Ayana (अयन)
वर्ष में दो अयन होते हैं। उत्तरायण एवं दक्षिणायन इसके दो भेद हैं। इनकी अवधि 6-6 मास होती है। अयन का दिन मान से सीधा संबंध होता है।
वराह मिहिर वास्तव में ज्योतिष के अंतिम स्थापक आचार्य थे। वराहमिहिर के समय अयानांश संस्कार की आवश्यकता नहीं थी। अर्थात सायन एवं निरयन गणना समान थी।
कालगणना में अयन का महत्व क्या है ?
सायन और निरयण गणनाओं में क्या अंतर है ?
परिचय
कालगणना में अयन का विशेष महत्व है। अयन वर्ष और मास के बीच की काल की एक ईकाई है। यह एक गति भी है। काल की गणना गति होने पर ही की जा सकती है। इस प्रकार सूर्य तथा पृथ्वी की अयन गतियों के अनुसार ही अयन की काल गणना की गई है। वर्ष और मास के बीच की अयन काल की एक इकाई है। यह एक गति भी है। काल की गणना गति होने पर ही की जा सकती है। इस प्रकार सूर्य तथा पृथ्वी की अयन गतियों के अनुसार ही अयन की कालगणना की गई है।
सूर्य तथा पृथ्वी की गतियों के बारे में भू -भ्रमण सिद्धांत इस लेख को देखा जा सकता है -
विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में कई स्थानों पर अयन शब्द आया है। शतपथ ब्राह्मण में अयन के संबंध में विवरण मिलता है –
वसंतो ग्रीष्मो वर्षाः। ते देवा ऋतवः शरद्धेमंतः शिशिरस्ते पितरो स (सूर्यः) यत्रोदगावर्तते। देवेषु तर्हि भवति यत्र दक्षिणा वर्तते पितृषु तर्हि भवति॥ (श० ब्रा० २,१,३)
अर्थात – शिशिर ऋतु से ग्रीष्म ऋतु पर्यंत उत्तरायण और वर्षा ऋतु से हेमंत ऋतु पर्यंत दक्षिणायन होता था।
· विज्ञान अनुसार कोई भी अयनांश प्रामाणिक नही है क्योकि नक्षत्र समूह निरंतर बदलता रहता है।
· सायन मे कोई परिवर्तन नही होता क्योकि सम्पात का प्रारम्भ हमेशा 21 मार्च से होता है।
· प्राचीन भारतीय खगोल वेत्ता दो प्रकार के योगो का उपयोग किया करते थे। वे सायन सूर्य और सायन चन्द्रमा के योग (जोड़) को बहुत महत्व देते थे। सा. सू. + सा. च. के अंश 180 को व्यतिपात तथा 360 को वैघृति मानते थे। इनकी गणना विशेष योगो मे किया करते थे। इससे सिद्ध होता है कि सायन सिद्धांत को मान्यता थी।
ज्योतिष सम्बन्धी सायन निरयण ऐसा विषय है कि अनभिज्ञो की भी अभिरुचि है। सायन या निरयण गणना से कार्य किया जाय ? इस पर मतैक्यता नही है। कुछ विद्जन ग्रह जनित प्राकृतिक उपद्रव, परिवर्तन का निर्णय ग्रह और पृथ्वी के पारस्परिक सम्बन्धो की गणना सायन से करते है, तथा मनुष्य (जातक) के भाग्याभाग्य, परिणाम का निर्णय, निरयण नक्षत्रो मे ग्रहो के प्रवेश और भौगोलिक स्थान इन दोनो के तारतम्य से करते है, अर्थात निरयण गणना से करते है, और इसे जातक पद्धति कहते है।
परिभाषा
सायन = स + अयन यानि अयन सहित या चलायमान भचक्र (Tropical/ Movable Zodiac) एक सायन वर्ष 365.2422 दिन का होता है। (365 दिन, 5 घण्टा, 48 मिनट एवं 45 सेकेण्ड)
निरयण = नि + अयन यानि अयन रहित या स्थिर भचक्र (Sidereal / Fixed Zodiac) एक निरयण वर्ष 365. 2563 दिन का होता है। (365 दिन, 6 घण्टा, 9 मिनट, 9.76 सेकेण्ड)
