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'''प्रशासक''' : हाँ, हुआ है । परन्तु यह रामनारायण तो कोई शिक्षक संगठन का प्रमुख है और इस शिक्षक संगठन में ढाई लाख शिक्षक सदस्य हैं। तुम उसके प्रमुख कैसे  हो सकते हो ? सादा धोती कुर्ता पहना है और पैरों में जूते तक नहीं हैं। क्या प्रमाण है कि तुम शिक्षक संगठन के प्रमुख हो ? मुझे क्या मूर्ख समझते हो ?
 
'''प्रशासक''' : हाँ, हुआ है । परन्तु यह रामनारायण तो कोई शिक्षक संगठन का प्रमुख है और इस शिक्षक संगठन में ढाई लाख शिक्षक सदस्य हैं। तुम उसके प्रमुख कैसे  हो सकते हो ? सादा धोती कुर्ता पहना है और पैरों में जूते तक नहीं हैं। क्या प्रमाण है कि तुम शिक्षक संगठन के प्रमुख हो ? मुझे क्या मूर्ख समझते हो ?
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'''शिक्षक''' : आपको मैं क्या समझता हूँ वह गौण है। यह मेरा परिचय पत्र देखिये, इससे मेरे कथन की सत्यता आपके ध्यान में आयेगी। रही बात मेरे वेश की। धोती कुर्ता यह तो सभ्य वेश है। भारतीय वेश है। यहाँ की गर्मी में यह वेश पहनना अनुकूल है इसलिये पहना है। जूते बाहर उतारकर आया हूँ क्योंकि जूते पहनकर अन्दर आना हम अच्छा नहीं समझते। आप वेश और जूतों को लक्षण मानते हैं परन्तु हम उन्हें संस्कार नहीं मानते । मैं कहूँगा कि आपको ही अपने वेश और व्यवहार के बारे में कुछ विचार करना चाहिये । आपने पहना है वह भारतीय वेश नहीं है, ब्रिटीशों का है। आप तो शुद्ध भारतीय दिखाई देते हैं, उच्च शिक्षित भी हैं । क्या आप स्वाभिमानी नहीं हैं ? जिन ब्रिटीशों ने हमे दौ सौ वर्ष अपने आधिपत्य में रखा, हम पर अत्याचार किये, हमारी सम्पत्ति लूटी, हमारा अर्थतन्त्र छिन्न विच्छिन्न कर दिया उन पर आपको क्रोध नहीं आता ? आप उनका वेश अपनाये हुए हैं और मैंने भारतीय वेश पहना है इसलिये मेरे साथ शिष्टतापूर्वक बात भी नहीं कर रहे हैं। विचार तो आपको करना है।
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'''शिक्षक''' : आपको मैं क्या समझता हूँ वह गौण है। यह मेरा परिचय पत्र देखिये, इससे मेरे कथन की सत्यता आपके ध्यान में आयेगी। रही बात मेरे वेश की। धोती कुर्ता यह तो सभ्य वेश है। धार्मिक वेश है। यहाँ की गर्मी में यह वेश पहनना अनुकूल है इसलिये पहना है। जूते बाहर उतारकर आया हूँ क्योंकि जूते पहनकर अन्दर आना हम अच्छा नहीं समझते। आप वेश और जूतों को लक्षण मानते हैं परन्तु हम उन्हें संस्कार नहीं मानते । मैं कहूँगा कि आपको ही अपने वेश और व्यवहार के बारे में कुछ विचार करना चाहिये । आपने पहना है वह धार्मिक वेश नहीं है, ब्रिटीशों का है। आप तो शुद्ध धार्मिक दिखाई देते हैं, उच्च शिक्षित भी हैं । क्या आप स्वाभिमानी नहीं हैं ? जिन ब्रिटीशों ने हमे दौ सौ वर्ष अपने आधिपत्य में रखा, हम पर अत्याचार किये, हमारी सम्पत्ति लूटी, हमारा अर्थतन्त्र छिन्न विच्छिन्न कर दिया उन पर आपको क्रोध नहीं आता ? आप उनका वेश अपनाये हुए हैं और मैंने धार्मिक वेश पहना है इसलिये मेरे साथ शिष्टतापूर्वक बात भी नहीं कर रहे हैं। विचार तो आपको करना है।
    
