वेदों में जल संरक्षण
जल भी पञ्चमहाभूतों में से एक है। हमारी पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग पानी है, फिर भी पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही हे। क्या आप जानते हैं कि पानी की समस्या क्यों बनी रहती है? पानी अर्थात जल आता कहाँ से है? और जल हमारे लिए क्यों जरूरी हे?
अब तो एक समस्या और पैदा हो रही है कि जो भी काम में आ सकने वाला जल है, वह जहरीला होता जा रहा है। पीने योग्य जल की निरंतर कमी होती जा रही है। क्या आप जानते हैं कि इन सब का कारण क्या हे? इस जल प्रदूषण को रोकने में क्या हमारा भी कुछ योगदान हो सकता है? हमारी वैदिक संस्कृति में जल को बहुत महत्व दिया गया है। जल संरक्षण हमारे संस्कृति का एक मूल घटक रहा है। आइए, इस पाठ में जल के संघटन से लेकन इसके स्रोत, गुण, उपयोग तथा प्रदूषण आदि का अध्ययन करते हैं।
उद्देश्य
० जल की आवश्यकता और उपयोगिता को जान पाने में;
० जल के विभिन्न रूपों के को समझ पाने में;
० जल प्रदुषण और संरक्षण को समझ पाने में; और
० वैदिक संस्कृति में जल के महत्व को सतही तौर पर समझ पाने में।
जल को आवश्यकता
आपने यह जरूर अनुभव किया होगा कि यदि किसी दिन काफी देर तक हमें पीने के लिए पानी न मिले तो हमारी हालत खराब हो जाती हे। जल हमारे लिए ही नहीं बल्कि सभी सजीव वस्तुओं के लिए आवश्यक हे। हमारे शरीर का दो तिहाई से भी अधिक भार तो जल की वजह से होता हे। यही नहीं, हमारे शरीर की कई जेविक क्रियाओं के लिए जल आवश्यक है, जैसे भोजन पचाने के लिए, शरीर के अंगों को स्वस्थ रखने के लिए आदि।आप जानते हैं कि हमें भोजन पेड़-पौधों तथा जीव-जन्तुओं से मिलता है और इन सभी को भी जल की आवश्यकता होती है। जितने भी खाद्य पदार्थ होते हैं-जैसे आलू, टमाटर, सेब इन सब में काफी मात्रा में पानी होता है।