Falgun month festival (फाल्गुन मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)
फाल्गुन मास में जो दान, जप करे, ब्राह्मण-पूजन और भगवान विष्णु का पूजन करे जो मनुष्य महापातक नाश करने वाले इस व्रत तथा पूजन को करता है वह सब पापों से मुक्त होकर इस लोक तथा परलोक में विविध प्रकार के सुखों को भोगता है तथा समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। फाल्गुन मास में जो फाल्गुन नदी में स्नान करके भगवान गदाधर के दर्शन करते हैं वह पुन: जन्म नहीं लेते। इसी प्रकार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष के दिन दोपहर के समय फाल्गुन नदी में स्नान करने, दान देने से और विष्णु का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
जानकी नवमी
यह उत्तम व्रत फाल्गुन कृष्ण पक्ष की नवमी को किया जाता है। यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन समस्त सुहाग सामग्रियों से भगवती सीता का पूजन किया जाता है। इस दिन चावल, जौ, तिल आदि का हवन किया जाता है।
व्रत कथा-
एक बार राजा जनक के राज्य में अकाल पड़ा और सभी जीव- जन्तु भूख से पीड़ित होकर नाना प्रकार की व्याधियों से व्याप्त हो गए। इस पर जनकजी ने विद्वान पंडितों को बुलाकर अकाल के नाश का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा-"राजन आप स्वयं सोने का हल चलाकर रानी के सहयोग से खेती करना शुरू कर दें। इस प्रकार अन्न औषधि उत्पन्न करने के बाद उसी से यज्ञ करोगे तो न केवल आपके राज्य से अकाल का सर्वनाश हो जायेगा, अपितु आपको सन्तान की भी प्राप्ति होगी। क्योंकि आपके राज्य में दान-पुण्य और पूजा-अर्चना की अधिकता के कारण लोग कृषि से विमुख हो गए हैं।
ब्राह्मणों के ऐसे उपदेशयुक्त वचनों को सुनकर राजा. ने रानी के सहयोग से खेत में सोने का हल चलाया। राजा की देखा-देखी अन्य प्रजा भी खेती करने लगी। इसका यह फल हुआ कि सारे राज्य में अन्न, औषधियों का सुकाल होकर प्रजा निहाल हो गई। राजा ने अपने हाथ से उत्पन्न किए अन्न से यज्ञ आरम्भ किया। जिसके फलस्वरूप चारों ओर सुख का साम्राज्य हो गया। राजा-रानी का हल एक घड़े से टकराया। घड़े में एक अंगूठा चूसती हुई कन्या दिखाई दी। उस कन्या का राजा जनक ने नाम जानकी रखा और पालन-पोषण किया। चूंकि भगवती जानकी का जन्म 'सीता' (कुश-हल के अग्र भाग में लगाया जाने वाला एक औजार) के द्वारा हुआ था, इसलिए इनका नाम सीता भी था। इसका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्री राम से हुआ।
विजया एकादशी
यह उत्तम फलदायी व्रत फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत में श्री विष्णु का पूजन किया जाता है। व्रत धारण करने वाले को चाहिये कि प्रातःकाल उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर, स्नानादि से स्वच्छ वस्त्र धारण करे! सप्त अन्नयुक्त घट स्थापित करें। इसके ऊपर विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित करें। घड़े के ऊपर जौ से भरा एक बर्तन रखकर उसमें श्री विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित करें। शुद्ध मन से धूप-दीप के पश्चात् प्रात:काल अन्न से भरा घड़ा ब्राह्मण को दान देना चाहिये।
व्रत कथा-
जब वनवास के समय श्री राम को समुद्र ने पार करने के लिये मार्ग नहीं दिया तो भगवान राम ने सागर तट पर रहने वाले ऋषि-मुनियों से इसका उपाय पूछा। भगवान श्री राम की उत्कण्ठा को जानकर ऋषियों ने कहा-"हे मर्यादा