'''प्रशासक''' : ठीक है, मैं मेरा विचार करूँगा । परन्तु मैंने क्या अशिष्ट व्यवहार किया ? आपको बिना अनुमति आने के लिये टोका यही न ? यह मेरा कार्यालय है, मैं यहाँ अधिकारी हूँ, किसी को भी टोकने का मुझे अधिकार है।
 
'''प्रशासक''' : ठीक है, मैं मेरा विचार करूँगा । परन्तु मैंने क्या अशिष्ट व्यवहार किया ? आपको बिना अनुमति आने के लिये टोका यही न ? यह मेरा कार्यालय है, मैं यहाँ अधिकारी हूँ, किसी को भी टोकने का मुझे अधिकार है।
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'''शिक्षक''' : आप मुझे बैठने के लिये भी नहीं कह रहे हैं इसे ही मैं आपका अधिकारी के पद का अहंकार मानूं क्या ? हाँ, अब आप कहते हैं, तो मैं बैठता हूँ। और अब हम काम की बात ही करें, अब तक जो बातें हुई इन्हें एक ओर रख दें। आप केन्द्र सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव हैं अर्थात् इस देश में जो शिक्षा चल रही है उसके सर्वोच्च अधिकारी हैं। मैं इस देश के सबसे बडे शिक्षक संगठन का प्रमुख हुँ। हम दोनों शिक्षा के सेवक हैं। हम दोनों समान रूप से शिक्षा की चिन्ता करनेवाले हैं । अतः हमने एकदूसरे की बात को समझकर शिक्षा में कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिये ऐसा निवेदन करने के लिये मैं आया हूँ। मैंने आपका एक घण्टे का समय मांगा था जो आपने दिया भी था। इसलिये हम निश्चिंत होकर बात करें ऐसा भी मेरा निवेदन है।
 
'''शिक्षक''' : आप मुझे बैठने के लिये भी नहीं कह रहे हैं इसे ही मैं आपका अधिकारी के पद का अहंकार मानूं क्या ? हाँ, अब आप कहते हैं, तो मैं बैठता हूँ। और अब हम काम की बात ही करें, अब तक जो बातें हुई इन्हें एक ओर रख दें। आप केन्द्र सरकार के शिक्षा विभाग के सचिव हैं अर्थात् इस देश में जो शिक्षा चल रही है उसके सर्वोच्च अधिकारी हैं। मैं इस देश के सबसे बडे शिक्षक संगठन का प्रमुख हुँ। हम दोनों शिक्षा के सेवक हैं। हम दोनों समान रूप से शिक्षा की चिन्ता करनेवाले हैं । अतः हमने एकदूसरे की बात को समझकर शिक्षा में कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिये ऐसा निवेदन करने के लिये मैं आया हूँ। मैंने आपका एक घण्टे का समय मांगा था जो आपने दिया भी था। इसलिये हम निश्चिंत होकर बात करें ऐसा भी मेरा निवेदन है।
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'''प्रशासक''' : मैं आपकी बात स्वीकार करता हूँ। अब देखिये, सरकार शिक्षा अच्छी हो इसलिये अनेक प्रयास कर रही है। हम क्रमशः बात करे तो सरकार ने छः से चौदह वर्ष के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया है, इतना ही नहीं मध्याहन भोजन की योजना भी बनाई है जिसके कारण गरीबों के बच्चे भी पढ सकें। क्या आप इसकी सराहना नहीं करेंगे ? देश में साढे आठ लाख से भी अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। आप इसके लिये हमें कुछ तो शाबाशी दे सकते हैं।
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'''प्रशासक''' : मैं आपकी बात स्वीकार करता हूँ। अब देखिये, सरकार शिक्षा अच्छी हो इसलिये अनेक प्रयास कर रही है। हम क्रमशः बात करे तो सरकार ने छः से चौदह वर्ष के बच्चोंं के लिये निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया है, इतना ही नहीं मध्याहन भोजन की योजना भी बनाई है जिसके कारण गरीबों के बच्चे भी पढ सकें। क्या आप इसकी सराहना नहीं करेंगे ? देश में साढे आठ लाख से भी अधिक प्राथमिक विद्यालय हैं। आप इसके लिये हमें कुछ तो शाबाशी दे सकते हैं।
    
'''शिक्षक''' : सरकार शिक्षा के लिये क्या क्या कर रही है इसके बारे में आप एक बार में सब बताइये । बाद में उस पर चर्चा करेंगे। हम यह सब संक्षेप में करेंगे क्योंकि इस चर्चा के बाद मैं एक महत्त्वपूर्ण विषय पर आपका परामर्श और सहयोग चाहता हूँ।
 
'''शिक्षक''' : सरकार शिक्षा के लिये क्या क्या कर रही है इसके बारे में आप एक बार में सब बताइये । बाद में उस पर चर्चा करेंगे। हम यह सब संक्षेप में करेंगे क्योंकि इस चर्चा के बाद मैं एक महत्त्वपूर्ण विषय पर आपका परामर्श और सहयोग चाहता हूँ।
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'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्विज्ञान की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
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'''प्रशासक''' : हमने शिक्षकों के प्रशिक्षण की अच्छी व्यवस्था की है। शिक्षकों का वेतन भी अब सम्मानजनक है। सेवाकालीन प्रशिक्षण की भी अच्छी व्यवस्था है। हमने केन्द्र और राज्यों में प्रशिक्षण और अनुसन्धान की संस्थायें बनाई हैं। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें बनाई है। पाठ्यपुस्तकें निःशुल्क दी जाती हैं। लडकियाँ पढ़ें इस दृष्टि से उन्हें अनेक विशेष सुविधायें दी जाती हैं। शत प्रतिशत साक्षरता के लिये अभियान के तौर पर प्रयास किये जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर की शिक्षा का भी विचार किया जाता है। विश्वविद्यालयों की संख्या क्रमशः प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आईआईटी, आईआईएम जैसी विश्वस्तरीय संस्थायें है। आयुर्[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] की संस्थायें भी लक्षणीय हैं। अनेक शोध संस्थान भी कार्यरत हैं। खैर, यह सब तो आप भी जानते ही होंगे। आपका कहना क्या है ?
    
'''शिक्षक''' : जी हाँ, यह सब तो मैं जानता हूँ। यह जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। मेरी चिन्तायें कुछ और हैं जिनकी ओर हमें ध्यान देना है । मैं कुछ बातें आपके समक्ष बताता हूँ।
 
'''शिक्षक''' : जी हाँ, यह सब तो मैं जानता हूँ। यह जानकारी इण्टरनेट पर उपलब्ध है। मेरी चिन्तायें कुछ और हैं जिनकी ओर हमें ध्यान देना है । मैं कुछ बातें आपके समक्ष बताता हूँ।
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# सरकारी विद्यालयों में जो भी पढता है उसे आठ वर्ष की पढाई के बाद भी लिखना पढ़ना नहीं आता।
 
# सरकारी विद्यालयों में जो भी पढता है उसे आठ वर्ष की पढाई के बाद भी लिखना पढ़ना नहीं आता।
 
# अन्य विद्यालयों में भी पन्द्रह वर्ष की पढाई के बाद ज्ञानात्मक दृष्टि से शिक्षित कहे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कदाचित दो प्रतिशत होगी।
 
# अन्य विद्यालयों में भी पन्द्रह वर्ष की पढाई के बाद ज्ञानात्मक दृष्टि से शिक्षित कहे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या कदाचित दो प्रतिशत होगी।
# शिक्षित लोगों में देशभक्ति, सामाजिक दायित्वबोध और व्यक्तिगत आचरण में संस्कार नहीं होते। हम सज्जन कह सकें ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण नहीं करते।
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# शिक्षित लोगोंं में देशभक्ति, सामाजिक दायित्वबोध और व्यक्तिगत आचरण में संस्कार नहीं होते। हम सज्जन कह सकें ऐसे विद्यार्थियों का निर्माण नहीं करते।
 
