Line 23: |
Line 23: |
| | | |
| == Etymology == | | == Etymology == |
− | '''[[Amarakosha]]''' defines the following about Surya in व्योमादिवर्ग (Prathama kanda Slokas 29 - 32) <blockquote>" | + | '''[[Amarakosha]]''' defines the following about Surya in व्योमादिवर्ग (Prathama kanda Slokas 29 - 32) <blockquote>"सूरसुर्यार्यमादित्यद्वादशात्मदिवाकराः । भास्कराहस्करव्रध्नप्रभाकरदिवाकराः || (Amara 1. व्योमा. 29)"</blockquote><blockquote>"भास्वद्विस्वत्सप्ताश्वहरिदश्वोष्णरश्मयः । विकर्तनार्कमार्तण्डमिहिरारुणपूषणः || (Amara 1. व्योमा. 30)"</blockquote><blockquote>"द्युमणिस्तरणिर्मित्रस्चित्रभानुर्विरोचनः । विभावसुर्ग्रहपतिस्त्विषांपतिरहर्पतिः || (Amara 1. व्योमा. 31)"</blockquote><blockquote>"भानुर्हंसः सहस्रांशुस्तपनः सविता रविः । माठरः पिङ्लो दण्डश्चण्डांशोः पारिपार्श्विकाः || (Amara 1. व्योमा. 32)"</blockquote>Synonyms for Surya include Soora, Surya, Yama, Aditya, Dwadashatma, Divakara, Bhaskara, Ahaskara, Martanda, Aruna, Pushana, Tarani, Mitra, Chitrabhanu, Tapana and many others as given above. |
− | सूरसुर्यार्यमादित्यद्वादशात्मदिवाकराः । भास्कराहस्कर'''व्र'''ध्नप्रभाकरदिवाकराः || (Amara 1. व्योमा. 29)"</blockquote><blockquote>" | |
− | भास्वद्विस्वत्सप्ताश्वहरिदश्वोष्णरश्मयः । विकर्तनार्कमार्तण्डमिहिरारुणपूषणः || (Amara 1. व्योमा. 30)"</blockquote><blockquote>" | |
− | द्युमणिस्तरणिर्मित्रस्चित्रभानुर्विरोचनः । विभावसुर्ग्रहपतिस्त्विषांपतिरहर्पतिः || (Amara 1. व्योमा. 31)"</blockquote><blockquote>" | |
− | भानुर्हंसः सहस्रांशुस्तपनः सविता रविः । माठरः पिङ्लो दण्डश्चण्डांशोः पारिपार्श्विकाः || (Amara 1. व्योमा. 32)"</blockquote>Synonyms for Surya include Soora, Surya, Yama, Aditya, Dwadashatma, Divakara, Bhaskara, Ahaskara, Martanda, Aruna, Pushana, Tarani, Mitra, Chitrabhanu, Tapana and many others as given above. | |
| | | |
| [[Sayanacharya (सायनाचार्यः)|Sayanaacharya]] in '''Saayanabhashyam''' while defining Surya, explains:<blockquote>"sushtu aryaha swami sarvantharaymi thaya sushtu prerakaha” (Ref?)"</blockquote>Meaning : The best of the masters, sarvatharayami (one who dwells everywhere), the best inspirer- such paramatma is compared to Surya. | | [[Sayanacharya (सायनाचार्यः)|Sayanaacharya]] in '''Saayanabhashyam''' while defining Surya, explains:<blockquote>"sushtu aryaha swami sarvantharaymi thaya sushtu prerakaha” (Ref?)"</blockquote>Meaning : The best of the masters, sarvatharayami (one who dwells everywhere), the best inspirer- such paramatma is compared to Surya. |
| | | |
− | Yaska maharshi explains in '''Nirukthi'''<blockquote>" | + | Yaska maharshi explains in '''Nirukthi'''<blockquote>"“suryaha sathirva suthirva suryathe va” (Ref?)"</blockquote>Meaning : Surya is One who travels, one who creates and one who inspires. |
− | “suryaha sathirva suthirva suryathe va” (Ref?)"</blockquote>Meaning : Surya is One who travels, one who creates and one who inspires. | |
| | | |
− | The mantras connected to Surya, are chanted and recited by those who perform their daily sandhyavandanam, as Surya is the 'preraka (inspirer) to perform one's Karma. Rig Mantras consider Surya as the eyes of Vedapurusha and the 'antaratma' as explained in '''Rig Samhita''' as follows <blockquote>" | + | The mantras connected to Surya, are chanted and recited by those who perform their daily sandhyavandanam, as Surya is the 'preraka (inspirer) to perform one's Karma. Rig Mantras consider Surya as the eyes of Vedapurusha and the 'antaratma' as explained in '''Rig Samhita''' as follows <blockquote>"चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः |"</blockquote><blockquote>"आप्रा दयावाप्र्थिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च || (Rig Veda 1.115.1)</blockquote><blockquote>"citraṃ devānāmudaghādanīkaṃ cakṣurmitrasya varuṇasyāghneḥ |"</blockquote><blockquote>"āprā dyāvāpṛthivī antarikṣaṃ sūrya ātmā jaghatastasthuṣaśca || (Rig Veda 1.115.1)"</blockquote>Meaning : One who is “antaryami taya sarvasya prerakaha paramatma” according to Sayana Acarya whose commentary says that 'Surya is the atma of the universe and the cause of the universe'. |
− | चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याग्नेः |"</blockquote><blockquote>" | |
− | आप्रा दयावाप्र्थिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च || (Rig Veda 1.115.1)"</blockquote><blockquote>" | |
− | citraṃ devānāmudaghādanīkaṃ cakṣurmitrasya varuṇasyāghneḥ |"</blockquote><blockquote>" | |
− | āprā dyāvāpṛthivī antarikṣaṃ sūrya ātmā jaghatastasthuṣaśca || (Rig Veda 1.115.1)"</blockquote>Meaning : One who is “antaryami taya sarvasya prerakaha paramatma” according to Sayana Acarya whose commentary says that 'Surya is the atma of the universe and the cause of the universe'. | |
| | | |
| '''Taitriya Aranyaka''' explains <blockquote>"yo asau tapan udethi' (1.14.1) "</blockquote>Meaning : Surya is the atma of the universe. | | '''Taitriya Aranyaka''' explains <blockquote>"yo asau tapan udethi' (1.14.1) "</blockquote>Meaning : Surya is the atma of the universe. |
Line 45: |
Line 36: |
| | | |
| == Surya Suktams in Rigveda == | | == Surya Suktams in Rigveda == |
− | Surya is a prominent as Mitra and Savitru in many Rig veda mantras and the Surya or saura sukas in Rig veda are numbered as follows : 1.50. 1 to 13, 1.115. 1 to 6, 1.164.46 among many others. The following is the famous Rig veda soura suktam which is recited by many people across India. | + | Surya is a prominent as Mitra and Savitru in many Rig veda mantras and the Surya or saura sukas in Rig veda are numbered as follows : 1.50. 1 to 13, 1.115. 1 to 6, 1.164.46 among many others. The following is the famous Rig veda soura suktam which is recited by many people across India. <blockquote>नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तद रतंसपर्यत |</blockquote><blockquote>दूरेद्र्शे देवजाताय केतवे दिवस पुत्रायसूर्याय शंसत || 1 ||</blockquote><blockquote>सा मा सत्योक्तिः परि पातु विश्वतो दयावा च यत्रततनन्नहानि च |</blockquote><blockquote>विश्वमन्यन नि विशते यदेजतिविश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्यः || 2 ||</blockquote><blockquote>न ते अदेवः परदिवो नि वासते यदेतशेभिः पतरैरथर्यसि |</blockquote><blockquote>पराचीनमन्यदनु वर्तते रज उदन्येनज्योतिषा यासि सूर्य || 3 ||</blockquote><blockquote>येन सूर्य जयोतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षिभानुना |</blockquote><blockquote>तेनास्मद विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्वप्न्यं सुव || 4 ||</blockquote><blockquote>विश्वस्य हि परेषितो रक्षसि वरतमहेळयन्नुच्चरसिस्वधा अनु |</blockquote><blockquote>यदद्य तवा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवानु मंसीरत करतुम || 5 ||</blockquote><blockquote>तं नो दयावाप्र्थिवी तन न आप इन्द्रः शर्ण्वन्तु मरुतोहवं वचः |</blockquote><blockquote>मा शूने भूम सूर्यस्य सन्द्र्शिभद्रं जीवन्तो जरणामशीमहि || 6 ||</blockquote><blockquote>विश्वाहा तवा सुमनसः सुचक्षसः परजावन्तो अनमीवानागसः |</blockquote><blockquote>उद्यन्तं तवा मित्रमहो दिवे-दिवे जयोग जीवाःप्रति पश्येम सूर्य || 7 ||</blockquote><blockquote>महि