Modern Linguistics (आधुनिक भाषाविज्ञान)
भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा अति प्राचीन है, जब कि आधुनिक भाषाविज्ञान का प्रारंभ १८ वीं शताब्दी ई० से होता है। भारत में भाषा के संबंध में चिंतन की प्रक्रिया का स्पष्ट प्रमाण ऋग्वेद में मिलता है, जिस के दो सूक्तों में वाक् की उत्पत्ति मनुष्यकृत सिद्ध होती है। भारतीय ज्ञान परंपरा में षडंग विद्या की परंपरा थी - शिक्षा (ध्वनि विज्ञान), व्याकरण (पद एवं वाक्यविज्ञान), छंद (काव्य-रचना), निरुक्त (शब्द-व्युत्पत्ति), ज्योतिष एवं कल्प, इनमें से प्रथम चारों भाषा से संबंधित हैं।[1]
परिचय
भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका तात्पर्य स्पष्ट वाणी, मनुष्य की वाणी, बोलना या कहना है। भाषा का अर्थ सिर्फ बोलने से नहीं है बल्कि जो मनुष्य बोलता है उसके एक खास अर्थ से है।भाषा शब्द का प्रयोग पशु पक्षियों की बोली के लिये भी होता है।
"वाग्वै सम्राट् परमं ब्रह्म"। (ऐतo उप०)
उपनिषद् के इस वाक्य में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्द या वाक् की उपासना भी ब्रह्म की ही उपासना है। भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रातिशाख्यों, शिक्षा-ग्रन्थों, निरुक्त, व्याकरण तथा काव्य-शास्त्र में भाषा-विज्ञान के विविध पक्षों का बृहत् गाम्भीर्यपूर्ण विवेचन किया गया है।
भाषा का स्थापत्य
भाषाविज्ञान भाषा के स्थापत्य का विश्लेषण है और भाषा का यह स्थापत्य मुख्यतः उसके तीन तत्त्वों- ध्वनि, विचार तथा शब्द से संश्लिष्ट है। भाषा मनुष्य के स्वर-यंत्र द्वारा उत्पादित स्वेच्छापूर्वक मान्य वह ध्वनि है जिसके माध्यम से एक समाज आपने विचारों का आदान-प्रदान करता है।[2]
परिभाषा
- ↑ चित्तरञ्जन कर, भाषा-चिन्तन की भारतीय परंपरा और आधुनिक भाषाविज्ञान,सन् २०१०, संस्कृत विमर्श (पृ० ६५)
- ↑ श्री पद्मनारायण, आधुनिक भाषा-विज्ञान, सन् १९६१, ज्ञानपीठ प्राइवेट लिमिटेड, पटना (पृ० ३३)।