Magh month festival (माघ मास के अंतर्गत व्रत व त्यौहार)
धर्म-भ्रन्थों के अनुसार इस संसार में आकर जिसने माघ मास का स्नान नहीं किया, उसका जन्म निष्फल गया। माघ मास के स्नान के अनुसार कोई भी यज्ञ, तप तथा ज्ञान नहीं। माघ स्नान के लिये माघ मास का स्नान आवश्यक है। पापों का नाश और स्वर्ग की प्राप्ति इस मास के स्नान से होती है। मानव शरीर और मन ईर्ष्या करने वाला, लालची कृतघ्न तथा नाशवान दुःख से भरा हुआ है। दु:ख को धारण करने वाला और दुष्ट दोषों से भरा हुआ है, अत: यह शरीर माघ मास के स्नान के बिना व्यर्थ है। जल में बुलबुले के समान, मक्खी जैसे तुच्छ जन्तु के समान, यह शरीर माघ स्नान के बिना मृत्यु के समान है, भगवान विष्णु की पूजा न करने वाला ब्राह्मण बिना दक्षिणा के श्राद्ध आचाररहित कुल यह सब नाश के बराबर ही हैं। गर्व से धर्म का, क्रोध से तप, दृढ़ता के बिना ज्ञान, आलस्य से शास्त्र, गुरुजनों की सेवा करने से स्त्री तथा ब्रह्मचारी बिना जली अग्नि के हवन और बिना साक्षी के मुक्ति का नाश हो जाता है। जीविका के लिए रहने वाली कथा अपने ही लिए बनाये हुए भोजन की क्रिया, भिक्षा लेकर, किया हुआ यज्ञ यह सब विनाशकारक हैं। बिना अभ्यास और आलस्य वाली विद्या, असत्य वाणी तथा विरोध करने वाला राजा, जीविका के लिए तीर्थ यात्रा, जीविका के लिए व्रत, संदेहयुक्त मंत्र का जप वेदना जपने वाले को दान देना, संसार में नास्तिक मंत्र का ग्रहण करना, बिना श्रद्धा के की हुई धार्मिक क्रिया यह सब व्यर्थ है और जिस प्रकार दारिद्री का जीवन व्यर्थ है उसी तरह माघ स्नान के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।
माघ स्नान का समय जब आ जाता है तो सब पाप अपने आप नाश के भय से भाग जाते हैं। पापी मनुष्य भी पवित्र होकर स्वर्ग को चले जाते हैं। जिस प्रकार भगवान की भक्ति का ऊंच-नीच सबको अधिकार है, उसी प्रकार माघ स्नान का भी सबको अधिकार है।
गणेश चतुर्थी (संकट चौथ)
यह व्रत माघ कृष्ण पक्ष चौथ को किया जाता है। इसी दिन विद्या, बुद्धि-वरिधि. या गणेश और चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिये। दिन भर व्रती रहने के पश्चात् सायंकाल चन्द्रदर्शन होने पर दूध का अर्घ्य देकर चन्द्रमा की विधिवत् पूजा होती है, गौरी गणेश की स्थापना कर उनका पूजन और वर्ष भर उन्हें घर में रखा जाता नैवेद्य सामग्री तिल, ईख, गेजी, भांटा अमरूद, गुड़ और घी से चन्द्रमा गणेश का भोग लगाया जाता है। यह नैवेद्य रात्रि भर डलिया इत्यादि से ढक कर यथावत्र ख दिया जाता है। जिसे पहार कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र और पति के सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस ढके हुए पहार को पुत्र ही खोलता है-और भाई-बन्धुओं को बांटा जाता है जिससे प्रेम भावना स्थायी होती है।
व्रत कथा-
एक समय विषादाग्रस्त देवता लोग भगवान शंकर के पास गये। उस समय भगवान शिव के सन्मुख स्वामी कार्तिकेय और गणेशजी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा-तुममें से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे? तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य और सर्वोच्च देव पद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया इस बात पर शिवजी ने गणेशजी की इच्छा जाननी चाही। तब गणेशजी ने विनम्र भाव से कहा-"पिताजी आपकी अनुमति हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं। बड़ा देवता बनाये या न बनाये, इसकी