Sajivshrushti ki sanrachana(सजीव श्रुष्टि की संरचना)

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हमारे चारों ओर तरह-तरह के जीव पाए जाते हैं। जीवित वस्तुएं निर्जीव वस्तुओं से भिन्न होती हैं। जीवधारियों में उनके आकार-प्रकार और निवास स्थान आदि के विषय में भिन्नता पायी जाती है। और यही भिन्नता इनके विशिष्ट वर्गो में विभाजन का आधार बन जाती हे।

आप जानते हैं कि कुछ जीव इतने छोटे होते हैं कि कोरी आँखों से दिखायी नहीं पड़ते, और कुछ इतने विशाल जैसे हाथी और व्हेल आदि कि हम उन्हें दूर से ही देख सकते हैं। कितने ही जीव हमारे लिए लाभदायक हैं और उनसे भांति-भांति के उपयोगी पदार्थ मिलते हैं। साथ ही कई जीव ऐसे हैं, जो हमें हानियां पहुंचाते हैं। इन सभी प्रकार के जीवों की कुछ मूलभूत सरंचना जानना हमारे हित में हैं। इस पाठ में तरह-तरह के जीवों में से कुछ चुने हुए जीवों की लाभ-हानियों के बारे में बताया गया है। आइए हम ये सब जानने की कोशिश करते हैं और प्रकृति के कुछ हिस्सों से परिचित होने का प्रयत्न करते हैं।

० पृथ्वी पर पाए जाने वाले सरलतम और सबसे छोटे जीवों का नाम बता सकेंगे;

० पौधों तथा मानवों की अंग-व्यवस्था में पाई जाने वाली समानताएं स्पष्ट कर सकेगे;

० पौधों के श्वसन एवं पोषण तंत्र की व्याख्या कर सकेंगे; और फूलों का महत्त्व बताते हुए उसके भागों की व्याख्या कर सकोगे।

जीवाणु (बैक्टीरिया) - सूक्ष्मतम जीव

जीवाणु पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे सरल और सबसे छोटे जीव हैं। ये लगभग सभी जगह पाए जाते हैं जैसे वायु में, जल में, मिट्टी में और यहां तक कि हमारे अपने शरीर के भीतर भी। इनका शरीर केवल एक कोशिका का बना होता है और इनका आकार 0.2 से 100 माइक्रान तक का होता हे (1 माइक्रान 1/1000 मिलीमीटर)। जीवाणुओं की कोशिका में केद्रिक पदार्थ किसी झिल्ली द्वारा घिरा नहीं रहता। कोशिका के बाहर एक कडी कोशिका-दीवार होती है।

जीवाणु तीन मुख्य आकतियों

(क) शलाकारूपी (लंबे आकार में)

(ख) गोलाकार

(ग) सर्पिलाकार (सांप जैसे टेढे-मेढे)

जीवाणुओं का बहुत महत्व है। इनमें से कई लाभदायक हैं और कई हानिकारक भी।

चित्र 5.1 विभिन्न प्रकार के जीवाणु

जीवाणुओं के लाभ-हानि

क. जीवाणुओं से होने वाले लाभ

1) मृतकों के अपघटक : कितने ही जीव प्रतिदिन मरते रहते हैं। जीवाणु उनके मृत शरीर को अपघटित कर (गला कर) प्रकृति में छोड़ देते हैं, जिन्हें पौधे दोबारा उपयोग कर लेते हें।

1) मिटटी में खाद निर्माता : मिट्टी के जीवाणु अमोनिया तथा नाइट्रेट-जेसे रसायन बनाते हैं, जो पौधों के लिए खाद बनाने में सहायक होते हैं।

i) पौधों के साथ गठजोड़ : कुछ जीवाणु तो स्वयं कुछ खास पौधों (मटर, सेम, दालों आदि) की जड़ों में ही निवास करते हैं और मिट्टी की नाइट्रोजन को नाइट्रेटों में बदल कर पौधों को 'प्राकृतिक खाद' देते रहते हैं।

४) पानी को साफ रखने में : कुछ जीवाणु पानी, बहते जल-मल एवं अन्य गंदगी का विघटन करके पानी को साफ करते हैं।

