'द प्रिजन' का सारांश

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अध्याय २०

दुनिया में नये विश्व की रचना के नाम पर गोल मेज (Round table) नाम के गोपनीय समुदाय ने अपना उद्देश्य निश्चित किया है कि विश्व व्यवस्था हेतु -

(१) केन्द्र संचालित विश्व सरकार हो ।

(२) विश्व सरकार की अपनी मुद्रा हो जिसे सारा संसार स्वीकार करे।

(३) केन्द्रीय विश्व सरकार की अपनी सेना हो जिसका सारे संसार पर नियंत्रण हो।

(४) केन्द्र सरकार के द्वारा ही शिक्षानीति, अर्थनीति, सांस्कृतिक आध्यात्मिक और धार्मिक नीतियों का निर्धारण हो। गोल मेज (Round Table) समुदाय की स्थापना

सैसिल रहोड्स के द्वारा की गई थी। सैसिल रोड्स वह व्यक्ति था जिसने युक्तिपूर्वक दक्षिण अफ्रीका के हीरे और सोने के भंडार पर कब्जा कर लिया। उस समय सैसिल रोड्स (Cecil Rohodes) के नाम पर दक्षिण-आफ्रीका के उस क्षेत्र को रोडेशिया नाम दिया गया था, जिसे आज जिम्बाब्वे कहते हैं। रोड्स ने उस समय डी. बीयर्स कन्सोलिडेटेड माइन्स एण्ड कन्सोलीडेटेड गोल्ड फील्ड्स के नाम से व्यापारिक संस्थान कायम किया था। अपनी युक्ति से 'रहोड्स' केप कालोनी का प्राइम मिनिस्टर तथा १८९० में ब्रिटेन में पार्लियामेंट का मेम्बर भी हो गया था। उस समय रहोड्स की आमदनी दस लाख डालर प्रतिवर्ष होने लगी थी। रोड्स' ने अपनी आमदनी का अधिकांश भाग गोल मेज समुदाय के उद्देश्यों को प्रभावी बनाने में खर्च किया। उसने दुनिया के विभिन्न देशों से तेजस्वी नौजवानों को पर्याप्त छात्रवृति देकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु आकर्षित किया था, ताकि गोल मेज समुदाय की विचारधारा को इन प्रशिक्षित व्यक्तियों के द्वारा संसार में फैलाया जा सके।

गोल मेज समुदाय में सैसिल रोड्स के साथ रौथचाइल्ड कारपोरेशन, कारनेगी यूनाइटेड किंगडम ट्रस्ट, रॉकफेलर फाउंडेशन, फोर्ड फाउंडेशन, जे. पी. मार्गन, हिटनी परिवार, लेजार्ड ब्रदर्स आदि इसके सदस्य बन गये थे। यू.एस.ए. में येल यूनिवर्सिटी की स्कल एंड बोन्स सोसायटी (Scul and bones Society) गोपनीय ढंग से गोल मेज समुदाय के लिये ही काम करती थी। १८९९ से १९०२ के मध्य दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध की व्यूह रचना भी रौथचाइल्ड द्वारा ही बनायी गयी थी। इस युद्ध का उद्देश्य दक्षिण अफ्रीका की प्राकृतिक सम्पदा पर अधिकार जमाना था । प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध की योजनायें भी राउन्ड टेबिल समुदाय के द्वारा ही बनायी गयी थी। इस समुदाय के औद्योगिक घरानों ने युद्ध करने वाले दोनों पक्षों को पूरी आर्थिक मदद पहुँचाई, हथियार तथा युद्ध के अन्य खर्चों के लिए आर्थिक मदद देते समय कहा जाता था कि अभी जितना चाहे उतना धन ले लो, बाद में लौटा देना।

दुनिया को धोखे में रखने के लिये इस धनी समुदाय ने ३० मई १९१९ को होटल मैजेस्टिक पैरिस में 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' के नाम से एक 'वैश्विक नाटक' किया। इस नाटक के द्वारा शान्ति के नाम पर वैश्विक स्तर पर व्यापक संगठन बनाये गये । ये संगठन ऊपर से देखने में तो लोक हितकारी जैसे लगते हैं परन्तु इन संगठनों के माध्यम से गोलमेज समुदाय दुनिया पर अपनी सत्ता जमाने के स्वप्न देखता रहता है। शान्ति स्थापना के नाम पर बनाये गये संगठन - विश्व बैंक, यूनाइटेड नेशंस, एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट कमीशन आदि तथा एन.जी.ओ. के नाम से बनी संस्थाओं पर अरबों डालर खर्च करके, मानव समाज में पाये जाने वाले विरोधाभासों को बढ़ाने तथा सरकार परस्ती बढ़ाकर आम आदमी के कर्तृत्व आधारित अभिक्रमण को अर्थ, शिक्षा, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म. राजनीति आदि क्षेत्रों में विनष्ट करने का कार्य कर रहे हैं।

गोलमेज समुदाय में भागीदार सभी व्यक्ति इसके असली मकसद को नहीं समझ पाते हैं। अधिकांश व्यक्ति तो 'वैसिली पीस कान्फ्रेंस' में जो न्यू वर्ल्ड आर्डर के विषय में शान्ति, सुरक्षा तथा समृद्दि की घोषणायें हुई थीं, उन्हीं से प्रभावित होकर अपना सहयोग दे रहे हैं । कुछ ही विशिष्ट व्यक्ति हैं, जो असली उद्देश्य को जानते हैं। ये व्यक्ति अन्तरंग समिति के सदस्य होते हैं।

कुछ सज्जन और ईमानदार लोग जो अन्तरंग समिति में ले लिये गये थे जब उनको असली मकसद का पता चला __ तो उन्होंने अपने को इस समुदाय से अलग कर लिया।

उदाहरण के लिये एक मि. एडमिरल चेस्टर वार्ड जो यूनाइटेड स्टेट्स में एक प्रसिद्ध जज तथा एडवोकेट जनरल ऑफ नेवी थे, उनको भी अन्तरंग समिति में शामिल किया गया था। अन्तरंग समिति में जाकर जब उनको गोलमेज समुदाय के असली मकसद का पता चला तो उन्होंने षडयंत्र से अपने को अलग कर लिया।

John. J. Niccloy जो कि यू.एन. का एक विशिष्ट अधिकारी था, उसने बताया कि यू.एन. की सभी कार्यवाहियों का निर्देशन काउंसिल ऑन फारेन रिलेशन्स (C.ER.) के द्वारा होता है । उन्होंने कहा 'जब कभी यू.एन. से सम्बन्धित देशों के लिये सरकारी उच्चपद पर किसी प्रमुख व्यक्ति की नियुक्ति की आवश्यकता होती है, तो यू.एन. के द्वारा उसकी सूचना तुरन्त न्यूयोर्क में स्थित C.ER. के प्रधान कार्यालय Harold Prat House,58 East, 68th Street को देनी होती है। वहीं उसका निर्णय होकर कार्यवाही आगे बढ़ाई जती है। इस प्रकार से C.ER. का दखल विभिन्न देशों में राष्ट्राध्यक्षों की नियुक्ति में होता रहता है। (John Birch Society), अमेरिका के संस्थापक (Robert welch) ने १९७० में यूनाइटेड नेशंस के विषय में अपनी राय व्यक्त करते हुये कहा था -

"The United Nations' hopes and plans - To use population controls, controls over scientific and technological developments, control over arms and military strength of individual nations, control over education, control over health and all the control it can gradually establish under all the different excuses for International Jurisdiction that it can device. These varigated separate controls are to become components of the gradually materialising total control that it expects by pretense, deception, persuation, beguilement and falsehoods, while the enforcement of such controls by brutal force and terror is also getting under way.

That is what the United Nations was always intended to do, that is what it was created to do, that is what it is now doing.

'The prison' page 149-150

'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने अपने अध्ययन व अनुभव से संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में लिखा है -

संयुक्त राष्ट्र संघ का संचालन करने वाले अन्तरंग समिति के षडयंत्रकारी अधिकारियों की आशायें तथा योजनायें :

संयुक्त राष्ट्र संघ की आशायें व योजनायें पूरी तरह वैश्विक नियंत्रण की है। इसके लिये साम, दाम, दण्ड, भेद सभी नीतियों को इस्तेमाल में लाया जाता है । जीवन के हर क्षेत्र में विश्व सरकार द्वारा केन्द्रीय नियंत्रण को स्वीकार कराने के लिए जनसंख्या नियंत्रण विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र का नियंत्रण, सभी राष्ट्रों के शस्त्रास्त्र तथा सैनिक शक्ति का नियंत्रण, शिक्षा नीति का नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाओं का नियंत्रण । कहने का तात्पर्य यह है कि गोलमेज समुदाय के विशिष्ट सदस्य, संयुक्त राष्ट्र संघ को माध्यम बनाकर धीरेधीरे विश्व स्तर पर ऐसी मानसिकता बनाना चाहते हैं, जिससे स्थानीय लोक अभिक्रम पर से जनमानस की आस्था उठ जाय तथा केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय अर्थतंत्र के लिए अनुकूल मानसिकता बनें।

