Sthapatya Veda (स्थापत्य वेद)
परमात्मा की अनादि और दिव्य वाणी वेद ही है। वेद से ही सभी प्रकार के ज्ञान और विज्ञान का उद्गम हुआ है। वेद चार हैं – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद, अथर्ववेद। इन चार वेदों के चार उपवेद हैं। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गांधर्ववेद , अथर्ववेद का उपवेद स्थापत्यवेद है और स्थापत्यवेद ही वास्तुशास्त्र का उद्गम स्थल है। यद्यपि चारों ही वेदों में वास्तुशास्त्र से संबंधित उल्लेख प्राप्त होते हैं तथापि इसका मूल उद्गम स्थापत्यवेद को ही माना जाता है क्योंकि स्थापत्यवेद साक्षात् अथर्ववेद का ही उपवेद है। अतः वास्तुशास्त्र का मूल संबंध अथर्ववेद से है।
परिचय
वास्तुशास्त्र अथवा स्थापत्य शास्त्र एक ही माना जाता है। यह वेदों में अथर्ववेद का उपवेद माना गया है। वेद, पुराण, रामायण एवं महाभारत आदि में विश्वकर्मा को देवों ने स्थपति के रूप में स्थापित किया है। स्थापत्य वेद में नगरविन्यास , ग्रामविन्यास , जनभवन , राजभवन , देवभवन आदि के निर्माण से संबंधित वर्णन को तो सब जानते ही हैं, उसके साथ-साथ शय्यानिर्माण, आसनरचना, आभूषणनिर्माण , आयुधनिर्माण , अनेक प्रकार के चित्र-निर्माण , प्रतिमारचना, अनेक प्रकार के यंत्रों की रचना तथा अनेक प्रकार के स्थापत्यकौशल का वर्णन स्थापत्यवेद तथा उसी से उद्भूत वास्तुशास्त्र के विविध ग्रंथों में प्राप्त होता है।
इस वेद में मुख्य रूप से भवन-निर्माण से सम्बन्धित भारतीय सिद्धान्तों के मूल विद्यमान है। इसी स्थापत्यवेद से उद्भूत यह विज्ञान कालान्तर में वास्तुशास्त्र के रूप में प्रख्यात हो गया।