विद्यालय में भोजन एवं जल व्यवस्था
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
अध्याय १०
विद्यालय में भोजन एवं जल व्यवस्था
विद्यालय में मध्यावकाश का भोजन
9. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन सम्बन्ध में
कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ?
2. विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन की सबसे
अच्छी व्यवस्था क्या हो सकती है ?
3. अन्न का शरीर के स्वास्थ्य एवं चित्त के संस्कार
पर सीधा प्रभाव पडता है। इस दृष्टि से भोजन के
सम्बन्ध में क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिये ।
¥. विद्यालय में मध्यावकाश भोजन कैसे करना
चाहिये?
५. भोजन के सम्बन्ध में वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या
है ? मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है ?
६. छात्र घर से भोजन लाते हैं तब भोजन के सम्बन्ध
में माता पिता को क्या क्या सूचनायें देनी
चाहिये ?
७. भोजन के पूर्व एवं पश्चात् स्वच्छता की व्यवस्था
कैसे करनी चाहिये ?
८... संस्कारक्षम भोजनव्यवस्था के कौन कौन से पहलू
हैं?
९... विद्यालय में यदि उपाहारगृह या भोजनगृह है तो
उसके सम्बन्ध में कौन कौन सी सावधानियाँ
रखनी चाहिये ?
१०, छात्रों ने क्या खाना चाहिये और क्या नहीं खाना
चाहिये ?
प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर
महाराष्ट्र के एक विद्यालय से १२ शिक्षक एवं ९
अभिभावकों ने यह प्रश्नावली भरकर भेजी है, जिससे कुल
१० प्रश्न थे । प्ठवी कुलकर्णी (अकोला)ने यह भेजी है ।
पहला प्रश्न था. विद्यालय में मध्यावकाश के
श्घ्डे
भोजनसंबंध मे कितने प्रकार की व्यवस्था होती है ? इस
प्रश्न के उत्तर में लगभग सभी ने अलग अलग प्रकार के मेनू
ही लिखे हैं । वास्तव में समूहभोजन, वनभोजन, देवासुर
भोजन, स्वेच्छाभोजन, कृष्ण और गोपी भोजन ऐसी
अनेकविध व्यवस्थायें भोजन लेने में आनंद, संस्कार,
विविधता की मजा का अनुभव देती है ।
बाकी बचे ९ प्रश्नों के उत्तर सभी उत्तरदाताओंने सही
ढंग से, आदर्श व्यवहार के रूप में लिखे हैं । परन्तु आदरर्शों
का वर्णन करना और उनका प्रत्यक्ष व्यवहार इन दोनों में
बहुत अंतर नजर आता है । उपदेश देना सरल है परंतु
तदनुसार व्यवहार मे आचरण करना कठिन होता है; उसके
प्रति आग्रही रहना चाहिये । शिक्षा की आधी समस्यायें
खत्म हो जाएगी । घर और विद्यालयों में भारतीय विचारों
का आदर्श रखना परंतु पाश्चात्य खानपान का सेवन करना
यह तो अपने आपको दिया गया धोखा है । उसके ही
परिणाम हम भुगत रहे हैं ऐसा लगता है ।
अभिमत
विद्यालय में मध्यावकाश के भोजन के लिए स्वतंत्र
भोजन शाला हो, जहाँ पढ़ना उसी कक्षा में भोजन करना
ठीक नहीं है । यह भोजनशाला स्वच्छ, खुली हवा में,
गोबर से लिपी हुई हो तो अच्छा है । सब छात्र पंगती में
बैठकर भोजन कर सके इतनी पर्याप्त भोजनपड्टी, भोजनमंत्र
और गाय के लिए खाना निकालने की व्यवस्था हो सकती
है।
अन्न से शरीर मे बल आता है, प्राण भी बलवान होते
हैं । योग्य आहार से शरीर स्वास्थ्य बना रहता है । चित्त पर
संस्कार होते है इसलिए भोजन शुद्ध हो रुचिपूर्ण हो तामसी
न हो । भोजन करते समय मन प्रसन्न होना चाहिये ।
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अन्नब्रह्म का भाव जगाना
विद्यालय मे भोजन करते समय छात्र आसनपट्टी पर
ततिमें बैठे या छोटे छोटे मंडल बनाकर अपने मित्रों के साथ
भोजन का आस्वाद लें । बैठकर ही भोजन करे । डिब्बे में
कुछ न छोडे एवं नीचे कुछ न गिराये । किसी का जूठा नहीं
खाना, इधर उधर घूमते भागते भोजन नहीं करना, आराम से
प्रसन्नता से भोजन करे । भोजनमंत्र के बाद ही भोजन प्रारंभ
करे । मध्यावकाश में घर में बनाया भोजन ही लाना । पेक््ड
या होटल की चीजें डिब्बे में न दे । भोजन शाकाहारी हो
एवं पर्याप्त हो। ऐसी महत्त्वपूर्ण बातें अभिभावकों को
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
बतानी चाहिए । भोजन के पूर्व एवं पश्चात भोजन की जगह
झाड़ू पोछा लगाना अवश्य हो । नीचे गिरा हुआ अन्न झाड़ू
से फेंकना नहीं, हाथ से उठाना । भोजन करते समय कंठस्थ
श्लोक अथवा सुभाषित व्यक्तिगत रूप से बोल सकते हैं ।
अन्न पवित्र है उसे पाँव नहीं लगने देना । दाहिने हाथ से ही
भोजन करना, जिसके पास डिब्बा नहीं उसे औरों में समाना,
भूखा नहीं रखना भोजन का मंत्रगान करना संस्कारपूर्ण
भोजन के लक्षण है । छात्रोंने क्या खाना क्या नहीं यह
विषय उनके अभ्यास मे आना चाहिए। अन्न के प्रति
अन्नब्रह्म है ऐसा भाव और तदनुसार व्यवहार हो |
विद्यालय में भोजन की शिक्षा
सामान्य विद्यालयों में और आवासीय विद्यालयों में
भोजन शिक्षा का बहुत बडा विषय है । आज जितना और
जैसा ध्यान उसकी ओर दिया जाना चाहिये उतना नहीं दिया
जाता । ध्यान दिया जाने लगता है तो विद्यार्थी की अध्ययन
क्षमता के लिये भी वह लाभकारी है ।
भोजन के सम्बन्ध में व्यावहारिक विचार कुछ इस
प्रकार किया जा सकता है...
१, क्या खायें
जैसा अन्न वैसा मन, और आहार वैसे विचार ये बहुत
प्रचलित उक्तियाँ हैं । विचारवान लोग इन्हें मानते भी हैं ।
इसका तात्पर्य यह है कि अन्न का प्रभाव मन पर होता है ।
इसलिये जो मन को अच्छा बनाये वह खाना चाहिये, मन
को खराब करे उसका त्याग करना चाहिये ।
आहार से शरीर और प्राण पुष्ट होते हैं यह बात
समझाने की आवश्यकता नहीं । पुष्ट और बलवान शरीर
सबको चाहिये । अतः शरीर और प्राण के लिये अनुकूल
आहार लेना चाहिये ।
आहारशुद्धो सत्त्वशुद्धि : ऐसा शास्त्रवचन है । इसका
अर्थ है शुद्ध आहार से सत्व शुद्ध बनता है । सत्व का अर्थ
है अपना आन्तरिक व्यक्तित्व, अपना अन्तःकरण । सम्पूर्ण
श्घ्ढ
सृष्टि में केवल मनुष्य को ही सक्रिय अन्तःकरण मिला है ।
अन्तःकरण की शुद्धी करे ऐसा शुद्ध आहार लेना चाहिये ।
इस प्रकार आहार के तीन गुण हुए । मन को अच्छा
बनाने वाला सात्तिक आहार, शरीर और प्राण का पोषण
करने वाला पौष्टिक आहार और अन्तःकरण को शुद्ध
करनेवाला शुद्ध आहार |
वर्तमान समय की चर्चाओं में शुद्ध और पौष्टिक
आहार की तो चर्चा होती है परन्तु सात्चिकता की
संकल्पना नहीं है । यदि है भी तो वह नकारात्मक अर्थ में ।
सात्विक आहार रोगियों के लिये, योगियों के लिये, साधुओं
के लिये होता है, सात्त्तिक आहार स्वाददहदीन और सादा
होता है, सात्त्विक आहार वैविध्यपूर्ण नहीं होता, घास जैसा
होता है आदि आदि बातें सात्तिक आहार के विषय में
कही जाती हैं जो सर्वथा अज्ञानजनित हैं । हमें उसके
सम्बन्ध में भी ठीक से समझना होगा ।
सात्विक आहार के लक्षण
सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह
सात्विक आहार है ऐसा श्रीमदू भगवदूगीता में कहा है । ऐसे
आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है
आयु सत्त्वबलारोग्य सुखप्रीति विवर्धना: ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
रस्या: स्निग्धा: तथा हृद्या: आहारा: सात्त्विकप्रिया ।। रस्य होना है ।
अर्थात् स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ?
सात्त्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? मोटे तौर पर जिसमें चिकनाई अधिक है उसे स्निग्ध
०... आयुष्य बढ़ाने वाला आहार कहते हैं । घी, तेल, मक्खन, दूध, तेल जिससे
०... सत्व में वृद्धि करने वाला निकलता है ऐसे तिल, नारियेल, बादाम आदि स्निग्ध माने
०. बल बढाने वाला जाते हैं । स्निग्धता से शरीर के जोड, स्नायु, त्वचा आदि में
०... आारोग्य बनाये रखने वाला नरमाई बनी रहती है । त्वचा मुलायम बनती है ।
०... सुख देने वाला
बल भी बढ़ता है ।
०... प्रसन्नता बढाने वाला होता है ।
परन्तु यह केवल शारीरिक स्तर की स्निग्धता है
सात्तिक आहार के गुण क्या-क्या हैं
सात्विक आहार के गु हैं सात्त्विक आहार का सम्बन्ध शरीर से अधिक मन के साथ
© रस्य अर्थात् रसपूर्ण है। आहार तैयार होने की प्रक्रिया में जिन जिन की
*.. स्नि्ध अर्थात् चिकनाई वाला सहभागिता होती है उनके हृदय में यदि स्नेह है तो आहार
*... स्थिर अर्थात् स्थिस्ता प्रदान करने वाला स्नेहयुक्त अर्थात् स्नि्ध बनता है। ऐसा स्निग्ध आहार
° हद्य अर्थात् हृदय को बहुत बल देने वाला होता है । . सात्विक होता है।
सात्विक आहार के ये गुण अद्भुत हैं। इनमें आजकल डॉक्टर अधिक घी और तेल खाने को मना
पौष्टिकता का भी समावेश हो जाता है । करते हैं। उससे मेद् बढता है ऐसा कहते हैं। उसकी
विस्तृत चर्चा में उतरने का तो यहाँ प्रयोजन नहीं है परन्तु
जिसमें एक दो बातों की स्पष्टता होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।
सामान्य रूप से जिसमें तरलता की मात्रा अधिक है प्रथम तो यह कि घी और तेल एक ही विभाग में
ऐसे पदार्थ को रसपूर्ण अथवा रस्य कहने की पद्धति बन गई नहीं आते । दोनों के मूल पदार्थों का स्वभाव भिन्न है,
है। a में पानी, दूध, खीर, दाल आदि रस्य आहार . प्रक्रिया भी भिन्न है । घी ओजगुण बढ़ाता है । सात धातुओं
कहे जायेंगे । परन्तु यह बहुत सीमित अर्थ है । sai 3 में ओज अन्तिम है और सूक्ष्मतम है । शरीर की सर्व प्रकार
a जो भी पदार्थ खाते हैं वह पचने पर दो भागों Ae te a सार ओज है । घी से प्राण का सर्वाधिक
बैँट जाता है । जो शरीर के लिये उपयोगी होता है वही रस. पोषण होता है । आयुर्वेद कहता है 'घृतमायुः' अर्थात् घी
बनता है और * निरुपयोगी होता है वह कि अर्थात्. ही आयुष्य है अर्थात् प्राणशक्ति बढाने वाला है । घी से ही
मल है । रस रक्त में मिल जाता है और रक्त में ही परिवर्तित geen में भी शक्ति बनी रहती है । इसलिये छोटी आयु
हो जाता है। जिस आहार से रस अधिक बनता है और ये ही घी खाना चाहिये । मेद घी से नहीं बढता । यह आज
कचरा कम बचता है वह रस्य आहार है । उदाहरण के लिये. के समय में फैला हुआ भ्रम है कि घी से हृदय को कष्ट
आटा जब अच्छी तरह सेंका जाता है और उसका हलुवा होता है । यह भ्रम फैलने का कारण भी घी को लेकर जो
बनाया जाता है तब वह रस्य होता है जबकि अच्छी तरह अनुचित प्रक्रिया निर्माण हुई है वह है । घी का अर्थ है गाय
से नहीं पकी दाल उतनी रस्य नहीं होती । रस शरीर के के दूध से दही, दही मथकर निकले मक्खन से बना घी है ।
सप्तधातुओं में एक धातु है । आहार से सब से पहले रस. जाय का दूध और घी बनाने की सही प्रक्रिया ही घी को घी
बनता है, बाद में स्क्त । रस जिससे अधिक बनता है वह. बनाती है। इसे छोडकर घी नहीं है ऐसे अनेक पदार्थों को
रस्य आहार है । सात्विक आहार का प्रथम लक्षण उसका... जब से घी कहा जाने लगा तबसे “EY स्वास्थ्य के लिये
रस्य आहार का क्या अर्थ है ?
