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इस आर्थिक साम्राज्य की प्रक्रिया ने वैश्विक स्तर पर आम आदमी तथा विकासशील व पिछड़े देशों को परावलम्बी बनाकर गरीबी और भुखमरी के गड्ढेे  में झोंक दिया है। सारे संसार में धन कुछ ही लोगों की तिजोरी में बंद हो रहा है। साथ ही भ्रष्टाचार तथा अनैतिक तरीकों से धन कमाने को बढ़ावा मिल रहा है ।
 
इस आर्थिक साम्राज्य की प्रक्रिया ने वैश्विक स्तर पर आम आदमी तथा विकासशील व पिछड़े देशों को परावलम्बी बनाकर गरीबी और भुखमरी के गड्ढेे  में झोंक दिया है। सारे संसार में धन कुछ ही लोगों की तिजोरी में बंद हो रहा है। साथ ही भ्रष्टाचार तथा अनैतिक तरीकों से धन कमाने को बढ़ावा मिल रहा है ।
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विश्व स्तर पर राउंड टेबिल समुदाय ने अपनी विशिष्ट सेना का संगठन यूनाइटेड नेशंस के अन्तर्गत करना प्रारम्भ कर दिया है । शान्ति सेना के रूप में NATO के साथ विश्व सेना का रूप विकसित हो रहा है । गल्फ युद्ध में १९९१ में यूनाइटेड नेशंस के झंडे के साथ NATO देशों के सहयोग से शांति सेना का प्रारम्भ हो चुका है।  यूनाइटेड नेशन के  महामंत्री डॉ. बुतरस गाली (Dr. Boutrus Gali) ने १९९१
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विश्व स्तर पर राउंड टेबिल समुदाय ने अपनी विशिष्ट सेना का संगठन यूनाइटेड नेशंस के अन्तर्गत करना प्रारम्भ कर दिया है । शान्ति सेना के रूप में NATO के साथ विश्व सेना का रूप विकसित हो रहा है । गल्फ युद्ध में १९९१ में यूनाइटेड नेशंस के झंडे के साथ NATO देशों के सहयोग से शांति सेना का प्रारम्भ हो चुका है।  यूनाइटेड नेशन के  महामंत्री डॉ. बुतरस गाली (Dr. Boutrus Gali) ने १९९१ में बिल्डरवर्ग समुदाय की बैठक में हैनरी किंसिगर के शब्दों को दुहराते हुए कहा ता कि यूनाइटेड नेशंस की अपनी एक सेना होनी चाहिए जिसका संचालन सीधा यू.एन. के द्वारा हो। श्री दत्त रामफलजी ने भी इसका समर्थन किया था । वर्तमान में यूनाइटेड नेशन के महामंत्री बान की मून हैं।
 
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में बिल्डरवर्ग समुदाय की बैठक में हैनरी किंसिगर के शब्दों को दुहराते हुए कहा ता कि यूनाइटेड नेशंस की अपनी एक सेना होनी चाहिए जिसका संचालन सीधा यू.एन. के द्वारा हो। श्री दत्त रामफलजी ने भी इसका समर्थन किया था । वर्तमान में यूनाइटेड नेशन के महामंत्री बान की मून हैं।
      
यूनाइटेड नेशंस की इस सेना के कार्य के विषय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सेना विश्व शांति स्थापित करने में सभी राष्ट्रों का सहयोग करेगी। साथ ही विश्व सरकार की नीतियों, केन्द्रीय बैंक, केन्द्रीय मुद्रा और केन्द्रीय शासन सत्ता आदि का विरोध करने वाले राष्ट्रों को नियंत्रण में रखकर सहयोग करने के लिये तैयार करेगी ताकि सेना के खर्चों में उनकी हिस्सेदारी भी रहे । इसका रिहर्सल गल्फ युद्ध में हो चुका है।
 
यूनाइटेड नेशंस की इस सेना के कार्य के विषय में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह सेना विश्व शांति स्थापित करने में सभी राष्ट्रों का सहयोग करेगी। साथ ही विश्व सरकार की नीतियों, केन्द्रीय बैंक, केन्द्रीय मुद्रा और केन्द्रीय शासन सत्ता आदि का विरोध करने वाले राष्ट्रों को नियंत्रण में रखकर सहयोग करने के लिये तैयार करेगी ताकि सेना के खर्चों में उनकी हिस्सेदारी भी रहे । इसका रिहर्सल गल्फ युद्ध में हो चुका है।
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विश्व सेना की मदद के लिए फैडरल एमरजेन्सी मैनेजमेंट एजेन्सी (FEMA) की रचना की गयी है। ट्राइलेटरल कमीशन के प्रथम श्रेणी के व्यक्ति प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने इसकी घोषणा करके यूनाइटेड स्टेट्स के लिये सुरक्षा का शस्त्र दिया।
 
विश्व सेना की मदद के लिए फैडरल एमरजेन्सी मैनेजमेंट एजेन्सी (FEMA) की रचना की गयी है। ट्राइलेटरल कमीशन के प्रथम श्रेणी के व्यक्ति प्रेसीडेंट जिमी कार्टर ने इसकी घोषणा करके यूनाइटेड स्टेट्स के लिये सुरक्षा का शस्त्र दिया।
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५ दिसेम्बर १९९४ के 'The Spotlight' के अनुसार UN-NATO संयुक्त तत्वावधान में 'एलाइट रेपिड रिएक्शन कॉर्प' (ARRC) का निर्माण करके चार बहुराष्ट्रीय डिवीजन संगठित किये गये, इसमें ८०,००० (अस्सी हजार) ट्रॅप्स भर्ती किये गये । इस टूप्स के कमांडर इन चीफ 'सर जेरीमि मैकेन्जी' (Sir Jeremy Mackenz (जो कि ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे) को नियुक्त किया गया । इस प्रकार राउड टेबिल समुदाय ने विश्व समुदाय की बुनियाद डाल दी
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५ दिसेम्बर १९९४ के 'The Spotlight' के अनुसार UN-NATO संयुक्त तत्वावधान में 'एलाइट रेपिड रिएक्शन कॉर्प' (ARRC) का निर्माण करके चार बहुराष्ट्रीय डिवीजन संगठित किये गये, इसमें ८०,००० (अस्सी हजार) ट्रूप्स भर्ती किये गये । इस ट्रूप्स के कमांडर इन चीफ 'सर जेरीमि मैकेन्जी' (Sir Jeremy Mackenz (जो कि ब्रिटिश सेना में लेफ्टिनेंट जनरल थे) को नियुक्त किया गया । इस प्रकार राउड टेबिल समुदाय ने विश्व समुदाय की बुनियाद डाल दी है।
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राउन्ड टेबिल समुदाय जो अपनी गिनती विश्व के विशिष्ट व्यक्तियों में करता है. विभिन्न नामों से जाना जाता है। विशिष्ट समुदाय ने विश्व पर अपना नियंत्रण रखने के लिए विश्व बैंक, विश्व कोष, विश्व मुद्रा, विश्व सेना और विश्व सरकार की स्थापना करने का उद्देश्य बनाया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये विश्व स्तर पर अधिकार आधारित, परस्पर स्पर्धा से सिंचित, भय और आतंक के असुरक्षित वातावरण में, भोग प्रधान जीवन दर्शन की छाया में, स्वार्थ मूलक, फूट डालो राज करो की नीति को अपना कर अनेक प्रकार के प्रदूषणों व विषमताओं को जन्म दिया है। इनकी यह नीति इसलिये प्रभावी हो रही है क्योंकि इस नीति का बाहरी स्वरूप सेवा और विकास की मीठी चाशनी में पका हुआ है । इस नीति ने आम आदमी के आत्म विश्वास और स्वावलम्बन पर निर्णायक आक्रमण किया हैं । संवेदनशील बुद्धिमानों को सेवा और निर्माण के शब्दाडम्बर में फँसाकर गुमराह किया है। धार्मिक गुरुओं को वैभवशाली चमक-दमक में फंसाकर आत्मविस्तृत कर दिया है। राजनैताओं को तात्कालिक राज्याधिकार का आकर्षण दिखाकर, आम जनता को जाति, धर्म, आडम्बरों आदि के जाल में फंसाकर फूट डालने में सहयोगी बनाया है। अभिनेताओं, खेल-खिलाड़ियों, विश्व सुन्दरियों आदि को संस्कृति व मनोरंजन का लेबिल लगाकर विलासिता के उत्पादों का विज्ञापन कराकर कंज्यूमरिज्म और बाजारवाद को प्रतिष्ठित किया जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में फास्ट फूड, डिब्बा बंद खाद्य, कोकाकोला आदि पेय पदार्थों के प्रचलन तथा रासायनिक खाद व रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से नये नये रोग पैदा करके उनके निवारण हेतु विषैली औषधियों का प्रचार हो रहा है । कृषि क्षेत्र में बीज, खाद, पानी आदि पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार को बढ़ाकर किसान और खेती को परावलम्बी बनाया है। मारक हथियारों के बदले नशीले पदार्थों के व्यवसाय पर तो यूनाइटेड नेशंस का पूरा ढाँचा खड़ा है।
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राउन्ड टेबिल समुदाय जो अपनी गिनती विश्व के विशिष्ट व्यक्तियों में करता है, विभिन्न नामों से जाना जाता है। विशिष्ट समुदाय ने विश्व पर अपना नियंत्रण रखने के लिए विश्व बैंक, विश्व कोष, विश्व मुद्रा, विश्व सेना और विश्व सरकार की स्थापना करने का उद्देश्य बनाया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये विश्व स्तर पर अधिकार आधारित, परस्पर स्पर्धा से सिंचित, भय और आतंक के असुरक्षित वातावरण में, भोग प्रधान जीवन दर्शन की छाया में, स्वार्थ मूलक, फूट डालो राज करो की नीति को अपना कर अनेक प्रकार के प्रदूषणों व विषमताओं को जन्म दिया है। इनकी यह नीति इसलिये प्रभावी हो रही है क्योंकि इस नीति का बाहरी स्वरूप सेवा और विकास की मीठी चाशनी में पका हुआ है । इस नीति ने आम आदमी के आत्म विश्वास और स्वावलम्बन पर निर्णायक आक्रमण किया हैं । संवेदनशील बुद्धिमानों को सेवा और निर्माण के शब्दाडम्बर में फँसाकर गुमराह किया है। धार्मिक गुरुओं को वैभवशाली चमक-दमक में फंसाकर आत्मविस्तृत कर दिया है। राजनैताओं को तात्कालिक राज्याधिकार का आकर्षण दिखाकर, आम जनता को जाति, धर्म, आडम्बरों आदि के जाल में फंसाकर फूट डालने में सहयोगी बनाया है। अभिनेताओं, खेल-खिलाड़ियों, विश्व सुन्दरियों आदि को संस्कृति व मनोरंजन का लेबिल लगाकर विलासिता के उत्पादों का विज्ञापन कराकर कंज्यूमरिज्म और बाजारवाद को प्रतिष्ठित किया जाता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में फास्ट फूड, डिब्बा बंद खाद्य, कोकाकोला आदि पेय पदार्थों के प्रचलन तथा रासायनिक खाद व रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से नये नये रोग पैदा करके उनके निवारण हेतु विषैली औषधियों का प्रचार हो रहा है । कृषि क्षेत्र में बीज, खाद, पानी आदि पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एकाधिकार को बढ़ाकर किसान और खेती को परावलम्बी बनाया है। मारक हथियारों के बदले नशीले पदार्थों के व्यवसाय पर तो यूनाइटेड नेशंस का पूरा ढाँचा खड़ा है।
    
