पुण्यभूमि भारत - मध्य भारत
मध्य भारत
भुवनेश्वर
यह ऐतिहासिक नगर वर्तमान उड़ीसा की राजधानी है। प्राचीन उत्कल राज्य की राजधानी भी यह नगर रहा है। यह मन्दिरों का नगर है। श्री लिंगराज मन्दिर, राजारानी मन्दिर तथा भुवनेश्वर मन्दिर यहाँ के विशाल व भव्य मन्दिर हैं। महाप्रतापी खारवेल की राजधानी भी यह नगर रहा है। खारवेल ने ग्रीक आक्रमणकारी डेमेट्रियस को भारत से बाहर खदेड़ दिया।
कटक
उत्कल का प्राचीन प्रशासनिक केंद्र । यह महानदी के तट पर विद्यमान है । नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म कटक में ही हुआ था । नगर में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थान है । महानदी के तट पर घवलेश्वर महादेव नाम का प्राचीन मंदिर है ।
याजपुर (जाजातिपुर)
यह प्राचीन नगरहै। ब्रह्माजी ने यहाँ यज्ञ किया था,अत: इसका नाम यज्ञपुर या योजपुर हुआ। यज्ञ से विरजादेवी का प्राकट्य हुआ जो आज विरजा देवी के मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। याजपुर को नाभिगया के नाम से भी जाना जाता है। वैतरणी नदी याजपुर के समीप बहती है। नदी के तट पर सुन्दर घाट व मन्दिर बने हैं। भगवान् विष्णु, सप्त मातृका, त्रिलोचन शिव नामक प्रमुख मन्दिरहैं। घाट से थोड़ी दूरी पर प्राचीन गरुड़ स्तम्भ व विरजा देवी का मन्दिर है। यह प्रमुख शक्तिपीठ है। भगवती सती का नाथि प्रदेश यहाँ गिरा था, अत: इसे नाभिपीठ भी कहा जाता है।
सम्भलपुर
सम्भलपुर महानदी के किनारे स्थित अति प्राचीन नगर है। ग्रीक विद्वान टालेमी ने (दूसरी शताब्दी) इसका वर्णन मानद' के तट पर स्थित 'सम्बलक' के रूप में किया है। यहीं पर परिमल गिरेि नामक बौद्ध विश्वविद्यालय था। वज़यान नामक बौद्ध सम्प्रदाय के प्रवर्तक इन्द्रभूति का जन्म-स्थान भी यही है। सम्बलेश्वरी या सामालयी यहाँ प्रधान पूज्य देवी हैं जो महानदी के तट पर स्थित सामलयी गुडी नामक मन्दिर में प्रतिष्ठित हैं। होमा, मानेश्वर पास ही स्थित पवित्र तीर्थ हैं।
कोणार्क
कोणार्क को प्राचीन पद्मक्षेत्र कहा जाता है।भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने यहाँ सूर्योपासना कर कुष्ठ रोग से मुक्ति पायी। साम्ब ने यहाँ पर सूर्य-मूर्ति की स्थापना की थी (यह मूर्ति अब पुरी संग्रहालय में सुरक्षित है)। वर्तमान में बना रथाकार सूर्य मन्दिर १३ वीं शताब्दी का है। इसकी कला उत्कृष्ट कोटि की है। विधर्मी आक्रमणकारियों ने इसे कई बार और लूटा,परन्तु पूरी तरह सफल नहीं हो पाये। मन्दिर का शिखर व पहिए टूटे हुए हैं। सूर्य-मन्दिर के पृष्ठभाग में सूर्य पत्नी संज्ञा का मन्दिर है। यह भी भग्नावस्था में हैं।
चिल्काझील
उड़ीसा (उत्कल) जहाँ आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध है,वाही प्राकृतिक सुषमा में भी बेजोड़ है । चिल्का झील इसका उदहारण है । यह मीठे व खारे पानी की एशिया की विशालतम झील है। चिल्का झील पुरी (जगन्नाथपुरी) के एकदम दक्षिण में स्थित है।शीत ऋतुमें यहाँ पक्षी विविध प्रकार के पक्षियों का अभ्यारण्य बना होता है। साइबेरिया तक से पक्षी जाड़ों में यहां ठहरते हैं। झील का क्षेत्रफल ११०० वर्ग कि.मी. है।
