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इस यूरो-अमरिकी प्रतिमान को मानने वाले दो तबके हैं। एक तबका है ईसाईयत के तत्त्वज्ञान को आधार मानने वाला। और दूसरा है यूरो-अमरिकी और उन का अनुसरण करने वाले दार्शनिकों का और साईंटिस्टों का। वैसे तो आधुनिक साईंस ने ईसाईयत के कई गंभीर सिध्दांतों की धज्जियाँ उडा दी है, लेकिन फिर भी मोटा-मोटी दोनों तबकों का तत्वज्ञान एक ही है। इस लिये जीवन का प्रतिमान भी एक ही है। इन का तत्वज्ञान निम्न है।
 
इस यूरो-अमरिकी प्रतिमान को मानने वाले दो तबके हैं। एक तबका है ईसाईयत के तत्त्वज्ञान को आधार मानने वाला। और दूसरा है यूरो-अमरिकी और उन का अनुसरण करने वाले दार्शनिकों का और साईंटिस्टों का। वैसे तो आधुनिक साईंस ने ईसाईयत के कई गंभीर सिध्दांतों की धज्जियाँ उडा दी है, लेकिन फिर भी मोटा-मोटी दोनों तबकों का तत्वज्ञान एक ही है। इस लिये जीवन का प्रतिमान भी एक ही है। इन का तत्वज्ञान निम्न है।
 
यूरो-अमरिकी मजहबी दृष्टि के अनुसार विश्व के निर्माण की मान्यता एक जैसी ही है। येहोवा/गॉड/ अल्ला ने पाँच दिन सृष्टि का निर्माण किया आप्रर छठे दिन मानव का निर्माण कर मानव से कहा कि ' यह चर-अचर सृष्टि तुम्हारे उपभोग केलिये है'।  
 
यूरो-अमरिकी मजहबी दृष्टि के अनुसार विश्व के निर्माण की मान्यता एक जैसी ही है। येहोवा/गॉड/ अल्ला ने पाँच दिन सृष्टि का निर्माण किया आप्रर छठे दिन मानव का निर्माण कर मानव से कहा कि ' यह चर-अचर सृष्टि तुम्हारे उपभोग केलिये है'।  
यूरो अमरिकी समाज पर फ्रांसिस बेकन आप्रर रेने देकार्ते इन दो फिलॉसॉफरों क ी फिलॉसॉफिी का गहरा प्रभाव है। इन का तत्त्वज्ञान कहता है कि प्रकृति मानव की दासी है। इसे कस कर अपनी जकड में रखना चाहिये। मानव जम कर इस का शोषण कर सके इसी लिये इस का निर्माण हुवा है। इस लिये प्रकृतिे का मानव ने जम कर (टू द हिल्ट) शोषण करना चाहिये।
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यूरो अमरिकी समाज पर फ्रांसिस बेकन आप्रर रेने देकार्ते इन दो फिलॉसॉफरों क ी फिलॉसॉफिी का गहरा प्रभाव है। इन का तत्त्वज्ञान कहता है कि प्रकृति मानव की दासी है। इसे कस कर अपनी जकड में रखना चाहिये। मानव जम कर इस का शोषण कर सके इसी लिये इस का निर्माण हुवा है। इस लिये प्रकृतिे का मानव ने जम कर (टू द हिल्ट) शोषण करना चाहिये।
यूरो-अमरिकी साईंटिस्टों और उन का अनुसरण करने वाले भारतीय समेत विश्व के सभी साईंटिस्टों की विश्वदृष्टि का आधार डार्विन की ' विकास वाद' और मिलर की 'जड से रासायनिक प्रक्रिया से जीव निर्माण' की परिकल्पनाएं ही हैं। मानव इन रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदों में सर्वश्रेष्ठ है। इस लिये इसे अपने स्वार्थ के लिये अन्य रासायनिक प्रक्रियाएं नष्ट करने का पूरा अधिकार है।
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यूरो-अमरिकी साईंटिस्टों और उन का अनुसरण करने वाले भारतीय समेत विश्व के सभी साईंटिस्टों की विश्वदृष्टि का आधार डार्विन की ' विकास वाद' और मिलर की 'जड से रासायनिक प्रक्रिया से जीव निर्माण' की परिकल्पनाएं ही हैं। मानव इन रासायनिक प्रक्रियाओं के पुलिंदों में सर्वश्रेष्ठ है। इस लिये इसे अपने स्वार्थ के लिये अन्य रासायनिक प्रक्रियाएं नष्ट करने का पूरा अधिकार है।
मजहब या रिलीजन, फिलॉऑफरों की फिलॉसॉफि और साईंटिस्टों के एप्रसे तीनों के प्रभाव के कारण जो अभारतीय जीवन दृष्टि बनीं है उस के तीन मुख्य पहलू हैं।
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मजहब या रिलीजन, फिलॉऑफरों की फिलॉसॉफि और साईंटिस्टों के एप्रसे तीनों के प्रभाव के कारण जो अभारतीय जीवन दृष्टि बनीं है उस के तीन मुख्य पहलू हैं।
 
