विक्रम और बेताल - ज्ञान का उचित उपयोग
विक्रम ने बेताल को वृक्ष से पकड़कर अपने कंधे पर बैठाकर ले जा रहा था | बेताल ने विक्रम से कहा अभी कुटी तक पहुचने में बहुत समय लगेगा और तब तक मै आपको एक कहानी सुनाता हूँ तुमने कहानी के मध्य में कुछ भी बोला तो मै उड़ जाऊंगा | बेताल ने कहानी सुनाना आरम्भ किया |
एक गाँव में एक बुढ़ा किसान रहता था | वह बहुत मेहनती था | उसका एसा मानना था की काम ही करना सबसे अच्छा है उसकी पत्नी उसके काम में सहायता करती थी | उसके चार बेटे थे | वह बहुत आलसी थे दिन भर गाँव में घुमा करते थे या फिर घर में सोते हुए रहते थे |
एक दिन किसान ने क्रोध में आकर अपने बेटो से आकर कहा की अगर कुछ काम नहीं करना है तो घर छोड़ कर चले जाओ | किसान के बेटे घर छोड़ कर चले गए और चारो गाँव के शिवजी के मंदिर के पास जा कर बाते करने लगे की अब हम सब शिक्षा प्राप्त करने के लिए चारो अलग अलग दिशाओ में जायेगेऔर चार वर्ष के बाद हम इसी शिव मंदिर में मिलेगे |
चार वर्ष बाद चारो भाई शिक्षा प्राप्त करके इसी शिव मंदिर में वापस मिलें |चारो भाई अपने अपने शिक्षा की चर्चा करने लगे | पहले भाई कहा की मैने कंकाल को जोड़ने की शिक्षा प्राप्त की है | दुसरे भाई ने कहा की मैने कंकाल के ऊपर मास और रक्त भर सकता हूँ | तीसरे भाई ने कहा की मैने शव में जान डाल सकता हूँ | चौथे भाई ने कहा की मैने व्यक्ति को अपनी एक फुक से नीर जिव बना सकता हूँ |
मंदिर में विराजमान पारवती चारो भियो की भाते सुन रही थी | चारो भाईयो ने तय किया की ओ सब वन में अपनी विद्या का प्रयोग करगे | चारो भाई वन में पहुच गए | पहला भाई एक हाड़ी लेके आया और नेत्र बंद करके हाड़ी को छुआ उस छण यो हाड़ी से बाकी हाड़ी जुड़ गयी | दुसरे भाई ने हाड़ी के कंकाल को छुआ तो उस कंकाल में मास और रक्त भर गया | तो मलूम पड़ा की वो शेर का कंकाल है | तीसरे भाई ने कहा की अब मै इस शेर में जान दालू गा |