महाराष्ट्र केसरी शिवराजः - महापुरुषकीर्तन श्रंखला

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महाराष्ट्र केसरी शिवराजः (1630-1680 ई०)

कीर्तिर्यदीया धवलामलेयं, विराजतेऽद्यापि हि सर्वदिक्षु।

त॑ राजनीतौ कुशलाग्रगण्यं, वीरं नमामः शिवराजसिंहम्‌।।15॥।

जिनकी निर्मल स्वच्छ कीर्ति आज भी सब दिशाओं में विराजमान

है, उन राजनीति में कुशल और नीतिज्ञ-शिरोमणि वीर शिवराज सिंह जी

को हम नमस्कार करते हैं।

न पारतन्त्र्यं तु कदापि सह्यम्‌, आयान्तु विघ्ना बहवो न चिन्ता।

एवं सुधैयेण सदाचरन्तं, वीरं नमामः शिवराजसिंहम्‌ ॥16॥

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परतन्त्रता को मैं कभी सहन नहीं कर सकता, कितनी भी विघ्न

बाधायें आएं उन की कोई चिन्ता (परवाह) नहीं। इस प्रकार उत्तम ध

र्य से सदा आचरण करते हुए वीर शिवराजसिंह को हम नमस्कार करते

हैं।

भृशं विनीतं सृजनेषु नित्यं, जीजीजनन्या अनुरूपपुत्रम्‌।

शठेषु नूनं शठवच्चरन्तं, वीरं नमामः शिवराजसिंहम्‌।।17॥।

सज्जनों के प्रति सदा अत्यन्त विनीत, किन्तु शठों के साथ

निश्चय से शठ का तरह व्यवहार करते हुए जीजा बाई के अनुरूप वीर

शिवराजसिंह को हम नमस्कार करते हैं।17।।

यः पर्वतीयः खलु मूषिकोऽयम्‌, इतीव तुच्छामभिधामगृह्णात्‌।

गजेनद्रतुल्यान्‌ यवनान्‌ व्यजेष्ट, वीरं स्तुमस्तं शिवराजसिंहम्‌।।181।

जिन्हें विरोधियों ने “पहाड़ी चूहा' यह तुच्छ नाम दिया किन्तु

जिन्होंने बड़े हाथी के समान मुसलमानों पर भी विजय प्राप्त को, ऐसे

शिवराज सिंह की हम स्तुति करते हैं।

'यः स्थापयामास सुधर्मराज्यम्‌, प्राकम्पयच्चाप्यवरङ्कजीवम्‌।

श्रीरामदासादिसतां विधेयं, वीरं स्तुमस्तं शिवराजसिंहम्‌।॥19।।

जिन्होंने उत्तम राज्य को स्थापित किया और औरंगजेब को क॑पा

दिया, श्री स्वामी रामदास इत्यादि सज्जनं के आज्ञाकारी उन महाराज

शिवराजसिंह जी की हम स्तुति करते है।

References