१. व्यक्तिवादिता : सारी सृष्टि केवल मेरे उपभोग के लिये बनीं है।
 
१. व्यक्तिवादिता : सारी सृष्टि केवल मेरे उपभोग के लिये बनीं है।
 
२. जडवादिता : सृष्टि में सब जड ही है। चेतनावान कुछ भी नहीं है।  
 
२. जडवादिता : सृष्टि में सब जड ही है। चेतनावान कुछ भी नहीं है।  
३. इहवादिता : जो कुछ है यही जन्म है। इस से नहीं तो पहले कुछ था और ना ही आगे कुछ है।
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३. इहवादिता : जो कुछ है यही जन्म है। इस से नहीं तो पहले कुछ था और ना ही आगे कुछ है। इस जीवनदृष्टि के अनुसार जो व्यवहार सूत्र बने वे निम्न हैं।  
इस जीवनदृष्टि के अनुसार जो व्यवहार सूत्र बने वे निम्न हैं।  
   
१. अनिर्बाध व्यक्तिस्वातंत्र्य (अनलिमिटेड इंडिव्हिज्युल लिबर्टि)।
 
१. अनिर्बाध व्यक्तिस्वातंत्र्य (अनलिमिटेड इंडिव्हिज्युल लिबर्टि)।
 
२. बलवान ही जीने का अधिकारी (व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट)।  
 
२. बलवान ही जीने का अधिकारी (व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट)।  
 
३. दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)।
 
३. दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)।
४. सारी चराचर सृष्टि मेरे अनिर्बाध उपभोग के लिये बनी है। इस पर मेरा अधिकार है। इस के प्रति मेरा
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४. सारी चराचर सृष्टि मेरे अनिर्बाध उपभोग के लिये बनी है। इस पर मेरा अधिकार है। इस के प्रति मेरा कोई कर्तव्य नहीं है। (राईट्स् बट नो डयूटीज)
    कोई कर्तव्य नहीं है। (राईट्स् बट नो डयूटीज)
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५. अन्य मानव भी सृष्टि का उपभाप्रग अपना अनिर्बाध अधिकार मानते हैं। इस लिये मुझे अपने उपभोग (जीने) के लिये अन्यों से संघर्ष करना होगा। (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)।  
५. अन्य मानव भी सृष्टि का उपभाप्रग अपना अनिर्बाध अधिकार मानते हैं। इस लिये मुझे अपने उपभोग (जीने)  
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६. उपभोग के लिये मुझे केवल यही जीवन मिला है। इस जीवन से पहले मै नहीं था आप्रर इस जीवन के समाप्त होने के बाद भी मै नहीं रहूंग़ा। इस लिये जितना उपभोग कर सकूँ, कर लूँ। (कंझ्यूमेरिझम्)। इहवादिता (धिस इज द ओन्ली लाईफ। देयर वॉज नथिंग बिफोर एँड देयर शॅल बी नथिंग बियाँड धिस लाईफ)  
  के लिये अन्यों से संघर्ष करना होगा। (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)।  
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७. मेरी रासायनिक प्रक्रिया (जीवन) अच्छी चले (स्वार्थ) यह महत्वपूर्ण है। इस लिये किसी अन्य रासायनिक प्रक्रिया में बाधा आती है (परपीडा होती है) तो भले आये। अन्य कोई रासायनिक प्रक्रिया बंद होती है (जीवन नष्ट होता है) तो भले हो जाये।  
६. उपभोग के लिये मुझे केवल यही जीवन मिला है। इस जीवन से पहले मै नहीं था आप्रर इस जीवन के  
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८. चैतन्य को नकारने के कारण सृष्टि के विभिन्न अस्तित्वों में स्थित अंतर्निहित एकात्मता को अमान्य करने के कारण टुकडों में विचार करने की सोच। (पीसमील एॅप्रोच)।  
  समाप्त होने के बाद भी मै नहीं रहूंग़ा। इस लिये जितना उपभोग कर सकूँ, कर लूँ। (कंझ्यूमेरिझम्)।  
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९. सभी सामाजिक और सृष्टिगत संबंधों का आधार स्वार्थ ही है। सामाजिक संबंधों का आधार इसी लिये 'काँट्रॅक्ट' या करार या समझौता या एॅग्रीमेंट होता है।
  इहवादिता (धिस इज द ओन्ली लाईफ। देयर वॉज नथिंग बिफोर एँड देयर शॅल बी नथिंग बियाँड धिस  
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  लाईफ)  
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७. मेरी रासायनिक प्रक्रिया (जीवन) अच्छी चले (स्वार्थ) यह महत्वपूर्ण है। इस लिये किसी अन्य रासायनिक  
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  प्रक्रिया में बाधा आती है (परपीडा होती है) तो भले आये। अन्य कोई रासायनिक प्रक्रिया बंद होती है  
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  (जीवन नष्ट होता है) तो भले हो जाये।  
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८. चैतन्य को नकारने के कारण सृष्टि के विभिन्न अस्तित्वों में स्थित अंतर्निहित एकात्मता को अमान्य करने के  
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  कारण टुकडों में विचार करने की सोच। (पीसमील एॅप्रोच)।  
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९. सभी सामाजिक और सृष्टिगत संबंधों का आधार स्वार्थ ही है। सामाजिक संबंधों का आधार इसी लिये  
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  'काँट्रॅक्ट' या करार या समझौता या एॅग्रीमेंट होता है।
      
== भारतीय तत्त्वज्ञान और जीवन दृष्टि पर आधारित व्यवहार सूत्र ==
 
== भारतीय तत्त्वज्ञान और जीवन दृष्टि पर आधारित व्यवहार सूत्र ==
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