयास कर रही है। हम क्रमशः बात करे तो सरकार ने छः से चौदह वर्ष के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया है, इतना ही नहीं मध्याहन भोजन की योजना भी बनाई है जिसके कारण गरीबों के बच्चे भी पढ सकें। क्या आप इसकी सराहना नहीं करेंगे ? देश में साढे आठ लाख से भी अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। आप इसके लिये हमें कुछ तो शाबाशी दे सकते हैं।
+
'''प्रशासक''' : मैं आपकी बात स्वीकार करता हूँ। अब देखिये, सरकार शिक्षा अच्छी हो इसलिये अनेक प्रयास कर रही है। हम क्रमशः बात करे तो सरकार ने छः से चौदह वर्ष के बच्चोंं के लिये निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया है, इतना ही नहीं मध्याहन भोजन की योजना भी बनाई है जिसके कारण गरीबों के बच्चे भी पढ सकें। क्या आप इसकी सराहना नहीं करेंगे ? देश में साढे आठ लाख से भी अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। आप इसके लिये हमें कुछ तो शाबाशी दे सकते हैं।
    
'''शिक्षक''' : सरकार शिक्षा के लिये क्या क्या कर रही है इसके बारे में आप एक बार में सब बताइये । बाद में उस पर चर्चा करेंगे। हम यह सब संक्षेप में करेंगे क्योंकि इस चर्चा के बाद मैं एक महत्त्वपूर्ण विषय पर आपका परामर्श और सहयोग चाहता हूँ।
 
'''शिक्षक''' : सरकार शिक्षा के लिये क्या क्या कर रही है इसके बारे में आप एक बार में सब बताइये । बाद में उस पर चर्चा करेंगे। हम यह सब संक्षेप में करेंगे क्योंकि इस चर्चा के बाद मैं एक महत्त्वपूर्ण विषय पर आपका परामर्श और सहयोग चाहता हूँ।
   −
'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्विज्ञान की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
+
'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
    
'''शिक्षक''' : जी हाँ, यह सब तो मैं जानता हूँ। यह जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। मेरी चिन्तायें कुछ और हैं जिनकी ओर हमें ध्यान देना है । मैं कुछ बातें आपके समक्ष बताता हूँ।
 
'''शिक्षक''' : जी हाँ, यह सब तो मैं जानता हूँ। यह जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। मेरी चिन्तायें कुछ और हैं जिनकी ओर हमें ध्यान देना है । मैं कुछ बातें आपके समक्ष बताता हूँ।
Line 56: Line 56:  
'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने आरम्भ की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था आरम्भ हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
 
'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने आरम्भ की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था आरम्भ हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
   −
'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पडेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से धार्मिक नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
+
'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पड़ेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से धार्मिक नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
    
'''प्रशासक''' : देखिये, ये सारी बातें मेरे लिये बहुत नई हैं। इन पर विश्वास करने से पूर्व मुझे ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा और विचार भी करना पड़ेगा। परन्तु क्या पढाना क्या नहीं यह तो शिक्षकों को ही निश्चित करना होगा । हम क्या कर सकते हैं ?
 
'''प्रशासक''' : देखिये, ये सारी बातें मेरे लिये बहुत नई हैं। इन पर विश्वास करने से पूर्व मुझे ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा और विचार भी करना पड़ेगा। परन्तु क्या पढाना क्या नहीं यह तो शिक्षकों को ही निश्चित करना होगा । हम क्या कर सकते हैं ?
Line 88: Line 88:  
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
 
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
   −
'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। फिर भी मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
+
'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। तथापि मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
    
साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगोंं को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
 
साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगोंं को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
   −
'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चों को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड़ सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
+
'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चोंं को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड़ सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
    
यह है कि सिस्टम की जकडन से शिक्षा  को मुक्त करने के उपाय आप ही बतायें। आपके जितना सिस्टम को कौन जानता है हम भी मेहनत करेंगे परन्तु आपके समान वह कार्य हमारे लिये सरल नहीं होगा।
 
यह है कि सिस्टम की जकडन से शिक्षा  को मुक्त करने के उपाय आप ही बतायें। आपके जितना सिस्टम को कौन जानता है हम भी मेहनत करेंगे परन्तु आपके समान वह कार्य हमारे लिये सरल नहीं होगा।
Line 100: Line 100:  
'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
 
'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
   −
'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। फिर भी आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और आरम्भ कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
+
'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। तथापि आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और आरम्भ कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
    
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  
 
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  

Navigation menu