Fay
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
हानिकारक हो गया । आज घी विषयक... चंचलता कम करता है । शरीर की हलचल को सन्तुलित
भ्रान्त धारणा से बचने की और नकली घी से पिण्ड छुड़ाने. और लयबद्ध बनाता है, मन को एकाग्र होने में सहायता
की बहुत आवश्यकता है । करता है ।
दूसरी बात यह है कि स्निग्धता और मेद अलग बात हृद्य आहार मन को प्रसन्न रखता है । अच्छे मन से,
है । स्निग्धता शरीर में सूखापन नहीं आने देती । वातरोग नहीं... अच्छी सामग्री से, अच्छी पद्धति से, अच्छे पात्रों में बनाया
होने देती, शूल पैदा नहीं करती । तेल स्नेहन करता है ।.. गया आहार हृद्य होता है ।
शरीर का अन्दर और बाहर का स्नेहन शरीर की कान्ति और ऐसे आहार से सुख, आयु, बल और प्रेम बढ़ता है ।
तेज बना रहने के लिये, शरीर के अंगों को सुख पहुँचाने के यहाँ एक बात स्पष्ट होती है कि सात्तिक आहार
लिये अत्यन्त आवश्यक है । इसलिये आहार के साथ ही... पौष्टिक और शुद्ध दोनो होता है ।
शरीर को मालीश करने के लिये भी तेल का उपयोग है । सिर खायें
और पैर के तलवों में तो घी से भी मालीश किया जाता है। के खायें
जिन्हें आयुर्वेद में श्रद्धा नहीं है अथवा आयुर्वेद विषयक ज्ञान १, आहार लेने के बाद उसका पाचन होनी चाहिये ।
ही नहीं है वे घी और तेल की निन््दा करते हैं । परन्तु भारत में... शरीर में पाचनतन्त्र होता है। साथ ही अन्न को पचाकर
तो शास्त्र, परम्परा और लोगों का अनुभव सिद्ध करता है कि... उसका रस बनाने वाला जठराधि होता है । आंतिं, आमाशय,
घी और तेल शरीर और प्राण के सुख और शक्ति के लिये... अन्ननलिका, दाँत आदि तथा विभिन्न प्रकार के पाचनरस
अत्यन्त लाभकारी हैं । अपने आप अन्न को नहीं पचाते, जठराय़ि ही अन्न को
यह बात तो ठीक ही है कि आवश्यकता से अधिक, पचाती है । शरीर के अंग पात्र हैं और विभिन्न पाचक रस
अनुचित प्रक्रिया के लिये, अनुचित पद्धति से किया गया... मानो मसाले हैं । जठराध्नि नहीं है तो पात्र और मसाले क्या
प्रयोग लाभकारी नहीं होता । परन्तु यह तो सभी अच्छी... काम आयेंगे ?
बातों के लिये समान रूप से लागू है । अतः जठराप्ि अच्छा होना चाहिये, प्रदीप्त होना
अच्छा आहार भी भूख से अधिक लिया तो लाभ... चाहिये ।
नहीं करता । जठरासि का सम्बन्ध सूर्य के साथ है । सूर्य उगने के
नींद आवश्यक है परन्तु आवश्यकता से अधिक नींद... बाद जैसे जैसे आगे बढता है वैसे वैसे जठराय़ि भी प्रदीप
लाभकारी नहीं है । होता जाता है । मध्याहन के समय जठराय़ि सर्वाधिक प्रदीप्त
व्यायाम अच्छा है परन्तु आवश्यकता से अधिक... होता है । मध्याह्. के बाद धीरे धीरे शान्त होता जाता है ।
व्यायाम लाभकारी नहीं है । अतः मध्याह्न से आधा घण्टा पूर्व दिन का मुख्य भोजन
आटे में तेल का मोयन, छोंक में आवश्यकता है... करना चाहिये । दिन के सभी समय के आहार दिन दहते ही
उतना तेल, बेसन के पदार्थों में कुछ अधिक मात्रा में तेल... लेने चाहिये । प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व और सायंकाल
लाभकारी है परन्तु तली हुई पूरी, पकौडी, कचौरी जैसी... सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिये । प्रातःकाल का
वस्तुयें लाभकारी नहीं होतीं । नास्ता और सायंकाल का भोजन लघु अर्थात् हल्का होना
अर्थात् घी और तेल का विवेकपूर्ण प्रयोग लाभकारी .... चाहिये । समय के विपरीत भोजन करने से लाभ नहीं होता,
होता है । उल्टे हानि ही होती है ।
अतः विद्यार्थियों को सात्त्तिक आहार शरीर, मन, इसी प्रकार ऋतु का ध्यान रखकर ही आहार लेना
बुद्धि, आदि की शक्ति बढाने के लिये आवश्यक होता है । .... चाहिये ।
स्थिर आहार शरीर और मन को स्थिरता देता है, आहार में छः रस होते ह॑ । ये है मधुर, खारा, तीखा,
श्द्द
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
खट्टा, कषाय और कडवा । भोजन में सभी छः रस इसी फ्रम
में कम अधिक मात्रा में होने चाहिये अर्थात् मधुर सबसे
अधिक और कड़वा सबसे कम ।
यहाँ आहार विषयक संक्षिप्त चर्चा की गई है।
अधिक विस्तार से जानकारी प्राप्त करन हेतु पुनरुत्थान द्वारा
ही प्रकाशित “आहारशास्त्र' देख सकते हैं ।
इन सभी बातों को समझकर विद्यालय में आहारविषयक
व्यवस्था करनी चाहिये । विद्यालय के साथ साथ घर में भी
इसी प्रकार से योजना बननी चाहिये । आजकाल मातापिता
को भी आहार विषयक अधिक जानकारी नहीं होती है । अतः
भोजन के सम्बन्ध में परिवार को भी मार्गदर्शन करने का दायित्व
विद्यालय का ही होता है ।
विद्यालय में भोजन व्यवस्था
विद्यालय में विद्यार्थी घर से भोजन लेकर आतते हैं ।
इस सम्बन्ध में इतनी बातों की ओर ध्यान देना चाहिये...
