Mukhya Smritis (मुख्य स्मृतियां)
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भारतीय ज्ञान परंपरा में स्मृति शास्त्र वे ग्रन्थ हैं, जो किसी ऋषि के द्वारा आचार संहिता और विधि विधान के रूप में लिखे गए या संकलित किए गए हैं। ये एक प्रकार से सामाजिक धर्मशास्त्र हैं। मनुष्यता के विकास का स्रोत, सांस्कृतिक आधार तथा नैतिक निष्ठा स्मृतियों में देश, काल और अवस्था भेद से बताई गई है। आदिवैदिक मन्त्रों को श्रुति शब्द से निर्देश किया है। इन्हीं मन्त्रों के संस्मरणों से मनु याज्ञवल्क्यादि ऋषियों ने अपने संस्मरणों को प्रकट किया जिनको स्मृति नाम दिया गया।
परिचय
स्मृति ग्रन्थ मनुष्य के कर्तव्य और अकर्तव्य का निर्देशक होने से मनुष्यमात्र को स्मृति शास्त्रों में देश, काल भेद से जो कर्तव्य सांस्कृतिक जीवन, व्यवहार, नीति और कर्म विपाक सिखाया है उसकी जानकारी होनी परमावश्यक है। बिना स्मृति ग्रन्थों के किये जाने वाले कर्तव्य, कर्म, ग्राह्यव्यवहार और त्याज्य व्यवहार का ज्ञान नहीं हो सकता है। भारतवर्ष में प्रायः लोग अपने आप को स्मार्तधर्मी कहते हैं अर्थात स्मृति प्रतिपादित धर्म का आचरण करने वाले हैं। कलिदास ने लिखा है - [1]
श्रुतिरिवार्थं स्मृतिरन्वगच्छत्।
वेद मन्त्रों का ही विशदीकरण स्मृति शास्त्र है। श्रुतिद्रष्टा ऋषि के अनन्तर स्मृतिकार ऋषि "मुनि" कहे जाते हैं। स्मृतियां 50/60 के लगभग हैं। प्रत्येक स्मृति का आधार वर्णधर्म, आश्रमधर्म, राजधर्म एवं व्यवहारक्रम है। याज्ञवल्क्य स्मृति में -
मन्वत्रिविष्णुहारीत याज्ञवल्क्योशनोऽङ्गिराः। यमापस्तम्बसम्वर्त्ताः कात्यायनबृहस्पतिः॥ पराशरव्यासशङ्खलिखिताः दक्षगौतमौ। शातातपो वशिष्ठश्च धर्मशास्त्रप्रयोजकाः॥ (याज्ञवल्क्य स्मृति, आचाराध्याय 4/5)
भाषार्थ-
- मनु स्मृति
- याज्ञवल्क्य स्मृति
- अत्रि स्मृति
- विष्णु स्मृति
- हारीत स्मृति
- औशनस स्मृति
- अंगिरा स्मृति
- यम स्मृति
- कात्यायन स्मृति
- बृहस्पति स्मृति
- पराशर स्मृति
- व्यास स्मृति
- दक्ष स्मृति
- गौतम स्मृति
- वशिष्ठ स्मृति
- आपस्तम्ब स्मृति
- संवर्त स्मृति
- शंख लिखित स्मृति
- देवल स्मृति
- शतातप स्मृति
प्रमुख वर्ण्यविषय
उद्धरण
- ↑ स्मृति-सन्दर्भः-प्रथमो भागः, सन 1988, नाग प्रकाशन,दिल्ली (पृ० 27)।