# विश्व के प्रथम दोसौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
 
# विश्व के प्रथम दोसौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है।
 
मैंने सारी चिन्ताओं का सार केवल पाँच बिन्दुओं में बताया है। मैं आपके तन्त्र पर या सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ। आप और हम मिलकर स्थिति में कुछ परिवर्तन कर सकें इस दृष्टि से कह रहा हूँ।
 
मैंने सारी चिन्ताओं का सार केवल पाँच बिन्दुओं में बताया है। मैं आपके तन्त्र पर या सरकार पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ। आप और हम मिलकर स्थिति में कुछ परिवर्तन कर सकें इस दृष्टि से कह रहा हूँ।
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'''शिक्षक''' : खेद की बात है। मैं वास्तविक धरातल की ही बात कर रहा हूँ । सुनिये, मैं एक एक कर आपके समक्ष स्थिति स्पष्ट करता हूँ।
 
'''शिक्षक''' : खेद की बात है। मैं वास्तविक धरातल की ही बात कर रहा हूँ । सुनिये, मैं एक एक कर आपके समक्ष स्थिति स्पष्ट करता हूँ।
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एक, आप सच्चे भारतीय हैं । आप प्रशासकीय सेवा में हैं इसलिये भारत का इतिहास जानते हैं। इस देश की शिक्षाव्यवस्था विश्व में सबसे प्राचीन है यह तो आप जानते ही हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक भारत में शिक्षा सरकार के नियन्त्रण में नहीं थी। ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा के मानस को अपने अधीन करने हेतु शिक्षा को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसके बाद भारत की शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था का सर्वनाश किया। यह कड़वा सच है कि आप स्वाधीन भारत में भी ब्रिटीशों की ही पद्धति चला रहे हैं। क्या आपका उद्देश्य भी प्रजा के मानस को अपने अधीन रखने का ही है ? क्या प्रजा को स्वतन्त्र नहीं होने देना चाहते हैं ?
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एक, आप सच्चे धार्मिक हैं । आप प्रशासकीय सेवा में हैं इसलिये भारत का इतिहास जानते हैं। इस देश की शिक्षाव्यवस्था विश्व में सबसे प्राचीन है यह तो आप जानते ही हैं। अत्यन्त प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक भारत में शिक्षा सरकार के नियन्त्रण में नहीं थी। ब्रिटीशों ने भारत की प्रजा के मानस को अपने अधीन करने हेतु शिक्षा को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उसके बाद भारत की शिक्षा और शिक्षा की व्यवस्था का सर्वनाश किया। यह कड़वा सच है कि आप स्वाधीन भारत में भी ब्रिटीशों की ही पद्धति चला रहे हैं। क्या आपका उद्देश्य भी प्रजा के मानस को अपने अधीन रखने का ही है ? क्या प्रजा को स्वतन्त्र नहीं होने देना चाहते हैं ?
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'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने शुरू की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था शुरू हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
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'''प्रशासक''' : यह तो गम्भीर आरोप है। भारत में शिक्षा थी ही नहीं, ब्रिटीशों ने आरम्भ की और आज भी हमारे लिये वह व्यवस्था का उत्तम नमूना है। स्वतन्त्रता से पूर्व वह व्यवस्था आरम्भ हुई इसलिये उसका श्रेय तो उनका ही माना जाना चाहिये । हमें ब्रिटीशों के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिये । आप उल्टी बात कर रहे हैं।
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'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पडेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से भारतीय नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
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'''शिक्षक''' : यही तो बडे खेद की बात है कि वर्तमान भारत का उच्च शिक्षित, अधिकारी व्यक्ति सत्य इतिहास से परिचित भी नहीं है। मेरे कथन के प्रमाण मैं दे सकता हूँ। मुझे ज्ञात था कि इन की आवश्यकता पड़ेगी इसलिये मैं कुछ सामग्री साथ लेकर आया हूँ। यहाँ छोडकर जाऊँगा। आपको मेरे कथन के प्रमाण मिल जायेंगे। परन्तु इससे भी अधिक खेद की बात यह है कि हमारे प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयों में हम वही पढ़ा रहे हैं जो ब्रिटीश हमें पढा रहे थे । हमारे विश्वविद्यालय ज्ञान की दृष्टि से धार्मिक नहीं हैं। विगत दस पीढियों से यही पश्चिमी ज्ञान हम दे रहे हैं। प्रथम पाँच पीढियाँ तो स्वाधीनता पूर्व थीं, हम उसमें कुछ नहीं कर सकते थे, परन्तु स्वाधीनता के बाद भी तो हम वही पढा रहे हैं। यह परिवर्तन कौन करेगा ऐसा आपको लगता है ? शिक्षक या सरकार ?
    