४) पाचन के स्रोत : कुछ जीवाणु गायों, बकरियों तथा कुछ कीट-पतंगों आदि में उनकी आहार नली में रहते हैं और विशेषकर सेलुलोज (खाए गए पौधों का एक अंश) को पचाते हैं।

wi) खाद्य-उद्योग में : कुछ जीवाणु खाने की वस्तुओं के बनाने में सहायता करते हैं, जैसे दृध से दहीं आदि बनाने में काम आने वाला जीवाणु लैक्टोबेसिलस। इसी प्रकार सिरका भी जीवाणुओं की ही क्रिया से बनता है।

vi) औषधियों के स्रोत : अनेक ऐंटीबायोटिक औषधियों, जो शरीर में रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ाती हैं। विविध जीवाणुओं से ही बनायी जाती हैं। कुछ जीवाणुओं से विटामिन और हार्मोन आदि भी पैदा कराए जाते है।

ख. जीवाणु से होने वाली हानि

1) कई रोगो का कारणः अनेक जीवाणुओं से रोग पैदा होते हैं। ऐसे कुछ रोग हैं - क्षयरोग (तपेदिक), टिटनस, पेचिश, काली खांसी आदि।

1) भोजन-नाशी : खाने-पीने की अनेक वस्तुएं जीवाणुओं द्वारा खराब हो जाया करती हैं। जैसे दृध का खराब हो जाना। फलों, सब्जियों आदि को जीवाणु सड़ा-गलाकर खराब कर देते हैं।

5.2 शैवाल (एऐल्गी)

पौथे-सरीखे हरे परंतु पौथे नहीं होते शेवाल सरल पौधे-जैसे जीव होते हैं, जिनमें कोशिका-भित्ति तथा क्लोरोफिल होती है। से एक-कोशिकीय हो सकते हैं और बहु-कोशिकीय भी। इनमें कोई तना अथवा पत्तियां नहीं होती। ये अधिकतर जल तथा गीली जगहों में पाए जाते हैं। गीली जमीन पर हरी सी परत बनाए, जो चीज फिसलने वाली सतह बनाती है, वह एक शैवाल ही है। किसी तालाब में सतह पर तैरते हुए हरे-हरे धागे-जैसे जीव भी एक प्रकार के शैवाल ही हें। बहुत बार पानी की टंकियों,जिन्हें बहुत समय से साफ न किया गया हो, उनकी दीवारों पर भी हरी-हरी काई लग गयी होती है वह भी एक प्रकार का शैवाल ही है। शेवाल


चित्र 5.2 शेवाल (ऐल्गी)

शेवाल सुक्ष्मदर्शीय एक-कोशिकोय से लेकर कई-कई मीटर लम्बी बहुत सी कोशिकाओं की बनी समुद्री /काई' तक के रूप में होते हैं। कुछ जगहों पर यह हरे रंग के अलावा लाल रंग की भी पाई जाती हैं। शैवाल-उपयोगी भी और हानिकारक भी

उपयोगी :

1) कुछ शेवाल मछलियों और जलीय जीवों आदि का भोजन होते हैं।

1) कुछ शेवालों को कुछ खास आइसक्रीमों तथा जेली को गाढा करने में इस्तेमाल किया जाता है।

iii) प्रकृति में शैवाल प्रकाश-संश्लेषण करते और आक्सीजन बाहर छोड़ते हैं। वह आक्सीजन प्राणियों के श्वसन में काम आती हें।

४) कुछ शैवाल उद्योगों में काम आते हैं।

४) इसे खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता हे।

हानिकारक

1) कुछ शेवाल जो तालाबों में उगते हैं अन्य जीवों के लिए विषैले होते हैं।

¡¡) पानी के टेंकों में उगने वाले शैवाल पानी को पीने के अयोग्य बना देते हैं। प्रोटेोजोआ एक-कोशिकीय जीव हैं, जिनमें प्राणियों जैसी विशिष्टताएं हैं। ये एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति कर सकते हैं, भोजन को पकड़ सकते और उसे खा जाते हैं। अमीबा प्रोटोजोआ का एक अच्छा उदाहरण हे। यह तालाब के पानी या गड्डों आदि में सड़ते जल में आमतौर से पाया जाता है। यह अपनी कोशिका क प्रसारों द्वारा, जिन्हें कूटपाद कहते हैं

एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलता और उन्हीं से अपना भोजन भी पकडताहै। प्रोटोजोआ हजारों किस्म के हैं। कुछ प्रोटोजोआ रोग भी पैदा करते हैं, जैसे मलेरिया का परजीवी, जो हमारी लाल रकत कोशिकाओं में पहुंच कर रोगउत्पन्न करता हेै।

कवक (फफूंद जैसे जीव)

कवक फैले-फैले रूप में उगते हुए पौधे जैसे लगने वाले जीव होते हैं, परंतु उनमें पौधों का हरा पदार्थ क्लारोफिल नहींहोता। सबसे सामान्यतः पहचाने जाने वाले दो कवक हैं ब्रेड या फलों आदि पर लग जाने वाली फफूद और सडी गली मिट्टी में उग आने वाले कुकुरमुत्ते (जिन्हें 'सांप की छतरी' भी कह देते है)। कवक अपना भोजन स्वयं नहीं सकते बल्कि . हैं नहीं बना , बल्कि जहां उग रहे होते हें, उसमें से सड़ती-गलती वस्तुओं के रसों को सोखते हैं। ये एक कोशिकीय हो सकते हैं

चित्र 5.3 मशरूम

(जैसे यीस्ट) तथा बहु-कोशिकीय (जैसे कुकरमुत्ता)। कवक सामान्यतः अंधरे, हल्के गर्म तथा गीले स्थानों में पनपते-उगते हैं। अधिकांश कवक अथवा फफूद हानिकारक हो सकती है, मगर कुछ मशरूम स्वादिष्ट भोजन होते हैं।

कवक-उपयोगी तथा हानिकारक

उपयोगी

1) कुछ कवक खाद्य तथा पेय पदार्थों के बनाने में काम आते हैं। यीस्ट से ब्रेड (डबल रोटी) बनायी जाती है। इडली, डोसा बनाने में भी यीस्ट से खमीर उठाया जाता है।

1) कुछ मशरूम (खुम्भी) खाए जाते हैं। मगर अन्य मशरूम अधिक विषैले होते हें।

iii) कुछ कवकों से पेनिसिलिन तथा विटामिन 'बी' बनाए जाते हें।

iv) प्रकृति में कवक मरे पौधों या जानवरों को विघटित करके तत्वों के चक्र में सहायता करते हैं।

हानिकारक

1) कुछ कवकों से रोग हो जाते हैं जैसे दाद या छाजन।

1) कुछ कवक गेहूँ या जौ आदि की बालों पर लगकर इन फसलों को बहुत हानि पहुंचाते हैं।

1. शेवाल पोधों जेसे जीव होते हैं और प्राणियों के जीव कोशिकाओं से भिन्न इनकी कोशिकाओं में .......... तथा .......... होते हें।

2. रुके गंदे पानी में पाया जाने वाला .......... एक प्रकार का सरलतम प्रोटोजोआ है।

3. अमीबा अपनी .......... नामक संरचनाओं द्वारा चलता-फिरता हे।

4. अधिकतर कवक विषैले हो सकते हैं परंतु .......... नामक एक कवक को लोग खाते भी हैं।

अपने आस-पास देखिए, आपको तीन प्रकार के पौधे दिखाई देंगे-(1) शाक- कोमल तनों वाली घास, गेहूँ, गाजर-मूली जैसे छोटे-छोटे पौधे जो अधिकतर मौसमी होते हैं

(1) झाडियां-जिनके अनेक तने जमीन की सतह से शाखा रूप में निकले होते हैं जैसे गुलाब, गुडृहल आदि जो सालों-साल चलते हैं और

(iii) वृक्ष, एक खासा लम्बा-मोटा लकड़ी का तना होता हे जिसमें से शाखाएं निकलती हैं जैसे-नीम, आम, बरगद आदि।

सभी पौधों में दो प्रमुख अंग तंत्र होते है - जड़-तंत्र (R००६ $951९) तथा प्ररोह तंत्र (ऽh००t ऽyऽ1९m)। आइए पौधे के प्रमुख भाग क्या-क्या होते हें, देखें। उदाहरण के लिए हम यहां सरसों का पौधा ले लेते हैं। मूल व्यवस्था लगभग सभी पौधों में एक सी होगी-अंतर केवल रंग-रूप, पत्तियों के आकार,

फूलों के रंग और फलों की बनावट आदि में होता है।

यदि हरे पौधे न होते तो न तो कोई मानव जीवित रह सकता था और न ही

कोई अन्य जानवर। सूर्य के प्रकाश से पौथे अपना भोजन बनाते हैं।





आइए, इस एक पौधे (सरसों) के उदाहरण से उसके ऊपर से नीचे के भागों

को देखें।

पौधे के भाग

1) जढड्‌ तंत्र (यानी भूमि के नीचे का भाग)

बीचो ~ बीच

1) प्राथमिक जड़-पौथे का मुख्य बीचो-बीच का लम्बा अपेक्षाकृत मोटा भाग।


ii¡) द्वितीयक जडे-प्राथमिक जड़ से निकलने वाली बहुत सारी पतली-पतली

जडें। ये ही मिट्टी से जल और खनिज लवण सोखती हैं।

विज्ञान, स्तर-'"ख”'


     


o बाहयदल

चित्र 5.4 पौधे के विभिन्न भाग

क. जड तंत्र


मिटटी में बीज बोने पर उसमें से सबसे पहले जड़ बनाने वाला भाग ही

निकलता है। यही आरंभिक जड़ नए बने पौधे को मिट्टी में से पानी और

खनिज प्रदान करती है। इसके दो प्रमुख भाग होते हैं :

जडों की चार मुख्य विशेषताएं होती है :

1) जड सदैव नीचे को ओर मिट्टी में वृद्धि करती है।

11) जड़ सदैव जल की ओर बढ़ती जाती है।

ii) जड सदैव प्रकाश से दूर की ओर ही बढ़ती है।

1४) ये हरी नहीं होती।


मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा m6


टिप्पणी


जड़ों के दो प्रधान कार्य हें :

1) स्थिरीकरण - जडें पौधे को जमीन में गडाए-जमाएं रहती हैं, स्थिर रखती

हैं।

11) अवशोषण - जडें मिट्टी से पानी और खनिज लवण सोख कर पौधे को

पोषण प्रदान कराती हे।

विशेष पौधों में इन कार्यो के अलावा जडें भांति-भांति के कार्य करती हैं-कुछ

भोजन का भंडारण करती हे जैसे मूली, गाजर, शलगम, शकरकंद, चुकंदर

आदि के कुछ पौधे की जड़ों से नए पौधे भी उगते हैं जैसे डहेलिया।


(ख) प्ररोह तंत्र यानी भूमि से ऊपर का भाग

1) तना (स्तम्भ) : मिट्टी से ऊपर निकला भाग, जिसमें शाखएं, पत्तियां,

फूल और फल लगे रहते हैं।


1) पर्व : तने का वह भाग जहां से पत्तियां निकलती हें।

¡¡) पर्वान्तर : दो पर्वा के बीच का भाग।

¡1\४) शाखा : मुख्य तने से निकला द्वितीयक तना।


v४) पत्तियां : चपटी, सामान्यतः हरे रंग की जिनसे पौधा भोजन बनाता हे।

wi) मुकुल : तने अथवा शाखाओं के अंतिम सिरों पर बनी छोटी-छोटी बहुत

सारी पत्तियां।


vii) फूल : पौधे का प्रायः सबसे ज्यादा स्पष्ट रंगीला भाग।


viii) फल : यह फूल में बनता है। इसमें बीज होते हैं, जिनसे नए पौधे

अंकुरित होते हे।

विज्ञान, स्तर-'"ख”'


आइए इनके बारे में विस्तार से जानें।

स्तंभ या तना


पौधे का धरती से ऊपर वाला भाग होता है। यह प्ररोह का मुख्य अंश होता | टिप्पणी

है जिसमें पर्व, कलियां, पत्तियां आदि लगे होते हैं। अधिकतर छोटे पौधों के

तने नरम और हरे होते हैं जो आसानी से मुड़-झुक जाते हैं। वृक्षों और झाड़ियों

के तने कडे और लकडी के होते हैं। लकडी के तनों की बाहरी सतह पर छाल

बनी होती है।

ऊषमतो म्लायते वर्णस्त्वक्‌ फलं पुष्पमेव च।

ग्लायते शीर्यते चापि स्पर्शस्तेनात्र विद्यते।4॥।

व्याख्या : जेसे गर्मी के दिनों में गर्मी लगने से हमारा चेहरा मुरझा जाता हे,

वैसे ही वृक्षों के वर्ण त्वचा, फल, पुष्प भी मुरझाकर शीर्ण हो जाते हैं, अतः

सिद्ध होता हे कि हमारी ही तरह वृक्षों में भी त्वगिन्द्रिय हे।





स्तंभ के कार्य



1) सहारा देने वाला - शाखाओं, पत्तियों, फूलों, फलों को सहारा प्रदान करता

है।

1) संवहन - जड़ों द्वारा अवशोषित जल और खनिज लवणों को पत्तियों तक

पहुंचाता है।


¡¡) संवहन - (खाद्य संवहन) - पत्तियों द्वारा तैयार किये गए भोजन को तना

पौधे के विभिन्न भागों में पहुंचाता है।

४) कुछ पौधों के तने रूपांतरित होकर चपटे हरे हो जाते हैं और प्रकाश-संश्लेषण

का कार्य भी करते हैं, जैसे नागफनी, कैक्ट्स आदि।

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


 


नीचे दिए गए कथन सही (४) हैं या गलत (%) चिन्ह द्वारा दर्शाएं :

1. पर्व, स्तंभ का वह भाग है जहां से पत्ती निकलती हे।


2. प्राथमिक जड़ अंकुरित बीज के अंकुर से विकसित होती हे।


3. शलगम एक रूपांतरित तना हे।

4. हरे स्तंभ जैसे कि नागफनी का स्तंभ, प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन बनाते हें।

ख. पत्ती


पत्ती, स्तंभ से निकली चपटी हरे रंग वाली रचना होती है। यह अलग-अलग

आकार की हो सकती है। पौधे के इसी भाग द्वारा भोजन बनाने की प्रक्रिया

(प्रकाश-संश्लेषण) होती है।

पत्ती के कार्य

1) प्रकाश (ज्यादातर सूर्य के प्रकाश) में कार्बन डाइआक्साइड और जल का

उपयोग करके पत्तियां पौधे का भोजन बनाती है।

¡¡) पौधे के भीतर का अतिरिक्त जल पत्तियों में उपस्थित छोटे-छोटे छिद्रों से

भाप बनकर निकल जाता है।

iii) पत्तियों से ही पौधा वायु के आक्सीजन को भीतर लेकर श्वसन करता है।

ग. फूल

पत्तियों की तरह फूल भी पौधे के तने पर ही लगते हैं। फूल पौधे के

जनन-अंग हैं।


फूल के कार्य


1) जनन : प्रकृति में फूल का मुख्य कार्य प्रजनन करना है। इसी के भीतर

फल बनता और फल में बीज बनता है, जिससे नया पौधा उगता हे।


विज्ञान, स्तर-'"ख”'


¡¡) सौंदर्य और सुगंध : फूलों की सुंदरता और सुगंध वास्तव में उनके मूल

कार्य जनन में ही योगदान देने के लिए है। इससे ये कौटों, पक्षियों आदि

को आकर्षित करते हैं, ताकि वे फूल पर बैठें। फूल का मकरंद चूसते

समय फूल का पराग उनके शरीर से चिपक जाता है। अन्य फूलों पर जाने

पर यह पराग गिर जाता है और परागण हो जाता है, जिससे फूल में फल

बनना आरंभ होता है।

पुण्यापुण्यैस्तथस गन्धेर्धूपेश्च विविधेरपि।

अरोगाः पुष्पितसः सन्ति तस्माज्जिव्रन्ति पादपाः।।3॥।



व्याख्या : अच्छी बुरी गंध और तरह तरह के धूपों से वृक्ष नीरोग और पुष्पित

होते हैं, फूलते हैं। जैसे नौसादर और चूना सुंघने से सर्प का काटा पुरुष मूर्च्छा

त्याग सचेत हो जाता है, वैसे ही गंध का प्रभाव वृक्षों पर भी होता हे। अतः

कहना होगा कि वृक्ष सूंघते हैं, उन्हें भी प्राणेन्द्रिय प्राप्त हैं।


मनुष्यों क॑ लिए फूलों का महत्व


1) फूलों से फल बनते हैं जिन्हें हम खाते हैं।

¡1) फूलों से बाग-बगीचों और घरों में शोभा बढ़ाई जाती है।

iii) एक-दूसरे का सम्मान करने में फूल-गजरे-मालाएं भेंट की जाती हैं।

देवी-देवताओं पर फूल चढाए जाते हैं।


jv) फूलों से मधुमक्खी शहद बनाती है, जो हमारे खाने के काम आता है।

४) फूलों से इत्र बनाए जाते हैं।

i) लौंग जो कि एक फूल है, मसालों में काम आती है अथवा औषधि के

रूप में भी इस्तेमाल की जाती है।

फूल के भाग


किसी सामान्य फूल के बीच से सीधा काटने पर फूल का भीतरी हिस्सा कुछ

ऐसा दिखाई देगा-

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


टिप्पणी

 

टिप्पणी

1) पुष्पवृंत : वह डंठल जिस पर फूल लगा होता हे।

¡¡) पुष्पासन : डंठल का दूसरा फूला भाग जिस पर पंखुडियां लगी होती हें।

iii) अंखुडियां : ये सामान्यतः हरे रंग की पत्ती जैसी रचनाएं होती हैं, जो

फूल का सबसे बाहरी भाग बनाती हैं। इनका मुख्य कार्य कली अवस्था

में फूल को सुरक्षा प्रदान करना है।


1४) दल या पंखुडियां : ये सामान्यतः चटकीली, रंग-बिरंगी और खिले फूल

का सबसे ज्यादा दिखाई देने वाला भाग होती हैं। इनका कार्य केवल फूल

को आकर्षक बनाना है।

४) पुंकेसर : आमतौर से धागे जैसे लम्बे भाग जिनके अंतिम सिरों पर कुछ

फूला सा भाग होता है, ये फूल का नर भाग होता है।



i) स्त्रीकेसर : फूल के केन्द्र में स्थित स्त्रीकेसर फूल का मादा अंग होता है।

घ. फल


फूलों से फल बनता है। आम, जामुन, अनार, लीची फल हैं और सब्जियों में

गिने जाने वाले टमाटर, खीरा आदि भी फल हैं। फल के भीतर एक बीज होता

है जैसे-आम में एक या टमाटर में एक या एक से ज्यादा बीज होते हैं।



फल के भाग

फल के विभिन्न भागों की संरचना की जानकारी के लिए हम आम का

उदाहरण लेते हैं। फल के दो प्रधान भाग होते हें :

1) सबसे मध्य में कड़ा भाग बीज होता हे।

¡1) बीज के बाहर का समस्त मोटा भाग के भी तीन उपभाग होते हैं जिसमें

ऊपर का छिलका, बीच का गूदेदार भाग और अंदर का गुठली से जुड़ा

हिस्सा शामिल हे।

मूंगफली भी एक प्रकार का फल है, परंतु इसका ऊपरी भाग पूर्णतः सूखा होता है।



विज्ञान, स्तर-'"ख”'

फल के कार्य


1) बीज की सुरक्षा - फल बीज की सुरक्षा करता है, उसे रगड-खरोंच आदि

क्षतियों से बचाता है, तथा विपरीत मौसम (सूखा, गर्मी, ठंड आदि) से

भी सुरक्षा प्रदान करता है।


¡¡) प्राणियों को ललचाना (बीजों के बिखराव के लिए) -स्वादिष्ट और खाने

योग्य होने के कारण फलों को भांति-भांति के पशु-पक्षी और मानव भी

पेड़ से तोडते, उन्हें खाते और जहां-तहां बीजों-गुठलियों को बिखेर देते

हैं, जिससे पौधों का दूर-दूर तक फैलाव हो जाता हे।




1. फूल को साधे रखने वाला डंठल का क्या नाम हे?


2. फूल का सबसे बाहरी भाग बनाने वाली हरी संरचनाओं का क्या नाम है?

3. फूल से हमें क्या मिलता है?


@- आपने क्या सीखा

० जीवाणु (बैक्टीरिया) पृथ्वी पर पाए जाने वाले सरलतम और सबसे छोटे

जीव हैं।

० शेवाल (एऐल्गी) हरे रंग के प्राय: एक कोशिकीय, पानी में मिलने वाले

सरल जीव इनमें कोशिका-भित्ति तथा क्लोरोफिल होता हेै।

प्रोटोजो ~

° आ एक कोशिकीय जीव होते हें।


क्लोरोफिल गो ~ वाले

० कवक (फजाई) बिना क्लोरोफिल वाले प्रायः सूक्ष्मदर्शीय (कुछ काफी

बडे भी) जीव होते है।

० पौधे में जड़ तंत्र तथा प्ररोह तंत्र होता है।

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा


टिप्पणी

०° जडे सदैव नीचे को उगती-बढ्ती हैं। जड़ें दो प्रकार की होती हैं मूसला

जडे और रेशीय जड़े

झम ® जड़ों का कार्य पौधे को स्थिर रखना, मिट्टी से पानी और खनिज सोखना

और उन्हें ऊपर तनों, शखाओं आदि में भेजना होता हे। कुछ पौधों की

जडे भोजन का भंडारण करती हैं तथा कुछ की जडें नए पौधे भी बनाती

हैं।

० तना में पर्व तथा पर्वातर होते हैं। पर्वो पर पत्तियां लगी होती हैं। पत्तियां

प्रकाश-संश्लेषण द्वारा पौधे का भोजन बनाती हैं।






० फूल पौधे का जनन-अंग होते हैं। फूल के मुख्य भाग होते हैं (बाहर से

भीतर की ओर) अंखुडी या बाह्यदल, पंखुड़ी या दल, पुंकेसर तथा

स्त्रीकेसर।

० पंखुडि्यां पुष्पकली को सुरक्षा देतीं है। पंखुड्यां अपने रंगों से कीटों आदि

को आकर्षित करतीं तथा पुंकेसर पराग पैदा करते हैं, जो स्त्रीकेसर पर

जाकर फूल में फल लगाते हैं।



० फल बीज को सुरक्षा प्रदान करता है।

० फल सूखे (जैसे मूंगफली) अथवा गूदेदार (जैसे आम) प्रकार के होते हें।

० फल स्वादिष्ट होने के कारण प्राणियों को आकर्षित करते हैं, जिससे ये

उन्हें खाते और जहां-तहां गुठली या बीजों को यूं ही फेक कर पौधों का

फैलाव करते हैं।

< पाठात प्रश्‍न

1. निम्नलिखित कथन में सही या गलत का चिहन लगाइए-



1 जीवाणु पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे छोटे और सरलतम जीव

हैं। ( )

विज्ञान, स्तर-'"ख”'


1. कुछ जीवाणु पौधों की जड़ों में बनी मूल गांठों में रहते और

नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके पौधे की सहायता करते हैं। ()




i. दूध का खराब हो जाना और आलू तथा फलों का सड़ना-गलना |्स्पनी

शेवालों के द्वारा होता है। ( )

¡j४. शेवाल पोधे जेसे जीव है जिनमें न तो कोशिका भित्ति और न ही

क्लोरोफिल होता हे। ( )

v४. शैवालों को आहार की तरह नहीं खाया जा सकता। ( )



2. निम्न में से प्रत्येक के लिए एक उचित शब्द बताइए :

¡ पौधे का मिट्टी से ऊपर का भाग ...........

ji. दो पर्वों के बीच का भाग ..........

जोडे at

iii. वह डंठल जो पत्ती को स्तंभ से जोडे रखता हे ..........

3. निम्नलिखित के संक्षेप में उत्तर दीजिए :


1 जीवाणुओं के कोई चार उपयोग बताइए।


¡j¡. शेवालों के कोई दो उपयोग और कोई दो हानिकर प्रभाव बताइए।


iii. कवकों के कोई चार उपयोग बताइए।

४. पत्ती का मुख्य कार्य क्या हे?

४. स्तंभ के क्या कार्य हे?

vw. फूल के विविध भागों को बाहर से भीतर की ओर क्रमवत

लिखिए।

vii. फूल का कार्य बताइए।

मुक्त बेसिक शिक्षा - भारतीय ज्ञान परम्परा WW


 

RE

5.1

1. कोशिका भित्ती, क्लोरोफिल

2. अमीबा


टिप्पणी

3. कूटपादों

4. मशरूम

5.2

1. सही

2. गलत

3. सही

4. सही

5.3

1. पर्णवृत

2. बाद्यदल

विज्ञान, स्तर-'"ख”'