बालनगिरि
पठारी व पर्वतीय संरचना वाला यह क्षेत्र दक्षिणी कोसल के नाम से जाना जाता था। इसका वर्णन रामायणकाल में दक्षिणी कोसल के नाम से हुआ है। बौद्धकाल मेंइसका वैभव शिखर पर था। सहजयान नामक बौद्ध विचारधारा का विकास यहीं पर हुआ। सोनपुर बालनगिर के पास स्थित मन्दिर नगर के रूप में जाना जाता है।
राउरकेला
राउरकेला उड़ीसा का सबसे बड़ा नगर व औद्योगिक केन्द्र है। यह राज्य की सामाजिक व औद्योगिक गतिविधियों का नाभिक है। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रथम तीन कारखानों में से एक १९५५ में इस नगर में स्थापित किया गया, तभी से इसकी निरन्तर प्रगति हो रही है।
छतरपुर
चिल्का झील के दक्षिण में स्थित छतरपुर प्रमुख तटीय नगर है ।
फूलवनी
पूर्वी उड़ीसा का प्रमुख सांस्कृतिक नगर है ।
अमरकंटक
अमरकंटक मैकाल या मिकुल पर्वत का उच्च शिखर हैं । नर्मदा (रेवा ) का उद्गम स्थान अमरकंटक पर स्थित एक कुण्ड है, इस कुण्ड का नाम कोटितीर्थ है । समुद्रतल से अमरकंटक लगभग १००० मीटर ऊँचा है । अमरकंटक शिखर पर अमरनाथ महादेव, नर्मदा देवी, नर्मदेश्वर व अमरकंटकेश्वर के मंदिर बने है । यहाँ पर कई शैव व् वैष्णव मंदिर तथा पवित्र सरोवर व् कुण्ड है । केशव नारायण तथा मत्स्येन्द्रनाथ के मंदिर प्रमुख है । मार्कंडेय आश्रम, भृगुकमण्डल, कपिलधारा आदि ऋषियों के प्रसिद्ध स्थान अमरकंटक के आसपास ही है । कालिदास द्वारा रचित 'मेघदूत ' में इसे आम्रकुट नाम दिया गया है । शोणभद्र और महानदी के उद्गम स्थान अमरकंटक के पूर्वी भाग में है । महात्मा कबीर ने अमरकंटक के पास काफी समय तक निवास कर जनचेतना जगायी ।
जबलपुर
नर्मदा-नदी पर स्थित मध्यप्रदेश का प्रख्यात नगर। प्राचीन काल में नर्मदा के तट पर यहीं जाबालि ऋषि का आश्रम था। इस कारण यहाँ की बस्ती का नाम जाबालि पत्तनम् या जाबालिपुर पड़ा। यहाँ एक सुन्दर सरोवर और अनेक पुरातन व नवीन मन्दिर हैं।महारानी दुर्गावती ने भी इसे अपनी राजधानी बनाया था। सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र ने नर्मदा-तट पर मुकुट क्षेत्र में तपस्या की थी। भूगु ऋषि की तपस्थली भेड़ाघाट (संगमरमर का प्राकृतिक स्थल)जबलपुर के समीप ही है। देवराज इन्द्र ने यहीं पास में नर्मदा-तट पर तपस्या की थी। यहाँ पर इन्द्रेश्वर शिव का प्राचीन मन्दिर बना है।
गढ़मंडला
पूर्वी मध्यभारत में स्थित यह एक ऐतिहासिक किला है। महारानी दुर्गावती की शौर्य-गाथा का साक्षी है यह किला। महारानी दुर्गावती ने छतरपुर यहीं पर मुगल शासक अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिये थे। गढ़ मण्डला नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित विशाल दुर्ग है। दुर्ग में राजराजेश्वरी देवी का पुराना मन्दिर है। इस मन्दिर में सहस्त्रार्जुन तथा विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। दुर्ग के सामने महर्षि व्यास का आश्रम तथा व्यास नारायण शिवमन्दिर हैं। यहाँ शिवरात्रि को विशाल मेला लगता है।
पंचमढ़ी
पंचमढ़ी एक छोटी पहाड़ी पर स्थित सुरम्य स्थल है। यहाँ जटाशंकर महादेव का गुफा मन्दिर है। चारों ओर पहाड़ियों से घिरे एक गुफानुमा स्थान परजटाशंकर महादेव विराजमान हैं।इस गुफा में प्राय: खड़े-खड़े सर्प मिलते हैं, परन्तु तीर्थ-यात्रियों को हानि नहीं पहुँचाते। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद प्राय: यहाँ आया करते थे।
भण्डारा
महाराष्ट्र का पुराना नगर तथा शैवों का पवित्र तीर्थ है। यहाँ खुदाई के दौरान कईपुरानी मूर्तियाँ प्राप्त हुई। हिरण्येश्वर शिव मन्दिर में खुदाई से प्राप्त अति प्राचीन शिवलिंग प्रतिष्ठित है। रामदूत हनुमान् का भी सुन्दर मन्दिर है यहाँ। शिवरात्रि व वसंत पंचमी पर यहाँ मेला लगता हैं।
रामटेक
नागपुर के पास एक प्राचीन कस्बा है रामटेक। वनवास के समय भगवान् श्री राम ने जानकी व लक्ष्मण के साथ यहाँ कुछ दिन निवास किया था। अत: यह स्थान रामटेक कहलाता है। बस्ती के पास रामगिरेि पर्वत है। पर्वतशिखर परश्रीराम मन्दिर में राम, सीता तथा लक्ष्मण एवं भगवान वाराह की मूर्तियाँ हैं। एक पुराना किला है। जिसमें बावड़ी व मन्दिर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरूजी का यह पैतृक स्थान है।
अमरावती
अमरावती महाराष्ट्र का एक सुन्दर नगर है। इसे देवताओं की नगरी माना जाता है,अत: इसे अमरावती नाम दिया गया है। एक छोटी सी नदी के तटपर यह नगरी बसी है। नदी के तट पर वीरा देवी का सुन्दर मन्दिर है। नदी के दूसरे तट पर अम्बा जी का मन्दिर है। इन मन्दिरों की आसपास के क्षेत्र में बहुत मान्यता है। पास के गाँव में नीललोहित महादेव का मन्दिर है। यहाँ करंज ऋषि भगवती की तपस्या कर रोगमुक्त हुए थे।
नागपुर
नागपुर प्रसिद्ध भोंसले शासकों की राजधानी रहा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान डा. बालकृष्ण मुंजे, वीर सावरकर, लोकमान्य तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले का कार्य-क्षेत्र बनने का श्रेय भी इस नगर को हुआ। सन् १९२५ (विजया दशमी सं. १९८२ वि) में यहीं पर संघ कार्य का श्रीगणेश हुआ।भोंसले राजाओं का सीतावड़ीं नामक किला तथा डॉक्टर हेडगेवार और श्रीगुरुजी की समाधियाँ यहाँ के प्रमुख स्थान हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केन्द्रीय कार्यालय (मुख्यालय) भी यहीं है।
वाशिम (अकोला)
ज्योतिष व खगोल शास्त्र का अध्ययन करने की दृष्टि से वाशिम उपयुक्त स्थान है।भारत कीअक्षांश व देशान्तर रेखा-गणना का यह केन्द्र बिन्दु है।इसी कारण इसका एक नाम मध्यमेश्वर है। यहाँ पर वत्स ऋषि का आश्रम था,अत: इसका प्राचीन नाम वत्स गुल्म है। बस्ती के बाहर एक पवित्र सरोवर व बालाजी का मन्दिर है। दूर-दूर से तीर्थयात्री यहाँ स्नान व दर्शन के लिए आते हैं।
नाशिक
गोदावरी-तट पर स्थित नासिक हिन्दुओं का अति पवित्र स्थान है। प्रति बारहवें वर्ष यहाँ कुंभ का आयोजन किया जाता है। बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर कुंभपर्व का प्रावधान है। गोदावरी के एक तट पर नासिक का मुख्य भाग अवस्थित है और दूसरे तट पर पंचवटी विराजित है। पंचवटी वह पवित्र स्थान है जहाँ वनवास के उत्तरार्ध में श्री राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ निवास किया था। आसपास अनेक मन्दिर और पवित्र स्थान हैं।
रांची
बौद्ध मतावलम्बियों का प्रमुख तीर्थ-स्थान है। यहाँ परभगवान बुद्ध के समय बने विहार विद्यमान हैं। गोलाकार छत वाले कई स्तूप यहाँ हैं। यहाँ के स्तूप कलात्मक दृष्टि से बेजोड़ हैं। सबसे ऊँचा स्तूप ४२ फुट का है। इसमें भगवान् बुद्ध के प्रथम अनुयायी की अस्थियाँ रखी हैं। विश्वभर के बौद्ध यहाँ यात्रा व दर्शन के लिए आते हैं।
विदिशा
प्राचीन काल की समृद्ध नगरी। अनेक पुराने भवनों के अवशेष आज भी इसकी कहानी कहते हैं।
भोपाल
वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी व प्राचीन नगर है। यहाँ एक अति विशाल तालाब है जो अद्वितीय कहा जा सकता है। अत: यह कहावत है, ‘तालों में ताल भोपाल और सब तलैया हैं"।
इन्दौर
मध्यप्रदेश का प्रमुख नगर वऔद्योगिक केन्द्र।धर्मपरायण, प्रजावत्सला महारानी अहिल्याबाई की राजधानी रही है इन्दौर।
अजन्ता
जलगाँव से लगभग ६० कि.मी. दूरी में चित्र-गुफाएँ अर्द्धचन्द्राकार स्थिति में पर्वत को काटकर बनायी गयी हैं।अजन्ता समूह में २९ गुफाएँ हैं। ये सब गुफाएँ बौद्ध चैत्य या बौद्ध विहार हैं। गुफाओं की दीवारों पर सुन्दर चित्रकारी की गयी है। इनका निर्माण अलग-अलग कालखण्डों में किया गया है। सबसे पुरानी गुफा की चित्रकारी 200 ई. पूर्व की है। सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी ये चित्र खराब नहींहुए। इनमें कुछ भित्तिचित्र तो चित्रकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
एलोरा
धृष्णेश्वर से मात्र २ कि.मी. की दूरी पर स्थिति ये गुफाएँ एक मील के घेरे में विस्तृत हैं।इस स्थान का एक नाम वेरूल भी है। यहाँ ३४ गुफा मन्दिर अथवा विहार हैं। क्रमांक १ से १३ तक की गुफाएँ बौद्ध मत से सम्बन्धित हैं। क्रमांक १४ से २९ तक की गुफाएँ शैव व वैष्णव मत का प्रतिनिधित्व करती हैं। शेष क्रमांक ३० से ३४ तक की गुफाएँ जैन मन्दिर हैं।इन्द्र गुफा, जगन्नाथ सभा तथा कलास गुफा अधिक प्रभावशाली हैं।
सूरत
गुजरात राज्य का यह प्रमुख नगर तापी या ताप्ती के तट पर बसा है। सूरत का पुराना नाम सूर्यपुर है। देव-वैद्य अश्विनीकुमारों ने यहाँ तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया। वैद्यराज महादेव व अम्बाजी के मन्दिर यहाँ के सर्वप्रमुख मन्दिर हैं। टालेमी ने सूरत की पहचान फूलपाद के रूप है किआदि शांकराचार्य नेअपना वेदान्त भाष्य यहीं लिखा। ए.डी. बारबोसा नामक पुर्तगाली यात्रा ने सूरत का वर्णन एक व्यापारिक केन्द्र व प्रमुख पत्तन के रूप में किया है। सूरत केवल व्यापार का ही केन्द्र नहीं रहा वरन शिक्षा केन्द्र के रूप में भी विकसित हुआ।
खम्भात
खम्भात माही व साबरमती नदी के मध्य में स्थित प्राचीन पत्तन (बन्दरगाह) है। यह पत्तन खम्भात की खाड़ी के शीर्ष पर अति सुरक्षित स्थिति में था। प्राचीन साहित्य इसको स्तम्भ तीर्थ, ताम्रलिफित, त्रम्बावती माहीनगर औरभोगावती के नाम से पुकारा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर विजय के उपलक्ष्य में एक स्तम्भ स्थापित कराया और स्तम्भेश्वर शिव की स्थापना की, अत: इसका नाम स्तम्भ तीर्थ पड़ा। बाद में नाम स्तम्भों से बिगड़कर खम्भ और खम्भात हो गया।
एक अन्य विवरण के अनुसार खम्भात की व्युत्पत्ति स्कम्भ से हुई। स्कम्भ शिव का प्रतीक है। खम्भात पुराना शैव तीर्थ है, अत: स्कम्भ से खम्भात बन गया। वल्लभी और सोलंकी शासनकाल में खम्भात भारत का सबसे विशाल पत्तन था।अरब यात्रियों ने इसे बौद्ध तीर्थ के रूप में पाया। चालुक्य काल में यहाँ जैन तीर्थों का विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन आचार्य हेमचन्द्र सूरी ने यहीं दीक्षा ली। सुरक्षा की दृष्टि से भी खम्भात महत्वपूर्ण रहा। सोलंकी शासकों ने यहाँ सुदूढ़ नौसैनिक बेड़ा व सेना का आधार (छावनी) बनाया। परन्तु कालक्रम से सब नष्ट हो गया- विशेषत: विदेशी विधर्मी लुटेरों के कारण। ये मुस्लिम आक्रान्ता मन्दिरों को अपना निशाना बनाते थे, अत: शिखरयुक्त मन्दिरों का निर्माण बन्द हो गया। परिणामत: आज के मन्दिर घरों में ही बने हैं, बाहर से उनका पता नहीं चलता।
पालिताणा ( शत्रुंजय )
पालिताणा व शत्रुजय अविभाज्य हैं। पालिताणा मुख्यरूप से आवासीय क्षेत्र है,जबकि शत्रुंजय पूर्ण रूप से मन्दिरों का परिसर है। यह मणिकांचन संयोग विश्व मेंअद्वितीय है। मन्दिरों का परिसर शत्रुंजय ६०० मीटर ऊँचे पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है। पहाड़ी में ८६० से अधिक मन्दिर, ११००० प्रतिमाएँ और लगभग ९00 पादुकाएँ (चरणचिह्न) हैं। इनमें १०६ बड़े मन्दिर हैं। सम्पूर्ण देश और विदेश से भी तीर्थ-यात्रियों का तांता लगा रहता है। सबसे प्रमुख मन्दिरों में आदिनाथ, विमलशाह, चौमुख, सम्प्राप्तिराजा, हनुमान, हिंगलाज माता मन्दिर हैं। पालिताणा शब्द का उद्भव पादलिप्त या पालित से हुआ है। योगी नागार्जुन ने अपने गुरु पादलिप्त की स्मृति में पालिताणा की स्थापना की थी। यहाँ का चौमुख मन्दिरइतना विशाल है कि ४० किमी. दूरी से भी दिखाई देता है।
जूनागढ़
नरसी भक्त का जन्म जूनागढ़ में हुआ था। यह नगर गिरनारपर्वत की तलहटी में अवस्थित है। पूर्व में गिरनार पर्वत है, अत: इसका नाम गिरिनगर भी है। नगर में कई धर्मशालाएँ व देव-मन्दिर हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य की निवास भूमि यही नगर है। नगर के पास पर्वतीय चढ़ाई पर ऊपरकोट नामक पुराना किला है। इसमें अनेक बौद्ध प्रतिमाएँ तथा हनुमानजी की विशाल मूर्ति है। वामनेश्वर शिव, मुचकुन्द महादेव, नेमिनाथ,अम्बिका शिखरआदि प्रमुख मन्दिर व धर्मस्थल हैं।चढ़ाई पर भर्तृहरि गुफा भी विद्यमान हैं।
पोरबन्दर ( सुदामापुरी )
भगवान् श्री कृष्ण के परम मित्र विप्र सुदामा का जन्म पोरबन्दर में हुआ था,अत: यह पवित्र तीर्थ बन गया और सुदामापुरी कहलाया। यह एकदम समुद्रतट पर स्थित है। विगत शताब्दी में महात्मा गाँधी का जन्म भी पोरबन्दर में ही हुआ,अत:इसका महत्व और भी बढ़ गया। गांधीजी के जन्म-स्थान को कीर्ति मन्दिर के रूप में संवारा गया है। इस नगर में सुदामा मन्दिर के अतिरिक्त श्रीराम मन्दिर, राधाकृष्ण मन्दिर, पंचमुखी महादेव और अन्नपूर्णा मन्दिर हैं।
कर्णावती (अहमदाबाद)
साबरमती नदी के तटपर गुजरात राज्य का यह सबसे बड़ा नगर है। इसका पुराना नाम कर्णावती है।भारत में वस्त्र उद्योग का मुम्बई के बाद यह सबसे बड़ा केन्द्र है। अनेक वर्षों तक यह गुजरात की राजधानी रहा महात्मा गांधी का साबरमती आश्रम यहीं है। इसी आश्रम से गाँधीजी ने ऐतिहासिक दांडी यात्रा प्रारम्भ की थी। नगर में अनेक धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल हैं।दुधारेश्वर, नृसिंह, हनुमान, भद्रकाली के मन्दिर यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। दधीचि ऋषि का आश्रम यहीं साबरमती के तट पर था ।
छत्रपति शिवाजी महाराज की कर्मभूमि मुख्य रूप से सह्याद्रि पर्वतमाला के आसपास का क्षेत्र रहा है। यहाँ उनके कार्य से सम्बन्धित अनेक दुर्ग एवं ऐतिहासिक स्थान हैं। इस प्रकार के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं।
रायगढ़
यहअति महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दुर्ग है।यहाँ पर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था। शिवाजी महाराज की समाधि भी इसी दुर्ग में है। यह कोलाबा जिले के अन्तर्गत पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि शिवाजी तथा समर्थ स्वामी रामदास द्वारा स्थापित एवं पूजित देव-विग्रह भी यहाँ प्रतिष्ठित है। शिवाजी महाराज के समय के अनेक भवन, सभाग्रह, सरोवर तथा मन्दिर आज भी विद्यमान हैं। मुख्य मन्दिर भवानी मन्दिर व श्री जगदीश्वर मन्दिर हैं। मन्दिर के पश्चिमी द्वार के पास स्वामी रामदास द्वारा स्थापित महावीर हनुमान् की मूर्ति है। दुर्ग के प्रारम्भिक भाग में तोपखाने का स्थान तथा तोपखाना-प्रमुख मदारशाह की कब्र है। वैशाख शुक्ल द्वितीया (शिवाजी जयन्ती) तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी(राज्याभिषेक दिवस% हिन्दू साम्राज्य दिवस) केअवसर पर बृहत् उत्सव मनाये जाते हैं।
पुणे
शिवाजी महाराज और पेशवाओं के शौर्य की गाथा कहने वाला पुणे नगर महाराष्ट्र का प्रसिद्ध नगर है। औरंगजेब के घमण्डी सेनापति शाइस्ताखां को यहीं पर शिवाजी की चमत्कारिक शक्ति का आभास हुआ था, जिसके कारण रात को ही अपनी अंगुलियाँ गाँवाकर उसे भागना पड़ा था।पुणे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कीभी कर्मभूमि है। तिलक द्वारा है। अब पास में ही नयी राजधानी गांधीनगर का निर्माण किया गया है। स्थापित कई संस्थाएँ व विद्यामन्दिरआज भी कार्यरत हैं।श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर, जैन मन्दिर, पार्वती मन्दिर, पेशवा काल के भवन, शिवाजी महाराज कीअश्वारूढ़ प्रतिमा पुणे के मुख्य आकर्षण केन्द्र हैं। ज्ञानेश्वरी के रचयिता सन्त ज्ञानेश्वर की समाधि (आलंदी) और सन्त तुकाराम का जन्म स्थान देहू पुणे के पास ही हैं।
शिवनेरी
यद्यपि शिवनेरी दुर्ग बहुत पुराना है, परन्तु शिवाजी महाराज का जन्म स्थान होने का सौभाग्य भी इसे मिला है अत: इसकी प्रसिद्धि और महत्व भी बढ़ गया है। किले में शिवाई देवी का मन्दिर है। इनकी आराधना से ही जीजाबाई ने शिवाजी जैसा पुत्ररत्न प्राप्त किया। यहीं पर बालक शिवा ने प्रारम्भिक संस्कार प्राप्त किये।
सिंहगढ़
पूणे से २५-२६ कि. मी. दूरी पर इतिहास-प्रसिद्ध सिंहगढ़ स्थित है। इसका पुराना नाम कोंडाना था।शिवाजी के वीर सेनापति तानाजी मालसुरे ने आत्म बलिदान के कारण ही इसका नाम सिंहगढ़ हुआ।
प्रतापगढ़
दुर्गम पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी केबुद्धि-चातुर्य तथा शौर्य का प्रत्यक्ष साक्षी है। बीजापुर का शासक शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से बहुत चिन्तित था। उसने अपने सरदार अफजलखां से शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ लाने को कहाँ परन्तु वह धूर्त अपने उद्देश्य में सफल न होकर प्रतापगढ़ के पास एक छोटे से समतल स्थान परअपने ही प्राण दे बैठा। नियत स्थान पर मिलने के समय अफजलखां ने शिवाजी परतलवार से प्रहार किया, परन्तु शिवाजी पहले से ही सचेत थे। उन्होंने अपने बघनखे से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं तथा बिछवां कटार से उसके सीने को भेद कर सदा के लिये ठंडा कर दिया। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने सन् १६६१ ई0 में तुलजा भवानी की प्रतिष्ठा की। भारत के स्वतंत्र हो जाने पर प्रतापगढ़ में शिवाजी का भव्य स्मारक बनाया गया जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने बड़ी होलो हुज्जत के बाद किया।पुरन्दर,चाकन, मकरन्दगढ़, पन्हालागढ़आदि अन्य प्रमुख दुर्ग भी शिवाजी महाराज की शौर्य - कथा सुनाते है ।
महाबलेश्वरम्
पर्वतमाला के पश्चिमी ढाल पर स्थित महाबलेश्वरम् अति प्राचीन शैव तीर्थ है।भगवान् विष्णुने अतिबल तथा आदिमाया ने महाबल नामक दैत्यों का वध यहीं किया था। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने लोकमंगल के लिए यहाँतपस्या कीथी। कृष्णा नदी का उद्गम स्थान यही है। महाबलेश्वर,अतिबलेश्वर तथा कोटीश्वर ये तीन मन्दिर तो यहाँ हैं ही, कृष्णा बाई व बलसोम नामक मन्दिर भी हैं। अहिल्याबाई द्वारा निर्मित रुद्रेश्वर तथा समर्थ रामदास द्वारा श्रीमारुति की प्रतिष्ठा भी यहाँ की गयी हैं ।
मुम्बई (बम्बई)
वर्तमान महाराष्ट्र की राजधानी,प्रमुखतम पत्तन तथा औद्योगिक नगरी मुम्बई। पश्चिमी समुद्र-तट के एक सुरक्षित स्थान पर विद्यमान है। यहाँ मुम्बादेवी का प्राचीन मन्दिर है। यह यहाँ की आराध्या देवी हैं। इनके आधार पर ही इस नगर का नाम मुम्बई पड़ा।मुम्बई के अन्य मुख्य मन्दिरों के नाम इस प्रकार हैं :
१ , लक्ष्मीनारायण मन्दिर - माधव बाग में
२ . महालक्ष्मी- परेल से दक्षिण में समुद्रतट पर
३ . हनुमान जी - माटूगा में
४ , कालबादेवी - स्वदेशी बाजार में कालबा रोड पर
तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी हैं। ये छत्रपति शिवाजी की परमाराध्या हैं। स्वयं तुलजा भवानी ने शिवाजी को खड्ग प्रदान कर आशीर्वाद दिया था। मूल तुलजा भवानी शोलापुर से ४० किमी. दूर तुलजापुरमें विराजमान हैं। शिवाजी ने प्रतापगढ़ व रायगढ़ में भी इनको प्रतिष्ठित कराया ।
५ , द्वारिकाधीश- ६ विभिन्न व एक पारसी मन्दिर।
धारापुरी (एलिफेंट) में मुम्बई के पास द्वीप पर स्थिति अनेक गुफा मन्दिरएलोरा शैली में बनाये गए हैं।शिवरात्रि के पर्व पर धारापुरी में मेला लगता है।
देवगिरी ( दौलताबाद )
यादववंश की प्राचीन राजधानी देवगिरेि ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ एक प्राचीन किला है। किले में एक बच्चे स्थान पर जनार्दन स्वामी की समाधि है। मुस्लिम आक्रमणों के समय इस नगर के वैभव को बड़ा धक्का लगा। मुस्लिम आक्रमणकारी तुगलक ने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य दूढ़ करने के उद्देश्य से देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया, परन्तु वह सफल न हो सका और वापिस लौट आया, तभी से देवगिरि का नाम दौलताबाद पडा।
पैठण
यह प्राचीन तीर्थ क्षेत्र हैं तथा यहाँ शालिवाहन राजाओं की राजधानी थी।पुराने खण्डहरआज भी यहाँ विद्यमान हैं। प्राचीन विद्याकेन्द्र के रूप में भी पैठण को मान्यता प्राप्त थी। सन्त एकनाथ यहीं रहकर भगवत्भक्ति में लीन रहते थे। उनका निवास आदिआज भी सुरक्षित है। एकनाथ जी की समाधि गोदावरी तट पर बनी है। प्रसिद्ध सन्त श्री कृष्णदयार्णव का निवास व समाधि भी यहाँ विद्यमान हैं। सन्त ज्ञानेश्वर ने पैठण में ही भैंसे के मुख से वेद-मंत्र उच्चारित कराये थे। ढोलकेश्वर तथा सिद्धेश्वर यहाँ के प्राचीन मन्दिर हैं। औरंगजेब ने छोलकश्वर मन्दिर को ध्वस्त करने का विफल प्रयास किया था। मूर्ति में जंजीर बांधने के निशान आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। इसका पुराना नाम प्रतिष्ठान है।
पंढरपुर
पवित्र भीमा नदी के तटपर स्थित यह पवित्र स्थान महाराष्ट्र का प्रमुख तीर्थ है। सन्त नामदेव, तुकाराम, नरहरि, भक्त पुण्डरीक आदि ने यहाँ निवास किया और धर्म-प्रसार किया। श्री विट्ठल मन्दिर पंढरपुर का विशाल व प्रमुखतम मन्दिर है। भगवान् पंढरीनाथ यहाँ आराध्यदेव हैं। सन्त नामदेवजी की समाधि श्री विट्ठल मन्दिर के परिसर में ही है।
नांदेढ़
यहाँ गुरु गोविन्द सिंहजी की समाधि और विशाल गुरुद्वारा है। बन्दा वैरागी यहीं जंगलों में तपस्यारत मिले। गुरु गोविन्द सिंह ने उन्हे देश की तब वे देश परआये संकट से जूझने और आक्रमणकारियों को खदेड़ने के लिए संघर्षरत हुए। यहीं परएक मुसलमान युवक ने धोखे से गुरुगोविन्द सिंह पर कटारी से प्रहार किया जो उनके लिए प्राणघातक सिद्ध हुआ। यहाँ पहले चारोंओर जंगल ही जंगल था,परन्तुआज पवित्र तीर्थ स्थान बन गया है।