जयोतिर्बिभ्रतं तवा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषे चक्षुषे मयः |</blockquote><blockquote>आरोहन्तं बर्हतः पाजसस परि वयंजीवाः परति पश्येम सूर्य || 8 ||</blockquote><blockquote>यस्य ते विश्वा भुवनानि केतुना पर चेरते नि च विशन्तेक्तुभिः |</blockquote><blockquote>अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्याह्नाह्ना नोवस्यसा-वस्यसोदिहि || 9 ||</blockquote><blockquote>शं नो भव चक्षसा शं नो अह्ना शं भानुना शंहिमा शं घर्णेन |</blockquote><blockquote>यथा शमध्वञ्छमसद दुरोणेतत सूर्य दरविणं धेहि चित्रम || 10 ||</blockquote><blockquote>अस्माकं देवा उभयाय जन्मने शर्म यछत दविपदेचतुष्पदे |</blockquote><blockquote>अदत पिबदूर्जयमानमाशितं तदस्मेशं योररपो दधातन || 11 ||</blockquote><blockquote>यद वो देवाश्चक्र्म जिह्वया गुरु मनसो वा परयुतीदेवहेळनम |</blockquote><blockquote>अरावा यो नो अभि दुछुनायते तस्मिन तदेनोवसवो नि धेतन || 12 || (Rig Veda 10.037.1 to 12)</blockquote> |
− | | |
− | नमो मित्रस्य वरुणस्य चक्षसे महो देवाय तद रतंसपर्यत | | |
− | दूरेद्र्शे देवजाताय केतवे दिवस पुत्रायसूर्याय शंसत || 1 | |
− | | |
− | | |
− | सा मा सत्योक्तिः परि पातु विश्वतो दयावा च यत्रततनन्नहानि च | | |
− | विश्वमन्यन नि विशते यदेजतिविश्वाहापो विश्वाहोदेति सूर्यः || 2 | |
− | | |
− | | |
− | न ते अदेवः परदिवो नि वासते यदेतशेभिः पतरैरथर्यसि | | |
− | पराचीनमन्यदनु वर्तते रज उदन्येनज्योतिषा यासि सूर्य || 3 | |
− | | |
− | | |
− | येन सूर्य जयोतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षिभानुना | | |
− | तेनास्मद विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्वप्न्यं सुव || 4 | |
− | | |
− | | |
− | विश्वस्य हि परेषितो रक्षसि वरतमहेळयन्नुच्चरसिस्वधा अनु | | |
− | यदद्य तवा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवानु मंसीरत करतुम || 5 | |
− | | |
− | | |
− | तं नो दयावाप्र्थिवी तन न आप इन्द्रः शर्ण्वन्तु मरुतोहवं वचः | | |
− | मा शूने भूम सूर्यस्य सन्द्र्शिभद्रं जीवन्तो जरणामशीमहि || 6 | |
− | | |
− | | |
− | विश्वाहा तवा सुमनसः सुचक्षसः परजावन्तो अनमीवानागसः | | |
− | उद्यन्तं तवा मित्रमहो दिवे-दिवे जयोग जीवाःप्रति पश्येम सूर्य || 7 | |
− | | |
− | | |
− | महि जयोतिर्बिभ्रतं तवा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषे चक्षुषे मयः | | |
− | आरोहन्तं बर्हतः पाजसस परि वयंजीवाः परति पश्येम सूर्य || 8 | |
− | | |
− | | |
− | यस्य ते विश्वा भुवनानि केतुना पर चेरते नि च विशन्तेक्तुभिः | | |
− | अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्याह्नाह्ना नोवस्यसा-वस्यसोदिहि || 9 | |
− | | |
− | | |
− | शं नो भव चक्षसा शं नो अह्ना शं भानुना शंहिमा शं घर्णेन | | |
− | यथा शमध्वञ्छमसद दुरोणेतत सूर्य दरविणं धेहि चित्रम || 10 | |
− | | |
− | | |
− | अस्माकं देवा उभयाय जन्मने शर्म यछत दविपदेचतुष्पदे | | |
− | अदत पिबदूर्जयमानमाशितं तदस्मेशं योररपो दधातन || 11 | |
− | | |
− | | |
− | यद वो देवाश्चक्र्म जिह्वया गुरु मनसो वा परयुतीदेवहेळनम | | |
− | अरावा यो नो अभि दुछुनायते तस्मिन तदेनोवसवो नि धेतन || 12 (Rig Veda 10.037.1 to 12) | |
| | | |
| == देवतास्वरुपम् ॥ Surya Devataswaroopam == | | == देवतास्वरुपम् ॥ Surya Devataswaroopam == |
Line 126: |
Line 70: |
| | | |
| ====== Karma Pravrittaka ====== | | ====== Karma Pravrittaka ====== |
− | Rk Samhita explains <blockquote>" | + | Rk Samhita explains <blockquote>"तत् सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं सं जभार | |
− | तत् सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्विततं सं जभार |"</blockquote><blockquote>" | |
| यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै || (Rig Samhita 1.115.4)" | | यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै || (Rig Samhita 1.115.4)" |
| | | |