· आकाश मध्य में एक कल्पित रेखा जिसे आकाशीय विषुव वृत्त या नाड़ी वृत्त CELESTIAL EQUATOR कहते है।
· सूर्य इस नाड़ी वृत्त पर नही घूमता है। वह हमेशा क्रांति वृत्त ECLIPTIC पर घूमता है।
· दोनो वृत्त 23.30 अंश का कोण बनाते हुए दो स्थानो पर एक दूसरे को काटते है, इन्हे ही सम्पात बिन्दु या अयन बिन्दु कहते है।
· क्रांति वृत्त के उत्तर दक्षिण एक 9-9 अंश का कल्पित पट्टा है जिसे ही भचक्र कहते है।
सायन भचक्र (tropical / movable zodiac)
इसमे मेष का प्रथम बिन्दु वसंत सम्पात होता है। इसकी गति वक्र 50.3" प्रति वर्ष है। यह गति पृथ्वी के भूमध्य रेखा उन्नत भाग पर सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण के कारण है। सूर्य की वार्षिक गति के साथ प्रतिवर्ष यह सम्पात बिंदु विपरीत दिशा मे मंद गति से घूमता है। इसमे किसी भी आकाशीय पिंड की वसंत सम्पात बिंदु से गणना का देशांश सायन देशांश कहलाता है। इसमे 12 राशियो (प्रत्येक 30 अंश) का प्रारम्भ वसंत सम्पात से होता है, परन्तु क्रांति वृत्त पर विस्तार हमेशा निरयण प्रणाली (प्रत्येक 30 अंश) जैसा नही रहता है। इस प्रणाली मे समयानुसार तारा समूह का एक राशि मे बदलाव होता रहता है।
निरयण भचक्र (SIDEREAL / FIXED ZODIAC)
इसमें मेष का प्रथम बिन्दु हमेशा नक्षत्र यानि चित्रा से 180 अंश के कोण पर स्थायी रहता है। क्रांति वृत्त पर इस स्थयी बिंदु से नापे गये देशांश को निरयण देशांश कहते है। यह स्थायी भचक्र 12 राशि व 27 नक्षत्र मे समान रूप से विभाजित है, इनमें वही तारा समूह हमेशा रहता है।
अयनांश – AYNAMSHA
अयनांश संस्कृत (अयन = हिलना-डुलाना, चाल। अंश = घटक) शब्द है। भारतीय खगोल मे इसका अर्थ अग्रगमन की राशि है।
अग्रगमन PRECESSION एक धुर्णन पिंड के धुर्णन अक्ष का उन्मुखीकरण बदलाव है।स्थायी मेष के प्रथम बिन्दु और चलायमान मेष के प्रथम बिन्दु की कोणीय दूरी अयनांश है, दूसरे शब्दो मे जिस समय सायन और निरयण भचक्र सम्पाती (समान) थे वहा से वसंत सम्पात की पीछे की ओर कोणीय दूरी अयनांश है।
आधुनिक खगोल के अनुसार यह सायन भचक्र और निरयण भचक्र का अंतर है। इसी प्रकार आधुनिक खगोल अनुसार सायन या सौर वर्ष निरयण या नाक्षत्र वर्ष से लगभग 20 मिनिट (365 d 6 h 9 min 9.76 s - 365 d 5 h, 48 min 45 s = 20 मिनिट 23. 24 सेकण्ड) अधिक है।
सम्पात बिन्दु 01 (चित्र मे हरा बिंदु) व 02 (चित्र मे लाल बिंदु) को वसंत और शरद सम्पात कहते है। ये सम्पात बिंदु प्रत्येक वर्ष पश्चिम की ओर पीछे हटते जाते है। इनकी गति वक्र है यही गति अयन चलन या विषुव क्रांति या वलयपात कहलाती है। इनका पीछे हटना ही अयन के अंश अर्थात अयनांश PRECESSION OF EQUINOX कहलाता है। सम्पात का एक चक्र 25868 वर्ष मे पूर्ण होता है, अतः औसत अयन बिन्दुओ को एक अंश चलने में 72 वर्ष लगते है। इसकी मध्यम गति 50"15'" प्रति वर्ष है।
सारांश
काल गणना की मास से बड़ी दो प्रमुख इकाइयां हैं वर्ष तथा अयन। इनसे हमें ऋतुओं का पता लगाने में सहायता मिलती है। साथ में ही सूर्य की सापेक्ष गति के बारे में भी हम इससे जान सकते हैं।