'''प्रशासक''' : देखिये, ये सारी बातें मेरे लिये बहुत नई हैं। इन पर विश्वास करने से पूर्व मुझे ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा और विचार भी करना पड़ेगा। परन्तु क्या पढाना क्या नहीं यह तो शिक्षकों को ही निश्चित करना होगा । हम क्या कर सकते हैं ?
 
'''प्रशासक''' : देखिये, ये सारी बातें मेरे लिये बहुत नई हैं। इन पर विश्वास करने से पूर्व मुझे ठीक से अध्ययन करना पड़ेगा और विचार भी करना पड़ेगा। परन्तु क्या पढाना क्या नहीं यह तो शिक्षकों को ही निश्चित करना होगा । हम क्या कर सकते हैं ?
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'''प्रशासक''' : नहीं, ऐसा नहीं होता । कभी कभी सांसद या मन्त्री ऐसी बातें करते हैं जो अव्यावहारिक भी होती हैं और अनैतिक भी। तभी ऐसा होता है अन्यथा हम विधायक पद्धति से ही पेश आते हैं।
 
'''प्रशासक''' : नहीं, ऐसा नहीं होता । कभी कभी सांसद या मन्त्री ऐसी बातें करते हैं जो अव्यावहारिक भी होती हैं और अनैतिक भी। तभी ऐसा होता है अन्यथा हम विधायक पद्धति से ही पेश आते हैं।
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'''शिक्षक''' : परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि सिस्टम जड है, वह ब्रिटीशों की बनाई हुई है। वह स्वाधीनता और पराधीनता मे अन्तर नहीं करती । वह अपने आप नहीं बदलेगी। आप भी उसे नहीं बदलेंगे क्योंकि आप 'सेवक' हैं। संसद बदल सकती है परन्तु वह अस्थिर है। सांसद अथवा मन्त्री कुछ परिवर्तन करना चाहे तो आप उसे होने नहीं देते । आप नहीं परन्तु आपकी सिस्टम शिक्षा के स्वभाव को जानते नहीं इसलिये परिवर्तन करने नहीं देते । तब इस समस्या का हल क्या है ? आप चाहें तब सेवक और चाहें तब स्वामी बन जाते हैं। क्या यह बात सही नहीं है ? आप कदाचित इस बात से सहमत नहीं होंगे परन्तु जनसामान्य की धारणा तो यही है कि इस देश की प्रशासन व्यवस्था अपने आपको ब्रिटीशों के उत्तराधिकारी मानती है और सामान्य जन से अलग ही रहना चाहती है।
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'''शिक्षक''' : परन्तु इसका अर्थ यह हुआ कि सिस्टम जड़ है, वह ब्रिटीशों की बनाई हुई है। वह स्वाधीनता और पराधीनता मे अन्तर नहीं करती । वह अपने आप नहीं बदलेगी। आप भी उसे नहीं बदलेंगे क्योंकि आप 'सेवक' हैं। संसद बदल सकती है परन्तु वह अस्थिर है। सांसद अथवा मन्त्री कुछ परिवर्तन करना चाहे तो आप उसे होने नहीं देते । आप नहीं परन्तु आपकी सिस्टम शिक्षा के स्वभाव को जानते नहीं इसलिये परिवर्तन करने नहीं देते । तब इस समस्या का हल क्या है ? आप चाहें तब सेवक और चाहें तब स्वामी बन जाते हैं। क्या यह बात सही नहीं है ? आप कदाचित इस बात से सहमत नहीं होंगे परन्तु जनसामान्य की धारणा तो यही है कि इस देश की प्रशासन व्यवस्था अपने आपको ब्रिटीशों के उत्तराधिकारी मानती है और सामान्य जन से अलग ही रहना चाहती है।