राउन्ड टेबिल समुदाय के विशिष्ट व्यक्तियों का व्यवसाय शस्त्र का निर्माण तथा खनिज तेलों की बिक्री का है। आतंकवादी तथा अपराध जगत के डॉन अन्दरूनी तौर पर इनसे जुड़े हुए हैं। इसलिये स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुष मानव समाज के लिये कलंक ही सिद्ध हो रहे हैं, इन भटके हुये जीवों को सही रास्ता दिखाने की जरूरत है।
 
राउन्ड टेबिल समुदाय के विशिष्ट व्यक्तियों का व्यवसाय शस्त्र का निर्माण तथा खनिज तेलों की बिक्री का है। आतंकवादी तथा अपराध जगत के डॉन अन्दरूनी तौर पर इनसे जुड़े हुए हैं। इसलिये स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुष मानव समाज के लिये कलंक ही सिद्ध हो रहे हैं, इन भटके हुये जीवों को सही रास्ता दिखाने की जरूरत है।
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==== षड़यंत्र का शिकार भारत ====
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== षड़यंत्र का शिकार भारत ==
 
भारत में कर्तव्य आधारित, पारस्परिकता से सिंचित, निर्भय, निष्पक्ष, निर्लोभता के वातावरण में संयमित जीवन दर्शन की छाया में, परमार्थ मूलक, सहकारी साझेदारी की विश्व बन्धुत्व स्थापित करने की नीति का व्यवहार मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रगति कर रहा था । इस समृद्धशाली जीवन दर्शन को गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों ने विकृत करने का षडयंत्र रचा है।
 
भारत में कर्तव्य आधारित, पारस्परिकता से सिंचित, निर्भय, निष्पक्ष, निर्लोभता के वातावरण में संयमित जीवन दर्शन की छाया में, परमार्थ मूलक, सहकारी साझेदारी की विश्व बन्धुत्व स्थापित करने की नीति का व्यवहार मानव जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में प्रगति कर रहा था । इस समृद्धशाली जीवन दर्शन को गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों ने विकृत करने का षडयंत्र रचा है।
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राउन्ड टेबिल समुदाय के लिये भारतीय जीवन दर्शन की बुनियाद चुनौती बनी हुई थी। इस समृद्ध जीवन दर्शन की बुनियाद में सहज, स्वाभाविक, परस्परता, स्वयंसेवा, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सहकारी साझेदारी की कर्तृत्व आधारित व्यवस्था प्रगति कर रही थी। भारत की प्रसिद्धि सोने की चिड़िया के रूप में होती रही थी, इसलिए अनेक लुटेरे भारत में आये । भारत कभी किसी देश को लूटने नहीं गया । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करके सारी दुनिया में अपने राजनीतिक उपनिवेशों के रूप में साम्राज्य स्थापित किया था। एक समय ऐसा आया कि जब राजनीतिक उपनिवेश रखना कठिन हो गया था, तो योरोप और अमेरिका के कुछ विशिष्ट धनी व्यक्तियों ने राजनीतिक उपनिवेश समाप्त करके आर्थिक साम्राज्य के द्वारा विश्व सरकार की योजना बनाई। आर्थिक साम्राज्यवादियों की निगाहें समूचे पूर्व में भारत की स्थिति को रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्व का मानती रही थी। इसलिए ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी राजसत्ता समेटने के साथ-साथ भारत को अनेक राजनीति हिस्सों में विभाजित करके भारत को कमजोर करने का षड़यंत्र रचाया । सत्ता हस्तान्तरण के साथ-साथ विभाजित भारत को इंडिया बना दिया । स्वतंत्र भारत में नागरिकों के मध्य देश के पुनर्निर्माण का अभिक्रम जाग रहा था, इस स्वाभाविक लोक अभिक्रम को समाप्त करने के लिये इंडियन गवर्नवमेंट को विकास
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राउन्ड टेबिल समुदाय के लिये भारतीय जीवन दर्शन की बुनियाद चुनौती बनी हुई थी। इस समृद्ध जीवन दर्शन की बुनियाद में सहज, स्वाभाविक, परस्परता, स्वयंसेवा, आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सहकारी साझेदारी की कर्तृत्व आधारित व्यवस्था प्रगति कर रही थी। भारत की प्रसिद्धि सोने की चिड़िया के रूप में होती रही थी, इसलिए अनेक लुटेरे भारत में आये । भारत कभी किसी देश को लूटने नहीं गया । ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने फूट डालो और राज करो की नीति का अनुसरण करके सारी दुनिया में अपने राजनीतिक उपनिवेशों के रूप में साम्राज्य स्थापित किया था। एक समय ऐसा आया कि जब राजनीतिक उपनिवेश रखना कठिन हो गया था, तो योरोप और अमेरिका के कुछ विशिष्ट धनी व्यक्तियों ने राजनीतिक उपनिवेश समाप्त करके आर्थिक साम्राज्य के द्वारा विश्व सरकार की योजना बनाई। आर्थिक साम्राज्यवादियों की निगाहें समूचे पूर्व में भारत की स्थिति को रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्व का मानती रही थी। इसलिए ब्रिटिश साम्राज्य ने अपनी राजसत्ता समेटने के साथ-साथ भारत को अनेक राजनीति हिस्सों में विभाजित करके भारत को कमजोर करने का षड़यंत्र रचाया । सत्ता हस्तान्तरण के साथ-साथ विभाजित भारत को इंडिया बना दिया । स्वतंत्र भारत में नागरिकों के मध्य देश के पुनर्निर्माण का अभिक्रम जाग रहा था, इस स्वाभाविक लोक अभिक्रम को समाप्त करने के लिये इंडियन गवर्नवमेंट को विकास और निर्माण का लालच देकर १९४८ में ही ट्मैन के द्वारा चार सूत्री कृषि मिशन की स्थापना कर दी गई। कृषि मिशन के अन्तर्गत अमरीकी कृषि विशेषज्ञ अलबर्ट मायर द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण के नाम पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पायलैट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया। इस योजना के लिये फोर्ड फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष पाल हाफमैनने भारत में अमरीकि राजदूत चेस्टर बोवेल्स की देखरेख में दो अरब अमरीकी डालर खर्च करने का लक्ष्य बनाया । इसके बाद फोर्ड फाउंडेशन की मदद से २ अक्टूबर १९५२ को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा भारत सेवक समाज की स्थापना की गयी। स्वतंत्रता के प्रथम उत्साह में राष्ट्र निर्माण हेतु जो लोक अभिक्रम जग रहा था, फोर्ड फाउडेंशन के धन ने उसकी भ्रूण हत्या ही कर दी, साम्राज्यवादी विदेशी ताकतें यही चाहती थीं।
 