१, प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और
प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना
चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी
होना चाहिये ।
प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी
वर्जित होने चाहिये ।
विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना we ऐसी
व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये ।
बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह
तामसी आहार है ।
इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन
नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल,
चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में
बासी हो जाती है । विद्यालय में भोजन का समय
और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा
भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।
विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही
हैं। अतः दोनों का आहार सात्विक ही होना
चाहिये ।
sao
भोजन के साथ संस्कार भी जुडे
हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये...
० प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।
० पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।
० बैठकर ही भोजन करना चाहिये ।
कई आवासीय विद्यालयों में, महाविद्यालयों में, शोध
संस्थानों में, घरों में कुर्सी टेबलपर बैठकर ही भोजन करने
का प्रचलन है । यह पद्धति व्यापक बन गई है । परन्तु यह
पद्धति स्वास्थ्य के लिये सही नहीं है। इस पद्धति को
बदलने का प्रारम्भ विद्यालय में होना चाहिये । विद्यालय से
यह पद्धति घर तक पहुँचनी चाहिये ।
०... भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व गोग्रास तथा पक्षियों,
चींटियों आदि के लिये हिस्सा निकालना चाहिये ।
नीचे आसन बिछाकर ही बैठना चाहिये ।
सुखासन में ही बैठना चाहिये ।
पात्र में जितना भोजन है उतना पूरा खाना चाहिये ।
जूठा छोडना नहीं चाहिये । इस दृष्टि से उचित मात्रा
में ही भोजन लाना चाहिये ।
भोजन के बाद हाथ धोकर पॉछने के लिये कपडा
साथ में लाना ही चाहिये ।
विद्यालय में भोजन करने का स्थान सुनिश्चित होना
चाहिये ।
विद्यार्थियों को भोजन करने के साथ साथ भोजन
बनाने की ओर परोसने की शिक्षा भी दी जानी
चाहिये । इस दृष्टि से सभी स्तरों पर सभी कक्षाओं में
आहारशास्त्र पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये ।
आवासीय विद्यालयों में भोजन बनाने की विधिवत्
शिक्षा देने का प्रबन्ध होना चाहिये । भोजन सामग्री
की परख, खरीदी, सफाई, मेनु बनाना, पाकक्रिया,
परोसना, भोजन पूर्व की तथा बाद की सफाई का
शास्त्रीय तथा व्यावहारिक ज्ञान विद्यार्थियों को मिलना
चाहिये । सामान्य विद्यालयों में भी यह ज्ञान देना तो
चाहिये ही परन्तु वह विद्यालय और घर दोनों स्थानों
पर विभाजित होगा । विद्यालय के निर्देश के अनुसार
अथवा विद्यालय में प्राप्त शिक्षा के अनुसार विद्यार्थी
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घर में भोजन बनायेंगे, करवायेंगे और
करेंगे ।
वास्तव में भोजन सम्बन्धी यह विषय घर का है
परन्तु आज घरों में उचित पद्धति से उसका निर्वहन होता
नहीं है इसलिये उसे ठीक करने की जिम्मेदारी विद्यालय की
हो जाती है ।
भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान
विषयक ज्ञान
भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई
है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना
चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
०". अन्न पतित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है । वह
एक जड पदार्थ है ।
भारतीय परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो,
अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का
और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या
अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा
विस्मृत हो गई है ।
अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है ।
होटल उद्योग अपसंस्कृति की निशानी है। इसे
अधिकाधिक प्रतिष्ठा मिल रही है ।
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
होटेल का खाना, जंकफूड खाना, तामसी आहार
करना बढ रहा है ।
शुद्ध अनाज, शुद्ध फल और सब्जी, शुद्ध और सही
प्रक्रिया से बने मसाले, गाय के घी, दूध, दही, छाछ
आज दुर्लभ हो गये हैं । रासायनिक खाद कीटनाशक,
उगाने, संग्रह करने और बनाने में यंत्रों का आक्रमण
बढ रहा है और स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये
विनाशक सिद्ध हो रहा है । इस समस्या का समाधान
ढूँढना चाहिये ।
भोजन का स्वास्थ्य, संस्कार और संस्कृति के साथ
सम्बन्ध है इस बात का विस्मरण हो गया है ।
इन सभी समस्याओं का समाधान विद्यालय में विभिन्न