'दि प्रिजन' पृष्ठ १४७-१५०

सोवियत यूनियन का तानाशाह स्टॉलिन भी राउण्ड टेबिल समुदाय का क्रियाशील सदस्य था । उसने १९४२ में 'मासिझम एण्ड नेशनल क्वेश्चन' के अन्तर्गत एंग्लो अमेरिकन, कम्यूनिस्ट, खेल के प्रति पूरी सहमति थी। उस समय इस समुदाय ने निर्णय लिया था कि विश्व के उन राष्ट्रों में जहाँ हमारी पहुँच है, फूट डालकर उनको विभाजित करने की नीति बनाई जाय । इस योजना से राष्ट्रीय आस्थाओं को झटका लगेगा तथा विश्व सरकार के लिये अनुकूलता पैदा होगी। इस नीति के अन्तर्गत चीन, कोरिया, वियतनाम, भारत, रूस, पैलेस्टाइन, अफ्रीका, ईराक आदि राष्ट्रों में विभाजिन की नीति बनाई गई थी।

वैश्विक षडयंत्र के संचालन सूत्र

१९३० में विन्सटन चर्चिल ने यूरोप के देशों को यूनाइटेड स्टेट ऑफ यूरोप बनाने की योजना के अन्तर्गत द्वितीय महायुद्ध की भूमिका बनाई थी। इस योजना को जीन फोस्टर, रॉकफैलर, डूलेस, निकोलस मुरे बटलर, कारनेगी आदि ने आर्थिक सहयोग दिया था। इन व्यक्तियों ने यूरोप में शान्ति स्थापना की घोषणा करके द्वितीय महायुद्ध की भूमिका बनाने में पूरा सहयोग किया था। १९४६-४७ में अपने इस कारनामें का सर्वे, काउसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस से कराया।

इस सर्वे रिपोर्ट के आधार पर विन्सटन चर्चिल ने निष्कर्ष निकाला कि वैश्विक स्तर पर केन्द्रीय नियंत्रण (विश्व सरकार) स्थापित करने के लिये दहरी प्रक्रिया अपनानी होगी। विश्व स्तर पर एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जिससे विश्व का प्रत्येक राष्ट्र अपने को असुरक्षित महसूस करे तथा पड़ौसी के खतरे से बचने के लिये मारक हथियारों का संग्रह करना प्रारम्भ करे । दसरा यह कि आम आदमी की मानसिक स्थिति ऐसी बना देनी चाहिये ताकि वह जीवन के हर क्षेत्र में सरकार आश्रित हो जाय।।

२६ जून १९४५ को सेन फ्रांसिस्को में पचास देशों के प्रतिनिधियों ने यूनाइटेड नेशंस (U.N.) चार्टर स्वीकार किया। यह संस्था गोलमेज समुदाय के काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस (C.E.R.) के अन्तर्गत बनायी गयी थी। यूनाइटेड नेशंस (U.N.) की योजना फरवरी १९४५ में क्रीमिया (crimia) के याल्टा (yalta) कान्फ्रेंस में विन्सटन चर्चिल और स्टॉलिन के मार्गदर्शन में प्रस्तुत हो चुकी थी। इस योजना को रुजवेल्ट, टूमेन, आइजनहोवर और कैनेडी का पूरा समर्थन था । यूनाइटेड नेशंस संस्थान ने विंसटन चर्चिल की विश्व सरकार बनाने की योजना को कार्यान्वित करने के लिए अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों का निर्माण किया । जैसे वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (W.H.O.) यू.एन. पॉपूलेशन फंड (U.N.P.E), इकोनोमिक डेवलपमेंट एण्ड एनवायरमेंट, यू.एन. एनवॉयरमेंट प्रोग्राम (U.N.E.P.) यू.एन. एजुकेशन साइंस एण्ड कल्चर आर्गेनाईजेशन (UNESCO). संस्थाओं की यह सूची बढ़ती ही जा रही है।

