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'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने गोल मेज समुदाय के सम्बन्ध में लिखा है - इस समुदाय ने उद्देश्य सिद्धि हेतु वैश्विक स्तर पर अनेक नामों से गोपनीय संस्थाएं बनायी हुई हैं । इन संस्थाओं के सम्मेलन एवं गोष्ठियां होती रहती हैं।
 
'दि प्रिजन' पुस्तक के लेखक ने गोल मेज समुदाय के सम्बन्ध में लिखा है - इस समुदाय ने उद्देश्य सिद्धि हेतु वैश्विक स्तर पर अनेक नामों से गोपनीय संस्थाएं बनायी हुई हैं । इन संस्थाओं के सम्मेलन एवं गोष्ठियां होती रहती हैं।
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गोलमेज समुदाय की एक संस्था का नाम बिल्डरबर्ग (Bilderberg) है। इसकी एक बैठक १९९१ में बाडेनबाडेन (Baden-Baden-Germany) जर्मनी में हुई । इस बैठक में डेविड रॉकफेलर, यूनाइटेड स्टेट के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ तथा उद्योखगपति, बिल क्लिंटन (जो उस समय आर्कनसास का गर्वनर था, जो कि बाद में राष्ट्रपति हो गया था), जार्ज बश, कानई ब्लैक,
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गोलमेज समुदाय की एक संस्था का नाम बिल्डरबर्ग (Bilderberg) है। इसकी एक बैठक १९९१ में बाडेनबाडेन (Baden-Baden-Germany) जर्मनी में हुई । इस बैठक में डेविड रॉकफेलर, यूनाइटेड स्टेट के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ तथा उद्योखगपति, बिल क्लिंटन (जो उस समय आर्कनसास का गर्वनर था, जो कि बाद में राष्ट्रपति हो गया था), जार्ज बश, कानई ब्लैक, बिल्डरबर्ग, जिओवानी ऐनैली, नीदरलैंड की रानी बिएस्ट्रीस (Beatris) स्पेन की रानी सोफिया, ज्होन स्मिथ (ब्रिटेन के प्रतिनिधि) और भी अनेक अन्तरंग समिति के व्यक्ति इस बैठक में उपस्थित थे। इस बैठक में इराक के विरुद्ध युद्ध की योजना का जार्ज बुश ने प्रस्ताव किया । संयुक्त राष्ट्र संघ की शान्ति सेना को आह्वान करने का निर्णय हुआ। लार्ड किसिंगर ने इराक पर हमले को ठीक ठहराया और कहा कि जार्ज बुश इराक से युद्ध छेड़ने की योग्यता रखता है, उनको सीधे संयुक्त राष्ट्र से बात करनी चाहिये।
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बिल्डरबर्ग की अगली बैठक जून १९९४ में फिनलैंड में हुई। इस बैठक में १९९१ की बैठक के व्यक्तियों के अलावा मि. पीटर डी सुथरलैण्ड (Peter D. Sutherland) जो कि गैट (GATT) 'दि जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एण्ड ट्रैड' के डायरेक्टर थे, उपस्थित थे । इस बैठक में व्यवसाय के सभी प्रतिबंध समाप्त करके विश्व व्यवसाय को गोलमेज समुदाय के उद्देश्य के अनुसार वैश्विक आर्थिक नियंत्रण में लाना था। इस काम के लिये श्री सुथरलैंड उचित व्यक्ति थे। इस बैठक में नीदरलैण्ड के प्रधानमंत्री रुड लूबर्स, जे. मार्टिन टेलर, बर्कले बंक के प्रमुख प्रशासक, ब्रिटेन के टोनी ब्लेयर (लेबर पार्टी के) और कैन्थ क्लार्क शामिल थे। व्यवसाय के क्षेत्र में इस बैठक ने वैश्विक व्यवसाय के संसार के कुछ प्रमुख उद्योगपतियों को चुंगल में फंसाने की योजना बनाई, परिणाम स्वरूप केन्द्रीय नियंत्रण के पक्षधर उद्योगपतियों ने उद्योग के क्षेत्र में स्थानीय अभिक्रम पर एक निर्णायक आघात प्रारम्भ कर दिया।
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जून १९९५ में बिल्डरबर्ग समुदाय की बैठक स्विट्जरलैण्ड के वर्गनस्टोक में तीन होटलों में अलगअलग हुई । ये बैठकें बहुत ही गोपनीय रखी गई थी। अब तक की बैठकों में जो व्यक्ति उपस्थित होते थे उनमें से अधिकांश अन्दर की योजनाओं से अनभिज्ञ थे। १९९५ की इन बैठकों में संसार भर के वे व्यक्ति शामिल थे जो लोक कल्याण की छाया तथा विश्व शान्ति व विकास के उद्घोष की गूंज का भ्रम पैदा करके विश्व-तानाशाही के पक्षधर थे। 'दि प्रिजन' ग्रंथ के लेखक स्विट्झरलैण्ड की
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इस बैठक की जानकारी हासिल करने के लिये वर्गनस्टॉक तक पहुंच तो गये, लेकिन वहाँ जाकर उन्होंने जो देखा उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार है -