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मैं प्रशासन व्यवस्था को केवल दोष ही देना नहीं चाहता हूँ। मेरा निवेदन यह है कि लोकतंत्र में भले ही जनप्रतिनिधियों का शासन रहता हो तो भी प्रशासन ही सर्वोपरि होता है। आप इस व्यवस्था में सर्वोच्च पद पर है। आपका सम्पूर्ण तन्त्र शिक्षामन्त्री को परामर्श, मार्गदर्शन, सुझाव और सहयोग के लिये होता है । इनके बिना शासन का काम एक दिन भी नहीं चल सकता । आप व्यवस्था में सर्वोच्च होने के साथ साथ बुद्धिमान भी हैं । आपकी बुद्धि को जड सिस्टम की यान्त्रिकता से मुक्त कर शिक्षा, देश और जनसामान्य की स्थिति को दिखिये और आपके अधिकार का उपयोग कर स्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयास कीजिये । मैं शिक्षामन्त्री या प्रधानमंत्री के पास नहीं अपितु आपके पास आया हूँ क्योंकि सिस्टम का अधिकार, क्षमता और प्रभाव मैं जानता हूँ। शासन कितना भी अच्छा या समर्थ हो सिस्टम ठीक नहीं होगी तो परिवर्तन नहीं हो सकता।
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मैं प्रशासन व्यवस्था को केवल दोष ही देना नहीं चाहता हूँ। मेरा निवेदन यह है कि लोकतंत्र में भले ही जनप्रतिनिधियों का शासन रहता हो तो भी प्रशासन ही सर्वोपरि होता है। आप इस व्यवस्था में सर्वोच्च पद पर है। आपका सम्पूर्ण तन्त्र शिक्षामन्त्री को परामर्श, मार्गदर्शन, सुझाव और सहयोग के लिये होता है । इनके बिना शासन का काम एक दिन भी नहीं चल सकता । आप व्यवस्था में सर्वोच्च होने के साथ साथ बुद्धिमान भी हैं । आपकी बुद्धि को जड़ सिस्टम की यान्त्रिकता से मुक्त कर शिक्षा, देश और जनसामान्य की स्थिति को दिखिये और आपके अधिकार का उपयोग कर स्थिति में परिवर्तन लाने का प्रयास कीजिये । मैं शिक्षामन्त्री या प्रधानमंत्री के पास नहीं अपितु आपके पास आया हूँ क्योंकि सिस्टम का अधिकार, क्षमता और प्रभाव मैं जानता हूँ। शासन कितना भी अच्छा या समर्थ हो सिस्टम ठीक नहीं होगी तो परिवर्तन नहीं हो सकता।
    
यह आदेश से या बहुमत से होने वाला काम नहीं है, दीर्घ और व्यापक चिन्तन की भी आवश्यकता है। शिक्षा तो राष्ट्रनिर्माण करने वाली जिन्दा व्यवस्था है। मनुष्यों के मन और बुद्धि का विकास करने के माध्यम से वह देश चलाती है । इस सिस्टम के ही शासन और प्रशासन ऐसे दो हिस्से हैं । मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु इस सिस्टम के एक अंगके रूप में आप हैं इसलिये आप से बात कर रहा हूँ । समस्त शिक्षक समाज की ओर से, देश के जनसामान्य की ओर से एक शिक्षक और इस देश के नागरिक के नाते बात कर रहा हूँ। आप जरा अनुकूल बनने का प्रयास कीजिये । आप चाहेंगे तो बातें सम्भव हो सकती है।
 