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और निर्माण का लालच देकर १९४८ में ही टूमैन के द्वारा चार सूत्री कृषि मिशन की स्थापना कर दी गई। कृषि मिशन के अन्तर्गत अमरीकी कृषि विशेषज्ञ अलबर्ट मायर द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण के नाम पर उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में पायलट प्रोजेक्ट प्रारम्भ किया। इस योजना के लिये फोर्ड फाउंडेशन के तत्कालीन अध्यक्ष पाल हाफमैनने भारत में अमरीकि राजदूत चेस्टर बोवेल्स की देखरेख में दो अरब अमरीकी डालर खर्च करने का लक्ष्य बनाया । इसके बाद फोर्ड फाउंडेशन की मदद से २ अक्टूबर १९५२ को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा भारत सेवक समाज की स्थापना की गयी। स्वतंत्रता के प्रथम उत्साह में राष्ट्र निर्माण हेतु जो लोक अभिक्रम जग रहा था, फोर्ड फाउडेंशन के धन ने उसकी भ्रूण हत्या ही कर दी, साम्राज्यवादी विदेशी ताकतें यही चाहती थीं।
      
फोर्ड फाउंडेशन के अलावा अमरीकी तेल सम्राट रॉकफेलर फाउंडेशन, स्टील सम्राट कारनेगी फाउंडेशन आदि ने भारत को अपना निशाना बनाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को प्रदूषित करके आर्थिक साम्राज्यवाद को जनजीवन में प्रवेश करने का जाल बुनना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आन्तरिक कलह पैदा करने के लिये नागालैंड में माइकल स्कॉट के द्वारा बैपटिस्ट मिशन स्थापित किया गया । १९६४ में नागालैंड पीस मिशन की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से CIAने ऑपरेशन ब्रह्मपुत्र प्रारम्भ किया । परिणाम स्वरूप स्वतंत्र नागालैण्ड की माँग पैदा हो गयी। इतना ही नहीं सीआईए इटली के मार्फत भारत में सक्रिय थी। बड़ी कुशलता से भारत के प्रधानमंत्री के घर में स्थाई रूप से एक सी.आई.ए. के एजेन्ट को स्थापित कर दिया गया।
 
फोर्ड फाउंडेशन के अलावा अमरीकी तेल सम्राट रॉकफेलर फाउंडेशन, स्टील सम्राट कारनेगी फाउंडेशन आदि ने भारत को अपना निशाना बनाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत भारत की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं को प्रदूषित करके आर्थिक साम्राज्यवाद को जनजीवन में प्रवेश करने का जाल बुनना प्रारम्भ कर दिया । भारत में आन्तरिक कलह पैदा करने के लिये नागालैंड में माइकल स्कॉट के द्वारा बैपटिस्ट मिशन स्थापित किया गया । १९६४ में नागालैंड पीस मिशन की स्थापना हुई। इन दोनों संस्थाओं के माध्यम से CIAने ऑपरेशन ब्रह्मपुत्र प्रारम्भ किया । परिणाम स्वरूप स्वतंत्र नागालैण्ड की माँग पैदा हो गयी। इतना ही नहीं सीआईए इटली के मार्फत भारत में सक्रिय थी। बड़ी कुशलता से भारत के प्रधानमंत्री के घर में स्थाई रूप से एक सी.आई.ए. के एजेन्ट को स्थापित कर दिया गया।
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भारत में विभिन्न प्रकार के मतभेदों तथा विरोधाभासों को बढ़ाने के लिये अवार्ड, मर्यादा, बिल्ड, इंडियन सोशियल इंस्टीट्यूट, लोकायन आदि को इस्तेमाल करके रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अनेक संस्थाओं को आर्थिक मदद ने लोक अभिक्रमण को समाप्त करके सरकार तथा विदेशी धन का आश्रित बनाया है। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) में लगे भावनाशील व्यक्तियों को भौतिक सुविधायें देकर पुरुषार्थहीन और आत्मविश्वासहीन बना दिया है।  
 
भारत में विभिन्न प्रकार के मतभेदों तथा विरोधाभासों को बढ़ाने के लिये अवार्ड, मर्यादा, बिल्ड, इंडियन सोशियल इंस्टीट्यूट, लोकायन आदि को इस्तेमाल करके रॉकफेलर फाउंडेशन जैसी अनेक संस्थाओं को आर्थिक मदद ने लोक अभिक्रमण को समाप्त करके सरकार तथा विदेशी धन का आश्रित बनाया है। इसके साथ ही स्वयंसेवी संस्थाओं (NGO) में लगे भावनाशील व्यक्तियों को भौतिक सुविधायें देकर पुरुषार्थहीन और आत्मविश्वासहीन बना दिया है।  
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फोर्ड फाउंडेशन की मदद से जो सामुदायिक विकास तथा भारत सेवक समाज की योजनायें प्रारम्भ की गयी थीं उनकी असफलताओं का पता लगाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन के अनुरोध पर श्री बलवन्तराय मेहता समिति का गठन किया था । जब पता चला कि जनता की भागीदारी नहीं होने से योजनायें असफल हुईं तो फोर्ड फाउन्डेशन को बड़ा समाधान हुआ क्योंकि मदद देने का उनका उद्देश्य जनता के अभिक्रम को समाप्त करने का ही था।
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फोर्ड फाउंडेशन की मदद से जो सामुदायिक विकास तथा भारत सेवक समाज की योजनायें प्रारम्भ की गयी थीं उनकी असफलताओं का पता लगाने के लिए फोर्ड फाउंडेशन के अनुरोध पर श्री बलवन्तराय मेहता समिति का गठन किया था । जब पता चला कि जनता की भागीदारी नहीं होने से योजनायें असफल हुईं तो फोर्ड फाउन्डेशन को बड़ा समाधान हुआ क्योंकि मदद देने का उनका उद्देश्य जनता के अभिक्रम को समाप्त करने का ही था।
    
१९९१ में उदारीकरण की नीति तथा गैट आदि व्यापारिक समझौतों से भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आक्रमण बढ़ गया है। खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश ने बेरोजगारी, गरीबी और अनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाया ही है, साथ ही विलासिता की जीवनदृष्टि को बढ़ाने में चार चाँद लगाये है ।
 
१९९१ में उदारीकरण की नीति तथा गैट आदि व्यापारिक समझौतों से भारत में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का आक्रमण बढ़ गया है। खेती, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के प्रवेश ने बेरोजगारी, गरीबी और अनैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ाया ही है, साथ ही विलासिता की जीवनदृष्टि को बढ़ाने में चार चाँद लगाये है ।
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==== षड़यंत्र निवारण की दिशा ====
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== षड़यंत्र निवारण की दिशा ==
 
भारत मुख्य रूप से धर्मपरायण देश है। यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में कर्तव्य परायणता को मुख्य आधार प्रदान किया गया है । हर एक को अपने कर्तव्य, अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा भारत की मुख्य शक्ति रही है। धर्म का अर्थ यहाँ पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन से नहीं है। पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन की स्थापना किसी महापुरुष, महाग्रंथ या महान परम्पराओं के द्वारा की जाती है और धर्म व्यक्ति, प्रकृति और समाज के मध्य स्वाभाविक संतुलन के व्यवहार में से प्रकट होता रहता है। धर्म किसी केन्द्रीय सत्ता को पोषित नहीं करता। केन्द्रीय सत्ता तो धर्माचरण में बाधा ही उत्पन्न करती है। धर्म कर्तव्यबोध कराता है जबकि केन्द्रीय सत्ता अधिकारों के बँटवारे के तत्त्व पर खड़ी होती है। धर्म या कर्तव्य बोध पारस्परिकता का बोधक है, जबकि अधिकार बोध संघर्ष में परिणित हो ही जाता है। धर्माचरण या कर्तव्यबोध से आवश्यक अधिकार सहज रूप से मिलते रहते हैं।
 
भारत मुख्य रूप से धर्मपरायण देश है। यहाँ की सांस्कृतिक विरासत में कर्तव्य परायणता को मुख्य आधार प्रदान किया गया है । हर एक को अपने कर्तव्य, अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की प्रेरणा भारत की मुख्य शक्ति रही है। धर्म का अर्थ यहाँ पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन से नहीं है। पंथ, सम्प्रदाय, मजहब या रिलीजन की स्थापना किसी महापुरुष, महाग्रंथ या महान परम्पराओं के द्वारा की जाती है और धर्म व्यक्ति, प्रकृति और समाज के मध्य स्वाभाविक संतुलन के व्यवहार में से प्रकट होता रहता है। धर्म किसी केन्द्रीय सत्ता को पोषित नहीं करता। केन्द्रीय सत्ता तो धर्माचरण में बाधा ही उत्पन्न करती है। धर्म कर्तव्यबोध कराता है जबकि केन्द्रीय सत्ता अधिकारों के बँटवारे के तत्त्व पर खड़ी होती है। धर्म या कर्तव्य बोध पारस्परिकता का बोधक है, जबकि अधिकार बोध संघर्ष में परिणित हो ही जाता है। धर्माचरण या कर्तव्यबोध से आवश्यक अधिकार सहज रूप से मिलते रहते हैं।
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विकसित सामाजिक जीवन में धर्म, अर्थ और राज्य की व्यवस्थाओं का स्वरूप निश्चित करना होता है। अर्थ और राज्य यदि अपना धर्म या कर्तव्य ठीक तरह से पालन करेंगे तो समाज में सहज और स्वाभाविक रूप से सुख शान्ति रहेगी। दूसरी तरफ यदि राज्य सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा, प्राकृतिक संसाधनों को एकाधिकार करके धन का संग्रह होगा, तो अधिकारों के लिये संघर्ष उसका सहज परिणाम होगा। इस संघर्ष के लिये सेना अनिवार्य हो जायेगी। इससे समाज की सुख-शान्ति खतरे में पड़ जायेगी । सेना के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण होगा । युद्ध तो हमेशा नहीं होते, अतः आतंकी और अपराधी समुदाय पैदा करना अनिवार्यता बन जायेगी। वैश्विक स्तर पर गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों के द्वारा शान्ति स्थापना के नाम पर यूनाईटेड नेशंस की समस्त संस्थायें परोक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय मुद्रा की स्थापना करके आर्थिक साम्राज्यवाद को स्थापित करना चाहेगी। इस मानवद्रोही योजना के संचालकों में रौथ चाइल्ड कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउडेशन, कारनेगी फाउंडेशन, राकफैलर फाउडेशन तथा समस्त बिल्डरवर्ग समुदाय सम्मिलित है। ये बेचारें यह नहीं जानते कि यह योजना इनके लिए भी हितकर नहीं है ।
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विकसित सामाजिक जीवन में धर्म, अर्थ और राज्य की व्यवस्थाओं का स्वरूप निश्चित करना होता है। अर्थ और राज्य यदि अपना धर्म या कर्तव्य ठीक तरह से पालन करेंगे तो समाज में सहज और स्वाभाविक रूप से सुख शान्ति रहेगी। दूसरी तरफ यदि राज्य सत्ता का केन्द्रीयकरण होगा, प्राकृतिक संसाधनों को एकाधिकार करके धन का संग्रह होगा, तो अधिकारों के लिये संघर्ष उसका सहज परिणाम होगा। इस संघर्ष के लिये सेना अनिवार्य हो जायेगी। इससे समाज की सुख-शान्ति खतरे में पड़ जायेगी । सेना के लिये अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण होगा । युद्ध तो हमेशा नहीं होते, अतः आतंकी और अपराधी समुदाय पैदा करना अनिवार्यता बन जायेगी। वैश्विक स्तर पर गोलमेज समुदाय के विशिष्ट महापुरुषों के द्वारा शान्ति स्थापना के नाम पर यूनाईटेड नेशंस की समस्त संस्थायें परोक्ष रूप से केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय सेना, केन्द्रीय मुद्रा की स्थापना करके आर्थिक साम्राज्यवाद को स्थापित करना चाहेगी। इस मानवद्रोही योजना के संचालकों में रौथ चाइल्ड कॉरपोरेशन, फोर्ड फाउंडेशन, कारनेगी फाउंडेशन, राकफैलर फाउंडेशन तथा समस्त बिल्डरवर्ग समुदाय सम्मिलित है। ये बेचारें यह नहीं जानते कि यह योजना इनके लिए भी हितकर नहीं है ।
    