स्तरों पर सोचा जाना चाहिये । विद्यालय में भोजन केवल
विद्यार्थियों के नास्ते तक सीमित नहीं है, भोजन से
सम्बन्धित कार्य, भोजन से सम्बन्धित दृष्टि एवं मानसिकता
तथा भोजन विषयक समस्याओं एवं उनके समाधान आदि
सभी विषयों का समावेश इसमें होता है ।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ये सब परीक्षा के
विषय नहीं है, जीवन के विषय हैं । विद्यार्थियों को शिक्षकों
को अभिभावकों को तथा स्वयं शिक्षा को परीक्षा के चंगुल
से किंचित् मात्रा में मुक्त करने के माध्यम ये बन सकते हैं ।
भारतीय इन्स्टण्ट फूड एवं जंक फूड
१. इन्स्टण्ट फूड
इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला
पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस
मिनिट में तैयार हो जाने वाला ।
आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले
पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं
भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है
अथवा बच्चों और पति को भेजना होता है।
छाप ऐसी पड़ती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार
आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट
१६८
भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह
सकती है। इसलिये भारतीय गृहिणी भी इस कला में माहिर
होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह
सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु
ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ
झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं
स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से
देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।
१, हलवा
आटे को घी में सेंककर उसमें पानी तथा गुड या
शक्कर मिलाकर पकाया जाता है वह हलवा है।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
आबालवृध्ध सब खा सकते हैं। मेहमान को भी परोस
सकते हैं, किसी भी समय पर किसी भी ऋतु में किसी भी
अवसर पर नाश्ते अथवा भोजन में भी खाया जाता है।
किसी भी पदार्थ के साथ खाया जाता है, जो सादा भी होता
है, पानी के स्थान पर दूध मिलाकर भी हो सकता है, उसमें
बदाम-केसर-पिस्ता चारोली इलायची जैसा सूखा मेवा भी
डाल सकते हैं। और सत्यनारायण का प्रसाद भी बन सके
ऐसा यह अदृभुत्त पदार्थ बनाने में सरल, झटपट, स्वाद में
रुचिकर और पाचन में भी लघु और पौष्टिक है।
२. सुखडी
आटे को घी में सेंककर उसमें गुड मिलाकर थाली में
डालकर सुखडी तैयार हो जाती है। कोई गुड की चाशनी
बनाता है, कोई आटा सेंकता है और कोई नहीं भी सेंकता
है। यह सुख़डी डिब्बे में भरकर कई दिनों तक रखी भी
जाती है। यात्रा में साथ ले जा सकते हैं। ताजा, गरमागरम
भी खा सकते हैं और आठ दस दिन बाद भी खा सकते हैं ।
अकाल अथवा तत्सम प्राकृतिक विपदा के समय विपुल
मात्रा में बनाकर दूर दूर के प्रदेशों में पहुँचा भी सकते हैं।
बनाने में सरल, स्वादमें उत्तम, पचने में सामान्य,
अत्यंत पोषक, किसी भी पदार्थ के साथ खा सकते हैं।
भोजन में कम परन्तु अल्पहार में अधिक चलने वाली यह
सुखडी देश के प्रत्येक राज्य तथा प्रदेशों में भिन्न नाम एवं
रुप से प्रचलित और आवकार्य है ।
३. कुलेर
बाजरे अथवा चावल का आटा सेंककर अथवा बिना
सेंके घी और गुड के साथ मिलाकर बनाया हुआ लडड कुलेर
कहा जाता है। सुख़डी की अपेक्षा कम प्रचलित परन्तु कभी
भी बनाई और खाई जा सकती है।
४. बेसन के लड्डू
चने की दाल का आटा अर्थात् बेसन के मोटे आटे
को घी में सेंककर उसमें पीसी हुई शक्कर मिलाकर बनाया
गया लड्डू अर्थात् बेसन का लड्डू । अत्यंत स्वादिष्ट, पौष्टिक,
मात्रा में साथ ले जा सकते हैं, कभी भी खा सकते हैं।
वैष्णव एवं स्वामीनारायण पंथ का यह प्रिय प्रसाद है।
श्घ९
घी में आटा सेंककर उसमें पानी और गुड मिलाकर
उसे उबालने पर पीने जैसा जो तरल पदार्थ बनता है वह है
Us | हलवा बनाने में प्रयुक्त सभी पदार्थ इसमें होते हैं परन्तु
राब पतली होती है। पीने योग्य है।
स्वादिष्ट, पाचनमें लघु, बीमारी के बाद भी पी सकते
हैं, शरीरकी ताकत बनाये रखती है।
कुछ लोग इसमें अजवाईन अथवा सूंठ भी डालते है।
पीपरीमूल का चूर्ण मिलाने से यही राब औषधीगुण धारण
करती है। कोई बारीक आटे की बनाता है तो कोई मोटे आटे
की । कोई गेहूँ के आटे की बनाता है तो कोई बाजरी अथवा
चावल के आटे की, जैसी जिसकी रुचि और सुविधा ।
६. चीला
चावल अथवा बेसन के आटे को पानी में घोलकर
उसमें नमक, हलदी, मिर्ची इत्यादि मसाले मिलाकर अच्छी
तरह से फेंटा जाता है। बाद में तवे पर तेल छोडकर उस पर
चम्मच से आटे का तैयार घोल डालकर रोटी की तरह
फैलाया जाता है। उसके किनारे पर थोडा थोडा तेल छोड़कर
उसे मध्यम आँच पर पकाया जाता है। एक दो मिनिट में
एक ओर से पक जाने पर उसे दूसरी ओर से भी सेंका जाता
है। यह पदार्थ मीठा अचार, खट्टी-मीठी चटनी के साथ
बहुत स्वादिष्ट लगता है। ख़ाने में कुछे वायुकारक मध्यम