ये सभी संस्थाये इस उद्देश्य से बनायी जा रही थीं, ताकि जिन्दगी के हर क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित किया जा सके । लोक अभिक्रम को नष्ट करना इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य था और अब भी है। इन योजनाओं को आर्थिक सहयोग करने के लिए कारनेगी एण्डाउमेंट फॉर इन्टरनेशनल पीस' नाम की स्थाई संस्था बनायी गयी। मि. हिस (Hiss) की नियुक्ति इस संस्था के अध्यक्ष के रूप में जॉन फोस्टर डलस के द्वारा की गयी। मिस्टर हिस को जब यूनाइटेड नेशन्स की अन्दरूनी योजना का पता चला तो उसने इसका रहस्य उजागर करना शुरू कर दिया । हिस (Hiss) को इसकी सजा भुगतनी पड़ी, फलस्वरूप ४४ महीने की जेल काटनी पड़ी।

षड़यंत्र की प्रक्रिया

'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने गोल मेज समुदाय के सम्बन्ध में लिखा है - इस समुदाय ने उद्देश्य सिद्धि हेतु वैश्विक स्तर पर अनेक नामों से गोपनीय संस्थाएं बनायी हुई हैं । इन संस्थाओं के सम्मेलन एवं गोष्ठियां होती रहती हैं।

गोलमेज समुदाय की एक संस्था का नाम बिल्डरबर्ग (Bilderberg) है। इसकी एक बैठक १९९१ में बाडेनबाडेन (Baden-Baden-Germany) जर्मनी में हुई । इस बैठक में डेविड रॉकफेलर, यूनाइटेड स्टेट के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ तथा उद्योखगपति, बिल क्लिंटन (जो उस समय आर्कनसास का गर्वनर था, जो कि बाद में राष्ट्रपति हो गया था), जार्ज बश, कानई ब्लैक, बिल्डरबर्ग, जिओवानी ऐनैली, नीदरलैंड की रानी बिएस्ट्रीस (Beatris) स्पेन की रानी सोफिया, ज्होन स्मिथ (ब्रिटेन के प्रतिनिधि) और भी अनेक अन्तरंग समिति के व्यक्ति इस बैठक में उपस्थित थे। इस बैठक में इराक के विरुद्ध युद्ध की योजना का जार्ज बुश ने प्रस्ताव किया । संयुक्त राष्ट्र संघ की शान्ति सेना को आह्वान करने का निर्णय हुआ। लार्ड किसिंगर ने इराक पर हमले को ठीक ठहराया और कहा कि जार्ज बुश इराक से युद्ध छेड़ने की योग्यता रखता है, उनको सीधे संयुक्त राष्ट्र से बात करनी चाहिये।

बिल्डरबर्ग की अगली बैठक जून १९९४ में फिनलैंड में हुई। इस बैठक में १९९१ की बैठक के व्यक्तियों के अलावा मि. पीटर डी सुथरलैण्ड (Peter D. Sutherland) जो कि गैट (GATT) 'दि जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एण्ड ट्रैड' के डायरेक्टर थे, उपस्थित थे । इस बैठक में व्यवसाय के सभी प्रतिबंध समाप्त करके विश्व व्यवसाय को गोलमेज समुदाय के उद्देश्य के अनुसार वैश्विक आर्थिक नियंत्रण में लाना था। इस काम के लिये श्री सुथरलैंड उचित व्यक्ति थे। इस बैठक में नीदरलैण्ड के प्रधानमंत्री रुड लूबर्स, जे. मार्टिन टेलर, बर्कले बंक के प्रमुख प्रशासक, ब्रिटेन के टोनी ब्लेयर (लेबर पार्टी के) और कैन्थ क्लार्क शामिल थे। व्यवसाय के क्षेत्र में इस बैठक ने वैश्विक व्यवसाय के संसार के कुछ प्रमुख उद्योगपतियों को चुंगल में फंसाने की योजना बनाई, परिणाम स्वरूप केन्द्रीय नियंत्रण के पक्षधर उद्योगपतियों ने उद्योग के क्षेत्र में स्थानीय अभिक्रम पर एक निर्णायक आघात प्रारम्भ कर दिया।

जून १९९५ में बिल्डरबर्ग समुदाय की बैठक स्विट्जरलैण्ड के वर्गनस्टोक में तीन होटलों में अलगअलग हुई । ये बैठकें बहुत ही गोपनीय रखी गई थी। अब तक की बैठकों में जो व्यक्ति उपस्थित होते थे उनमें से अधिकांश अन्दर की योजनाओं से अनभिज्ञ थे। १९९५ की इन बैठकों में संसार भर के वे व्यक्ति शामिल थे जो लोक कल्याण की छाया तथा विश्व शान्ति व विकास के उद्घोष की गूंज का भ्रम पैदा करके विश्व-तानाशाही के पक्षधर थे। 'दि प्रिजन' ग्रंथ के लेखक स्विट्झरलैण्ड की