विश्व सरकार, विश्व सेना, विश्व मुद्रा, विश्व बैंक आदि द्वारा केंद्रीय नियंत्रण की व्यवस्था किसी प्रकार से भी मानव, प्रकृति तथा समाज को सुख-शांति नहीं पहुँचा सकती। केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित करने की योजना बनाने वाले राउंड टेबिल समुदाय या बिल्डरवर्गर समुदाय को अपनी योजना के लिये किस-किस प्रकार के षड़यंत्र करने पड़ रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा 'दि प्रिजन' पुस्तक में दिया है। प्रस्तुत लेख की अधिकांश सामग्री 'दि प्रिजन' पुस्तक से ही ली गई है। इस षड़यंत्र को उजागर करके षड़यंत्रकारियों को सही सोचने में सहकार करना प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। भारत के उद्योगपति, राजनेता, धर्मगुरु, समाज सेवक तथा संवेदनशील विद्वानों की जानकारी हेतु चार सौ पृष्ठ की 'दि प्रिजन' पुस्तक में लिखे विवरण को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया जा रहा है।
 
विश्व सरकार, विश्व सेना, विश्व मुद्रा, विश्व बैंक आदि द्वारा केंद्रीय नियंत्रण की व्यवस्था किसी प्रकार से भी मानव, प्रकृति तथा समाज को सुख-शांति नहीं पहुँचा सकती। केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित करने की योजना बनाने वाले राउंड टेबिल समुदाय या बिल्डरवर्गर समुदाय को अपनी योजना के लिये किस-किस प्रकार के षड़यंत्र करने पड़ रहे हैं, इसका पूरा लेखा-जोखा 'दि प्रिजन' पुस्तक में दिया है। प्रस्तुत लेख की अधिकांश सामग्री 'दि प्रिजन' पुस्तक से ही ली गई है। इस षड़यंत्र को उजागर करके षड़यंत्रकारियों को सही सोचने में सहकार करना प्रस्तुत पुस्तक का मुख्य उद्देश्य है। भारत के उद्योगपति, राजनेता, धर्मगुरु, समाज सेवक तथा संवेदनशील विद्वानों की जानकारी हेतु चार सौ पृष्ठ की 'दि प्रिजन' पुस्तक में लिखे विवरण को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया जा रहा है।

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