यह आदेश से या बहुमत से होने वाला काम नहीं है, दीर्घ और व्यापक चिन्तन की भी आवश्यकता है। शिक्षा तो राष्ट्रनिर्माण करने वाली जिन्दा व्यवस्था है। मनुष्यों के मन और बुद्धि का विकास करने के माध्यम से वह देश चलाती है । इस सिस्टम के ही शासन और प्रशासन ऐसे दो हिस्से हैं । मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं अपितु इस सिस्टम के एक अंगके रूप में आप हैं इसलिये आप से बात कर रहा हूँ । समस्त शिक्षक समाज की ओर से, देश के जनसामान्य की ओर से एक शिक्षक और इस देश के नागरिक के नाते बात कर रहा हूँ। आप जरा अनुकूल बनने का प्रयास कीजिये । आप चाहेंगे तो बातें सम्भव हो सकती है।
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'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगों से भी लोगों द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
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'''प्रशासक''' : आज पहली बार ऐसी बातें सुन रहा हूँ। हमारी पढाई में और प्रशिक्षण में इस दृष्टि से विचार करने की कभी सम्भावना ही निर्माण नहीं हुई है। आपकी बातें सूनकर मेरी कल्पना के समक्ष चित्र धीरे धीरे उभर रहा है। मैं देख रहा हूँ कि ब्रिटीश तो भारत छोडकर जाने की तैयारी कर रहे हैं और हम भी स्वाधीन होने का हर्ष मना रहे हैं परन्तु उस हर्ष के आवेशमें ब्रिटीश अपनी सारी व्यवस्था यहाँ छोडकर जा रहे हैं यह बात हम देखते नहीं है । हमने व्यक्तियों को देखा परन्तु उन व्यक्तियों द्वारा निर्मित व्यवस्थाओं को नहीं देखा । वास्तव में लोगोंं से भी लोगोंं द्वारा बनाई गई व्यवस्थायें ज्यादा भयंकर हैं। और विडम्बना यह है कि हमें इसका ज्ञान तो छोडो भान ही नहीं है। परन्तु आपने ही अभी कहा कि सिस्टम जड़ है। वह अपने आपको तो बदलेगी नहीं, उपर से जो भी बदलने का प्रयास करेगा उसका ही विरोध करेगी, उसे बदलने नहीं देगी, बदलाव में बाधायें निर्माण करेगी।
    
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
 
'''शिक्षक''' : आपने ठीक कहा । अब आप परिस्थिति की गम्भीरता को समझ रहे हैं। हमारा निवेदन है कि हम साथ मिलकर विचार करें कि हमारे सामने जो चुनौती है उसका सामना हम किस प्रकार करें । हम मानते हैं कि शिक्षा को बदलने से ही व्यवस्थायें बदलेंगी और व्यवस्थाओं को बदलने से देश बदलेगा । देश स्वतन्त्र तब कहा जायेगा जब वह अपने तन्त्र से चलेगा । ऐसी स्वतन्त्रता के लिये हम क्या कर सकते हैं । इसका विचार करें।
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'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। फिर भी मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
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'''प्रशासक''' : हमने कभी ऐसा विचार किया नहीं है इसलिये एकदम तो मेरे ध्यान में कुछ विचार आ नहीं रहा है। तथापि मुझे दो बातें महत्त्वपूर्ण लगती हैं । एक तो यह कि सिस्टम को बदलने हेतु शिक्षा को सिस्टम से बाहर रहकर प्रयास करने होंगे। सिस्टम के अन्दर ही अन्दर तो खास कुछ होगा नहीं । दूसरा मुझे लगता है कि शासन, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी संगठन साथ मिलकर प्रयास करें।
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साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगों को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
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साथ ही यह भी आवश्यक है कि शैक्षिक संगटन ही इसकी पहल करें । शिक्षा को यदि सिस्टम से मुक्त करना है तो पहल भी उन लोगोंं को करनी चाहिये जो मुक्ति चाहते हों, वास्तव में मुक्त हों और अपने आपको मुक्त मानते हों।
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'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चों को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
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'''शिक्षक''' : आपने मेरे मन की बात कही । सौभाग्य से आज भी देश के जनमानस में स्वतन्त्रता की चाह समाप्त नहीं हुई है। लोग मुक्ति चाहते ही हैं। साथ ही देश में अनेक संगठन कार्यरत हैं । लगभग सभी धार्मिक सांस्कृतिक संगठन विद्यालय और महाविद्यालय चलाते हैं। आपको पता नहीं होगा परन्तु ऐसे असंख्य लोग हैं जो इस शिक्षा को पसन्द नहीं करते इसलिये अपने बच्चोंं को घर में ही पढाते हैं । अनेक स्थानों पर ऐसे गुरुकुलों की स्थापना लोग कर रहे हैं जो इस सिस्टम से मुक्त रह कर चलाये जायें । परन्तु वे सिस्टम से डर रहे हैं । सिस्टम की मान्यता नहीं है ऐसे किसी भी प्रयोग को सिस्टम चलने नहीं देती ऐसी आज की स्थिति है । यह स्थिति अपने आपमें भी अन्यायी और अनुचित है। इतने बड़े देश की शिक्षा का तन्त्र सरकार चलाये यही अत्यन्त अव्यावहारिक है । उस पर जड़ सिस्टम में शिक्षा को जकडना अत्यन्त अनुचित है। मेरा निवेदन
    
यह है कि सिस्टम की जकडन से शिक्षा  को मुक्त करने के उपाय आप ही बतायें। आपके जितना सिस्टम को कौन जानता है हम भी मेहनत करेंगे परन्तु आपके समान वह कार्य हमारे लिये सरल नहीं होगा।
 
यह है कि सिस्टम की जकडन से शिक्षा  को मुक्त करने के उपाय आप ही बतायें। आपके जितना सिस्टम को कौन जानता है हम भी मेहनत करेंगे परन्तु आपके समान वह कार्य हमारे लिये सरल नहीं होगा।
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'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
 
'''शिक्षक''' : आपके प्रस्ताव का मैं स्वागत करता हूँ। परन्तु जाते जाते एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय का प्रारम्भ कर देता हूँ। हम सब कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का प्रारम्भ करने का मानस बनाया है। आपकी सहायता की उसमें बहुत आवश्यकता रहेगी।
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'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। फिर भी आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और शुरू कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
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'''प्रशासक''' : यह कौनसी नई बात है ? आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सुरू करना कोई खेल थोडे ही हैं ? कितना धन चाहिये और कितना परिश्रम ? फिर संसद में कानून भी पारित करना होगा। कितनी प्रशासकीय आवश्यकतायें पूरी करना होगी। तथापि आप नहीं कर सकते हैं ऐसा तो नहीं है। सारी प्रक्रियाएँ पूर्ण कीजिये और आरम्भ कीजिये । मेरी और से मैं हर प्रकार से सहायता करूँगा। परन्तु सरकार से शिक्षा की मुक्ति और यह आन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय दोनों अलग विषय हैं । दोनों की चर्चा एकदूसरे से स्वतन्त्र रूप से करनी होंगी। पहला विषय कठिन है, दूसरा तो सरल है।
    
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  
 
'''शिक्षक''' : दोनों विषय एकदूसरे से सम्बन्धित ही हैं, यह मैं जब उसकी कल्पना आपके समक्ष स्पष्ट करूँगा तब आपके ध्यान में आयेगा। अभी तो मैं आगामी बैठक निश्चित करके आपको सूचित करूंगा। तब तक के लिये आज्ञा दीजिये।  
    
==References==
 
==References==
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
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<references />धार्मिक शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
[[Category:भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा]]
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[[Category:धार्मिक शिक्षा ग्रंथमाला 5: वैश्विक संकटों का निवारण धार्मिक शिक्षा]]
 
[[Category:Education Series]]
 
[[Category:Education Series]]
[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
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[[Category:Dharmik Shiksha Granthmala(धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला)]]

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