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स्विट्जरलैण्ड में जब बिल्डरबर्ग की बैठक हो रही थी तो मैं वहां छुट्टियाँ बिताने गया था। 'स्पोटलाइट' समान पत्र के द्वारा मुझे इस बैठक का समाचार मिला था । बैठक प्रारम्भ होने के कुछ दिन पहले मैं बर्गेनस्टॉक पहुँचा । सब कुछ देखकर फिर जिस दिन बैठक होने वाली थी पुनः वर्गनस्टॉक पहुँचा । वहाँ जाकर क्या देखता हूँ कि जिन होटलों में बैठकें हो रही थी, उनके रास्तों पर पुलिस का बड़ा सख्त पहरा था। सभी सड़कें बन्द कर दी गयी थीं। स्विट्जरलैंड की पुलिस तथा सेना के सिपाहियों से पूरी घेराबंदी की गई थी । मैंने एक पुलिस वाले से पूछा कि क्या मामला है ? उसने धीरे से इतना ही कहा 'बहुत गोपनीय है, बहत गोपनीय है।' इस मीटिंग में क्या हआ इसका पता नहीं चल पाया । मैं सोचता हूँ कि जरूर इस बैठक में विश्व में एकछत्र आर्थिक साम्राज्यवाद की स्थापना के लिए व्यूह रचना और रणनीति बनाई जा रही होगी।" 'ध प्रिजन' पृष्ठ १४२
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इस प्रकार की गोपनीय बैठकों में वैश्विक स्तर पर कार्य विधि का निर्णय किया जाता है । इण्टरनेशनल मोनेटरी फंड (IMF), आर्गेनाइजेशन फार इण्टरनेशनल इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डवलपमेंट, काउंसिल ऑन फारेन रिलेशंस (CFR), वर्ल्ड बैंक, जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (Gatt), वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन (WHO) यूनाइटेड नेशंस (U.N.) आदि जितनी भी संस्थायें है. इनका संचालन सूत्र गोलमेज समुदाय विभिन्न नामों से करता है। इन संस्थाओं का ऊपरी ढाँचा विश्व शान्ति तता पिछड़ों के विकास का दिखाया जाता है, परन्तु इनका असली मकसद दीर्घकालीन केन्द्रीय नियंत्रण होता है।
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उदाहरण के लिये वर्ल्ड बैंक का उद्देश्य यह है कि विकासशील देशों की जनता को पराश्रित बनाकर स्थाई रूप से गरीबी की खाई में ढकेल दिया जाय । विश्व बैंक विभिन्न देशों में बड़ी-बड़ी विकास योजनाओं के लिए कर्ज देती है। ये योजनायें वास्तव में आम जनता से जमीन छीनकर उनको बड़ी-बड़ी औद्योगिक इकाईयों के आश्रित बनाने की होती हैं।
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इस प्रकार स्वावलम्बी जीवन दर्शन को नष्ट किया जाता है। भारत में मल्टीनेशनल कम्पनियों के दबाव में आकर सरकार खेती की जमीनों का अधिग्रहण करके छोटे किसानों को बेरोजगार तथा पराश्रित बना रही है। यह वैश्विक अर्थनीति के प्रभाव से हो रहा है । IMF तथा विश्व बैंक का मुख्य काम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए भूमिका तैयार करने का है। ये दोनों अर्थ संस्थाएँ जिन योजनाओं के लिये कर्ज देती हैं उन योजनाओं से स्थानीय जनता का कुछ भी हित नहीं सधता है । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कार्य की सुविधा के लिए बिजली तथा सड़क निर्माण हेतु सहायता दी जाती है।
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विकासशील और अर्द्धविकसित तथा गरीब देशों को IMF तथा विश्व बैंक से जो कर्ज या सहायता मिलती है उसमें राजीनतिक नेता तो भ्रष्ट होते ही हैं, तथा बड़े बाँध, विदेशी प्रभाव, विदेशी नशीले शीतल पेय, आयोडीन नमक, उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण, औषधियों के विषैले प्रभाव आदि के विरुद्ध जन आन्दोलन कराने में भी गोलमेज समुदाय की कोई न कोई संस्था परोक्ष रूप से सहायता देती रहती है। इतना नहीं, गोलमेज समुदाय के सदस्य धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक बिन्दु पर आतंक फैलाने वालों को हथियारों और धन से सहायता करते हैं तथा इनको दबाने वाली सरकारी शक्तियों को भी शस्त्रास्त्र बिक्री करती हैं।
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'दि प्रिजन' के लेखक ने पृष्ठ २३५ पर लिखा है -
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The International Monetary Fund (I.M.E.) is there to intervene, when poor countries in Africa, Asia and the rest of the developing world get into Elite (Round table group) engineered financial trouble. The idea has been to encourage and bribe the politicians in these countries into relinquishing self-sufficiency in food and into opening their lands to the multinational food and chocolate giants. These countries began to export luxury cash crops to the rich nations and to use that money to pay for imported food from those same rich
    
==References==
 
==References==
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