इस बैठक की जानकारी हासिल करने के लिये वर्गनस्टॉक तक पहुंच तो गये, लेकिन वहाँ जाकर उन्होंने जो देखा उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार है -

स्विट्जरलैण्ड में जब बिल्डरबर्ग की बैठक हो रही थी तो मैं वहां छुट्टियाँ बिताने गया था। 'स्पोटलाइट' समान पत्र के द्वारा मुझे इस बैठक का समाचार मिला था । बैठक प्रारम्भ होने के कुछ दिन पहले मैं बर्गेनस्टॉक पहुँचा । सब कुछ देखकर फिर जिस दिन बैठक होने वाली थी पुनः वर्गनस्टॉक पहुँचा । वहाँ जाकर क्या देखता हूँ कि जिन होटलों में बैठकें हो रही थी, उनके रास्तों पर पुलिस का बड़ा सख्त पहरा था। सभी सड़कें बन्द कर दी गयी थीं। स्विट्जरलैंड की पुलिस तथा सेना के सिपाहियों से पूरी घेराबंदी की गई थी । मैंने एक पुलिस वाले से पूछा कि क्या मामला है ? उसने धीरे से इतना ही कहा 'बहुत गोपनीय है, बहत गोपनीय है।' इस मीटिंग में क्या हआ इसका पता नहीं चल पाया । मैं सोचता हूँ कि जरूर इस बैठक में विश्व में एकछत्र आर्थिक साम्राज्यवाद की स्थापना के लिए व्यूह रचना और रणनीति बनाई जा रही होगी।" 'ध प्रिजन' पृष्ठ १४२

इस प्रकार की गोपनीय बैठकों में वैश्विक स्तर पर कार्य विधि का निर्णय किया जाता है । इण्टरनेशनल मोनेटरी फंड (IMF), आर्गेनाइजेशन फार इण्टरनेशनल इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डवलपमेंट, काउंसिल ऑन फारेन रिलेशंस (CFR), वर्ल्ड बैंक, जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (Gatt), वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) यूनाइटेड नेशंस (U.N.) आदि जितनी भी संस्थायें है. इनका संचालन सूत्र गोलमेज समुदाय विभिन्न नामों से करता है। इन संस्थाओं का ऊपरी ढाँचा विश्व शान्ति तता पिछड़ों के विकास का दिखाया जाता है, परन्तु इनका असली मकसद दीर्घकालीन केन्द्रीय नियंत्रण होता है।

उदाहरण के लिये वर्ल्ड बैंक का उद्देश्य यह है कि विकासशील देशों की जनता को पराश्रित बनाकर स्थाई रूप से गरीबी की खाई में ढकेल दिया जाय । विश्व बैंक विभिन्न देशों में बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं के लिए कर्ज देती है। ये योजनायें वास्तव में आम जनता से जमीन छीनकर उनको बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाईयों के आश्रित बनाने की होती हैं।

इस प्रकार स्वावलम्बी जीवन दर्शन को नष्ट किया जाता है। भारत में मल्टीनेशनल कम्पनियों के दबाव में आकर सरकार खेती की जमीनों का अधिग्रहण करके छोटे किसानों को बेरोजगार तथा पराश्रित बना रही है। यह वैश्विक अर्थनीति के प्रभाव से हो रहा है । IMF तथा विश्व बैंक का मुख्य काम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए भूमिका तैयार करने का है। ये दोनों अर्थ संस्थाएँ जिन योजनाओं के लिये कर्ज देती हैं उन योजनाओं से स्थानीय जनता का कुछ भी हित नहीं सधता है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्य की सुविधा के लिए बिजली तथा सड़क निर्माण हेतु सहायता दी जाती है।

विकासशील और अर्द्धविकसित तथा गरीब देशों को IMF तथा विश्व बैंक से जो कर्ज या सहायता मिलती है उसमें राजीनतिक नेता तो भ्रष्ट होते ही हैं, तथा बड़े बाँध, विदेशी प्रभाव, विदेशी नशीले शीतल पेय, आयोडीन नमक, उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण, औषधियों के विषैले प्रभाव आदि के विरुद्ध जन आन्दोलन कराने में भी गोलमेज समुदाय की कोई न कोई संस्था परोक्ष रूप से सहायता देती रहती है। इतना नहीं, गोलमेज समुदाय के सदस्य धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक बिन्दु पर आतंक फैलाने वालों को हथियारों और धन से सहायता करते हैं तथा इनको दबाने वाली सरकारी शक्तियों को भी शस्त्रास्त्र बिक्री करती हैं।

'दि प्रिजन' के लेखक ने पृष्ठ २३५ पर लिखा है -

The International Monetary Fund (I.M.E.) is there to intervene, when poor countries in Africa, Asia and the rest of the developing world get into Elite (Round table group) engineered financial trouble. The idea has been to encourage and bribe the politicians in these countries into relinquishing self-sufficiency in food and into opening their lands to the multinational food and chocolate giants. These countries began to export luxury cash crops to the rich nations and to use that money to pay for imported food from those same rich countries. Also the developing nations would export natural resources to the rich nations at knock-down prices and then buy-back (at inflated prices) the luxury products of the industrialised countries made with those natural resources. However, these luxury goods only go to the tiny, corrupt, political and economic clique in these developing countries. The majority of the population go hungry because the food growing land is occupied by the multinational corporation. The Elite policy was to submerge the poor countries in debt and take them over in the same way that had with the multinationals and the industrialised nations. When these governments find themselves in financial troubles and unable to meet their debt repayments they go to the IMF to restructure the repayments or offer more loans to pay the interest on the previous ones. But in return for imposing more debt the IMF insists that its (Elite) economic policies are followed. These involve cutting of food, health and education subsidies and the exporting of more resources and cash crops. The IMF tells all the developing countries to do this and thus create a glut on the world market for these commodities and the price collapses.

इस प्रकार से IMF की मदद विकासशील देशों को आर्थिक दृष्टि से कमजोर बनाने का परोक्ष षड़यंत्र करने में सक्रिय है।

आर्थिक नीतियों के साथ मुक्त व्यवसाय (free trade) भी कमजोर राष्ट्रों के लिये खतरे की घंटी है । मुक्त व्यापार का नियंत्रण वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (W.T.O) के द्वारा होता है । इसका कार्यालय स्विट्जरलैंड में है । GAAT (जनरल एग्रीमेन्ट ऑन एंड टैरिफ) के माध्यम से जो मुक्त व्यवसाय चल रहा है इसमें शक्तिशाली देशों को कमजोर देशों का शोषण करने की छूट मिल जाती है।

The consequences of this can now be seen by all but the most dedicated idiots. The media promotes free trade as a good thing and protection as bad. They have bought the line sold to them by economists, politicians and university lecturers and they sell it to the public.

Free trade is the freedom of the strong to exploit the weak. It is the means through which multinationals subsidised by their governments via the overseas aid budgets and other hidden channels, operate cartelism against the interest of the general population. It is the freedom to create dependency on a system which only the few control and to use that dependency to manipulate at will, the freedom to move production from high wage industrialist countries to the street shops of the third world, the freedom to steal their food growing land and to destory the small aggrarion industries. In doing this the Elite create anger, despair and division; the perfect combination for manipulation.

राउण्ड टेबिल समुदाय ने विश्व सरकार का केन्द्रीय नियंत्रण करने के लिये कृषि भूमि तथा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में हर स्तर पर योजना प्रारम्भ कराई है उसने तो स्थानीय व्यवस्था की पूरी तरह कमर ही तोड़ डाली है।

कृषि उत्पादन में हर अनाज, फल, सब्जी के स्वाभाविक बीज संरक्षण की प्रक्रिया को समाप्त कर दीया है । फसलों के प्राकृतिक बीजों को नष्ट करके नपुंसक बीजों का प्रचलन प्रारम्भ कराया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हर फसल का बीज किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के एकाधिकार में चला गया है। कम्पनी से मिला हाइब्रीड बीज कृषक को हर बार नया लेना होगा, उसके खेत में जो फसल पैदा हुई है उसका फल बीज नहीं हो सकता, क्योंकि वह नपुंसक फल होता है। फसलों के बीज उत्पन्न करने के लिये बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने एकाधिकार प्राप्त कर लिया है। कृषि क्षेत्र के नियंत्रण का अधिकार पाँच बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को है जिनमें एंग्लो डच जाइंट यूनिलिवर कम्पनी बिल्डरवर्ग समुदाय की है । दूसरी कम्पनी नैस्ले कॉरपोरेशन स्विट्जरलैण्ड की । इस प्रकार से कृषि क्षेत्र में बीज, खाद, पानी और ट्रेक्टर को केन्द्रीय नियंत्रण का माध्यम बना दिया

References

भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे