बाल संस्कार - पुण्यभूमि भारत
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्वेश्चेव दक्षिणम्।
वर्ष तद्भारत नाम भारती यत्र सन्तति:।
हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित महान देश भारतवर्ष के नाम से जाना जाता है, यहाँ का पुत्र रूप समाज भारतीय हैं । प्रत्येक भारतीय को यह देश प्राणों से प्यारा है। क्योंकि इसका कण-कण पवित्र है, तभी तो प्रत्येक सच्चा भारतीय (हिन्दू) गाता है-"कण-कण में सोया शहीद, पत्थर-पत्थर इतिहास है"।इस भूमि पर पग-पग में उत्सर्ग और शौर्य का इतिहास अंकित है। श्री गुरुजी गोलवलकर उसकी साक्षात् जगज्जननी के रूप में उपासना करते थे। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीपाद शिला पर इसका जगन्माता के रूप में साक्षात्कार किया। वह भारत माता हमारी आराध्या है। उसके स्वरूप का वर्णन वाणी व लेखनीद्वारा असंभव है, फिर भी माता के पुत्र के नाते उसके भव्य-दिव्य स्वरूप का अधिकाधिक ज्ञान हमें प्राप्त करना चाहिए। कैलास से कन्याकुमारी, अटक से कटक तक विस्तृत इस महान भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों व धार्मिक स्थानों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा हैं ।
इस लेख में पुण्यभूमि भारत की विशेष परिचयों को दर्शाया गया है जिनसे हमारे पुरातन इतिहास को वर्त्तमान की धारा के साथ परिचय बनाया जा सके | इतिहास के सौर्य को भुलाने के कारण आज की पीढ़ी अपने आपको निर्बल और असहाय समझती है |
पुण्यभूमि भारत का परिचय निम्नलिखित बिन्दुओ द्वारा :-
१) पवित्र नदियाँ
२) पंच सरोवर
३) सप्त पर्वत
४) चार धाम
५) मोक्षदायिनी सप्तपुरी
६) द्वादश ज्योतिलिंग
७) शक्तिपीठ
८) उत्तर-पश्चिम एवं उत्तर भारत
९) पूर्वोत्तर एवं पूर्वी भारत
१०) मध्य भारत
११) दक्षिण भारत
आइये अब हम सभी इन सभी बिन्दुओ को विस्तृत रूप से जानने का प्रयास करेंगे |
पवित्र नदियाँ
अनेक पवित्र नदियाँ अपने पवित्र जल से भारत माता का अभिसिंचन करती हैं। सम्पूर्ण देश में इन नदियों को आदर व श्रद्धा के साथ स्मरण किया जाता है। इनके पवित्र तटों पर विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन किये जाते हैं, प्रत्येक हिन्दू इनके जल में डुबकी लगाकर अपने आपको को धन्य मानता है ये नदियाँ भारत के उतार-चढ़ाव की साक्षी हैं। हमारी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अंसख्य तीर्थ इन नदियों के तटों पर विकसित हुए।
गंगा
गंगा भारत की पवित्रतम नदी है। सूर्यवंशी राजा भगीरथ के प्रयासों से यह भारत-भूमि परअवतरित हुई। उत्तरप्रदेश के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री शिखर पर गोमुख इसका उद्गम स्थान है। गंगोत्री के हिम से पुण्यसलिला गंगा अनवरत जल प्राप्त करती रहती है। यह गांग-जल की ही विशेषता है कि अनेक वर्षों तक रखा रहने पर भी यह दूषित नहीं होता। गंगा-जल का एक छींटा पापी को भी पवित्र करने की क्षमता रखता है। गंगा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी, पाटलिपुत्र आदि पवित्र नगर श्रद्धालुजनों को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करते हैं। गंगा भागीरथी, जाह्नवी, देवनदी आदि नामों से भी पुकारी जाती है। यमुना, गण्डक, सोन, कोसी के जल को समेटते हुए गंगा समुद्र में मिलने से लगभग 300 कि मी. पहले ही कई शाखाओं में विभक्त होकर ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर विश्व के सबसे बड़े त्रिभुजाकार तटवर्ती मैदान (डेल्ट) का निर्माण करती से लगभग १२५ कि. मी. दक्षिण में गांगासागर नाम का पवित्र स्थल है, यहीं पर कपिल मुनि का आश्रम था जहाँ सगर-पुत्रों की भस्मी को आत्मसात कर गंगा ने उनका उद्धार किया था। गोमुख गंगोत्री से १४५० कि.मी. लम्बी यात्रा पूर्ण कर पतितपावनी गंगा गंगासागर में मिल जाती है। हिन्दू की मान्यता है कि गंगा के किनारे किये गये पुण्य कर्मों का फल कई गुना अधिक हो जाता है। गंगा-तट पर पहुँचकर पापी के हुदय में अच्छे भावों का संचार होने लगता है।आषाढ़, कार्तिक, माघ, वैशाख की पूर्णिमा, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, माघ शुक्ल सप्तमी तथा सोमवती अमावस्या को गंगा में स्नान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। ऋग्वेद, महाभारत, भागवत पुराण, रामायण आदि में गंगा का महात्म्य विस्तार से वर्णित है। सच्चाई तो यह है कि गांगा सब तीर्थों का प्राण है। भागवत पुराण के अनुसार गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से मैदान में निर्गम ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हुआ।
यमुना
सूर्य-पुत्री यमुना भारत की पवित्रतम नदियों में से एक है। गांगा के स्मरण के साथ-साथ यमुना का भी स्मरण किया जाता है, तभी तो स्नान करते समय इसका आहवान करके पवित्र होने की कामना की जाती है
“गंगे च यमुने चैव गोदावर सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरेि जलेअस्मिन् सन्निधिों कुरू।"
यमुना का उद्गम यमुनोत्री शिखर से है।जहाँ देवी यमुना का मन्दिर बना हुआ है। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में १५० कि.मी. की यात्रा करते हुए यह नदी अनेक छोटे-बड़े स्त्रोतों से जल ग्रहण कर बड़ी नदी बनकर मैदानी भाग में प्रवेश करती है। गांगा के लगभग समानान्तर बहते हुए यमुना प्रयाग में गंगा में मिल जाती है। मथुरा, वृदांवन,आगरा, इन्द्रप्रस्थ(दिल्ली) आदि प्राचीन नगर इसके किनारे बसे हैं। यमुना को यम की बहिन कहा जाता है। यम द्वितीय(मैयादूज) को यमुना में स्नान करना बड़ा पुण्य-प्रदाता है। कार्तिक मास यमुनास्नान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
सिन्धु
सिन्धु को केवल भारतवर्ष की वरन विश्व की विशाल नदी होने का श्रेय प्राप्त है। सिन्धु का उद्गम-स्थान तिब्बत में स्थित केंलास-मानसरोवर के पास है। २५० कि. मी. तिब्बत में तथा ५५० कि.मी. जम्मू-कश्मीर राज्य में बहने के बाद यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है। कश्मीर में सिन्धुनदी ५२०० मीटर गहरी घाटी में होकर बहती है। पाकिस्तान में सिन्धु नदी में सतलुज तथा सहायक नदियाँ झेलम(वितस्ता), चिनाव(चन्द्रभाग), रावी, व्यास आपस में संगम बनाती हुई मिलती हैं। अपनी सिन्धु के समान विशालता के कारण ही इसका नाम सिन्धु पड़ा। इसकी लम्बाई २८८० कि. मी. है। इसका जल-ग्रहण क्षेत्र ११,६६,००० वर्ग कि.मी. में विस्तृत है। कराची के समीप यह नदी सिन्धुसागर में मिल जाती है। कैलास - मानसरोवर, साधुवेला, सक्खर इसी के तट पर स्थित हैं।ऋग्वेद में वर्णित 'सप्त सिन्धु प्रदेश इसके दोनों ओर पंजाब तक विस्तृत था। महाभारत में इस प्रदेश को सौवीर कहा गया है। वर्तमान पाकिस्तान में सिन्ध प्रान्त इसी नदी के आस-पास स्थित प्रदेश है। वैदिक संस्कृति का विकास यहींहुआ। मोहन जोदड़ो व हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त जानकारी से इस प्रदेश के प्राचीन वैभव का पता चलता है।
सरस्वती
वेदों में उल्लिखित यह पवित्र नदी हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान, गुजरात प्रदेशों को सींचती हुई सिन्धुसागर में मिलती थी। कालान्तर में भूगर्भित हलचलों के कारण अम्बाला के आस-पास का क्षेत्र ऊंचा हो गया, जिससे इस नदी का जल अन्य सरेिताओं में मिल गया और यह नदी विलुप्त हो गयी। एक अन्य खोज के अनुसार इस नदी का जल रिस-रिसकर पृथ्वी के अन्दर चला गया। आज भी हरियाणा तथा राजस्थान प्रदेशों में पृथ्वी के अन्दर ही अन्दर प्रवाहित हो रही है। गुजरात के कच्छ के रण में विलीन होने वाली लूनी नदी को इसका अवशेष कहा जा सकता है। वेदों की रचना इस नदी के आसपास के प्रदेश (सारस्वत प्रदेश) में हुई। मनु के अनुसार पृथूदक (पेहव) इसी नदी के तट पर बसा था |
"सरस्वत्यश्च तीथॉनि तीर्थभ्यश्च पृथूदकम्।
पृथूदकात् पुण्यतमं नान्यत तीर्थ नरोत्तम।" (महाभारत वनपर्व)
ऋग्वेद में सरस्वती का वर्णन केवल नदी के रूप में नहीं , वाणी व् विद्या की देवी के रूप मेंभी हुआ है। यह सत्य तथा अच्छाई की प्रेरणा देती है। गंगा के समान इसके तट पर अनेक तीर्थों का विकास हुआ है। महाभारत, स्कन्द व पद्म पुराण, देवी भागवत आदि ग्रन्थों में इसका वर्णन बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ किया गया है। सरस्वती हिमालय से निकल कर पृथूदक, कुरूक्षेत्र, विराट, पुष्कर, अर्बुदारण्य, सिद्धपुर,प्रभास आदि स्थानों से होते हुए सागर से मिलती है।
गण्डकी
यह पवित्र नदी नेपाल में मुक्तिनाथ से थोड़ा आगे दामोदर कुण्ड से निकलती है। इसे नारायणी तथा शालिग्रामी भी कहते हैं। इस नदी क्षेत्र से प्राकृत और विभिन्न स्वरूप वाले शालिग्राम प्राप्त होते हैं। मुक्तिनाथ इसके तट पर स्थित प्रमुख शक्तिपीठ है। सती का गण्डस्थल यहीं गिरा था जहाँ आज भव्य मन्दिर है। इसी कारण इसे गण्डकी के नाम से पुकारा जाता है। यह नदी बिहार राज्य में प्रवेश करती है और गांगा में मिल जाती हैं ।
ब्रह्मपुत्र
सप्त महानदों(पुलिग) में ब्रह्मपुत्र प्रमुख है। इसका उद्गम-स्थान पवित्र मानसरोवर के समीप एक विशाल हिमानी है। तिब्बत में १२०० कि मी. पूर्व की ओर बहते हुए दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़कर भारत में प्रवेश करती है। तिब्बती क्षेत्र में इसे सांपों नाम दिया गया। अरुणाचल व असम में इसे लोहित कहा जाता है। कामाख्या शक्ति-पीठ इसके तट पर स्थित है।अपुनर्भव, भस्मकूट,उर्वशीकुण्ड,मणिकणेश्वर, पण्डुनाथ पर्वत (मधु-कैटभ का वध-स्थल), अश्वकरत्न (कल्कि अवतार से सम्बन्धित) आदि प्रमुख तटवर्ती तीर्थ हैं। तेजपुर, गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, शिवसागरआदि समीपवर्ती नगर हैं।भारत में ५०० किमी. सेअधिक दूरी तक बहने के बाद यह दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर बांग्लोदश में पहुँचती है। बंगाल में गांगा(पद्म) व मेघना से मिलकर विश्वविख्यात सुन्दरवन डेल्टा का निर्माण करती हैं। ब्रह्मपुत्र की लम्बाई २९०० कि.मी. से कुछ अधिक ही है।
रेवा (नर्मदा )
अमरकोश के अनुसार रेवा नर्मदा का ही दूसरा नाम है | रेवा को मैकाल - कन्या के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि मैकाल से इसका एक स्त्रोत प्रारंभ होता है जबकि दूसरा भाग अमरकोटक से उद्भूत होता है और फिर दोनों मिलकर एक हो जाते हैं। नर्मदा मध्य भारत में गांगा के समान वन्दनीय है। अमरकंटक से पश्चिम दिशा में बहते हुए भड़ौच के पास खंभात की खाड़ी के समुद्र में मिल जाती है। नर्मदा के तट के साथ असंख्य तीर्थों का प्रादुर्भाव हुआ है। रुद्र केअंश से उत्पन्न होने के कारण यह जड़-चेतन सबको पवित्र करने में समर्थ है। इसका नाम रुद्र कन्या भी है। इसके तट पर ओंकारेश्वर, मान्धाता, शुक्ल तीर्थ, भेड़ाघाट, जबलपुर, अमरकण्टक, कपिलधारा आदि पावन स्थल व नगर स्थापित हैं। व्यास व शुकदेव ने बरकेल नामक स्थान पर आकर नर्मदा में स्नान किया। बरकेल आज भी सामवेदी ब्राह्मणों के लिए प्रसिद्ध है। यहीं पर व्यासजी का मन्दिर व शुकदेव महादेव के मन्दिर बने हैं। सती अनसूया का मन्दिर भी पास हो बना है। नर्मदा की कुल लम्बाई १३०० कि.मी. है।
गोदावरी
१४५० कि.मी. लम्बी गोदावरी दक्षिण भारत की गांगा कहलाती है। महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले में एक गाँव है त्रयम्बक। यहीं ब्रह्मगिरि से निकल कर गोदावरी पूर्व की ओर बहती हुई गंगा सागर में मिलती है। इसका एक नाम गौतमी भी है, क्योंकि गौतम ऋषि की तपस्या के कारण यह अवतरित है। त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिग, नासिक(पंचवटी), पैठण, राजमहेन्द्र,भद्राचलमू, नान्देड़ (गुरु गोविन्द सिंह की समाधि), कोटा पल्ली आदि पावन क्षेत्र इसके तट पर हैं। मुस्लिम आक्रान्ताओं ने तीर्थों की पवित्रता को अनेक बार भाग किया। मराठा उत्थान के समय अनेक मन्दिरों का निर्माण व जीणोद्धार किया गया। वधाँ, प्राणहिता, इन्द्रावती, साबरी प्रवरा, वैन गांगा आदि इसकी सहायक नदियाँ हैं।
कृष्णा
कृष्णा प्रायद्वीपीय भारत की प्रमुख नदी है। यही नदी सहयाद्रि पर्वत-माला में महाबलेश्वर के उत्तर में स्थित कराड नामक स्थान से निकलती है। यह स्थान सिन्धु सागर के ६० किमी. पूर्व में है। वारणा, हुए यह दक्षिण-पूर्व की ओर बढ़कर कर्नाटक में प्रवेश करती है। कृष्ण की दो प्रमुख सहायक नदियाँ भीमा और तुगभद्रा हैं। चन्द्रभागा पण्ढरपुर के समीप भीमा से मिलती है। आन्ध्रप्रदेश के काफी विस्तृत क्षेत्र में बहते हुए कृष्णा महेन्द्र पर्वत-श्रृंखला को काट कर गंगासागर की ओर बढ़ती है और बृहद् डेल्टा बनाते हुए सागर में मिल जाती है।इस नदी के तट पर सतारा, सांगली, रायचूर, विजयवाड़ा, नागार्जुन सागर आदि स्थित हैं। नदी की कुल लम्बाई १२८० कि.मी. है।
कावेरी
कावेरी प्रमुख नदियों में सबसे दक्षिण में स्थित है। यह कुर्ग जिले में स्थित है। सहयाद्रि पर्वत के दक्षिणी छोर से निकल कर दक्षिण-पूर्व बहते हुए सागर में मिलती है। मिलने से पूर्व कई शाखाओं में बँट जाती है और उपजाऊ डेल्टा बनाती है। इसकी लम्बाई ८०० कि.मी.है। अग्नि व विष्णु पुराण में कावेरी का वर्णन विस्तार से हुआ है। कावेरी के उद्गम स्थल के पास ही देवी कावेरी का प्राचीन मन्दिर है। कई छोटी-छोटी नदियाँ कावेरी में मिलती हैं। कनकवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। यह नदी कहीं पर बहुत चौड़ी व संकरी है। तीन स्थानों पर यह दो शाखाओं में बँटकर पुन:एक हो जाती है। इस प्रकार बीच में तीन पवित्र द्वीप बन गये हैं। आदिरंगमू या श्रीरंगपत्तन, मध्य में शिवसमुद्रम् तथा अन्तरंगम् या श्रीरंगमू में भगवान विष्णु के पवित्र मन्दिर बने हैं। चिदम्बरम् नामक पवित्र शैव तीर्थ तथा प्राचीन जम्बूकेश्वरम् मन्दिर श्रीरंगम के पास स्थित हैं। तंजावूर, कुंभकोणम तथा त्रिचिरापल्ली इसी पवित्र नदी के समीपवर्ती तीर्थ हैं। प्रसिद्ध कम्बारामायण के रचयिता कवि कम्बन का क्षेत्र कावेरी-तट ही हैं।
महानदी
उत्कल (उड़ीसा) राज्य की यह प्रमुख नदी मध्यप्रदेश के रायपुर जिले के दक्षिण पूर्व में सिहाँवा पर्वत श्रेणी से निकलकर उड़ीसा में कटक के पास सागर में मिलती है। नदी का कुल बहाव ८६० कि.मी. है। बहाव की आधी दूरी छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तर, बिलासपुर तथा रायगढ़ जिलों में कोयना, पंचगंगा, घटप्रभा, मल्लप्रभा आदि लघु सरिताओं का जल समेटे तय करती है। शिवनाथ, जोंक, हस्दों इसकी सहायक नदियाँ हैं। महानदी का जल सिंचाई व विद्युत-निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है। विश्व का सबसे लम्बा बांध हीराकुण्ड महानदी पर ही बना है। उपर्युक्त प्रमुख नदियों के अतिरिक्त निम्न नदियों का भी स्मरण बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ किया जाता है। इनमें स्नान करने परशाप-ताप शान्त हो जाते हैं तथा मानव देवत्व की ओर अग्रसर होता हैं। ये नदियाँ हैं महेन्द्रतनया, वेत्रिवती, क्षिप्रा,भीमा, ताप्ती, चम्बल, गोमती, चर्मण्वती आदि।