प्रमाण में पोषक, बनाने में अत्यंत सरल, शीघ्र और खाने में
अति स्वादिष्ट ।
७. मालपुआ
गेहूं के आटे को पानी में भिगोकर घोल तैयार किया
जाता है। उसमें गुड मिलाया जाता है । बादमें चीले की
तरह ही पकाया जाता है। इसमें तेलके स्थान पर घी का
उपयोग होता है।
मालपुआ बनाने में थोडा कौशल्य आवश्यक है।
इसकी गणना मिष्टान्न में होती है और साधुओं को अतिप्रिय
है। इसे टूधपाक के साथ खाया जाता है।
घर में भी अनेक लोगों को पसंद होने पर भी चीले
जितना यह पदार्थ प्रसिद्ध एवं प्रचलित नहीं है।
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८. पकोड़े
बेसन के आटे का घोल बनाते हैं। आलू, केला,
बेंगन, मिर्ची, प्याज ऐसी कई सब्जियों से पतले टुकडे कर
उन्हें घोल में डूबोकर तलने से पकोडे तैयार होते हैं। इसका
पोषणमूल्य कम है पर खाने में अतिशय स्वादिष्ट है। बनाने
में सरल, अल्पाहार एवं भोजन दोनो में चलते हैं।
मेहमानदारी भी की जा सकती है।
गृहिणी कुशल है तो सोडा जैसी कोई चीज डाले
बिना भी पकोडे खस्ता हो सकते हैं।
९. बड़ा
बेसन का थोडा मोटा आटा लेकर उसमें सब मसालों
के साथ लौकी, मेथी अथवा उपलब्धता एवं रुचि के
अनुसार अन्य कोई सब्जी मिलाकर पकोडे की तरह तेल में
तलने पर बडे तैयार होते हैं। वह किसी भी प्रकार की
चटनी के साथ खाये जाते है।
पोषणमूल्य कम, कभी कभी अस्वास्थ्यकर, जब चाहे
तब और चाहे जितना नहीं खा सकते । स्वाद में लिज्जतदार,
अल्पाहारमें ठीक हैं । बनानेमें सरल ।
९. पोहे
पोहे पानी में धो कर उसमें से पूरा पानी निकाल कर
दो-पाँच मिनिट रहने देते हैं। बादमें उसमें नमक, मिर्च,
शक्कर, हल्दी इत्यादि मसाले मिलाकर बघारते हैं। दो तीन
मिनिट ढक्कन रख कर पकाते हैं। इतने पर पोहे खाने के
लिये तैयार हो जाते हैं।
इसके बघार में स्वाद एवं रुचि के अनुसार प्याज
अथवा आलू और हरीमिर्च, टमाटर इत्यादि का उपयोग
होता है। पोहे तैयार हो जाने पर परोसने के बाद उसे धनिया
एवं नारियल के बूरे से सजाया जाता है।
स्वादिष्ट, पौष्टिक, बनाने में सरल, कभी भी खाये जा
सकते हैं, परन्तु गरमागरम ही अच्छे लगते हैं। पाचन में
अति भारी नहीं। पेटभर खा सकें ऐसा नाश्ता। महाराष्ट्र
मध्यप्रदेश में अधिक प्रचलित ।
१०. मुरमुरे की चटपटी
मुरमुरे भीगोकर पूरा पानी निकालकर सब मसाले एवं
गाजर, पत्ता गोभी इत्यादि को मिलाकर थोडी देर पकाया
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
हुआ पदार्थ । मनचाहे मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता
है। मध्यम पौष्टिक, बनाने में सरल परन्तु पोहे से कम
प्रचलित ।
११, उपमा
सूजी सेंककर पानी बघारकर उसमें आवश्यक मसाले
डालकर उबलने के बाद उसमें सेंकी हुइ सूजी डालकर
पकाया गया पदार्थ । उसे नमकीन हलवा भी कह सकते हैं।
इसमें भी आलू, प्याज, टमाटर, मटर, Aree, fra,
नारियल, नीबू, कढीपत्ता, धनिया, इन सबका रुचि के
अनुसार उपयोग किया जाता है। सूजी के स्थान पर गेहूँ का
थोडा मोटा आटा, चावल अथवा ज्वार का आटा भी
उपयोग में लिया जा सकता है। स्वादिष्ट, पौष्टिक, झटपट
तैयार होनेवाला कभी भी खा सकें ऐसा सुलभ, सस्ता और
सर्वसामान्य रुप से सबको पसंद ऐसा पदार्थ । इसका प्रचलन
महाराष्ट्र और संपूर्ण दक्षिण भारतमें है। उत्तर एवं पूर्व में कम
प्रचलित तो कभी कभी अप्रचलित भी ।
१२. खीच
पानी उबालकर उसमें जीरे का चूर्ण, नमक, थोडी
हिंग, हरी अथवा लाल मिर्च, हलदी मिलाकर उसमें चावल
का आटा मिलाकर अच्छे से हिलाकर भाप से पकाया गया
पदार्थ । गरम रहते उसमें तेल डालकर खाया जाता है।
ऐसा भापसे पकाया आटा स्वादिष्ट, पौष्टिक, सुलभ
और सरल होता है। इसी आटेके पाप अथवा सेवईया भी
बनाई जाती हैं।
१३. चीकी
मूँगफली, तिल, नारियेल, बदाम, काजू इत्यादि के
टूकडे अथवा अलग अलग लेकर एकदम बारीक टुकडे कर
शक्कर अथवा गुड की चाशनी बनाकर उसमें ये चीजें
डालकर उसके चौकोन टुकडे बनाये जाते हैं । ठण्डा होने पर
कडक चीकी तैयार हो जाती है।
खाने में स्वादिष्ट, पचने में भारी, कफकारक, अतिशय
ठण्ड में ही खाने योग्य, बनाने में सरल पदार्थ ।
छोटे बडे सबको पसन्द परन्तु खाने में संयम बरतने
योग्य पदार्थ ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
१४. पूरी, थेपला इत्यादि
गेहूं का आटा मोन लगाकर, आवश्यक मसाला
डालकर, आवश्यकता के अनुसार पानी से गूंदकर बेलकर
के बनाया जाता हैं। पूरी अथवा थेपला, जो बनाना है
उसके अनुसार उसका आकार छोटा या बडा, पतला या
मोटा हो सकता है। ऐसा बेलने के बाद पूरी बनानी है तो
कडाईमे तेल लेकर तलना होता है। और थेपला बनाना है
तो तवे पर तेल डालकर सेंकना होता है। खट्टे अथवा मीठे
अचार के साथ, दूध अथवा चाय के साथ अथवा सब्जी के
साथ भी खा सकते हैं।
पौष्टिकता में थेपला प्रथम है, पूरी बादमें ।
गुजरात से लेकर समग्र उत्तर भारत में रोटी अथवा
पराठा के विविध रुपों में यह पदार्थ प्रचलित है, परिचित है,
और प्रतिष्ठित भी है।
१५, खमण
चने के आटे को पानी में भीगोकर, घोल बनाकर
उसमें सेडाबायकार्ब और नीबू का रस समप्रमाण में डालकर
फेंटकर जब वह फूला हुआ है तभी एक थाली में तेल
लगाकर उसमें डाला जाता है। बाद में उसे भाप देकर
पकाया जाता है। पक जाने के बाद चाकू से उसके
समचौकोन टुकडे काट कर उस पर लाल अथवा हरीमिर्च,
हिंग, तिल, राई इत्यादि डाल कर छोंक डाला जाता है।
खमण शीघ्र बनता है, खाने में स्वादिष्ट है परन्तु
पौष्टिकता निम्नकक्षा की है। खाने में अतिशय संयम बरतना
पडता है।
१६, थालीपीठ
बाजरी, चावल, गेहूं, चने की दाल, ज्वारी, धनिया-
जीरा इत्यादि सब पदार्थ आवश्यक अनुपात में अलग अलग
सेंककर ठण्डा होने के बाद एकत्र कर चक्की में पिसना होता
है। उस आटे को 'भाजनी' कहे है। गरम पानी में नरम सा
आटा TSR TA Ta पर तेल लगाकर उसपर यह आटेका
गोला रखकर हाथसे थपथपाकर रोटी जैसा बनाया जाता है ।
आटे में स्वाद के लिये आवश्यकता के अनुसार मसाले डाले
जाते हैं। लौकी, मेथी अथवा प्याज भी डाल सकते हैं।
तेल डालकर अच्छा सेंक लेनेके बाद वह खानेके
१७१
लिये तैयार होता है। मखखन अथवा
धीके
साथ,
दही अथवा छाछ के साथ अथवा चटनी के साथ खाया
जाता है। स्वादिष्ट, पोषक और पचने में हलका, बनानेमें
सरल पदार्थ है।
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यहाँ तो केवल नमूने के लिये पदार्थ बताये गये हैं।
भारत के प्रत्येक प्रान्त में एसे अनेकविध पदार्थ बनते हैं।
थोडा अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि झटपट बनने वाले
सस्ते, सुलभ, स्वादिष्ट और पौष्टिक एसे विविध पदार्थों
बनाने में भारत की गृहणी कुशल है। आधुनिक युग ही
इन्सटन्ट फूड का है ऐसा नहीं है, प्राचीन समय से यह प्रथा
चली आ रही है।
२. प्रचलित जंकफूड
जंकफूड से तात्पर्य है ऐसे पदार्थ जो स्वाद में तो
बहुत चटाकेदार लगते हैं परन्तु जिनका पोषणमूल्य बहुत
कम होता है। साथ ही ये बासी पदार्थ होते हैं । मुख्य भोजन
में से बचे हुए पदार्थों से पुनःप्रक्रिया करने के बाद तैयार
किये जाते हैं।
इस दृष्टि से भारत में प्रचलित रुप से बनने वाले
जंकफूड कुछ इस प्रकार हैं ।
१. रोटीचूरा
रात के भोजन से बची हुई रोटी को मसलकर उसका
या तो चूर्ण बनाया जाता है, या छोटे छोटे टुकडे। उसमें
नमक, मिर्च आदि मनपसन्द मसाला डालकर छौंककर गरम
किया जाता है। उसे रोटी का उपमा कह सकते हैं। उसी
TAR Oe Sim कर उसमें रोटी के थोडे बडे टुकडे डाले
जाते हैं और रुचि के अनुसार मसाले डाले जाते है।
२. रोटी का लडू
बची हुई रोटी को मसलकर उसका बारीक चूर्ण
बनाकर उसमे घी और गुड मिलाकर, गरम कर अथवा बिना
गरम किये लडडु बनाये जाते हैं।
३. खिचडी के पराठे, पकौडे
बची हुई खिचडी में गेहूं का आटा मिलाकर, अच्छी
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तरह गूँधकर उसके पराठे बनाये जाते हैं ।
उसमें बेसन मिलाकर पकौडे तले जाते हैं या गेहूँ चने आदि दो
तीन प्रकार का आटा मिलाकर उसके छोटे छोटे गोले बनाकर,
उन्हे भाँप पर पकाकर फिर छौँक कर बडे या बडियाँ बनाई
जाती हैं। खिचडी में इसी प्रकार से आटा मिलाकर, उसे
गूँधकर खाखरा या सूखी रोटी बनाई जाती है।
४. दालभात मिक्स
बचे हुए चावल और दाल अच्छी तरह मिलाकर
छौंककर गरम किया जाता है।
इसी प्रकार चावल या खिचडी भी मसाला डालकर
छौँकी जाती है।
५. दाल पापडी
बची हुई दाल को छौँककर उसे पानी डालकर पतली
बनाकर उसमें मसालेदार आटे की रोटी बेलकर उसके छोटे
छोटे टुकडे डालकर उबाले जाते हैं और उस पर छौंक
लगाई जाती है।
६. कटलेस
बचे हुए दाल, चावल, सब्जी, चूरा बनाई हुई रोटी
आदि को मिलाकर, मसलकर उसमें आवश्यकता के अनुसार
सूजी या मोटा आटा मिलाकर छोटी छोटी कटलेस सेंकी या
तली जाती हैं।
७. भेल
दीपावली, जन्माष्टमी, आदि त्योहारों पर जब विविध
प्रकार के व्यंजन थोडे थोडे बचे हुए होते हैं तब सबको
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
मिलाकर खट्टी मीट्टी चटनी के साथ खाया जाता है।
८. सखडी
जितने भी पदार्थ भोजन में बने हैं उन सबको अच्छी
तरह मिलाकर नमक मिर्च तेल डालकर खाया जाता है।
९. रात की बची हुई रोटी
बासी रोटी और दही बहुत लोगों को बहुत अच्छा
लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर
बासी बनाकर खाई जाती है।
ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और
बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये
स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की
परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक
कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते
हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा
कारण यह है कि बचे हुए पदार्थों को फैंकना गृहिणी को
अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता
नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी
अपना कौशल दिखाती है।
सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है।
भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में
माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं ।
परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात
हमेशा ध्यान में रखना आवश्यक है ।
अन्न विचार
अन्न सभी प्राणियों का जीवन
अन्न ब्रह्म है ।
अन्न की निन्दा न करें ।
अन्न को पवित्र मानें ।
अन्न को देवता मानें ।
अन्न का सम्मान करें ।
अन्न का प्रभाव पाँचों कोशों पर
अन्न से शरीर आरोग्यवान होता है ।
अन्न से प्राणों का पोषण होता है ।
जैसा अन्न वैसा मन ।
अन्न से बुद्धि का विकास होता है ।
अन्न से चित्तशुद्धि होती है ।
इस बात को समझ कर भोजन करें ।
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
भोजनयज्ञ
भोजन भोग नहीं है ।
भोजन विलास नहीं है ।
भोजन यज्ञ है ।
भोजन जठरान्नि में दी हुई आहुति है ।
भोजन से पुष्ट शरीर धर्माचरण का साधन है ।
भोजन पर सबका अधिकार
स्मरण रहे
जीवनरक्षा हेतु भोजन आवश्यक है ।
सभी प्राणियों को जीना होता है,
अतः सभी प्राणियों के भोजन प्राप्त करने के
अधिकार को मान्य करें ।
स्मरण रहे
भगवान भूखा जगाते हैं, भूखा सोने नहीं देते ।
भगवान ने दाँत दिये हैं तो चबेना देंगे ही ।
हम भगवान का निमित्त बनें और भूखों को
भोजन देकर उन्हें सन्तुष्ट करें ।
हितभुकू, मितभुक्, कऋतभुक्
हितभुक् : शरीर को अनुकूल ऐसा भोजन करें
प्रतिकूल भोजन का त्याग करें ।
मितभुक् : भूख से जरा कम खायें । दूँस ga
कर न खायें । स्मरण रहे पेट का आधा हिस्सा
भोजन से भरें, एक चौथाई हिस्सा पानी से भरें और
एक चौथाई हिस्सा वायु के लिये खाली छोडें ।
ऋऋतभुक् : नीतिपूर्वक प्राप्त किया हुआ अन्न
ही सेवन करें । लूटकर, चोरीकर, छीनकर, किसीको
दुःख पहुँचा कर,कपटपूर्वक प्राप्त किया हुआ भोजन
a at | fern, frp, ऋतभुक् व्यक्ति ही पूर्ण
स्वस्थ रहता है ।
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भोजन और संस्कार
पेटू की तरह भोजन न करें ।
अपवित्र और अस्वच्छ परिवेश में भोजन न
करें ।
अन्न का अपव्यय न करें ।
हाथ और थाली गंदी कर, अन्न को इधरउधर
गिरा कर, मुँह से आवाज करते हुए, बडे बडे कौर
मुँह में दूँसते हुए भोजन न करें ।
शिष्ट और सभ्य तरीके से भोजन करें ।
भोजन केवल पेट भरने के लिये नहीं होता,
भोजन मन की शिक्षा के लिये भी होता है ।
खिलाकर खायें
अपने स्वयं के धन से खरीद किये हुए, अपने
स्वयं के श्रम से पैदा किये हुए अथवा प्रकृति की
कृपा से प्राप्त भोजन पर भूखों का अधिकार मानें
और
अपने अन्न में से अधिकतम जितने लोगों को
और प्राणियों को दे सकते हैं दें और बाद में जिसे
आप अपना मानते हैं उस अन्न का उपभोग करें ।
सात्त्विक आहार
जिससे अधिकतम रस बनता है,
जो स्निग्ध है, घर्षण कम करता है,
जो स्थिरता प्रदान करता है,
जो मन को प्रसन्न बनाता है,
वह आहार सात्त्विक होता है ।सात्त्तिक आहार
का सेवन करने से आयु, बल बुद्धि, वीर्य, सुख और
प्रसन्नता में वृद्धि होती है ।
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राजस आहार
तीखा, चरपरा, खट्टा, खारा, बहुत गरम,
रूखा, आँखों में, नाक में पानी लाने वाला आहार
राजस है ।
राजस आहार से दुःख, शोक और अस्वास्थ्य
बढ़ता है ।
तामस आहार
बासी, बिगडा हुआ, अपवित्र, जूठा, निषिद्ध
आहार तामस है ।
तामस आहार से जडता, मूढ़ता, आलस्य और
Ware sed हैं ।
बाजार का अन्न न खायें
बाजार का अन्न किसी ने प्रेम से बनाया हुआ
नहीं होता है ।
वह पैसा कमाने हेतु बनाया होता है ।
बाजार का अन्न ताजा और शुद्ध होने की
निश्चितता नहीं होती ।
बाजार का अन्न पवित्र होने की सम्भावना
नहीं होती ।
बाजार का अन्न संस्कारवान व्यक्ति द्वारा बना
होने की निश्चितता नहीं होती ।
इसलिये बाजार का अन्न खाने से असंस्कारिता
और तामसी वृत्ति बढ़ने की सम्भावना होती है ।
उससे बचना ही अच्छा है ।
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
भोजन बनाना श्रेष्ठ कार्य है ।
भोजन से चरित्र निर्माण होता है ।
भोजन से सुदूढ सम्बन्ध स्थापित होते हैं ।
भोजन से शरीर पुष्ट बनता है ।
भोजन बनाने से उत्तम और श्रेष्ठ बातों के लिये
निमित्त बना जा सकता है ।
इसलिये भोजन बनाना श्रेष्ठ कार्य है ।
अन्न का दान होता है, विक्रय नहीं
अन्न जीवनधारक है ।
अन्न प्रकृति का दान है ।
अन्न को प्रकृति ने सबके लिये बनाया है ।
इसलिये उसका मूल्य पैसे से नहीं होता है ।
उसका दान ही होता है ।
हम अन्नदान इतना अधिक करें कि उसका
विक्रय बन्द हो जाय ।
अन्न का अपमान न करें
अन्न को कूडेदान में न फेंके ।
अन्न को गटर में न बहायें ।
अन्न को पैरों तले न कुचलें ।
अन्न को झाड़ू से न बुहारें ।
अन्न को गंदी चीजों के साथ न मिलायें ।
अन्न देवता है ।
अन्न पत्रित्र है ।
अन्न का अपमान नहीं करना सुसंस्कृत मनुष्य
का लक्षण है ।
श्9्ढ
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