विविध आलेख
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अध्याय ४८
१. असुरो का संहार
जगत में तारकासुर का आतंक बढ गया । तब देवों को प्रतीति हुई कि भगवान शिव और सती पार्वती का पुत्र ही देवों का सेनापति बनकर उनका नाश कर सकता है । देवों ने प्रार्थना की, शिव और पार्वती ने तपश्चर्या की, कार्तिकेय का जन्म हुआ, वह देवों का सेनापति बना और तारकासुर का नाश हुआ। जगत पर वृत्रासुर नामक असुर का आतंक छा गया था। वह महाबलवान था। उसे मार सके ऐसा शस्त्र किसी के पास नहीं था । उसे मारने के लिये वज्र की आवश्यकता थी जो तपश्चर्या और त्याग से ही प्राप्त हो सकता था । देव तपस्वी मुनि दधीचि के पास गये, उन्हें प्रार्थना की, मुनिने अपनी हड्डियाँ प्रदान की, उन हड्डियों से वज्र बना जिससे इन्द्र ने वृत्रासुर का नास किया। भस्मासुर ने उग्र तपश्चर्या की और भगवान शंकर को प्रसन्न किया । भगवान शंकर से वर मांगा कि वह जिसके सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जायेगा । प्रसन्न हुए भगवान शंकर ने वर दिया । अब भस्मासुर हाथ रखता था और लोग मरते थे। उस का नाश करने के लिये भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, वे नृत्य करने लगे और भस्मासुर को भी अपने साथ नृत्य करने हेतु विवश किया । नृत्य करते करते भगवान विष्णुने अपने सिर पर हाथ रखा । उनके अनुसरण में भस्मासुर ने भी अपना हाथ सिर पर रखा और वह भस्म हो गया । स्वर्ग मुक्त हुआ। महिषासुर ने भगवती दुर्गा से अपने साथ विवाह करने हेतु आग्रह किया । डराया, धमकाया भी। भगवती दुर्गा ने कहा कि यदि वह उनसे युद्ध कर रण में जीतेगा तो वह उससे विवाह करेगी। महिषासुर को लगा कि एक स्त्री को युद्ध में जीतना सरल है। उसने हाँ कहा, दोनों में युद्ध हुआ । भगवती दुर्गा ने उस युद्ध में अपने शस्त्र से महिषासुर को परास्त किया और उसका वध किया। आज भारत को शिव और पार्वती जैसे समर्थ सन्तान को जन्म देने वाले समर्थ मातापिता की, दधीचि जैसे तपस्वी और त्यागी की, मोहिनी रूप धारण करनेवाले विष्णु की और अनिष्ट का नाश करने वाली दुर्गा जैसी स्त्रियों की एक साथ आवश्यकता है। तभी पश्चिमासुर का नाश होकर विश्व के सुख और शान्ति की रक्षा हो सकती है।
References
भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे